"नेहरू ने कांग्रेस को मिले वोटों का तात्पर्य नागरिकों द्वारा नेहरूवादी आधुनिकता को दी गया सहमति के रूप में ग्रहण किया था । कांग्रेस की चुनावी जीत को उत्तर औपनिवेशिक राज्य में आधुनिकता लाने के इरादे से शुरू की गयी बड़ी परियोजनाओं के प्रति लोगों की पूर्ण सहमति मान लिया गया था । इसी चक्कर में राज्य व्यवस्था ने विरोध के सभी स्वरों को ख़ारिज कर दिया । ये विरोधी स्वर उन सभी विस्थापितों के थे जिनके खेत खलिहानों को ज़बरदस्ती अधिग्रहीत कर राज्य ने देश के विभिन्न भागों में ऐसी योजनाएँ तथा परियोजनाएँ शुरू की थीं ।"
मीडिया तब भी वैसा ही था । विरोध की आवाज़ राष्ट्र निर्माता के स्वप्न से कमतर लगती थी । हम अभी तक एक मीडिया समाज के तौर पर महानायकी का गुणगान करने की आदत से बाज़ नहीं आए । आज भी शहर के बसने और गाँवों के उजड़ने के क़िस्सों को दर्ज करने में मीडिया असंतुलन बरतता है । कोई कराता है या अपने आप हो जाता है इस पर विवाद हो सकता है । उस दौरान विस्थापित हुए लोगों की पीढ़ियां मीडिया और राज्य व्यवस्था की इस नाइंसाफ़ी से कैसे उबर पाई होंगी आप अंदाज़ा लगाने के लिए अपने आज के समय को देख सकते हैं ।
शुरू के दो उद्धरण मैंने नवप्रीत कौर के लेख से लिये हैं । यह लेख सी एस डी एस और वाणी प्रकाशन के सहयोग से प्रकाशित हिन्दी जर्नल 'प्रतिमान' में छपा है । 'प्रतिमान' हिन्दी में ज्ञान के विविध रूपों को उपलब्ध कराने का अच्छा प्रयास है । इसके प्रधान सम्पादक अभय कुमार दुबे हैं । साल में इसके दो अंक आते हैं और काफी कड़ाई से इसमें लेख छपने योग्य समझा जाता है । नवप्रीत कौर चंडीगढ़ के इतिहास पर काम करती हैं ।
भारत में उत्तर औपनिवेशिक शहर बनाने का सपना आज कहाँ खड़ा है । चंडीगढ़ हमारे आज के शहरी विमर्श की मुख्यधारा में भी नहीं है । उसके बाद के बने शहर चंडीगढ़ को न अतीत मानते हैं न भविष्य । लवासा, एंबी वैली, सहारा शहर, नया रायपुर, गांधीनगर, ग्रेटर नोएडा, नोएडा, गुड़गाँव, नवी मुंबई, इन नए शहरों ने हमारी शहरी समझ को कैसे विस्तृत किया है या कर रहा है हम ठीक से नहीं जानते । बल्कि अब इस देश में हर तीन महीने में कोई नया शहर लाँच हो जाता है । उस शहर का निर्माता कोई बिल्डर होता है । नेहरू न मोदी ।
नरेंद्र मोदी भी सौ स्मार्ट सिटी लाने का सपना दिखा रहे हैं । यूपीए सरकार ने भी सोलह हज़ार करोड़ का बजट रखा है । केरल के कोच्चि में स्मार्ट सिटी की आधारशिला रखी जा चुकी है । छह सात स्मार्ट सिटी बनाने का एलान उसी बजट में किया गया था । स्मार्ट सिटी से मंदी नहीं आएगी या अर्थव्यवस्था कैसे चमक जाएगी इसका कोई प्रमाणिक अध्ययन सार्वजनिक विमर्श के लिए उपलब्ध नहीं है । कुछ हफ़्ते पहले पुणे की एक राजनीति विज्ञानी ने इंडियन एक्सप्रेस में एक छोटा सा लेख ज़रूर लिखा था उम्मीद है " स्वतंत्र और निष्पक्ष " मीडिया इस बार विस्थापन के सवालों पर नेहरू के स्वर्ण युग वाले दौर की तरह ग़लती नहीं करेगा । स्मार्ट सिटी की परिकल्पना पर सूचनाप्रद बहस शुरू करेगा ।
अच्छा लग रहा है जिन दलों के नेता मीडिया के सवालों का सामना नहीं करते वे आजकल केजरीवाल के बयान के बहाने मीडिया की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं । इंटरव्यू तक नहीं देते मगर चौथे खंभे का सम्मान करते हैं । पत्रकार सीमा आज़ाद को जेल भेजने वाली सरकारों के नेता कहते नहीं है । चुपचाप जेल भेज देते हैं । यही फ़र्क है । ज़रा गूगल कीजिये । नमो से लेकर रागा फ़ैन्स के बहाने इन दलों ने आलोचना की आवाज़ को कैसे कुचलने का प्रयास किया है । किस तरह की गालियाँ दी और इनके नेता चुप रहे । नमो फ़ैन्स और रागा फ़ैन्स की भाषा देखिये । किराये पर काल सेंटर लेकर अपने फ़ैन्स के नाम पर हमले कराना अब स्थापित रणनीति हो चुकी है ।
कपिल सिब्बल जो सोशल मीडिया पर अंकुश लगा रहे थे वे अरविंद के बयान की मज़म्मत के बहाने मीडिया के चैंपियन हो रहे हैं । महाराष्ट्र सरकार ने उस लड़की के साथ क्या किया था जिसने फेसबुक पर बाल ठाकरे के निधन के बाद टिप्पणी की थी । महाराष्ट्र में लोकमत के दफ़्तर पर हमला करने वाले कौन लोग थे । इन दलों ने पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के मालिकों को लोक सभा से लेकर राज्य सभा दिये कि नहीं दिये । दे रहे हैं कि नहीं दे रहे हैं । इन राजनीतिक दलों के उभार के इतिहास में मीडिया कैसे सहयात्री बना रहा इसके लिए इतिहास पढ़िये । राबिन ज्येफ्री की किताब है । नाम याद नहीं आ रहा । बाबरी मस्जिद के ध्वंस के समय हिन्दी पट्टी के अख़बार क्या कर रहे थे राबिन ज्येफ्री की किताब में है । भाजपाई मीडिया और कांग्रेसी मीडिया का आरोप और द्वंद अरविंदागमन के पहले से रहा है ।
मीडिया को अपनी लड़ाई खुद के दम पर लड़नी चाहिए न कि अलग अलग समय और तरीक़ों से उन पर अंकुश लगाने वालों की मदद से । मीडिया को अपने भीतर के सवालों पर भी वैसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए जैसी अरविंद के हमले के बाद की जा रही है । स्ट्रींगरों के शोषण से लेकर छँटनी और ज़िला पत्रकारों के वेतन के सवाल पर भी उन मीडिया संगठनों को बोलना चाहिए जो इनदिनों मीडिया की तरफ़ से बयान जारी कर रहे हैं । रही बात जेल भेजने की तो यह काम कई तरीके से हो रहा है । राज्यों की मीडिया संस्थानों को विज्ञापनों के ज़रिये जेल में रखा जा रहा है । कोई जेल भेजने की बात कर रहा है तो कोई विज्ञापनों या स्वभक्ति के नाम पर अपने आप जहाँ है वहीं पर खुशी खुशी निर्विकार जेल में रह रहा है । विज्ञापन का विकल्प क्या है । पूरी दुनिया में ऐसे आरोप लग रहे हैं और इनका अध्ययन हो रहा है ।
मीडिया प्रवक्ताओं को बताना चाहिए कि राज्यों में अख़बारों को लेकर ऐसी अवधारणा क्यों है । सही है या ग़लत है । पाठकों को अहमदाबाद, पटना, राँची लखनऊ और भोपाल के अख़बारों का खुद अध्ययन करना चाहिए और देखना चाहिए कि उनमें जनपक्षधरता कितनी है । मुख्यमंत्री का गुणगान कितना है और सवाल या उजागर करने वाली रिपोर्ट कितनी छपती है ।
इस बार जब चुनाव आयोग ने कहा कि इस चुनाव में मुक्त और निष्पक्ष चुनाव को सबसे बड़ा ख़तरा पेड न्यूज़ से है तब किस किस ने क्या कहा ज़रा गूगल कीजिये । मुख्य चुनाव आयुक्त ने सम्पादकों को चिट्ठी लिखकर आगाह किया है और सरकार से क़ानून बनाने की बात की है । डर है कि कहीं अरविंद के इस बयान के सहारे कवरेज़ में तमाम तरह के असंतुलनों को भुला न दिया जाए । पेड मीडिया एक अपराध है जिसे मीडिया ने पैदा किया ।
आज हर बात में कोई भी पेड मीडिया बोलकर चला जाता है । मीडिया को लेकर बयानबाज़ी में हद दर्जे की लापरवाही है । सब अपने अपने राजनीतिक हित के लिए इसे मोहरा और निशाना बनाते हैं । आख़िर कई महीनों तक चैनलों ने क्यों नहीं बताया कि मोदी की रैली में झूमती भीड़ के शाट्स बीजेपी के कैमरे के हैं । उस चैनल के नहीं । लोगों को लगा कि क्या भीड़ है और कितनी लहर है । तब हर चैनल पर मोदी का एक ही फ़्रेम और शाट्स लाइव होता था । अब जाकर आजकल सौजन्य बीजेपी या सौजन्य कांग्रेस लिखा जाने लगा है । क्या मीडिया ने खुद जिमी जिब कैमरे लगाकर अन्ना अरविंद आंदोलन के समय आई भीड़ को अतिरेक के साथ नहीं दिखाया । जंतर मंतर में जमा पाँच हज़ार को पचीस हज़ार की तरह नहीं दिखाया । क्या इस तरह का अतिरिक्त प्रभाव पैदा करना ज़रूरी था । याद कीजिये तब कांग्रेस बीजेपी इसी मीडिया पर कैसे आरोप लगाती थी । बीजेपी के नेताओं ने ऐसे आरोप दिसंबर में आम आदमी की सरकार बनने के बाद के कवरेज पर भी लगाए । तीन राज्यों में जहाँ बीजेपी को बहुमत मिला उसे न दिखाकर अरविंद को दिखाया जा रहा है । जेल भेजने की बात नहीं की बस । शुक्रिया । जबकि उन्हीं चैनलों पर महीनों मोदी की हर रैली का एक एक घंटे का भाषण लाइव होता रहा है । मोदी की रैली के प्रसारण के लिए सारे विज्ञापन भी गिरा दिये जाते रहे । किसी ने बोला कि ऐसा क्यों हो रहा है । याद कीजिये । यूपी विधानसभा चुनावों से पहले राहुल की पदयात्राओं कवर करने के लिए कितने ओबी वैन होते हैं । राहुल जितनी बार अमेठी जाते हैं न्यूज़ फ़्लैश होती है । क्यों ? बाक़ी सांसद भी तो अपने क्षेत्र जाते होंगे । इन सवालों पर चुप रहते हुए क्या मीडिया पर उठ रहे सवालों का जवाब दिया जा सकता है ?
अरविंद को ऐसे हमलों से बचना चाहिए । सबको गाली और दो चार को ईमानदार कह देने से बात नहीं बनती है । दो चार नहीं बल्कि बहुत लोग ईमानदारी से इस पेशे में हैं । वो भले मीडिया को बदल न पा रहे हों मगर किसी दिन बदलने के इंतज़ार में रोज़ अपने धीरज और हताशा को समेटते हुए काम कर रहे हैं । हम रोज़ फ़ेल होते हैं और रोज़ पास होने की उम्मीद में जुट जाते हैं । अरविंद अपने राजनीतिक अभियान में मीडिया को पार्टी न बनायें । मीडिया को लेकर उनके उठाये सवाल जायज़ हो सकते हैं मगर तरीक़ा और मौक़ा ठीक नहीं । जेल भेजने की बात बौखलाहट है । पेड न्यूज़ वालों को जेल तो भेजना ही चाहिए । अरविंद की बात पर उबलने वालों को मीडिया को लेकर कांशीराम के बयानों को पढ़ना चाहिए । यह भी देखना चाहिए कि मीडिया उनके साथ उस वक्त में कैसा बर्ताव कर रहा था । किस तरह से नई पार्टी का उपहास करने के क्रम में अपनी उच्च जातिवादी अहंकारों का प्रदर्शन कर रहा था । कांशीराम भी तब मीडिया को लेकर बौखला जाते थे ।
आज मायावती खुलेआम कह जाती हैं कि मैं इंटरव्यू नहीं दूँगी । पार्टी के लोगों को सोशल मीडिया के चोंचलेबाज़ी से बचना चाहिए ।मीडिया में कोई आहत नहीं होता क्योंकि मायावती अब एक ताक़त बन चुकी हैं । अरविंद बसपा से सीख सकते हैं । बसपा न अब मीडिया को गरियाती है न मीडिया के पास जाती है । जब कांशीराम बिना मीडिया के राजनीतिक कमाल कर सकते हैं तो केजरीवाल क्यों नहीं । योगेंद्र यादव भी तो आप की रणनीतियों के संदर्भ में कांशीराम का उदाहरण देते रहते हैं । जिस माध्यम पर विश्वास नहीं उस पर मत जाइये । उसे लेकर जनता के बीच जाइये । जाना है तो ।
और जिन लोगों को लगता है कि मीडिया को लेकर आजकल गाली दी जा रही है उनके लिए अख़बारों के बारे में गांधी जी की राय फिर से दे रहा हूँ ।
"कोई कितना भी चिल्लाता रहे अख़बार वाले सुधरते नहीं । लोगों को भड़काकर इस प्रकार अख़बार की बिक्री बढ़ाकर कमाई करना, यह पापी तरीक़ा अख़बार वालों का है । ऐसी झूठी बातों से पन्ना भरने की अपेक्षा अख़बार बंद हो जायें या संपादक ऐसे काम करने के बजाय पेट भरने का कोई और धंधा खोज लें तो अच्छा है । "
12.2.1947- महात्मा गांधी( सौजन्य: वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत)
एक दो दिन पहले सोशल मीडिया पर एक राजनीतिक दल के भक्तों को पाप -पुण्य का प्रयोग बहुतायत में करते देखा , समझ ना पाया। चैनेल -सर्फिंग कि तो मसला कुछ पल्ले पड़ा। यकीन मानिये ,मुस्कुराहट भी ना आई ,कटाक्षों पर। एक टीवी चैनल तो बजाप्ता फुटेज दिखा चटखारें ले रहा था , वैसे उस चैनल ने सारी नैतिकता की चादर ओढ़ ली थी। बाकी पत्रकारों को एक इंच भी न दिया था ढकने के लिए । राजनीति में गणन की कला तो मजबूरी हैं लगता हैं की पत्रकारिता में इस कला ने पैठ कर लिया हैं।
ReplyDeleteतिजारत ही क़ाबिल -ए -ेअते माद की तरक़ीब , हैं उनका फ़साना :
इल्म -उल -अदद कब बनी इंसान की तसदीक़ , खाकसार भी जाना।
( तिजारत - व्यापार ,ेअते माद - विस्वास ,इल्म-उल-अदद -- गणन की कला ;तसदीक़ --इमान )
अजीबो ग़रीब रिश्ता हैं पत्रकारिता और राजनीति का, कभी ३६ का आँकड़ा कभी ६३ सा मेल।
पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों पर बोलने की ना समझ हैं और ना ही औक़ात है,इस पेशे से अपना फासला खानदानी हैं। हाँ ,अंतराल "उनकी इस्तीफे और राजनीति में उतरने का" अट्पटा सा लगा। कुछ ठगा हुआ सा महशूस तो हम ख़ाक़सारो ने किया।
Little more at छुटता बंधन -४ atulavch.blogspot.in
dear raveesh bhai
ReplyDeleteAPKA BLOG BAHUT ACCHA HAI.PER APKI CHINTA HAI.APKA HAAL BHI VINOD DUA JAISA HONE WALA HAI.MATLAB SIDELINE HONE WALE HO.
PRANAV ROY (DESI ANGREJ)EK CONGRESSI PITHU HAI.UNSE APP BACH KAR REHNA.
BEST OF LUCK
LAGE RAHO RAVISH BHAI.KOI AUR HO NA HO HUM(PUBLIC) TUMHARE SAATH HAI
रवीश जी जो आपने अंत में गाँधी जी का उद्धरण दिया जम गया, आपकी बात में दम है के काफी पत्रकार निष्पक्ष रिपोर्टिंग करते हैं..चाहे पार्टी कोई हो , व्यक्ति कोई हो लेकिन वो अपना काम करते रहते हैं....अरविन्द केजरीवाल जी को धीरज से काम लेना चाहिए...सभी को एक ही लाठी से हांकना ठीक नहीं है...और पेड मीडिया की बात तो स्वयं चुनाव आयोग ने स्वीकारी है..तो ये कोई नई बात नहीं है.
ReplyDeleteआप तवज्जो दे ना दे , मेरी आत्मीयिता तो बनी रहेगी।
ReplyDeleteमेरी सीरत तो देखो , नाम को छोड़ो ;
इमां तो देखो , शहर का नाम ना पूछो।
पढियेगा जरूर। एक आध शब्द कमेन्ट के छोडेंगे तो आपकी भी मेरे शहर से आत्मीयता हो जाएगी
atulavach.blogspot.in
मंज़िले बनी रहे जो रह जाए थोड़े फासले
रंजिशें मिटती रहे औ न टूटे हमारे काफ़िले
Mujhe to ye samajh nahi aa raha ki Arvind Kejariwal ne galat kya kaha? "Paid media walon ko humari sarkaar aane par jail bhejenge"
ReplyDeleteIsme kya galat hai? Kya paise lekar khabar dikhana kaanooni apradh nahi hai? Agar hai to usse jail nahi honi chahiye?
Window seat milne se lekar seat belt na pehanne tak ko BREAKING NEWS mein dikhane wala NATIONAL media, kya khud apni aalochna nahi seh sakta.?
Jaisa aapne kaha ki jis maadhyam par vishwas na ho wahan mat jayiye.. To kal ko yahi media chilla cilla kar breaking news me kahega ki ARVIND KEJARIWAL MEDIA K SAWALON SE BHAAG RAHE HAIN.
भाई, मीडिया की स्वतंत्रता पर आपका ये लेख निबंध इस पेशे में आने वाले नौजवान लोगों को प्रेरणा है. और महात्मा गाँधी के इस कथन के लिए धन्यवाद।
ReplyDelete"सुबह जब मेरी कम पढ़ी लिखी काम वाली बाई ने मेरे एक खबरिया चैनल देखने पर ये कहा कि " साब, होस्पिटल को टेम होगो, कछु ना रखो खबरन् में, सारी फर्जी है। पइसा बना रे है ये तो और आप लेट हो जाओगे।" तो मैं सदमें में आ गया और सुबहा से बार बार एक खतरनाक आंशका से घबराया हुआ हूँ और ये ब्लोग लिखकर मैं मेरी चिंता और मेरी बाई का अविश्वास इस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ तक पहुचाना चाहता हूँ।
ReplyDeleteक्या समाचार मनोरंजन के लिए हो सकते है?
क्या समाचार और उन्हें बनाने वाले लोग किसी और ग्रह के है या कोई सुपर हुमन है जिनके हर सच और झूठ को सिर्फ स्वीकार कर लिया जाए और कुछ भी कहने सुनने और बना देने के बावजूद प्रतिक्रया देने का कोई माध्यम किसी पिड़ीत के पास शेष ना छोडा जाये?
क्यूँ किसी भी सच या झूठ के लिए इनकी जिम्मेदारी तय नही की जा सकती? नही करनी चाहिए? क्यूं किसी के इनके खिलाफ खडे हो जाने पर एक साथ लामबंद हो जाते है ये सब लोग? क्यूँ इन्हें सिर्फ सवाल पूछने की सुरक्षित सुविधा है और जबाव ना देने की स्वतंत्रता? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ऐसे ढाल बना कर कुछ रजनीगंधा छाप रिपोर्टर न्यूज चैनलों के रजनीकांत नही बन गये है।
ये कैसा चौथा स्तंभ है जो बुरादे से बना है और अपना कद संविधान से ऊपर कर चुका है। लेकिन जब मेरी बाई तक इनकी सच्चाई जानने का दावा करती है तो डर लगता है कि यह बुरादे का खम्भा यकीनन ढहने वाला है और इसलिए ही शायद इनकी लामबंदी और ज्यादा गहरी हो रही है औऱ इस तरह ये अपनी अर्थी के खंभे खुद उठा रहे है स्वाहा होने के लिए।खबर जब विश्ववास खो दे तो उसका अंतिम संस्कार हो ही गया मानिए।
मुझे परेशानी इस बात से है कि जब कोई खंभा टूटता है तो इमारत भी ढह जाती हैं इसलिए क्यूं ना तर्क हो, चर्चा हो, आंदोलन हो इस बुरादे के स्तंभ को मजबूत करने के लिए? क्यूँ नहीं इनकी भी जिम्मेदारी तय हो भारत के लोकतंत्र के हर स्तंभ की मानिन्द? क्यूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लोगों के विश्वास से खेलने वाले इस खेल को बंद करके खबरो की नैतिकता को किसी आकाशवाणी जैसा बना देने के प्रयास ना किया जाए??
क्यूँ कि खबर कोई मनोरंजन नही हो सकती, खबर किसी सुधीर चौधरी,चौरसिया, वाजपेयी या ओम कश्यप का निजी विचार नही हो सकती। खबर होती है सच का आईना और इसलिए खबर का सही होना और सही पहुंचना,किसी घिनौने व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जियादा किसी आम आदमी का अधिकार है।
इसलिए किसी भी विरोध के खिलाफ लामबंद होने से पहले अपनी गिरेबान मे झांके मेरे खबरिया दोस्तों, यकीन मानिए आप विश्वास खो चुके हो। हो सके तो गलत लोगो का विरोध करिये, कम से कम उनके साथ खडे होने से डरिये। लोकतंत्र फिर से किसी आकाशवाणी को पुकार रहा है।"
डॉ विकास
"सुबह जब मेरी कम पढ़ी लिखी काम वाली बाई ने मेरे एक खबरिया चैनल देखने पर ये कहा कि " साब, होस्पिटल को टेम होगो, कछु ना रखो खबरन् में, सारी फर्जी है। पइसा बना रे है ये तो और आप लेट हो जाओगे।" तो मैं सदमें में आ गया और सुबहा से बार बार एक खतरनाक आंशका से घबराया हुआ हूँ और ये ब्लोग लिखकर मैं मेरी चिंता और मेरी बाई का अविश्वास इस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ तक पहुचाना चाहता हूँ।
ReplyDeleteक्या समाचार मनोरंजन के लिए हो सकते है?
क्या समाचार और उन्हें बनाने वाले लोग किसी और ग्रह के है या कोई सुपर हुमन है जिनके हर सच और झूठ को सिर्फ स्वीकार कर लिया जाए और कुछ भी कहने सुनने और बना देने के बावजूद प्रतिक्रया देने का कोई माध्यम किसी पिड़ीत के पास शेष ना छोडा जाये?
क्यूँ किसी भी सच या झूठ के लिए इनकी जिम्मेदारी तय नही की जा सकती? नही करनी चाहिए? क्यूं किसी के इनके खिलाफ खडे हो जाने पर एक साथ लामबंद हो जाते है ये सब लोग? क्यूँ इन्हें सिर्फ सवाल पूछने की सुरक्षित सुविधा है और जबाव ना देने की स्वतंत्रता? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ऐसे ढाल बना कर कुछ रजनीगंधा छाप रिपोर्टर न्यूज चैनलों के रजनीकांत नही बन गये है।
ये कैसा चौथा स्तंभ है जो बुरादे से बना है और अपना कद संविधान से ऊपर कर चुका है। लेकिन जब मेरी बाई तक इनकी सच्चाई जानने का दावा करती है तो डर लगता है कि यह बुरादे का खम्भा यकीनन ढहने वाला है और इसलिए ही शायद इनकी लामबंदी और ज्यादा गहरी हो रही है औऱ इस तरह ये अपनी अर्थी के खंभे खुद उठा रहे है स्वाहा होने के लिए।खबर जब विश्ववास खो दे तो उसका अंतिम संस्कार हो ही गया मानिए।
मुझे परेशानी इस बात से है कि जब कोई खंभा टूटता है तो इमारत भी ढह जाती हैं इसलिए क्यूं ना तर्क हो, चर्चा हो, आंदोलन हो इस बुरादे के स्तंभ को मजबूत करने के लिए? क्यूँ नहीं इनकी भी जिम्मेदारी तय हो भारत के लोकतंत्र के हर स्तंभ की मानिन्द? क्यूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लोगों के विश्वास से खेलने वाले इस खेल को बंद करके खबरो की नैतिकता को किसी आकाशवाणी जैसा बना देने के प्रयास ना किया जाए??
क्यूँ कि खबर कोई मनोरंजन नही हो सकती, खबर किसी सुधीर चौधरी,चौरसिया, वाजपेयी या ओम कश्यप का निजी विचार नही हो सकती। खबर होती है सच का आईना और इसलिए खबर का सही होना और सही पहुंचना,किसी घिनौने व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जियादा किसी आम आदमी का अधिकार है।
इसलिए किसी भी विरोध के खिलाफ लामबंद होने से पहले अपनी गिरेबान मे झांके मेरे खबरिया दोस्तों, यकीन मानिए आप विश्वास खो चुके हो। हो सके तो गलत लोगो का विरोध करिये, कम से कम उनके साथ खडे होने से डरिये। लोकतंत्र फिर से किसी आकाशवाणी को पुकार रहा है।"
डॉ विकास
Ravish bhai...aapse milna padega...u r really pride of this fourth pillar...don't change....we really respect u a lot n kindly try to change this system....atleast try
ReplyDeleteAgar media kisi ko HERO bana bhi sakta hai to usko ZERO bhi bana Sakta hai.
ReplyDeleteShri Anna Hajare ji ke DELHI Andolan ke Samay to kisi ne nahi kaha ki ye Pura Midea Paid hai or sirf Anna,Kiran,Arvind,Visvash,Bhushan, ko hi SARA SARA DIN Dikha ta tha.
Mera Saval Hai Kejriwal se ki wo har kisi ko gali dekar sirf NEWSKHOR ya TVKHOR na Bane.
Kush Kam Kar KE KAMKHOR BHI ban ke dikhaye INDIA KE LOGO KO.
Agar ki tarikh me Imandari Ka Certificate Sahiye to Mr.Kejriwal thode dino bad Mr.Farjiwal Se Mile or AAP Party ko Support kare or IMANDARI KA Sabut ke Sath Certificate Paye.
Apka Viewer
Manoj
Bangalore.20
मीडिया की नाराजगी की एक वजह ये है कि मीडिया में काफी लोग अरविन्द को मीडिया की ही उत्पत्ति मानते हैं और इसलिए जब वो मीडिया के खिलाफ बोलते हैं तो ज्यादा तकलीफ होती है, हालाँकि कुछ चैनल तो ऐसे हैं जिन पर पहले दिन से ही मैंने अरविन्द की बुराई और आलोचना ही सुनी है और इसलिए कभी कभी उनकी बात सही लगती है कि कहीं किसी उद्देश्य से प्रेरित होकर तो वो चैनल ऐसा नहीं कर रहे।
ReplyDeleteजब यही मीडिया #AAP के सुर में सुर मिला रहा था तब वो बढ़िया था , अब जवाबदारी पर घेरने लगा तो बुरा हो गया ???
ReplyDeleteहम करे तो रासलीला , दूजा करे तो केरेक्टर ढीला , यही दोहरा मापदंड इस पार्टी कि सबसे बड़ी कमजोरी है!
मीडिया ने ही आप को उठाया था , अब मीडिया ही आप को लिटा देगा !
मीडिया गलत हो तो जाँच सजा सब होनी चाहिए , उसकी जिम्मेदारी निर्धारित होनी ही चाहिए !
लेकिन केजरीवाल ने ये बात कोई जनहित में नहीं कही है ये कोई नैतिक व्यक्तत्व नहीं है , जब उनके ऊपर सवाल उठने लगे तभी उन्हें इसकी याद आई है इस फर्क को समझना होगा !
इनकी अवसरवादिता इनकी बड़ी कमजोरी है !
पुरे दिल्ली के प्रचार अभियान में कांग्रेस का भष्टाचार, इनका असली जनलोकपाल मुद्दा था, अब असली जनलोकपाल , भ्रष्टाचार गायब है क्या वो ख़त्म हो गया ?? अभी सिर्फ मोदी मोदी रट रहे है ! इनकी मतलबपरस्ती को समझने कि जरुरत है !
राजनीती एक तल्ख़ हकीकत है अन्ना-अरविन्द .
ReplyDeleteपर इतना भी नहीं बदला जाता जितने बदले हो तुम
- मुन्नवर राणा जी से माफ़ी के साथ
— feeling ठगा हुवा.
सच बोलने वाले पर लोग पत्थर अवश्य फेंकते हैं, पर हर पत्थर खाने वाला सच्चा नहीं होता है।
ReplyDelete"Aabra ke Mehraru Bhar Ghar ke Bhojai" jisko man karta hai gariya deta hi. Kash media me thoda unity hota or thoda naitik sahas
ReplyDeleteवाह रवीश क्या बढ़िया लेख है बिलकुल आदर्शवादी | आप मिडिया वालो के आदर्शो की तरह | आप लोग सुबह से शाम अरविन्द को गाली दे तो सही | उसके सच को झूठ में बदले तो भी सही | पर एक बार अरविन्द ने सच क्या बोले दिया लग गई आपको | काने को काना कहा अरविन्द ने कितना बड़ा अपराध कर दिया | और उसकी सजा ये ब्लॉग | कह रहे है " अरविंद को ऐसे हमलों से बचना चाहिए । सबको गाली और दो चार को ईमानदार कह देने से बात नहीं बनती है । दो चार नहीं बल्कि बहुत लोग ईमानदारी से इस पेशे में हैं । वो भले मीडिया को बदल न पा रहे हों मगर किसी दिन बदलने के इंतज़ार में रोज़ अपने धीरज और हताशा को समेटते हुए काम कर रहे हैं । अरविंद अपने राजनीतिक अभियान में मीडिया को पार्टी न बनायें । मीडिया को लेकर उनके उठाये सवाल जायज़ हो सकते हैं मगर तरीक़ा और मौक़ा ठीक नहीं । जेल भेजने की बात बौखलाहट है ।"
ReplyDeleteहाँ रवीश ये बौखलाहट ही है | सच कि बौखलाहट ,| आज आप अरविन्द कि जगह होते तो शायद इससे ज्यादा बौख़लाेय होते | अरविन्द से ज्यादा मीडिया को गाली दे रहे होते | नहीं विश्वास होता ना | आशुतोष की हालत देखिय | अरविन्द से कही ज्यादा गुस्सा आशुतोष में है | आपकी सारी ब्लॉगबाजी और भाषण बाज़ी एक दिन में उतर जाती |
अरविन्द खूब गाली दो | जी भर के गाली दो | नाम ले कर गाली दो | दीपक चौरसिआ को गाली दो | अर्नब गोस्वामी को गाली दो | ज़ी न्यूज़ को गाली दो और रवीश को गाली दो | रवीश को क्यों ? रवीश उन कायरो में से है जो सब कुछ जान कर चुप है | है अपनी आदर्शो को अपने फैन को दिखाने ब्लॉग पर लिख देता है | देखो मेरे फैन मै कितन निष्पक्ष हु | मुझे अपनी गलती मालूम है | देखो गांधी जी ने भी एहि कहा था | पर आप कायर है बुज़दिल महा बुज़दिल | अगर सही मै हिम्मत है तो एक प्रोग्रम्म कीजिय इस पेड मीडिया की बारे मै | नहीं कर नहीं सकते | अपना घिनौना चेहरा लोगो को कैसे दिखायेगे | आप भी उतने ही जिम्मेदार है जितना पेड चैनल | आपको अपना प्रमोशन चाहिए | बॉस नाराज़ नहीं हो जाये | तो फिर ये ब्लॉग पर क्यों लिख रहे है | क्यों दिखा रहे है अपनी खोखले आदर्शता | आपसे तो अच्छे अर्नब और दीपक है कम से कम सो समझ रहे है कह रहे है | आप मै तो वो भी हिम्मत नहीं |
क्या चाहता है अरविन्द | डूबते को तिनके का सहारा | पर आप लोग तो हवा मै घी डाल रहे है | चुप चाप तमशाबीन कि तरह तमाशा देख रहे है और तली बजा रहे है | है पर अपनी आत्मग्लानि को छुपाने कि लिए एक ब्लॉग | और लोगो ने नज़रो मै महान | और हज़ारो लाखो फैन फोल्लोवेर बढ़ गए..| ग्रेट गोइंग रवीश ..कीप इट उप |
अरविन्द आपको किसी भी रवीश कि बात सुनने कि जरुरत नहीं है | निकालिये अपने मन कि भड़ास | नहीं तो रवीश जैसे लोग आपको पागल कर देगे | मत सुनिये इनकी बात | क्या होगा इलेक्शन हार जेयेगी | एक इलेक्शन ही सब कुछ नहीं है | आगे बहुत मौके आयेगे | और नहीं आप नहीं हारेगे | मीडिया कुछ भी बकवास करे लोग समझ रहे है | सब कुछ समझ रहे है | आप जैसे है वैसे ही रहिये |
रवीश आप अपनी कायरता बनाए रखिये | आल द बेस्ट |
Dear akansha mam,
DeleteAap jo bhi keh rahi hain wo bilkul sach h.aapke sach kehne ki aalochna karne ki himmat bhi nahi juta pa raha hn.aapki ravish ki aalochna shayad katu ho kintu halat nahi h fir bhi itna kehna chahunga ki har ek ki vyaktigat majburian hoti hain mam.har koi arvind ki tarah bahadur nahi ho sakta
Ravish ji batte tu sabi sach kahi aakanksha ji nhe, iska jwab aap se nahi hoga , mai help ker deta ho app bus do kaam ker dijjiye :
Delete1. Prime time on paid news
2. Prime time on revenue model of media
Upper do option ke elava iska aue koi jwab hypocrisy ya intellectual dishonest kehlayegha.
Thanks
“Patience and wisdom walk hand in hand, like two one-armed lovers.”
DeleteConsider the power of patience. No one can bring change , all are part of change one way or another. Without the presence of bad , good will become arrogant
Burai ke bina achhai ki jeet kispe??
GOOD ARTICLE....INITIALLY I WAS SURPRISED ON SEEING CHANDIGARH NAME....BUT ON READING FURTHER, THE MATTER WAS RELATED TO CREATION OF NEWS IN GOOD WAY.....PAID NEWS IS MENACE ...TIME WILL TELL...HOW THIS WILL DEVELOP FURTHER...BUT NEWS CHANNEL SHOULD HAVE THE COURAGE ,AT LEAST TO ADMIT THE SAME........
ReplyDeleteRavish sir aaj kal sabhi ko sahi ko galat aur galat ko sahi samajhne ki adat ho gayi hai . Thanks is blog se bahut Kuch sikhna padega.
ReplyDeleteLog Kuch bhi kahe hum aapke saath hai.
Dear ravish ji,
ReplyDeleteMain jaanta hn ki aap hamesha rajneeti ki vidyarthi bankar rehna chahte hain lekin yakin maaniye agar aapne abhi ashutosh wali himmat nahi dikhayi to puri umar khud se nazrein nahi mila payenge.
"Worst place in hell is reserved for those who take neutral stand at the time of a moral crisis"
Ek kavi ke shabdon mein kahe to "jo waqt aane par bhi tatasth rahe samay likega unka itihas bhi."
bahut badiya likha hai sir..........GREAT............
ReplyDeleteसंतुलन बनाने की अच्छी कोशिश की है सर आपने लेकिन सच्चाई से मुह मोड़ लिया है कोई बात नहीं सच के नाम पर सारे चेनल सारे धंदा कर रहे है।nba
DeletePar humme ye b dekhna hoga Ki Kyu nahi media Modi Ki positive news hi dikhata hai..aisa to nahi hai Ki Gujarat baaki India se alag hai...par hum ravish Kumar Ki poori respect karte hai aapne Gujarat pe prime time kiya Tha...par sab log ravish ji jaisa kaam nahi karte
ReplyDelete"अरविंद की बात पर उबलने वालों को मीडिया को लेकर कांशीराम के बयानों को पढ़ना चाहिए । यह भी देखना चाहिए कि मीडिया उनके साथ उस वक्त में कैसा बर्ताव कर रहा था । किस तरह से नई पार्टी का उपहास करने के क्रम में अपनी उच्च जातिवादी अहंकारों का प्रदर्शन कर रहा था । कांशीराम भी तब मीडिया को लेकर बौखला जाते थे । " आपकी ये बात जम गई.
ReplyDeleteवैसे विधायिका ,कार्यपालिका और यहाँ तक की न्यायपालिका की अनैतिकता गलत है तो यह तथाकथित मीडिया क्यूँ नहीं. पूरा का पूरा खंड खंड पाखंड है.इन पाखंडियों की पोल खुलना ही चाहिए.
Dear Ravishji,
ReplyDeleteVery nice article!The time has come for all the good and honest journalists to make their voice heard and to show zero tolerance to the corrupt amongst them. I really hope after reading your post and also the commentary of other respected journalists like you, more concrete action is taken against the questionable and corrupt sections of media. After all, media has immense power to make/break/impact public opinion and therefore nothing less than highest probity is expected from it. Best wishes to you!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteRavish ji ab media mission nahi hai profession hai Ganesh Shanker Vidharthi ji wala jamana chala gaya. Vyaktigat ray thopi jati hai news chaanels par.
ReplyDeleteKejriwal ji ne bilkul sahi kaha tha
ReplyDelete"paid news dikhane waale logon ko jail mein daal dena chahie"
Raveesh sir,,Aap ye jo likhte hain bahot log padhte hain aur prabhavit hote hain chahe cmmnt karen na karen,,,Himmat rakhiye Jo kar rahe Hain karte rahiye kyonki Fark to padta hai,Meri Ankhon me Aansu aa gye auron ko bhi aate hi honge,Vichar kuch to bdalte hi honge,,Izzat Izzat aur izzat,Dil me Har pal aapke liye badhti izzat!!!
ReplyDeleteWhen media exposes politicians and politicians take action; media accuses politicians of shooting the messenger.
ReplyDeleteWhen politician (AK) exposes media and says action will be taken; media is flogging the messenger.
What are the regulatory institutions like PCI, BCCC, NBSA doing? Media says they want self regulation.
Editors Guild of India (self-regulated) is a joke. Few years back it sent a letter to each of its member-editors throughout the country asking for pledges that their publication/TV channel will not carry any paid news as the practice violates and undermines the principles of free and fair journalism. Ask editors to take a pledge - is that all it can do?
Then there are blogs like this which says there are many in this profession who are honest. If that is true, then why are they not able to stem the rot!
ravish aakansha gupta ki baat bilkul sahi hai, mai bhi janta hu hum sabhi jante hai media ke es ghinone chehre ko, the hindu paper me kai collum bhi aaye hai aur kayi video bhi hai. mai manta hu ki aap honest ho aur good intention ke saath kaam karte hai but aapki ye honesty aur good intention manmohan singh wali hai mai aapke tarah se word ka selection aur wo rawangi to nhi la sakta na hi itna kuch likh sakta hu nhi to jo latter aapne manmohan singh ke naam likha tha wahi mai aapke naam likhta. aapke pass apne hissab se kaam karne ka space hai aur mai nhi man sakta ki ndtv ko kisi paid news ke khilaf bolne me problem hai aap pt me bolte bhi ho lekin wo a drop in ocean jaisa hai.
ReplyDeleteवो भले मीडिया को बदल न पा रहे हों मगर किसी दिन बदलने के इंतज़ार में रोज़ अपने धीरज और हताशा को समेटते हुए काम कर रहे हैं ।
ReplyDeleteLooks like honest journalists will end up waiting for Godot!
प्रिय रवीश भाई,
ReplyDeleteकेजरीवाल जी की पार्टी की खास बात है कि उनके पास न तो पेड
न्यूज का सपोर्ट है न ही पेड वोलनटीयर्स का जमावड़ा. यह अच्छा
भी है क्योंकि उनके साथ जो भी है, वह उनके साफ स्वच्छ छवि
की वजह से है. वे अपने समर्थकों के साथ भी अकेले हैं.
घर में बैठकर किसी को नसीहतें देना, किसी को समझाना कि
तुमने यह ठीक किया और यह गलत बहुत आसान है. बाहर
आकर इन घाघ नेताओं को ताल ठोंक कर सच कहने की हिम्मत
करना आसान नहीं.
हमारे बच्चे कुछ दिनों या कुछ घंटों के लिए भी जब बाहर होते हैं, तो
हम कितने चिंतित हो जाते हैं. यह जानते हुए भी कि वे कहां, क्यों
और किसके साथ जा रहे हैं. कल्पना कीजिए अरविंद जब जान
हथेली पर लेकर गलत लोगों पर उंगली उठाते हुए दर दर भटक
रहे हैं तो उनके माता पिता और बच्चों की हर रात कैसे गुजरती
होगी. आखिर अरविंद यह सब किसके लिए कर रहे हैं?
होली की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं!
प्रिय रवीश भाई,
ReplyDeleteकेजरीवाल जी की पार्टी की खास बात है कि उनके पास न तो पेड
न्यूज का सपोर्ट है न ही पेड वोलनटीयर्स का जमावड़ा. यह अच्छा
भी है क्योंकि उनके साथ जो भी है, वह उनके साफ स्वच्छ छवि
की वजह से है. वे अपने समर्थकों के साथ भी अकेले हैं.
घर में बैठकर किसी को नसीहतें देना, किसी को समझाना कि
तुमने यह ठीक किया और यह गलत बहुत आसान है. बाहर
आकर इन घाघ नेताओं को ताल ठोंक कर सच कहने की हिम्मत
करना आसान नहीं.
हमारे बच्चे कुछ दिनों या कुछ घंटों के लिए भी जब बाहर होते हैं, तो
हम कितने चिंतित हो जाते हैं. यह जानते हुए भी कि वे कहां, क्यों
और किसके साथ जा रहे हैं. कल्पना कीजिए अरविंद जब जान
हथेली पर लेकर गलत लोगों पर उंगली उठाते हुए दर दर भटक
रहे हैं तो उनके माता पिता और बच्चों की हर रात कैसे गुजरती
होगी. आखिर अरविंद यह सब किसके लिए कर रहे हैं?
होली की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं!
इस बेबाक और शानदार लेख के लिए बहुत बहुत बधाई रवीश भाई! मैंने आपकी अनुमति के बिना इसे अपनी वॉल पर साझा कर लिया है.
ReplyDeleteसंतुलित और प्रभावी ढंग से बातें रखी गई हैं !
ReplyDeletenice
ReplyDeleteWaah Ravish Ji kya baate rakhi hai, thoda prakash yadi aap us ore bi daal de ki kis prakar se Anna andolan ko kuchlane ka prayas Congress aur BJP ne kiya tha..
ReplyDeletenice blog ravish sir.par mujhe lagta hain ki AK ko thoda sa sayyam abhi dikhana hoga. kyoki har waqt sabhi ko criticise karte rahne se unki party aur unki khud ki image par effect par raha hain.han wo alag baat hain ki AAP ne abhi tak kuch media ya politicians ke bare me galat nahi bola hain.and its also the time for the media to screw themselves before it gets too late. sorry without aapke permission se blog apne wall me share kar raha hun.
ReplyDeleteMission, Money and Machinery
ReplyDeleteIndian Newspapers in the Twentieth CenturyROBIN JEFFREY http://mercury.ethz.ch/serviceengine/Files/ISN/124920/ipublicationdocument_singledocument/70aee794-89f9-403e-be81-af878463f99c/en/ISAS_Working_Paper_117_-_Email_-_Mission%2C_Money_and_Machinery_26112010182728.pdf
Ravish Ji..Bahut garv hota hai..Ki Is desh me Patkaar aur Patkarita me Aaj bhi aise log hai jo bebak ho ke apni baat rakhte hai..Sloute to you Sir..
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