हर फ्रिज़ कुछ कहता है- तीन

आरफा ने टिप्पणी में लिखा है कि लोग फ्रिज़ पर हाथ रखकर तस्वीरें खींचाते थे । उसी से याद आया कि यह भी ध्यान रखा जाता था कि फोटो फ्रेम में फ्रिज़ रहे । फ्रिज़ पहचान के सवाल से जुड़ा था इसलिए इसके कवर में बहुत सारी प्रतिभाओं का इस्तमाल हुआ । महिलाएं क्रोशिये की मदद से टॉप कवर बनाने लगीं । बाद में प्लास्टिक के बेकार लगने वाले कवर आने लगे । फ्रिज़ के हैंडल को भी सज़ावटी कवर से ढंका जाने लगा । फ्रिज़ के आस पास खास किस्म का सौंदर्यशास्त्र तैयार हो गया । इसी के साथ आईस ट्रे में बर्फ जमाने के तरीके मनोरमा और मेरे सहेली जैसी पत्रिकाओं में छपने लगे । पड़ोस की कोई लड़की इसमें उस्ताद हो गई तो वह बेहतरीन संभावित बहुओं की सूचि में पहले नंबर पर मानी जाती थी । कि मोना क्या बढ़िया आईसक्रीम जमाती है । इसी के साथ बर्फ जमाने की भी ढेरों नाकाम कहानियां हैं । हम तो जमा ही नहीं पाए । अंत में आईसट्रे के खांचे में दूध चीनी का बर्फ जमता था । जो आईसक्रीम तो बिल्कुल नहीं होता था ।
फ्रिज़ के आने से अस्सी के दशक में कई लड़कियां जैम जेली भी घर में बनाने की कोशिश करने लगी । क्योंकि इन्हें अब कुछ दिन तक रखा जा सकता था ।

फ्रिज़ सामाजिक बुराइयों का भी हिस्सा बना । दहेज में फ्रिज़ की मांग अनिवार्य हो गई । देखिये मेरे बेटे को फ्रिज़ भी मिला है । पड़ोस की एक चाची ने कहा था । बहुत खुश थी । फिर वही चाची कई दिनों तक योजना बनाती रहीं कि जब लिये हैं तो देना भी होगा । वो अपनी दो बेटियों के दहेज के लिए फ्रिज़ खरीदने का साहस जुटा रही थीं । बहुत घरों में शादी से साल भर पहले ही फ्रिज़ खरीद लिया जाता था । दुकानदार से पूछिये फ्रिज़ की बिक्री शादी के दिनों में कितनी बढ़ जाती है । फ्रिज़ दहेज का ज़रूरी सामान बन गया है ।

नब्बे के दशक में हर ब्रांड की एक्सचेंज योजनाएं चलीं । इसका नतीजा यह हुआ कि कई घरों में सालों तक सजा कर रखे गए फ्रिज़ बाहर कर दिए गए । उसकी जगह पर बड़ा और नया फ्रिज़ आ गया । नई तकनीक ने पुरानी फ्रिज़ को अंबेसडर कार की तरह बेकार बना दिया । वर्ना एक्सचेंज स्कीम के आने से पहले तक फ्रिज़ रिपेयर होता था । लोग तीन चार साल पर रंग भी कराया जाता था । इस प्रक्रिया में फ्रिज़ के रंग पहले से ही बदलने लगे थे । फ्रिज़ की दुनिया में कई तरह के फ्रिज़ हैं । पहले सिर्फ छोटा और बड़ा फ्रिज़ होता था । अब डबल डोर, रिवर्स डोर न जाने कितने तरह के वर्गीकरण हो गए हैं ।

फिर भी सुराही की बात ही कुछ और है । मगर फ्रिज़ ने सुराही के नाम में घुसने की कम कोशिश नहीं की है । सुराही को मिनी फ्रिज़ कहा जाने लगा था ।

9 comments:

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया है। अब एक पोस्ट लिखिये- इति श्री फ्रिज कथा अंतिमों अध्याय समाप्त:।

अभय तिवारी said...

वाह रवीश जी.. अब तो आपके बॉस भी आपके पाठक हो गये.. और वो भी ऐसे कि एक टिप्पणी में संतुष्ट नहीं हो पा रहे.. बधाई हो..!

Sadan Jha said...

हमारा ‌अपने आस पास के भौितक जगत से गहरा नाता होता है यह तो हर कोई जानता है लेिकन इस संबंध को, इसके ताने बाने को जोडना बडी बात है. बहुत पहले 'िपंटी का साबुन' पढा था.... mamuliram.blogger.com

Manish Kumar said...

Part I, II III एक साथ पढ़े । आपने विषय अच्छा चुना मध्यमवर्गीय परिवार क दिलों को छूता हुआ । 80-82 में फ्रिज का आना सचमुच पूरे घर के लिए अविस्मरणीय घटना होती थी ।मेरे घर का वो सफेद रंग का गोदरेज का फ्रिज पिछले २५ सालों से चल रहा है । घर की सारी चीजें बदल चुकीं पर वो नही बदला है । शायद बीते वक्त की याद दिलाने के लिए.....

Raag said...

तीनों ही संस्मरण लाजवाब।

रवि रतलामी said...

रवीश जी,
आपको कथादेश सम्मान 2007 से पुरस्कृत होने पर हार्दिक बधाइयाँ!

मनीषा पांडेय said...

बात कुछ बढिया तरीके से आगे बढ़ती जान पड़ रही है। हर अगली किश्‍त में फ्रिज कथा एक नए आयाम के साथ प्रस्‍तुत है। बात यहीं खत्‍म नहीं होनी चाहिए। जैसाकि आपने खुद भी लिखा था, ऐसी अन्‍य उपभोक्‍ता वस्‍तुओं की। के इर्द-गिर्द लिपटा संसार भी आना चाहिए, ब्‍लॉग के बहाने। फ्रिज की तरह इन सबके गिर्द की दुनिया भी बहुत जटिल और व्‍यापक है। फिलहाल कस्‍बे का एक चक्‍कर लगाए बगैर दिन नहीं गुजर पाता। ऐसी आदत-सी हो गई है कस्‍बे की।

Manjit Thakur said...

रवीश जी, साधुवाद,
फ्रिज़ की कहानी पढ़ी। वाकई अच्छा लगा। हमारे घर में भी फ्रिज़ आया था बहुत पहले..संवत् याद नहीं। लेकिन गौरव है कि बिहार से हूं..कस्बे से हूं तो फ्रिज़ का एक बेहतर इस्तेमाल हमारे घर में होता था। यकीन है कि कहीं ऐसा नहीं होता होगा। सोचता हूं फ्रिज़ के इस इस्तेमाल को पेटेंट करवा लूं। मतलब, बिहार में बिजली की क्या स्थिति है आपको पता ही है, सो आखिरकार हमने उसे किताब रखने की आलमारी में बदल दिया। कभी-कभार कपड़े भी रख देते थे।
सादर,
मंजीत, डीडी न्यूज़

अमित कुमार शर्मा said...

रवीश जी

आपकी सब बाते सहीं, लेकिन सुराही को मिनी फ्रिज कह कर सुराही की को कम ना आंके.. सुराही की ताकत उसे पता है जिसने उससे पानी पीया है। उसे पता है जो रेगिस्तान में ऊंट पर घंटों सफर कर चुका है। सुराही गरीबी की याद दिलाती है। किसी की प्यास बुझाती है। जो शायद फ्रिज कभी बुझा नहीं पाएगा। फिर एक नया फ्रिज घर आएगा।