अब तक तीन सौ छप्पन

रात अंधेरे आतंकवाद के नाम पर लोगों को मार आने वाले दयानायक की कहानी नहीं कहने जा रहा हूं। दिन दहाड़े उत्तर प्रदेश में कोच की मेज़ पर हो रही नैतिकता के खेल में उतरने की कहानी कहने जा रहा हूं। कोच का नाम नहीं बताऊंगा। पार्टी का नाम बताता हूं। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी। यह दया नायक की तरह सिर्फ छप्पन नहीं बल्कि तीन सौ छप्पन में यकीन रखती है। उत्तर प्रदेश के नैतिक संग्राम में इस खेल में उतरना चाहते हों तो मेरी तरफ से स्वागत।
सीन एक-
अगस्त २००३
मायावती का इस्तीफा। दलितों की पार्टी बीएसपी से भगवा दल बीजेपी की समर्थन वापसी। सरकार गिर जाती है।

सीन- दो
सांप्रदायिक दलों को रोकने के लिए धर्मनिरपेक्ष दल दलितों की पार्टी में सेंध लगाते हैं। तिहाई सेंध । सांप्रदायिक पार्टी अलग। दलितों की पार्टी से दौलत देकर लाए गए विधायकों को मिलाने का खेल। अनैतिकता के हथियार से धर्मनिरपेक्षता की रक्षा। देश को सिर्फ धर्मनिरपेक्षता चाहिए। इसके सापेक्ष में ही नैतिकता है। पहला नहीं तो दूसरा भी नहीं। कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की थ्योरी के तहत एक चिट्ठी मुलायम को सौंपती है। कांग्रेस दौलत से दलितों की पार्टी में सेंधमारी को दरकिनार कर देती है
सीन- तीन
कांग्रेस की चिट्ठी के बाद थ्योरी ऑफ धर्मनिरपेक्षता को किनारे कर केशरी नाथ त्रिपाठी का घर। मुलायम सिंह यादव के पीछे खड़े बीएसपी के बागी( बिके हुए) विधायकों को मान्यता। भगवा बीजेपी में जीवन बिताने वाले स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी की कलम से भी धर्मनिरपेक्षता बच जाती है।
सीन- चार
नैतिकता का खेल पूरा होता है। फरवरी २००७। इस बीच अमर सिंह और सोनिया गांधी के बीच एक शाम घटित घटना को लेकर विवाद। धर्मनिरपेक्षता चिट्ठी में सुरक्षित। बयानबाज़ी। अमर सिंह की सीडी। सोनिया पर हमला। चुनौती। धर्मनिरपेक्षता की एक और अनचाही औलाद..तीसरा मोर्चा। चर्चा । वामदलों का सहारा। समाजवादी पार्टी का आत्मविश्वास।
सीन-पांच
फरवरी की एक रात। तीन सौ छप्पन की रात। नैतिकता पर निशाना। कांग्रेस ने कहा मुलायम नैतिकता के नाम पर इस्तीफा दे। रागदरबारी सड़क पर चिल्लाता है फिर बीएसपी से खरीद कर लाए विधायकों के दम पर बनने वाली सरकार को समर्थन क्यों दिया? क्या वह नैतिक था? संविधान में कहा गया है कि दलबदल अनैतिक है। फिर समर्थन क्यों? इस बार चिंता है कि २६ फरवरी को मुलायम विधायकों को खरीद लेंगे। अगस्त २००३ में क्या बीएसपी से आए विधायकों के दाम नहीं लगे थे? क्या ये लोग स्वेच्छा से धर्मनिरपेक्षता के लिए आए थे? अब कहां है? क्यों नहीं बोल रहे हैं? क्या कांग्रेस नहीं जानती थी ये सब खरीदे गए लोग है?

सीन- छह

थ्यौरी ऑफ धर्मनिरपेक्षता के तहत भगवा पार्टी के केशरी नाथ त्रिपाठी की मांग- मुलायम नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दें। और बीजेपी तीन सौ छप्पन का समर्थन करेगी। सियासी पोटा का इस्तमाल करेगी। मुलायम की चुनौती। कर के देखे कांग्रेस। सबको बता दूंगा। सबको से मतलब वो मुसलमानों को बता देंगे। कि कांग्रेस ने मुझ अनैतिक को हटाने के लिए धर्मनिरपेक्षता को छोड़ दिया। वह बीजेपी के करीब जा रही है।

सीन-सात
वाम दल..खबरदार अब और दयानायक नहीं चाहिए। बहतु हो चुका तीन सौ छप्पन। सदन के पटल पर सरकार बहुमत साबित करे। संविधान बड़ा है फिर धर्मनिरपेक्षता और फिर उसके बाद नैतिकता। कांग्रेस के दया नायक पिस्तौल वापस रख लेते हैं। तभी चुनाव आयोग का छापा पड़ता है। तारीख का एलान होता है। दयानायक फंस जाता है। फिल्म अब तक तीन सौ छप्पन का इंटरवल हो जाता है।

1 comment:

SHASHI SINGH said...

इस फिल्म में सीनों की संख्या अनंत है... इस झींगामुस्ती की थकान मिटाने के लिए इंटरवेल भी बहुतेरे होंगे... जो नहीं होगा तो वह है इस फिल्म का अंत.