(शाहिद सिद्दीकी चार दलों में रह चुके हैं। पूर्व सांसद हैं। साप्ताहिक उर्दू अख़बार के संपादक भी हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया है। सवाल जवाब शुरू होने से पहले इंतनी लंबी प्रस्तावना लिखी है। शायद उन्हें विवाद का अहसास होगा। उससे ज़्यादा यह अहसास होगा कि उनकी नीयत पर भी सवाल उठेंगे। इसलिए ये सारी बातें लिखीं हैं। छह पेज का इंटरव्यू है इसलिए टाइप करने में वक्त लगेगा मगर धीरे धीरे करके यहां डालता जाऊंगा ताकि आप हिन्दी में इस महत्वूपूर्ण इंटरव्यू को पढ़ सकें।)
दो हफ्ते पहले की बात है मैं हेमा की बेटी की शादी में शिरकत के लिए मुंबई गया था। शाम को हम बांद्रा के एक फ्लैट में बैठे थे। हमारे साथ महेश भट्ट,सलमान ख़ान के वालिद सलीम ख़ान और सनतकार(उद्योगपति) ज़फ़र सरेसवाला थे। बातों बातों में गुजरात का तस्करा(ज़िक्र) निकल आया। मोदी के ज़ुल्मों सितम की, गुजरात के मुसलमानों से नाइंसाफियों की बातें निकल आईं। सलीम ख़ान कहने लगे कि शाहिद साहब आपने दुनिया भर के लोगों का इंटरव्यू किया है, कभी नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू नहीं लिया। मैंने कहा कि मोदी हमें कभी इंटरव्यू नहीं देगा। नई दुनिया मोदी का सबसे बड़ा मुख़ालिफ़(विरोधी) है और मैं हर टीवी चैनल पर उसके ख़िलाफ़ बोलता हूं। महेश भट्ट बोले कि कोशिश कीजिए क्योंकि हमारे सामने मोदी की राय सामने नहीं आई है। नरेंद्र मोदी भी मीडिया से दूर भागता है और मीडिया भी मोदी की बात नहीं सुनना चाहता। मैंने ज़फ़र से कहा कि कोशिश करके देख लो और राज़ी हो जाएं तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है। मैंने १९७७ में इंदिरा गांधी का इंटरव्यू उस वक्त किया था जब आपातकाल के ख़ात्मे के बाद सब उन्हें नफ़रत की निगाह से देखते थे। इंदिरा गांधी क्या सोचती थी, क्या चाहती थी यह पहली बार दुनिया के सामने मैंने पेश किया था। मैंने अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी का भी इंटरव्यू लिया। ये तो सहाफ़ी(पत्रकार) का फ़र्ज़ है। ख़ासतौर से जो मुख़ालिफ(विरोधी) है, बदनाम है, जिसकी राय से इख़्तलाफ़(असहमति) रखते हैं उसकी सोच तो हमारे सामने आनी चाहिए।
एक हफ्ता बाद मुझे संजय बावसर का फोन आया, जो नरेंद्र मोदी के सचिव हैं। उन्होंने मुझे मोदी का इंटरव्यू करने की दावत दी। मैंने कहा कि मेरी शर्त पर। पहले यह कि मोदी मेरे हर सवाल का जवाब देंगे। दूसरे ये कि मैं जो चाहूंगा उनसे सवाल करूंगा । मोदी के बारे में जानता हूं कि उन्होंने कई बार टीवी चैनलों को इंटरव्यू देते हुए किसी सवाल से नाराज़ होकर बीच में ही इंटरव्यू ख़त्म कर दिया। मैं जानता था कि मेरा इंटरव्यू कड़ा होगा,मेरे हर सवाल हिन्दुस्तान के सेकुलर इंसान के ज़हन में उठने वाले सवाल होंगे। क्या नरेंद्र मोदी इन सवालों को बर्दाश्त करेंगे। अगले दिन फिर संजय का फोन आया कि मोदी जी राज़ी हैं। आप कब आयेंगे। मेरे दिन में कशमकश थी कि मैं मोदी का इंटरव्यू करूं या न करूं। आख़ारकार मैंने फ़ैसला किया कि अपने सवाल रखने में क्या हर्ज़ है।
गांधीनगर में वज़ीरेआला की रिहाइश बहुत खामोश और पुरसकून इलाके में हैं। मोदी की रिहाइश में आम नेताओं वाली गहमा गहमी नहीं थी। हर चीज़ बहुत सिस्टम से थी। मोदी ने मेरी इंटरव्यू की वीडियो फिल्म बनाने का फैसला किया था। उसे टेप करने का फैसला किया था ताकि मैं उनकी कही बातों में कोई मिर्च मसाला न लगाऊं। आधी आस्तीन के गुलाबी कुर्ते में नरेंद्र मोदी मेरे सामने बैठे थे। एक शख़्स जिसे डिक्टेटर कहा जाता है, हिटलर भी, मुस्लिम दुश्मन और फ़िरकापरस्त भी। मोदी के होठों पर मुस्कुराहट थी। मगर उनकी आंखें नहीं मुस्कुरा रही थीं। मोदी ने वादे के मुताबिक मेरे तमाम सवालों के जवाब दिये। मगर बहुत से सवाल वो टाल गए,अपना दामन बचा गए। मोदी बहुत मंझे हुए सियासतदान और निहायत तज़ुर्बेकार खिलाड़ी की तरह मेरे हर बाउंसर से बचने की कोशिश कर रहे थे। मैं मोदी के बहुत से दलायल(दलील) से कत्तई सहमत नहीं हुई, उनके जवाबात से मुतमईन नहीं हूं मगर इनका इंटरव्यू जैसा है वैसा पेश कर रहा हूं ताकि आप मोदी की सोच और उसके ज़हन से वाक़िफ़ हो सकें। इंशाअल्ला अगले हफ्ते मोदी के इंटरव्यू पर अपना विश्लेषण पेश करूंगा। मोदी के सच और झूठ को बेनकाब करूंगा और फिलहाल आप नरेंद्र मोदी का पहली बार किसी उर्दू अख़बार को दिया गया तफ़्सीली इंटरव्यू मुलाहिज़ा फरमायें।
हिन्दू राष्ट्र-
शाहिद सिद्दीकी- नरेंद्र मोदी जी आपका हिन्दुस्तान का तसव्वुर क्या है। क्या आप हिन्दुस्तान को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, अगले पचास बरस में आप कैसा हिन्दुस्तान बनाना चाहते हैं ?
नरेंद्र मोदी- हम खुशहाल भारत देखना चाहते हैं। एक मज़बूत भारत देखना चाहते हैं। इक्कसवीं सदी भारत की सदी हो यह हमारा सपना है जिसे साकार करना है।
शाहिद-कहा जाता है कि आप गुजरात को हिन्दूराष्ट्र की तज़ुर्बागाह की तरह इस्तमाल कर रहे हैं। अगर आप मरकज़ में पीएम बन कर आ गए तो आप भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहेंगे। इसमें मुसलमानों और दूसरे अक्लियतों की क्या जगह होगी?
मोदी- पहली बात तो यह कि आज गुजरात में अक्लियतों की जो जगह है वो पूरे मुल्क के मुकाबले ज़्यादा अच्छी है। दूसरे और बेहतर होने की गुज़ाइश इतनी ही है कि जितनी किसी हिन्दी की। मुसलमानों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए जितना किसी हिन्दू को। अगर नफ़रत हो तो एक घर भी नहीं चल सकता। एक बहू अच्छ लगे और दूसरी न लगे तो घर में सुकून नहीं हो सकता।
शाहिद-मान लीजिए कि घर में चार बच्चे हैं। इनमें से किसी वजह से एक कमज़ोर है। पिछड़ा है तो क्या इस पर ज़्यादा तवज्जो नहीं होनी चाहिए। क्या आगे बढ़ने के बेहतर मौके नहीं मिलने चाहिए
मोदी- ये तो हमारे आईन ने भी कहा है।जो कमज़ोर है, पिछड़ा है,उसे अलग से सहारा मिलना चाहिए। अगर समाज इसकी ज़िम्मेदारी नहीं उठायेगा तो कौन उठायेगा। मान लीजिए एक ज़हनी तौर पर कमज़ोर बच्चा है तो उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ मां बाप की नहीं बल्कि पूरे समाज की है। अगर हम ये कहें कि तुम्हारे घर पैदा हुआ सिर्फ तुम संभालो तो यह ग़लत होगा।
मुसलमानों के लिए रिज़र्वेशन-
शाहिद- इस मुल्क में जितने सर्वे हुए हैं चाहे सच्चर या रंगनाथ कमीशन, सबका कहना है कि खासतौर पर मुसलमान ज़िंदगी के हर मैदान में खुशुसन तालीम में, इक्तसादी मैदान में बहुत सी वज़ूहात के बिना पर पिछड़ गए हैं। आपके ख़्याल में इन्हें आगे लाने के लिए,इनका हक़ दिलाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए। क्या इन्हें रिज़र्वेशन नहीं मिलना चाहिए। जबकि पचास फ़ीसदी नौकरियां रिज़र्वेशन में चली गईं हैं। बाकी पचास फीसद में मुसलमान पीछे रह जाते हैं। इसके लिए सभी दरवाज़े बंद हैं। इसे आगे लाने के लिए क्या करना चाहिए?
मोदी-ऐसा नहीं है। गुजरात में ओबीसी में छत्तीस मुस्लिम बिरादरियां हैं ऐसी हैं जो पिछड़ों में आती हैं। उन्हों वो तमाम रियायतें मिलती हैं जो दूसरे पिछड़ों को मिलती हैं, मैं भी पिछड़ी जाति से हूं। हमें रास्ता ढूंढना होगा। इसमें सबको हिस्सेदारी मिले। जैसे आज स्कूल है, टीतर हैं इसके बावजूद लोग अनपढ़ हैं। इसका हल हमने गुजरात में ढूंढा। हमने तहरीक चलाई कि गुजरात में सौ फीसद लड़कियों को तालीम मिले। सौ फीसद का मतलब सौ फीसद। जून के महीने में जब बहुत गर्मी होती है तो सारे अफसर सारे वज़ीर सारी सरकार एक हज़ार आठ सौ गांवों में घर घर जाते हैं ये देखते हैं कि सारी लड़कियां पढ़ रही हैं। आज ९९ फीसद से ज्यादा लड़कियां स्कूल में हैं। इसमें हर मज़हब की लड़की है। पहले ड्राप आउट चालीस फीसद था। आज वो मुश्किल से दो फीसद रह गया है। अब इसका फायदा किसको मिल रहा है। मेरी हिन्दू मुस्लिम फिलासफी नहीं है। मैं तो यह देखता हूं कि गुजरात में रहने वाले हर बच्चे को इसका फायदा मिले। मेरी दस साल की कोशिश में सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है जब मैं किसी हिन्दू स्कूल में वाल्दैन की मीटिंग बुलाता हूं तो वहां साठ फीसदी वाल्दैन आती हैं। अगर मैं किसी मुस्लिम इलाके में मीटिंग करता हूं तो सौ फीसद वाल्दैन आती हैं और इसके अलावा और भी लोग आ जाते हैं।
मुसलमान ज़्यादा जाग रहे हैं-
शाहिद- आपने मुस्लिम इलाकों में ऐसी मीटिंगे की?
मोदी- बिल्कुल, ढेर सारी। बल्कि मेरा तज़ुर्बा यह है कि आज मुसलमान तालीम के ताल्लुक से ज़्यादा जागे हुए हैं। अभी आपको बताऊं कि दाता के पास एक गांव में गया, वो सत्तर फीसद मुस्लिम आबादी का था, तीन बच्चियों ने कहा कि हमें अलग से बात करनी हैं। मुझे पता नहीं था कि वो किस मज़हब से हैं। सातवीं आठवीं की बच्चियां थीं। मैंने सबको बाहर निकाल कर इनसे बात की। वो तीनों मुसलमान लड़कियां थीं। उन्होंने कहा कि हम आगे पढ़ना चाहते हैं। मगर हमारी वाल्दैन अनुमति नहीं देती हैं। आप इन्हें समझाइये। इसी बात ने मेरे दिल को छुआ कि मेरे सूबे में तीन लड़कियां ऐसी हैं जो आगे तालीम हासिल करने के लिए सीएम तक से कहने और मदद लेने में झिझक नहीं रही हैं। मैंने इनके मां बाप को कहलवाया कि मान जायें। ये दो साल पहले की बात है। मगर ये दोनों लड़कियां आज पढ़ रही हैं।
शाहिद- आप ठीक कहते हैं कि पिछड़ों में मुसलमान को हिस्सा तो दिया गया है मगर मंडल के आने के बाद से पिछले बीस बरस में यह बात सामने आई है कि मुसलमान को इसमें इनका हक नहीं मिलता। मिसाल के तौर पर दस नौकरियां हैं और अप्लाई करने वाले पांच सौ।
मोदी- भारत के आईन बनाने वालों ने गहराई से जायज़ा लिया था कि मज़हब के बुनियाद पर कोई रिज़र्वेशन नहीं होना चाहिए। ये ख़तरनाक होगा । उस वक्त आर एस एस और बजरंग दल वाले नहीं थे।
शाहिद- मुस्लिम लीडर यहां तक कि मौलाना आज़ाद ने भी धर्म के नाम पर मुख़ालफ़त की थी, पिछले चौंसठ बरस के तुज़ुर्बे से यही सीखना भी चाहते हैं। चौंसठ बरस बाद रिज़र्वेशन देते हैं तो इसमें आपको क्या परेशानी है
मोदी- नहीं नहीं, ये वो बदलाव नहीं है। ये एक बुनियादी बात है। आईन के बुनियादी ढांचे में कोई तब्दिली नहीं हो सकती है। मगर मैं दूसरी बात कहता हूं । जिन सूबों को आप तरक्की पसंद और सेकुलर कहते हैं वहां नौकरियों में मुसलमान दो चार फीसद हैं। गुजरात में मुसलमान आबादी का नौ फीसदी और नौकरियों में बारह तेरह फीसद।
शाहिद- गुजरात में मुसलमान पहले से ही आगे थे , आपने ऐसा कोई कारनामा नहीं किया
मोदी- चलिये आपकी बात मान ले। पिछले बीस बरस से गुजरात में बीजेपी की हुकूमत है। अगर हम इन्हें बर्बाद कर रहे होते तो क्या वो इतने आगे होते। अगर हमारा रवैया मुस्लिम मुख़ालिफ़ था तो बीस बरस में पिछड़ जाते। सच्चर का सर्वे हैं। वो तो तब हुआ जब यहां मेरी हुकूमत थी। गुजरात में ८५ से ९५ कत सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद थी। भर्ती तो मेरे ज़माने में हुई। कुल छह लाख सरकारी नौकरियों में से तीन लाख मेरे दौर में भर्ती हुए।
शाहिद- क्या आपके ज़माने में जो भर्ती हुए उनमें दस फीसद मुसलमान थे
मोदी- नहीं मैंने हिसाब नहीं लगाया। ये मेरी फिलासफ़ी नहीं है। न ही मैं हिन्दू मुसलमान के बुनियाद पर हिसाब लगाऊंगा। मेरा काम है बिना किसी भेदभाव के सबको मौका देना। अगर वो मुसलमान हैं तो उसे मिलेगा। हिन्दू है या पारसी है तो उसे मिलेगा। अगर आप सच्चर की हर बात पर यकीन करते हैं तो फिर सच्चर ने मेरे ज़माने की गुजरात पर जो रिपोर्ट दी है इस पर भरोसा क्यों नहीं करते।
दंगों में क्या हुआ-
शाहिद- अब हम गुजरात फ़सादात की तरफ़ आएं, इस दौरान क्या हुआ, गोधरा में जो लोग जले उनकी लाशों को अहमदाबाद क्यों लाया गया, क्या आपको अंदाज़ा नहीं था कि इसके नतीजे क्या होंगे ?
मोदी-इस सवाल का जवाब मैंने एस आई टी और सुप्रीम कोर्ट को भी विस्तार से दिया है। कोई भी लाश होगी तो उसे वापस तो देना होगा। जहां सबसे ज़्यादा तनाव है,वहां कोई लाश ले जा सकता है? तनाव गोधरा में था। इसलिए वहां से जली लाशें हटानी ज़रूरी थीं। ये पैसेंजर कहां जा रहे थे, ये ट्रेन अहमदाबाद जा रही थी। इनके लेने वाले सब अहमदाबाद में थे। आप बताइये, आपके पास इनके ख़ानदान की लाशें हवाले करने का क्या तरीका था?
शाहिद- आप किसी अस्पताल में लाकर खामोशी से रिश्तेदारों को हवाले कर देते, उन्हें घुमाया क्यों गया
मोदी- आप सच्चाई सुन लीजिए। इतनी लाशें रखने की गोधरा में जगह नहीं थी, लाशें वहां से हटानी थी, इंतज़ामिया(प्रशासन) ने सोचा कि रात के अंधेरे में लाशें हटाईं जाएं,उन्हें उसी रात वहां से हटाया गया, अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में ला सकते थे, वो भीड़ भाड़ का इलाका था, वहां तनाव पैदा होता। ये इंतज़ामिया की समझदारी थी कि तमाम लाशों को शोला के सिविल अस्पताल में लाया गया। शोला उस वक्त अहमदाबाद के बाहर था, जंगल था, आज तो वहां ज़िंदगी पैदा हो गई है, शोला से कोई जुलूस नहीं निकला। लाशें खामोशी से रिश्तेदारों के हवाले कर दी गईं थीं। इनमें से १३-१४ लाशें थीं जिनकी पहचान नहीं हो सकी, इनका भी खामोशी से शोला अस्पताल के पीछे दाह संस्कार कर दिया गया। इतनी एहतियात बरती गई मगर अब झूठ चल पड़ा है।
दंगे क्यों नहीं रूके?
शाहिद- इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे, लोग मारे जा रहे थे, घर जलाये जा रहे थे, आप गुजरात के वज़ीरे आला थे, आपको ख़बर तो थी कि अहमदाबाद में क्या होरहा है। आपने इस ख़ून ख़राबे को रोकने के लिए क्या कदम उठाए
मोदी- इसके लिए सबसे पहला काम हमनें लोगों को अमन शांति बनाए रखने की अपील की, ये काम मैंने गोधरा से ही किया, इसके बाद अहमदाबाद आकर शाम को रेडियो टीवी से अपील की(क्या कहा गया इसकी कापी मुझे दी गई) मैंने इंतज़ामिया से कहा कि जितनी पुलिस फोर्स है, सबको लगाओ। हालांकि इतना बड़ा वाकया था कि पूरे मुल्क में पहले ऐसा नहीं हुआ था, एक वक्त वो था कि पहले वाक्या होता था, तो अखबार में दूसरे दिन खबर आती थी। फोटो आने में दो दिन लग जाते थे। इतने में एहतियाती कदम उठाने का मौका मिल जाता था। फोर्स भेजने का मौका मिल जाता था। आज टीवी पर वाकये की चंद मिनटों में ख़बर आ जाती है। तस्वीरें दिखाईं जाने लगती हैं। प्रशासन को आज टीवी के स्पीड से मुकाबला करना पड़ता है। अहमदाबाद से बड़ौदा फोन तो मैं चंद मिनटों में कर सकता हूं मगर पुलिस फोर्स भेजनी हो तो दो घंटे तो कम से कम लगेंगे। पुलिस फोर्स टीवी न्यूज़ से मुकाबला नहीं कर सकती। दूसरे मुल्क के दंगों से मैं इसका मुआज़ना(तुलना) करूंगा, जायज़ ठहराने के लिए नहीं। मैं इस बात में यकीन नहीं रखता कि १९८४ में दिल्ली में जो हुआ,इसलिए हमारे यहां हुआ, तो आखिर बात क्या है, मैं इस सोच में यकीन नहीं रखता । दंगा दंगा है। देखिये १९८४ का दंगा हुआ, एक भी गोली नहीं चली, एक भी लाठी चार्ज नहीं हुआ, लाठी चार्ज उस जगह हुआ जहां इंदिरा गांधी की डेड बाडी रखी थी, वहां इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि उसे कंट्रोल करने के लिए लाठी चार्ज हुआ। दंगा रोकने के लिए पुलिस का इस्तमाल नहीं हुआ। गुजरात में २७ फरवरी को ही कितनी जगह गोली चली, कर्फ्यू लगाया गया लाठी चार्ज हुआ, कार्रवाई हुई।
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शाहिद सिद्दीक़ी- कहा जाता है कि आप मुल्क़ के वज़ीरे आज़म बनने की तैयारी कर रहे हैं, आप गुजरात से निकल कर कौमी सियासत की ज़िम्मेदारी संभालना चाहते हैं। अगर मुल्क़ के वज़ीरे आज़म बनें तो पांच अहम काम क्या करेंगे।
नरेंद्र मोदी- देखिये मैं बुनियादी तौर पर संगठन का आदमी हूं। कुछ ख़ास हालात में वज़ीरे आला बन गया। ज़िंदगी में मैंने कभी किसी किसी स्कूल के मोनिटर का भी चुनाव नहीं लड़ा। मैं तो कभी किसी का इलेक्शन एजेंट भी नहीं बना। मैं तो इस दुनिया का आदमी भी नहीं हूं। न हीं मेरा इस दुनिया से कोई लेना-देना है। आज मेरी मंज़िल है ६ करोड़ गुजराती । उनका सुख,उनकी भलाई। मैं अगर गुजरात में अच्छा काम करता हूं तो यूपी बिहार के दस लोगों क नौकरी लगती है। मैं हिन्दुस्तान की सेवा गुजरात की तरक्की के ज़रिये करूंगा। गुजरात में नमक अच्छा होगा तो सारा देश गुजरात का नमक खायेगा। मैंने गुजरात का नमक खाया है और सारे देश को गुजरात का नमक खिलाता हूं।
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शाहिद सिद्दीकी- आप देश के मुसलमानों को क्या पैग़ाम देना चाहेंगे ?
नरेंद्र मोदी-भाई मैं तो बहुत छोटा इंसान हूं । मुझे किसी को पैग़ाम देने का हक़ नहीं है । ख़ादिम हूं । ख़िदमत करता हूं । मैं अपने मुस्लिम भाइयों से कहना चाहूंगा कि वो दूसरे के लिए वोट बैंक बनकर न रहें । आज हिन्दुस्तान में मुसलमान को एक वोटर बना दिया गया है । हम इन्हें जीते जागते इंसान के रूप में देखना चाहते हैं । मुसलमान ख़्वाब देखें
...। उनके ख्वाब बच्चों के ख़्वाब पूरे हों । वो वोटर रहें और अपने वोट का खुलकर इस्तमाल करो मगर इसके आगे एक इंसान एक भारतीय के रूप में देखा जाए । उनकी तकलीफ को समझा जाए । मैं अगर उनके किसी काम आ सकता हूं तो आऊंगा मगर उन्हें भी खुले दिमाग़ से सोचना होगा, देखना होगा ।