पार्क से लौट कर
टिकट के लिए बात कर दीजिये न
बातचीत
जयपुर से जहाज़ में आ रहा था । बगल की सीट पर दो 'बिज़नेस वुमन' बैठी थीं । उनकी बातचीत ही इस बात से शुरू हुई कि आजकल अजनबी बात नहीं करते हैं । उनकी बातचीत का नोट्स लेने लगा । बाद में उन्हें बता कर जब माफ़ी माँगी तो एक ने कहा कि वो आप हैं । हम आप नहीं है । हमें चिन्ता नहीं है । उनकी बातचीत को लिख रहा हूँ । कमाल की महिलायें । दुनिया भर में उड़ती हैं । टू इम्प्रेसिव वुमन टांकिंग टू इचअदर एज स्ट्रेंजर्स व्हेन अ स्ट्रेंजर वाज़ लिसनिंग देम टांकिंग ।
I am a gujju woman. We can fly from Surat to mumbai to delhi to France and finalize the design and come back.
Happy to meet the lalas of smaller destination in India.
They have huge money.
Have you been to any raipur wedding
These royalties spend gold in wedding .
In smaller town they can make your business grow faster.
Delhi has no brand loyalty . They can go to anyone from everyone.
I hate these page three faltu events .
I did sahara wedding but lost Jindal one. I had a wedding in Austria .
Are you married and happy ?
Oh yes I am happy. But sometime these men needs to be kicked out. They are good for nothing. I think women are excellent in multitasking .
जब ये लिख रहा था तो एक ने मेरी तरफ़ देख के पूछ लिया आप टीवी में ? जी । ओह तो आपने सुन लिया हम मेन को बारे में क्या बात कर रहे थे । आप ठीक कह रही थी । फिर थोड़ी देर के लिए दोस्ती हो गई । शुभकामनायें । उनका आत्मविश्वास और उनकी उड़ान किसी कविता से कम नहीं थी ।
( इस बातचीत को लिखने की अनुमति ले ली गई थी )
सड़क का सहयात्री
हम सब एक हैं !
कारपोरेट की मौज है इन दिनों । मोदी भय के नाम पर दनादन प्रोजेक्ट क्लियर हो रहे हैं । तो मोदी पर्यावरण से जुड़ी तमाम आपत्तियों को रिश्वत से जोड़ कर संदिग्ध कर रहे हैं । पर्यावरण के सवाल तो उनके लिए बेमानी हैं । राहुल गांधी भी कारपोरेट के सामने नियम और झंझटों की खिल्लियां उड़ाते हैं जैसे किसी मूर्ख ने बनाये हों । दरअसल ये मोदी का मनमोहन पर या मनमोहन का मोदी पर हमला नहीं है । दोनों कारपोरेट के लिए आम सहमतियां बना रहे हैं । कौन कहता है मोदी प्रधानमंत्री नहीं हैं ! बधाई । रहा सवाल पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का तो उसे स्कूल के कोर्स में शामिल करने से कौन रोक सकता है । सरकार किसी की हो चलती कारपोरेट की है । चलनी भी चाहिए क्योंकि कारपोरेट ग्रोथ पैदा करता है और नेता ग्रोथ रेट बेचता है ।
कांग्रेस बीजेपी की विचारधारा क्या है ? पर्यावरण के सवाल से दोनों की शासित सरकारें टकराती होंगी । क्या किसी ने पूछा ? फ़ाइलों को क्लियर करने में देरी हो रही है । एक नज़र में यह सरकार की अक्षमता पर सवाल तो लगता है मगर क्या यह पैंतरा नहीं है कि इसके बहाने आप उन कंपनियों की पैरवी भी कर रहे हैं । एक तीर से दो निशाने । अरुण जेटली ने अपने लेखन में क्या यह बताया कि पर्यावरण को लेकर जिन आपत्तियों के नाम पर फ़ैसलों नहीं हो रहे थे उन पर जेटली या पार्टी का क्या सोचना है । उन पर राहुल गांधी का क्या सोचना है । फिर इन सवालों पर ये दोनों दल इतने दिनों चुप क्यों रहे । तभी ख़ारिज करते । कहते खुलकर कि ग्रोथ रेट चाहिए तो जंगल कटेंगे । फिर इन लोगों ने भूमि अधिग्रहण बिल पास करते वक्त किसानोन्मुख होने का ढोंग क्यों किया । जैसे मार्च लूट के वक्त सारी सरकारी फ़ाइलें भागने लगती हैं उसी तरह सरकार जाते जाते विपक्षी हमले और चुनाव जीतने के नाम पर फ़ाइलें क्लियर करने लगी हैं । मोइली मोदी मनमोहन । कोई भी आए होगा काम उनका ही जिनके हम सब नौकर हैं । कंपनियाँ किसे नहीं चाहिए । ज़रूरी भी हैं । लेकिन दिल्ली के ये दो बड़े दल अपनी नीति क्यों नहीं साफ़ करते । वो देरी या जयंती टैक्स का बहाना लेकर पर्यावरण के सवालों से बचते क्यों हैं । खुलकर सपोर्ट क्यों नहीं करते । कांग्रेस बीजेपी यू ही हेड टेल नहीं हैं ।
ना भाई ना
मोदी गुजरात और राज मराठा !
क्या मैं भी
तो मेरे गाँव में बिजली आ रही है !
युवा प्रवक्ता
हम आपके हैं कौन !
आज सुबह दफ़्तर में एक फ़ोन आया । फ़ोन रखते ही मैं एक अनजान वृद्ध महिला के एकांत से घिर गया । दिल्ली के नीतिबाग में रहने वाली ये महिला किसी बड़े अफ़सर की पत्नी हैं । पहले तो अपनी कविता सुनाई । फिर कहने लगी तुम इतना बीमार क्यों रहते हो । मैंने मज़ाक़ में कह दिया कि छुट्टी मिलती है । वो रोने लगी । कहने लगीं कि मैं माँ हूँ । तुम मेरे बेटे हो । मैं रोज़ रात को नौ बजे तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ । तुम नहीं आते हो तो अच्छा नहीं लगता है । वो अब फूट फूट कर रोने लगी थीं । कह रही थीं कि जहाँ पैदा हुए वहाँ का सब छूट गया । तुम मेरी पुरानी भाषा के शब्द दोहराते हो तो सब लौट आता है । नहीं आंटी ऐसा क्यों कहती हैं । आप प्लीज़ मत रोइये । मैं तुम्हारी आंटी नहीं हूँ । माँ हूँ । तो ठीक है आशीर्वाद दीजियेगा । मैं दूसरी तरफ़ चुप और वो उस तरफ़ रोये जा रही थीं । रोते रहीं किसी तरह फ़ोन रख दिया । पहले भी बात हुई थी । तब क्या झटाकेदार अंग्रेज़ी में अधिकार से फ़ोन किया था । नंबर सेव कर लिया था । ( मैं यह अपनी तारीफ़ और शो के प्रचार में नहीं लिख रहा ) मुझे उनका वो आलीशान घर खंडहर की तरह नज़र आने लगा ( जिसे देखा भी नहीं बताया था कि बड़ा घर है ) और उसमें इस शहर में भटकती रूह की चित्कार । हम किस किस के घर में किस किस रूप में उतरते हैं अंदाज़ा नहीं कर सकते । मगर उनका रोना काट रहा है । घर जाने का वादा तो कर दिया मगर उस घर में कैसे जायें जहाँ कोई सब कुछ पाकर एकांत के मातम से घिरा हुआ है । लेकिन जाऊँगा । कितना भयानक अलगाव है ये ।
हम सिर्फ ख़बर या बहस लेकर आपके ड्राइंग रूम में नहीं आते हैं । हम आपकी गुदगुदी बेचैनियां और ग़ुस्से का भी हिस्सा हैं । आप दर्शकों की ज़िंदगी की किस तकलीफ़ में हम मरहम की तरह काम कर जाते हैं ये लिखना आसान तो हैं मगर समझना बहुत मुश्किल । पहले भी रिपोर्टर एंकर की इन अनाम और अनगिनत रिश्तेदारियों पर लिख चुका हूँ । हमारे ख़ून के रिश्ते तो ख़ून के प्यासे रहते हैं , नहीं निभता फिर भी निभाते रहते हैं । ये वो लोग हैं जो ख़ून के रिश्तेदार नहीं हैं । काम में ईमानदारी और बेहतर प्रस्तुति के अलावा कोई ज़रिया भी इन रिश्तों को निभाने के लिए । कई लोगों से मिल लेते हैं । घर भी गया हूँ । एक के बारात में चला गया था । बाज़ार में रोज़ अपने देखने वालों से मिलता हूँ । उनके साथ फोटो भी खिंचा लेता हूँ । मगर इस भीड़ में ख़ुद के अकेलेपन की प्रक्रिया भी चलती रहती है । खुद के लिए भी किसी को ढूँढता रहता हूँ । माता जी की व्यथा को समझ सकता हूँ । आगरा में एक किराने की दुकान चलाने वाले इक़बाल भाई को भी समझ सकता हूँ जिन्हें फ़ोन किया तो कहा कि दो मिनट होल्ड कीजिये । कार में बैठ लूँ । फिर इक़बाल भाई रोने लगे कि हमें क्यों नहीं अपना समझा जाता है । हम क्यों किसी हिन्दू मुस्लिम डिबेट में बाहरी की तरह दिखाये जाते हैं । रोते ही रहे । अकेलापन कितने स्तरों पर आदमी की पहचान का पीछा करता है । आज रात नौ बजे क्यों नहीं आए , जब भी ऐसा एस एम एस आता है , यह बात खटक जाती है कि आज कोई अकेला रह गया होगा ।
चलते चलते: एनडीटीवी में एक मित्र हैं पीटर । आफिस की कार चलाते हैं । पीटर चुप रहते हैं । बहुत साल पहले एक शूट के दौरान पीटर ने कहा कि केक खायेंगे । किसी का इंतज़ार लम्बा हो रहा था । उस केक पर झूम गया । पीटर ने कहा कि ये रम केक है । क्रिसमस में बनता है । पहली बार रम केक खाया था । पीटर हर साल क्रिसमस का रम केक मेरे लिए बना कर लाते हैं । शानदार । गले मिलते हैं और केक पकड़ा देते हैं । आज भी केक पकड़ा गए । कहा कि कब से इंतज़ार कर रहा था । रोज़ ला रहा था पर आज मिले ।