इस सवाल को लेकर मैंने अपने सहयोगी प्रसाद काथे से बात की और फिर गूगल सर्च किया । प्रसाद ने कहा कि मुंबई में मोदी की रैली महाराष्ट्र के इतिहास की बड़ी रैलियों में एक तो गिनी ही जाएगी । राजनाथ सिंह ने तो बाल ठाकरे का नाम भी लिया मगर मोदी ने एक बार भी नहीं । तो मैंने कहा कि ठीक है शिवसेना सहयोगी है लेकिन रैली तो बीजेपी की थी । फिर ध्यान आया कि तब राजनाथ सिंह ने नाम क्यों लिया और मोदी ने क्यों नहीं । ( मैंने मुंबई रैली का भाषण नहीं सुना है) गूगल बताता है कि अगले दिन शिव सेना के अख़बार सामना में उद्धव ठाकरे ने तंज किया कि रैली को लेकर मुंबई के गुजराती और हिन्दुत्ववादी काफी उत्साहित थे जिन्हें आकर्षित करने के लिए राजधानी भर में महँगे और अच्छे होर्डिंग लगाये गए थे ।
हिन्दुत्ववादी को ध्यान में रखियेगा । पहले देखते हैं कि मोदी ने क्या कहा । मुंबई गुजरातियों का दूसरा घर है । उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा सौराष्ट्र कच्छ और सूरत के विकास में लगा है । ( पहली बार मोदी ने माना कि गुजरात में दूसरे राज्यों का भी ख़ून पसीना लगा है ! ) मोदी ने कहा कि विकास में गुजरात को गोल्ड मेडल मिला है और महाराष्ट्र काफी पीछे रह गया है । वे जब सरकार में आयेंगे तो ब्लैक मनी वापस लायेंगे । उम्मीद है कुछ अपवाद को छोड़ उस सूची में मराठियों का नाम नहीं होगा । मराठी ईमानदार होते हैं ।( चलिये काले धन की सूची से मराठी बाहर हो गए, तो क्या बिहारी यूपी गुजराती !?) मोदी ने निश्चित रूप से महाराष्ट्र के बहाने वहाँ की कांग्रेस एनसीपी सरकार की आलोचना की लेकिन दोनों ठाकरे ने महाराष्ट्र के एंगल से उनकी बात को दिल पे क्यों ले लिया ।
सहयोगी का मतलब यह नहीं कि अपनी राजनीतिक ज़मीन किसी को सौंप देना । उद्धव ने रैली में गुजराती और हिन्दुत्ववादियों के होने को क्यों रेखांकित किया ? गुजराती और हिन्दुत्ववादी में फ़र्क क्यों क्या ? क्या हिन्दुत्ववादी में मराठी नहीं थे क्या गुजराती नहीं होंगे । जवाब आसान है । कर्नाटक चुनाव के वक्त सामना ने मोदी के बारे में लिखा था कि वे हिन्दुत्व से भटक रहे हैं । मोदी के पैकेज में हिन्दुत्व, विकास, मज़बूत नेतृत्व सब है जिसका ब्रांड नाम वन इंडिया है । शिव सेना को लगता है कि मोदी उग्र हिन्दुत्ववादी नहीं है शिव सेना है । क्या उद्धव ये कहना चाहते थे कि मोदी की रैली में उनके समर्थक गए ।
रैली तो बड़ी थी । ज़ाहिर है शिव सेना और मनसे को अपना आधार मोदी के पीछे जाते लग रहा है । मनसे को लग रहा है कि इस चुनाव में भी अगर लोक सभा की एक सीट न मिली तो लोग सवाल करेंगे । विधानसभा में उसके तेरह विधायक तो है हीं । इसलिए महाराष्ट्र के भीतर हिन्दुत्व के स्पेस में मोदी के सबसे बड़े दावेदार के रूप में उभरने के संदर्भ में राज और उद्धव के बयानों को देखा जाना चाहिए । जिस नाशिक से राज ने बयान दिया वहाँ बीजेपी के समर्थन से मनसे का मेयर है । बीजेपी की स्थानीय ईकाई ने समर्थन वापसी की चेतावनी दी है । महाराष्ट्र में मनसे के पास एक ही मेयर है ।
नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल होने वाले राज ने ऐसा सवाल दागा कि बीजेपी चुप है । जिस दिन मोदी को पीएम का उम्मीदवार घोषित किया गया उसी दिन उन्हें सीएम पद छोड़ देना चाहिए था । बात तो क़ायदे की लगती है मगर क्या राज मोदी को इतना मासूम समझते हैं । ठीक है कि उन्हें भरोसा है कि वे पीएम बन रहे हैं । अपने भाषणों में भी वे खुद को पीएम मान कर ही चलते हैं लेकिन सीएम पद क्यों छोड़े भाई ? गुजरात चल रहा है न । किसी गुजराती ने को नहीं कहा कि मोदी इतना बाहर रहते हैं कि राज्य नहीं चल रहा !
ठाकरे बंधु एक हद से ज़्यादा मोदी के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते । राज को ज़रूर चिंता होगी या लग रहा होगा कि मोदी उनके साथ समझौता नहीं करेंगे । सीधे तौर पर तो बिल्कुल नहीं । एकाध सीट छोड़ दें अलग बात है । जब मोदी के राजकीय अतिथि बनकर वे चर्चा में आ रहे थे तब क्या वाक़ई राज को नहीं लगा होगा कि मोदी महाराष्ट्र में दोनों बंधुओं की ज़मीन पर भी पसर सकते हैं । क्यों राज को कहना पड़ा कि पीएम उम्मीदवार के तौर पर मोदी को सभी राज्यों के साथ समान बर्ताव करना चाहिए । गुजरात गुजरात नहीं करना चाहिए । मोदी ने तो अन्य राज्यों में भी गुजरात गुजरात किया है । राज ने कहा कि महाराष्ट्र में आकर मोदी ने गुजरात और सरदार पटेल के बारे में बोला । शिवाजी महाराज के बारे में बोलते तो उचित रहता । वैसे पाँच जनवरी के इकोनोमिक्स टाइम्स में ख़बर छपी है कि मोदी ने महाराष्ट्र के रायगढ़ में कहा है कि "शिवाजी ने सूरत को नहीं लूटा था । सूरत में औरंगज़ेब के ख़ज़ाने को लूटा था । शिवाजी महाराज सिर्फ योद्धा ही नहीं अच्छे प्रशासक थे जो आज भी प्रासंगिक है । शिवाजी महाराज के इस पहलु को नज़रअंदाज़ किया गया है ।" राज ठाकरे की प्रेस कांफ्रेंस आठ जनवरी को हुई है ।
ज़ाहिर है हिन्दुत्व के स्पेस में यह की दावेदारों का झगड़ा है जिसमें से दो एक ही घर से आए हैं और तीसरा बाहर से आ गया है । राज ने मोदी को चुनौती देकर मराठी अस्मिता को उभारने का प्रयास किया है जिसके इतिहास में साठ के दशक का संयुक्त महाराष्ट्र अभियान का वो दर्द भी है जिसमें गुजराती मूल के मेरारजी देसाई के गोली चलाने के आदेश से हुई एक सौ पाँच लोगों की मौत शामिल है । मुंबई में इन शहीदों की याद में एक हुतात्मा चौक भी है । हमारी सहयोगी शिखर त्रिवेदी ने किसी और प्रसंग में कहा था कि कोई भी राजनीति अपने राज्य के इतिहास को नहीं भूलती है । जब महाराष्ट्र गठन का पचास साल हुआ था तब गणपति के पंडालों में उस दौर से संघर्षों की चित्रावलियां बनाईं गईं थीं । बात कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है । अभी अभी एक टिप्पणी आई है जिसे मैं इस लेख में जोड़ रहा हूँ । मोरारजी देसाई ने गोली चलाने के आदेश दिये तो उसमें गुजराती छात्र मारे गए और पूरे गुजरात में उनके ख़िलाफ़ आंदोलन भड़क गया था । मोदी से उनके अपने भी लड़ रहे हैं !
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ReplyDeleteशुक्रिया मैंने लेख में आपकी जानकारी को यार रूप में शामिल कर लिया है ।
ReplyDeleteसर ऐसा ही कुछ अकाली में भी हो रहा है ...सिख किसान जो कच्छ में रहते है उनकी ज़मीन का मामला बहुत फोकस में आ गया है , पिछले रविवार इंडियन एक्सप्रेस ने ख़ास स्टोरी छापी ची
ReplyDeleteपंजाब और स्पेसिअल्ली किसान अकाली के लिए कोर राजनीतिक मुद्दा है , यहाँ गुजरात गवर्मेंट उनको ज़मीन का हक़ नहीं दे रही और उसका सीधा असर अकाली दल की पंजाब की राजनीती पे हो रहा है
१ किसान(जो कच्च में रहता है ) ने कहा की मोदी जी जब पंजाब में रैली करेंगे तब हमारे परिवार और अन्य पंजाब किसान भाईओ को क्या जवाब दे सकेंगे ?
मोदीजी की एमऍनएस और शिव शेना दोनों का साथ चाहते है ( चित भी मेरा और पट भी मेरा ) और इसी चक्कर में दोनों नाराज हो जाते है
( सर २०१४ इलेक्शन पहेले साथ आ जाये उसका चांस नहीं है क्या ? )
जैसा कि पहले भी आपके ब्लॉग पर लिखा था. किरण बेदी शुरू से ही BJP के लिए काम करती रही हैं.कभी वो ईमानदार रही हो मुझे नहीं लगा. AAP और अरविन्द को मात देने की उनकी आखिरी कोशिश है. और इसीलिए उन्होंने लुकाछिपी का खेल छोड़ अपने को बेपर्दा कर दिया है.
ReplyDeleteमोदी की लोकप्रियता क्या सिर्फ इसलिए है कि वो तथाकथित विकासपुरुष हैं. जी नहीं. गुजरात का विकास माडल हिन्दुस्तान के उच्वर्नीय मध्यवर्ग को जरूर लुभाता है किन्तु उनका फसिवादी चेहरा इसी वर्ग को आक्रामक बना दिया है. यही वह चेहरा है जो उद्धव और राज को परेशान कर रही है. जो भी हो खेल रोचक होते जा रहा है. बाकि जे बासे के बीच में ......
hmmmm......ye politics nahi aasan........
ReplyDeleteHinduvata ke thahedaro ki bhidant hai,,chetriyavad aur hinduvata ka mishran hai. khair in sab ki kchidi se rashtravad agar banta hai to behtar.
ReplyDeleteRavish Bhai ,ek sher jo apke saath Twitter par bana tha yaad aa gaya MNS aur BJP ke liye
ज़ुल्म gair का to एक फ़साना है, इंसाफ़ तो बस गाना बजाना है ;;बदज़बानी का खूबशूरत तराना हैं,Inki पेचिस में कुछ शायराना हैं
रवीश भईया हम आपकी पत्रकारिता और लेखन के मुरीद रहे हैं. भईया, इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जो मिठास और अपनापन भईया में है. वो सर में नहीं है. लगता ही ऐसा है कि बड़े भईया बतिया रहें हों, समझा रहे हों. जब आप प्राइम टाइम पर 5 मिनट विषय की प्रस्तावना अपनी कवितामयी भाषा में समझते है तो सच में लगता है कि बड़े भाई ने कोई बात समझा है.
ReplyDeleteभईया बड़ी हसरत थी आपसे मिलकर बात करें. पर ऐसा नहीं हो सका. लखनऊ से पत्रकारिता में एमए करने के बाद गुजरात केंदीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहा हूँ.
मैंने सुना है कि आप अपने चाहने वालों से फोन पर बात भी करते है, यदि आपका मन करता है तो. भईया अगर कभी समय मिले तो हमसे भी बात करियेगा. हमें अच्छा लगेगा
आपका छोटा भाई
अनुराग अनंत
मोबाईल 08401016191
मैं कम्युनिस्ट पार्टियों का वैचारिक विरोध तो जरूर करता हूँ, पर उनका इस बात के लिए सम्मान करता हूँ कि वो जो हैं वही अपना परिचय देते हैं। भारत अगर इतने वर्षों के बाद भी एक गरीब देश है तो वह इन छद्म कम्युनिस्टों के कारण। बार-बार नया चेहरा ले कर आ जाते हैं। अरविन्द केजरीवाल उनका नया चेहरा है।
ReplyDeleteदुःख इस बात से होता है कि जो समझदार लोग हैं वो यह समझ पाने में कुछ अधिक समय लगा देते हैं। तब फिर वही होता है, जैसा कई बार कहा गया है, "अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"।
वही हुआ "ईमानदार-ईमानदार मनमोहन सिंह" के नारे से, देश दस महत्वपूर्ण वर्ष गँवा बैठा।
अभी कुछ ही समय पहले मायावती की मूर्तियों का बदला लेने के लिए लोग मुलायम का गुण्डा-राज वापस ले आये उप्र में। फिर वही, "अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"।
मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है, ना ही किसी को होनी चाहिए, कि केजरीवाल और उनकी पार्टी चुनाव लड़े और खूब सारी सीट जीत कर लाये। जनतंत्र में यह सबका अधिकार है। डर इस बात का है कि वो जीतें ना जीतें, मगर कांग्रेस विरोधी जो माहौल बना है उसका वोट जरूर काट ले जायेंगे।
हमारे इस outdated First-Past-The-Post सिस्टम में जहाँ कि एक-एक वोट का महत्व है, ऐसे ही वोट काटने वाली पार्टियों के सहारे कांग्रेस ने देश को खोखला कर के रख दिया। वो चाहे महाराष्ट्र की "नव निर्माण सेना" हो या आन्ध्र में चिरंजीवी की "प्रजा राज्यम् पार्टी"।
दिल्ली का प्रयोग भी वही है। आखिर "आप" का मुख्य-मष्तिष्क योगेन्द्र यादव जी राहुल गांधी के राजनैतिक सलाहकार रह चुके हैं। स्वयं अरविन्द जी की मार्गदर्शक अरुणा रॉय, सोनिया जी की NAC की सदस्या हैं।
आपको शायद ध्यान हो कि हार के तुरंत बाद शीला दीक्षित जी ने कांग्रेस पर असहयोग का आरोप लगाया। दाँव इतना सटीक है कि एक छोटा सा दिल्ली गँवाओ और देश पर फिर से कब्ज़ा कर लो। वैसे भी कांग्रेस दिल्ली के शासन के दूर तो हुई नहीं, चाहे कांग्रेस का राज हो, या "आप" का। क्या इसमे किसी को कोई आश्चर्य है कि जिस भ्रटाचार के मुख्य मुद्दे पर "आप" ने यह चुनाव लड़ा, वह बिसराया जा चुका है, अब बस मोदी विरोध ही मुख्य हो गया।
काश कांग्रेस के कर्ता-धर्ता अपनी इस शातिर बुद्दि का उपयोग किसी सकारात्मक काम के लिए करते।
यूँ तो हम सभी कोंग्रेसी ही हैं, पर स्वतंत्रता से पूर्व स्वतंत्रता और देश के लिए प्रतिबद्ध कोंग्रेसी। एक परिवार की निजी कंपनी के कर्मचारी नहीं।
ईश्वर उन्हें शीघ्रता से सद्बुद्धि दे जो अनजाने में कोई दीर्घकालीन क्षति न कर दें। कहते हैं ना कि जब मुट्ठी भर अँगरेज़ सेना की टुकड़ी रानी-झाँसी को कैद करने उनके किले की ओर जा रही थी, तब रास्ते के दोनों ओर खड़ा वो अपार जन समूह, जो महज थूक भी देता तो वह छोटी टुकड़ी बह जाती। पर उन्होंने थूका नहीं, उन अच्छे लोगों ने यही बहस की होगी कि रानी-झाँसी सही है या अंग्रेज सेना।
आखिर मोदी ही क्यों !!!!!!!
ReplyDeleteआज देश कि जो हालत है उसके पीछे हमारी सरकार है । …जो कांग्रेस द्वारा चलाई जा रही है वो है,,
देश में मंहगाई ,,,बेरोजगार ,,,,भ्रष्टाचार ,,,कुशाशन चारो तरफ फ़ैल गया है.
देशः को इस सब से छुटकारा पाने क लिए एक नई सरकार को लाना चाहिए। …आज क दिन बीजेपी ही ऐसी पार्टी है जो अपने द्वारा शाषित राज्यो में अच्छा विकाश ,,सुसाशन ,,प्रदान कर रही है। ।
उसने "PM" के पद के लिए नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाया है। . जो कि एक कर्मठ और जुझारू नेता है
देशः के लिए उनके पास एक मॉडल है । जो उन्होंने गुजरात में आजमा चुके है और सफल रहा है।
…आज हमारे देश को चारो तरफ से चीन द्वारा घेरा जा रहा है पाकिस्तान ,,बांग्लादेश,,तालिबान ,,ये सब देश क लिए बड़े संकट के रूप में उभर रहे है हमें जरूरत है एक ऐसे नेता कि जो हमें सुरक्षित कर सके ,,हमें रोजगार दे सके ,,,भारत को भ्रष्टाचार मुक्त कर सके मंहगाई को काबू में कर सके ,,हमें जरूरत है मोदी की।
हमें जरूरत है कि हम एक पार्टी को बहुमत देकर उसे आगे बढ़ाएं ताकि वो हमारे लिए काम कर सके। उसे अपने सहयोगियो का मुह न देखना पड़े किसी नये काम क लिए,,,वो स्वतँत्र होकर हमारे लिए नीतिया बनाये।
अतः हमे एक पार्टी को वोट देकर बहुमत देना चाहिए। . यह एक स्थिर ,,मजबूत ,,और अच्छी सर्कार देने में मददगार होगा।
आज मिडिआ में "आप " क बारे में चारो तरफ हो हल्ला मचा है। लेकिन कोई ये नही बात कर रहा है कि अगर "आप " को ३० से ४० सीट मिल जाती है तो क्या हो सकता है ???????
मैं नही कहता कि आप "आप " को वोट न दे लेकिन देने से होगा क्या इस बात को ध्यान में रखने कि भी जरूरत है…" आप " नई पार्टी है वो खुद बहुमत में आए नही सकती ,, लेकिन वो बीजेपी ल वोट कट सकती है ,,,जो कि कांग्रेस क लिए मददगार होगा ,,,जो हम नही चाहते।
और रही बात अरविन्द जी कि तो उनके पास 5 साल का वक्त है ही वो कुछ कर क दिखाए इन 5 सालो में अगर मोदी ने कुछ नही किआ तो आगली बरी उनकी ही है। . लेकिन इस बार हमे आपना वोट एक सकारात्मक दिशा में देना चाहिए। .......... ताकि देशः का कुछ भला हो सके।
मैं..आपका ध्यान इस तरफ लाना चाहता हु …
अगर आप को ३० से ४० सीट मिल जाती है तो बीजेपी २७२ के जादुई आंकड़े को नही झु पायेगी और। ।देश में कोई भी राजनैतिक पार्ट्री उसे समर्थन नही देगि।
इस केस में एक पार्टी जो जोड़े तोड़ कर सर्कार बना सकती है यो है कोंग्रेस। .
तो मित्रो हम जहा से शुरू हुए थे वही पर रुक जायेंगे
देश में एक ऐशी सर्कार बनेगी जो कई पार्टियो क जोड़ से बनी होगी और
फिर से हमें एक ऐसी सरकार मिलेगी जो. हमें, मंहगाई ,,,बेरोजगार ,,,,भ्रष्टाचार ,,,कुशाशन ,,आदि देगी।
बसपा ,सपा ,आप ,कोंग्रेस ,आदि एक साथ आकर खिचड़ी सरकार बनाकर फिर देश को एक बार पीछे ले जेन में कोई कसर नही छोड़ेंगी।
इसलिए हमे हमारा वोट सोच समझ कर देना है।
Ha ha ha ....modi kya khak susasan laiga?
DeleteGujarat me kitana bhrastachar he aapko nahi pata,ek halkat politics kar rahahe bjp
Ravish sir plz gujarat ke vikas ke khokale pan ko ujagar kijiye aapka kartvya bantahe,
Or kitana bhratachar he gujarat me
Ravish ji ek correction hai..Modi ne pahle bhi apne speeches mein UP, Kerala aur Bihar ke logon ki gujrat mein contribution ki baat kahi hai...
ReplyDeleteवैसे मोदी को चर्चा में लाने के लिए बेदी की ज़रूरत नहीं है येद्दुरप्पा ही काफी है
ReplyDeletekuch log comments ko nibandh likho pratoyogita samaz rahe hain
ReplyDeleteसर अब एक बात साफ़ है ,कि दुरंगी चाल और छुपित मक्कारी का खेल अब भारतीय राजनित मैं नहीं चलेगा
ReplyDeleteराज और उद्धव ठाकरे में मतभेद हो सकते है पर एक जगह वह अलग नहीं है बाळासाहेब को लेकर।
ReplyDeleteऔर नरेंद्र मोदी बाळासाहेब की पसंद है।
राज ठाकरे उनकी मराठी माणुस की राजनीती:) की वजह से मीडिया के हाथों चढ़ गए है।
तो उसका फायदा हो सके उतना ले रहे होंगें :)
बाकी मोरारजी देसाई इंदीरा को कुर्सी से उतारनेवाले प्रधान मंत्री और जनतादल के नेता से ज्यादा जाने जाते है गुजरात और महाराष्ट्र दोनों जगह । इसी लिए दोनों जगह कांग्रेस और जनतादल नहीं आ पाए-मनसे को आवकार है ncp को है शिव सेना तो है ही है।
यह सिर्फ कांग्रेस को फायदा न लेने देने की टकोर से ज्यादा कुछ नहीं है शायद।
मुम्बई और उसके आस पास कि जिलो में अगर शिव सेना , भाजप और मनसे मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे तो इसका फायदा सीधे सीधे आप या तो कांग्रेस को होगा, हाल ही में राहुल कँवल ले आर्टिकल में ये बात सामने आयी थी कि अगर मनसे का जन्म न होते तो भाजप और शिव सेना के खाते में और भी सीटे आती। मनसे के फिर से अलग चुनाव लड़ने से इतिहास फिर अपने आप को दोहरा सकता है।
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