बाबूजी का तेरह मार्च

बाबूजी,

क्यों लगता है कि आप जिस दिन गए उसी दिन लौट भी आयेंगे । छह साल से तेरह मार्च को यही लगता रहा है । कुछ दिन पहले आप जिस अस्पताल में आँख दिखाते थे वहाँ से मेरे फ़ोन पर मैसेज आ गया । पूछ रहा था कि मुझे आपके बारे में कोई जानकारी अपडेट तो नहीं करनी है । उस मैसेज ने मेरी उम्मीद बढ़ा दी है । लग रहा है कि फ़ोन कर डाक्टर से समय ले लूँ । वहाँ जाकर बैठ जाऊँ । इंतज़ार करूँ । काॅफी ले आऊँ । आपसे पूछूँ कि कुछ खाना है । फिर सैंडविच ख़रीद कर खा लूँ । कहीं आप वहाँ गए तो नहीं थे । आपके जाने के छह साल बाद आपके नाम से मैसेज आ सकता है तो आप क्यों नहीं आ सकते ।

काश कि पटना के उस अस्पताल से खींच लाता आपको । आपके बालों को और ठीक से सहला पाता । ठीक से लिपट भी नहीं सका । अभी मेरे पास पैसा भी है । सब जानते हैं मुझे । अच्छे डाक्टर से दिखवा देता । डाक्टर हेमंत से बहुत गिड़गिड़ाया था कि चल कर आपको देख ले मगर उनको मगध अस्पताल से कोई अहं का टकराव था । मगध वाले ने हाँ भी कर दिया था कि ले आइये उनके मगर हेमंत साहब गए ही नहीं । आप कितना भरोसा करने लगे थे डा हेमंत पर । इंग्लैंड से पढ़ कर आया है । पटना में ही मरीज़ देख रहा है । दिल्ली वाले डाक्टर से कम तेज़ नहीं । लेकिन वो नहीं गए न । मैं कहता रहा कि सर एक बार देख लीजिये । नहीं गए । आप चले गए । आप चिंता मत कीजिये । डाक्टर साहब से तो एक बार मिलने ज़रूर जाऊँगा । एक गुलदस्ता लेकर ।

क्या करें । भूल ही नहीं पा रहा हूँ । इन छह सालों में मुझे बहुत कुछ मिला है । लोग कहते हैं कि मैं फ़ेमस हो गया हूँ । लोग मुझे घेर लेते हैं । फोटो खिंचाते हैं । आटोग्राफ माँगते हैं । हमको फिर रामनाथ गोयनका अवार्ड मिला है । पहीलका बार आप केतना ख़ुश थे । रहते तो उससे भी ज़्यादा ख़ुश होते । माँ नहीं आ पाई थी । खूब तारीफ़ हो रही है । मैं उसी पटना में हीरो की तरह जाता हूँ जहाँ आपके लिए एक डाक्टर नहीं ला पाया । कितना तो कहता था कि दिल्ली ही रहिए । डा खेर कितने प्यार से देखते थे । डा प्रवीण चंद्रा को को आप याद भी थे । सच या झूठ जब फ़ोन पर कहा तो हाँ हाँ कर रहे थे । मंगलवार को दिल्ली हाट के पास एक डाक्टर मिला था । डा विशाल सिंह । बोला कि वो मेरा फ़ैन है । मेरी आँख भर आई । मुझे लगा कि इसको पहले से जानता तो इसी को ले जाता । आपका सोच कर उससे गिड़गिड़ाने लगा । डाॅक्टर विशाल आप पैसा खूब कमाओगे लेकिन रोज़ पाँच ग़रीब का बढ़िया ईलाज कर देना । वो भी कहने लगा कि हाँ सर बल्कि करते भी हैं । मैंने कह दिया कि मैं डाक्टर होता तो सड़क पर टेबल लगाकर लोगों का ईलाज करता । मौलाना आजा़द में पढ़ता है । मुज़फ्फरेपुर का है । 

आपकी छोटी वाली पोती दो साल की हो जाएगी । बीच बीच में आपका फोटो दिखाते रहते हैं । देखो ये दादा जी हैं । आप तो देख ही नहीं पाए । बड़ी वाली अपनी दुनिया में मगन रहने लगी है । वो आपको याद करती है ।  माँ अभी रहकर पटना गई है । दिन भर पूजा करती है । आपकी तरह नाश्ता देर से करने लगी है । बिस्तर के एक कोने में सिकुड़ कर सोती है । जैसे आप मेरा इंतज़ार करते थे वैसे ही माँ रोज़ मेरे आने की आहट गिनती थी । आपकी ही बात करती रहती थी । उसको कोई कुछ बोल देता है तो आपको बहुत याद करती है ।  अकेले पड़ गई है । माँ ख़ाली हो गई है । हमदोनों आपकी ही बात करते रहते हैं । डाक्टर से देखा दिये हैं । ट्रेन में बिठाकर उससे लिपट गया । छोड़ ही नहीं रही थी । जब भी पूछता हूँ माँ कुछ चाहीं तो मना कर देती है । कहती है रहे द, हमरा का होई । तू अपना ख़ातिर ले ल । अपने से कुछ मांगती भी नहीं है । 

बाकी लोग भी ठीक है । आप ही नहीं हैं तो क्या ठीक है । आपके बिना अकेला लगता है । लगता है कि कुछ काम ही नहीं है । डाक्टर के पास नहीं जाना है । स्टेशन आपको लेने नहीं जाना है । सुबह उठकर आपको फ़ोन नहीं करना है । जब सब कोई सो जाता है तो बिलाला लेखा बौराते रहते हैं । कभी कभी कमज़ोर पड़ जाता हूँ । आपकी तरह बोलने लगता हूँ । आपको याद करने के लिए बेमतलब किसी को आपकी तरह कस के डपट देता हूँ । इस बार छठ में गाँव गया था । जिस रास्ते से आपको गंडक के किनारे अंतिम विदाई के लिए ले गया था उस पर गया था । आपके पोता को भी रास्ता याद है । अंकल दादा जी को इधर से ही ले गए थे न । साइकिल खूब हांकता है । हमदोनों साइकिल से घाट तक चले गए । आपके पीछे पीछे । 

मेरी चिट्ठी कोई पढ़ता ही नहीं । आप पढ़ लीजियेगा । मैं अपनी तमाम उपलब्धियों की तिलांजलि दे दूँगा । मुझे कोई ऐसी चीज़ नहीं चाहिए जिसमें आप नहीं हैं । जो आपके बाद है । इस बार भी आफिस नहीं गया हूँ । चला जाता तो आपसे इतनी बातें कैसे कर पाता । मेरे बालों में एक बार हाथ फेर दीजिये न । अच्छा लगेगा ।  

आपका  

रवीश कुमार 

161 comments:

  1. Sajeev Vernan. Apne meri aakhe gili kar di. mijhe v mere pitaji ki yaad aa gayee.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Office bus me padha. Rone laga. Shayad saalo baad. Na jane bus me baithe log kya soch rahe honge. 15 min baad jab kuch aankh saaf hui to socha apko bhi thanks bol dun. Mujhe mere pita ke aur kareeb lane ke liye. Kuch aur likha to fir se ro dunga.

      Delete
    2. कि कहियो.....न कह सकबो....

      Delete

  2. kya likhu man bhar aya sorry no comment

    ReplyDelete

  3. kya likhu man bhar aya sorry no comment

    ReplyDelete
  4. sir ji.. kamaal ho aap. aaj ke har yuva ko ye padhna chahiye. mujhe apne papa se aur karib laane ke liye dhanyawaad.

    ReplyDelete
  5. आज सुबह मेरा 3rd सेमेस्टर का रिज़ल्ट आया,,2 पेपर मे बैक है||पापा गुस्सा हो रहे थे,तो आज पहली बार मै भी पापा पर कुछ गुस्सा होकर बोल दिया||आपका ब्लॉग पढ़ने के बाद बहुत बुरा लगा तो फोन कर के बहुत अच्छे से बात किए||

    ReplyDelete
  6. रवीश जी आप को अंदाजा नहीं होगा कि आप ने आज अपने साथ साथ कितनो कि आँखे नम कि है / बहुत मुस्किल था इसे पूरा पढना। …… बाबूजी आप जहाँ भी है ख़ुश रहिये, रवीश जी को आशीर्वाद देते रहिये।

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  8. क्या लिखु समझ नही आ रहा, लेकिन जैसा एक और सज्जन ने लिखा है... आज फिर मुझे अपने पापा से और करीब लाने के लिए धन्यवाद.....

    ReplyDelete
  9. Maa ke pyaar me main chaahe jitne sher keh du,
    Ye jo baap ki mohabbat hai, ye lafzo se pare hai.

    ReplyDelete
  10. Bas yahi baat hai aap main , har kisi ke dil ki baat aap likh lete hain.jisska Bhi koi apna Gaya hai wo bas yahi parh le to lage ki ... Yahi to mujhe Bhi Kahne ka Mann hai...

    ReplyDelete
  11. बहुत मुश्किल है पूरा पढ़ना, होठ काप रहे थे....लग रहा था जैसे पूरी जिंदगी एक तारीक़(13 मार्च) में सिमट गयी हो|

    ReplyDelete
  12. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  13. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  14. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  15. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  16. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  17. Aapne dil ke darwaaje me ek dastk di hai, main un palon ko kash samet pata toh mere Dadaji aaj mere saath hote.

    ReplyDelete
  18. Aapne dil ke darwaaje me ek dastk di hai, main un palon ko kash samet pata toh mere Dadaji aaj mere saath hote.

    ReplyDelete
  19. ravish ji , ak bar phir aapne rula diya.

    ReplyDelete
  20. सर मेरे पिताजी भी 3 साल पहले चले गए | इस पोस्ट को पढ़ते हुए और कमेंट लिखते हुए मेरी आँखों में आंसू हैं | अकेलेपन में जब भी याद आते हैं वो ऐसा लगता है जैसे कोई मेरे दिल में एक पतली सी सुई लगातार चुभा रहा है और निकाल रहा है | छोटे बच्चे की तरह रोते हैं | उनके जाने के बाद भी हमेशा यही लगता है, की किसी दिन वो मेरे पास चले आयेंगे | या ये सोचता हूँ की ये सब एक मेरा बुरा सपना होगा, मेरी आँखें खुलेंगी तो देखूंगा की पापा बाहर कुर्सी डालकर अखबार पढ़ रहे हैं, मम्मी किचेन में खाना बना रही है, और भैया टीवी देख रहा है | काश की सपना होता | रो रहा हूँ सर अब नहीं लिखा जायेगा |

    ReplyDelete
  21. आपकी किताब "देखते रहिए" में आपने 'बाबूजी के लिए' कुछ लिखा है- "हाँ, यह किताब मेरे बाबूजी के रहते आती तो अच्छा लगता। वो नहीं है। उनके नहीं होने के बाद कुछ भी होना, मेरे लिए सामान्य नहीं है।"

    अभी अपनी तरफ से कुछ भी लिखना, उनकी कमी को तो पूरा नहीं कर सकता.. लेकिन बाबूजी जहां भी होंगे, आपको देखकर बहुत ख़ुश होते होंगे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आंचल,
      रवीश सर की किताब की डिटेल तो भेज मुझे, प्लीज !

      Delete
    2. किताब का नाम "देखते रहिए" है.. अंतिका प्रकाशन ने प्रकाशित की है।
      www.antika-prakashan.com

      Delete
  22. Ravish Bhai
    I always write harsh comment on you but i know you are a good man by heart.Very touchy article.Mujhe bhee kuch aisa yaad aa gaya.

    ReplyDelete
  23. आप बाबूजी के बारे में पहले भी लिखते रहे हैं .........पर आंसुओ के बीच इसे पूरा पढ़ पाना बहुत बहुत मुश्किल था.....

    ReplyDelete
  24. रवीश भाई, बहुत ही मार्मिक, आँखें भर आई, आपके बाबूजी जहाँ भी होंगे, उनको आप पे गर्व होगा। जब मैं आपके पुराने ब्लॉग को याद करता हूँ तो मन उदास हो जाता है, सोचता हूँ क्या मेडिकल जैसे प्रोफेशन का इतना नैतिक पतन हो गया है कि लोग अहंकारवश सहायता नहीं करते। धन्य है वो माता-पिता जिसके आप संतान है। आप जिस तरह का कार्य कर रहे है, समाज आप और आपके परिवार का हमेशा ऋणी रहेगा।

    ReplyDelete
  25. Ravish sir pita ke na hone ki kami kabhi puri nahi ho sakti. Mere pita ji bhi bina elaz ke chal base the wo bahut yaad aate hai....

    ReplyDelete
  26. No words to express the feelings :(

    ReplyDelete
  27. ये कमेंट बॉक्स मेरे आंसुओं से भीग क्यों नहीं जाता।

    ReplyDelete
  28. Ravish babu.... ..rula diya bas

    ReplyDelete
  29. बाबा को भी गए 6 साल हो गए । आखिरी बार उनके जाने से पहले छठ में घर गया था, दिल्ली आ रहा था तब कह रहे थे स्कूल के छुट्टी होते आ जइह, लेकिन फाइनल पेपर के समय ही बाबा चले गए । आखिरी बार न देख पाया, न ही मिल पाया । वैसे तो शायद ही कोई सप्ताह होगा जिसमे हम बैठ के बाबा कि बातें नहीं करते पर 12 मार्च आते ही वो टीस, उनसे ना मिलने का कसक फिर से ज़िंदा हो जाती है । आलम ये है कि आज भी जब गाँव जाता हूँ तो लगता है सबसे पहले उनसे ही मिलूंगा, पर अब वो नहीं सिर्फ उनकी फ़ोटो दिखती है । जब भी घर में उनकी टंगी उनकी फ़ोटो पे नज़र जाता है आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं । आज भी लगता है कि वो मिलेंगे और पास में बिठा के पैर दबाने को कहेंगे, छपरा बाज़ार ले के जाएगें, पर अब ये मुमकिन नहीं बाबा अब कभी नहीं मिलेंगे । उनकी भारी आवाज़, उनका डाँट, उनका प्यार सब यादों में ही रह गया । आपके इस लेख ने वो दर्द फिर से ज़िंदा कर दिया जो मैंने बहुत मुश्किल से आज दोपहर तक दूर किया था ।

    ReplyDelete
  30. दिल भर आया सर ! पापा याद आ रहे हैं बहुत । तीन वर्ष हुए जब वो हमें छोड़ गये । उनके जाने के बाद मुझे यह एहसास हुआ कि मैं उनसे कितना गहराई से जुड़ा था ।लगा कि जीवन में पहली बार कुछ खोया है ।

    ReplyDelete
  31. bhaiya kisi asahaay vridh ki seva ko babuji ki seva samjh le to santosh milega

    ReplyDelete
  32. Bahut arsey sey blog padh raha hu aapka, kabhi cmmt nahi kiya, per shayad sarey blog padhey jaroor hai.

    Kuch kuch hum bhi aapki tareh hi hai , Banaras chor aayey Delhi bas gayey , kam dhandey key liyey , abhi bhi papa aur chota Bhai wahi hai , per hum bhi poorana rehan sehan aur nayi bhagti , kya kahey mordern hi fi zindagi key beech mey fasey Huey hai
    Delhi badal dalna chaha rahi hai per banarasi khoon hai ki badalney ko tayiyar nahi , yaha Delhi mey mai bau ka mol kam lagta hai per hum logo mey to inn logo key bina zindagi kuch samajh mey nahi aati..... Bahut mushkil hai bahut mushkil inn logo ( mai bau ) key Barey mey kuch likhna ya bolna saali aankh dhoka dey jati hai ... Pata nahi kaha sey in mey itna paani bhar ja raha hai ki type nahi kar pa raha hu.........

    ReplyDelete
  33. आपने तो आज रुला ही दिया . उस समय यह बात मालूम होती to उन्हें लखनऊ ले आते , पी जी आयी tha , के जी एम् see था . यहाँ डॉक्टर्स की कमी नहीं. थी . इसके पहले भी आपने ब्लॉग में मगध के किसी doctor सिंह सर्जन का जिक्र किया था . कुछ कहते नहीं बन रहा है .

    ReplyDelete
  34. बहुत बढ़िया रवीश जी

    ReplyDelete
  35. आपकी चिट्ठी पढ़कर मेरे आँखों में आँसू हैं। अब आप बड़े आदमी हो गये हैं नामी पत्रकार, आपको अब कौन नहीं जानता, मेरी तरह शायद उ डॉक्टर भी आज इ चिट्ठी पढ़ रहा होगा, शायद इसे पढ़कर उसकी संवेदना जीवित हो जाये। शायद सभी पत्रकार भी आप जैसा संवेदनशील हो.....

    ReplyDelete
  36. Bhagwan ki raza ke aage kisi ki marzi nahi chalti. Woh jo bhi karta hai uske piche koi nai koi maksad zarur hota hai. Khud ko sambhaliye :)

    ReplyDelete
  37. Pta nhi kya-2 bolta rahta hu aapko.isko support krte h usko kyu nhi krte,aisa kyu likhte h wasa kyu nhi likhte.bt aaj ye post padh kr guilty feel ho rha pta nhi kyu.Likhte to Aacha h hi aap Insaan bhi aache h.aapke babu jee ko mere taraf se prnaam.:(

    ReplyDelete
  38. बहुत मुश्किल रहा आंसू रोक पाना मेरे पिता को गये ३२ वर्ष हो गये है किन्तु उनके जाने के ५-६ साल तक हम सब भाई बहनो को लगता था कि वे किसी रत में वापिस आ जावेंगे किन्तु नहीं !बाद का अहसास है वो सदा हमारे साथ ही है !वे भी आज आपके साथ है और उनका प्यार और आशीर्वाद भी।

    ReplyDelete
  39. भावनाओ को बयां करने के लिए कोई शब्द नहीं। …………………
    मौन.............................

    ReplyDelete
  40. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  41. मैं खुश हूँ कि मेरे माँ पापा मेरे पास हैं। मार्मिकता सची भावनाओं से ही आ पाती है।
    आज आप रवीश कुमार नहीं सिर्फ रवीश लगे। वो रवीश जो बाबूजी के मन का है। ऐसे ही रहिये धीर गंभीर स्वच्छ निर्मल।

    ReplyDelete
  42. बहुत समय से आपके बारे में सुन रहा था आज पहली बार यहां आया आैर पिता जी के बारे में यह भावुक पोस्ट पढ़ कर अपने पिता जी याद आ गये
    विडंबना यही है कि उन के समय उन से असंतुष्ट रहा करते थे और अाज उनकी कमी शिद्दत से महसूस होती है

    ReplyDelete
  43. " जब भी पूछता हूँ माँ कुछ चाहीं तो मना कर देती है । कहती है रहे द, हमरा का होई । तू अपना ख़ातिर ले ल । अपने से कुछ मांगती भी नहीं है । "
    माँ हमेशा ऐसी ही होती है

    ReplyDelete
  44. शाबाश रविश कुमार...सभी जरुर देंखे ।http://khabar.ndtv.com/video/show/best-in-the-field/312994

    ReplyDelete
  45. बस अनुभव कर रही हूँ ,कुछ कहने का मन नहीं .

    ReplyDelete
  46. हर रोज़ शाम को 5से 7बजे के समय के बीच, हमारे पापा का फोन आता है । ख़ैरियत पूछते हैं और हर रोज़ वही प्रश्न । वे 80 साल के हो चुके हैं, उन्हें लगता है पता नहीं कल का सवेरा देखेंगे या नहीं । बेटी हूँ ना, पास तो रह नहीं सकती, पर दिल वहीं अटका रहता है। मुझे फोन पर अच्छे शे'र सुनाते हैं, पुराने ज़माने के हैं ना इसीलिए उर्दू और शायरी बहुत पसंद हैं उन्हें । जिस दिन फोन नहीं आता,मन काँप जाता है । कहते हैं, बेटा मन को समझा के रखो, हम बूढे हो चुके....एक दिन तो जाना है....

    ReplyDelete
  47. Kya likhun Ravish Ji.. maine jab ise padhna start kia tab tak already 57 log apne comments kar chuke the is post par. Office pahunchte hi kaam start kar kar Laptop par padhna start kar dia.. poora nh padh paaya ek baar mai.. start ki 8-10 lines k baad hi laptop uthakar aankhon k samne laga lia apne hathon par. aankhon se aansu aanaa start ho gye the.. sath baithi collegue ne bola ki laptop ko door rakh kar padho aankhon se paani aa rh hai... beech mai hi adhura chor kar bahar jana pada.. aansu thamne ka naam hi nahi le rhe the. 15 minute baad India k raat 11:30 baje ghar phone kia dubara.. tab kuch halka feel hua.. Kaash..Kassh hamare maa -baap hamesha hamare sath ek Ped (Tree) ki tarah rahe aur hum unki neeche baith rhe... Kaash..Kaash.. Babuji ko bht-2 pranaam. wo jahan bh honge aaj aap k lie khush honge aur sada unka aashirwaad aap k sath rahega..

    ReplyDelete
  48. sabhi kii tarah hamara bhi wahi haal hai Sir, aur kya likhen..

    ReplyDelete
  49. भावुक कर दिया आपने.!! हमारे जीवन में कुछ ऐसे लोग होते है जिनके बगैर सारी उपलब्धियां, खुशियाँ सब फीकी लगती है , मन खाली सा लगता है. लगता है अगर वो होता तो ऐसा कहता.! उसके नही होने का खालीपन ताउम्र साथ रहता है ! हम इंसान है, भावनाये है, जीवन चल रहा है चलता रहेगा पर खालीपन बना ही रहता है.

    ReplyDelete
  50. Really sorry to hear about your loss and lack of empathy among Indian doctors.

    ReplyDelete
  51. "कुर्ते " की आस्तीन से नम आँखे पोंछ भी नहीं पाये थे कि फिर से !! रुलाते रहिये ऐसे रोना भी अच्छा लगता है पता नहीं अगली पीढ़ी की " आँख " आईने के सामने खड़े हो के उस "कुर्ते " को देखेगीभी या नहीं .

    ReplyDelete
  52. बाकी लोग भी ठीक है । आप ही नहीं हैं तो क्या ठीक है ।

    kya kahein sir

    ReplyDelete
  53. Ravish bhaiya, ye hai ek bete ke dil ki baat jo bahar walon ke liye shayad bada ho gaya hai lekin koi kya kabhi man se bada hota hai. shayad nahin. Abhi kal hi koi pooch raha tha insaan bada kab hot ahai, maine kaha jab uski mata pita nahin rahte. Yahi sach hai wo bachpan ki baaten hi hamaari saari poonji hain jab papa ki cycle ke peeche baith kar ghoomne jaate the. Ab gaadi hai per wo garv nahin jo cycle per hota tha. Mere mata pita saath hi rahte hain subah jab office jaata hoon to usse pahle gaadi per khud kapda lagaate hain bahut mana kiya lekin maante nahin. maa aaj bhi jab tak ghar nahin aa jaata soti nahin hai. mujhe khilaaye bina khaati nahin hai. maa ki sewa kijiye aur ho sake to unhe apne paas hi rakhiye. Aur mera ek vichaar hai ki "bachche aur buzurg sabke saajhe hote hain" kisi bhi buzurg ki sewa kariye waisa hi mahsoos hoga. Babuji jahan bhi honge aapko hamesha aashirwad de rahenge. bas aur kuch nahin likh paa raha hoon.
    Pranaam.

    ReplyDelete
  54. आपके इस ब्लॉग ने मेरी नाम-शेषा माँ की स्मृतियां फिर से ताज़ा कर दी हैं,वैसे उन्हें गुजरे हुए चार वर्ष हुए हैं,और लगता है वो आज भी हर पल मेरे साथ हैं,मेरी यादों में|धन्यवाद,रवीश जी, इस ह्रदय स्पर्शित लेख के लिए.

    ReplyDelete
  55. bahut hi bhavpurn chiththi hai.jab humlog apne mata-pita ko samajhane lagte hai,ve humare samanantar hi chalne lagte hai.dur ho ya pas hamesha hi unaki maujudgi bani rahati hai.kahe ya na kahe kabhi-kabhi hum apne me pita ko aur bachcho me khud ko pate hai .ravish, aap bhi apni beti ke sar par hath rakhenge to khud ko pita aur khud me apne pitaji ko payenge

    ReplyDelete
  56. जिसको जो कहना हो तुमरे बारे मे कहे आज क लेख से दोउ ठो बात साबित भईल ,सरवा जे के माई - बाऊ क ईतना फिकर होत है उ गलत करी ना , जो अपने "भगवान " को मान कर जीता है वोही सही आदमी है.

    ReplyDelete
  57. रवीश जी आज फिर आँखे नम हो गयी । पापा बहुत याद आये । उनकी पसंद की कार भी खरीद ली लेकिन वो नहीं है । कभी नहीं बैठ पाए । घर में उनकी फोटो है पर नहीं देखता, फिर याद आ जायेंगे । साथ ही ये भी याद आएगा की अंतिम समय में उनके साथ नहीं थी । चिठ्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए... :(

    ReplyDelete
  58. रवीश जी, मैं आपकी तरह फेमस नही हूँ. कहानी थोड़ी सी जुदा है मेरे किस्से में. डॉ. भी था अस्पताल भी अच्छा था, सब कुछ.. पर पिताजी फिर भी साथ नही है. जिन्दगी भर उनसे दूरी बनाये राखी - उन्होंने भी.. आज आपको पढ़कर लगा की काश उनके होते हुए - मैं भी उनसे इतना प्यार कर पाता - तो शायद अपने ब्लॉग पर उनसे बाल सहलाने की गुजारिश कर सकता था.. फिर भी - कुछ तो ऐसा था की आँखे नम हैं.....

    ReplyDelete
  59. sir ek bbar guldastta leker docter ke clinic per jarur jana..........

    ReplyDelete
  60. रवीश जी,
    ...........................

    आपके बाबूजी को नमन, आज वो जहाँ भी होंगे, अपने बेटे पे उन्हें जरुर गर्व होगा। जिन आदर्शों पे आप चल रहे हो वो बाबूजी के लिए सच्ची श्रदांजलि है।

    ReplyDelete
  61. एक बार में पूरा पढ़ नहीं पाया, कई बार में पढ़ा, फिर कई बार पढ़ा…। पढ़ते हुए आँखों से लगातार आँसू बह रहे है…। मेरे सहकर्मी जो मेरे बगल में बैठे हैं पूछने लगे क्या हुआ, बता नहीं पाया URL दे दिया। पिछले 9 साल दे दिल्ली में हूँ, पहले पढाई कि अब नौकरी कर रहा हूँ, माँ पापा से दूर ही रहा हूँ हमेशा से लेकिन जब भी कुछ गलत करने जाता हूँ लगता है पापा सामने ही हैं, कभी कर नहीं पाता हूँ। उनका साया हमेशा साथ होता है, आज आपको पढ़ते हुए उस दिन कि कल्पना से भी कांप उठा हूँ.....। साल में एक बार छठ में घर जाता हूँ, माँ से पूछता हूँ माँ का ले आई, बोलती है कि का ले आइब सब त बड़ले बा तनी पहिले आवे के कोशिश करिह। उन्फ़! ये नौकरी, ये इच्छा भी नहीं पूरा करने देता। ये सवाल पापा से पूछने कि हिम्मत नहीं जुटा पता हूँ, कैसे पूंछू उनसे जो हर फ़ोन पर यही पूछते है कि बेटा कोई परेशानी तो नहीं है, कोई कमी या परेशानी हो तो मुझे बता दिया करो। माँ बताती है कि जब मुझे घर आना होता है पापा उस रात सो नहीं पाते हैं। घर जाते हुए अपने मन से जो लगता है ले लेता हूँ, घर जा के उसके लिए एक स्नेह सहित झिड़की सुनता हूँ का जरुरत रहल ह ई ले अइला के, फिर पापा सबको बताते हैं कि बेटा अब बड़ा हो रहा है, उस समय उनके चेहरे कि ख़ुशी के आगे दुनियाँ में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। अब आगे लिख नहीं पा रहा हूँ………

    ReplyDelete
  62. रवीश जी , इतना मार्मिक लेख आज तक नहीं पढ़ा था। एकदम दिल से बात निकलती है।

    ReplyDelete
  63. sir, padh ke bahut accha laga aankhen bhar aayi...mere papa bhi last year june mein mujhe chhod ke chale gayr the..Deoghar se patna laya tha ilaaz karwane..main bhi dr se n=baut gidgidaya tha ki chaliye sir papa ko dekh lijiye par wo nahi aaye......aur mere papa....khair sir aap dr hemant ke paas jarur jana...thanku so much....

    ReplyDelete
  64. गला भर आया रवीश। मुझे भी अपना"मुज़फ्फ़रेपुर"याद आ गया।

    ReplyDelete
  65. Ravish Sir,
    Apki abhivyakti itni saral bhasha me likhi hai par seedhi dil tak pahunchti hai kyunki isme sachchai hai, karuna hai, vyatha hai aur akelapan bhi. Apke babuji sachmuch atyant mahan hain jo unhone apko janm diya. Aapki abhivyakti ki shaili ka mai kayal hun. PrimeTime ka regular viewer hun. Aap bhi mahan hain. Apki seva ki desh ko zaroorat hai. Apke jaise log apni bebak abhivyakti ke karan desh ki majboot neev ka patthar sabit ho rahe hain.
    Bhalendu Shrinet
    Deoria(Uttar Pradesh)
    8004927034

    ReplyDelete
  66. Apke apne babuji ke prati vichaar itne pure aur gehre hain ki usme doobne ke baad nikalne me bahot waqt laga mujhe. Us din ki kalpana apne jivan me kar ke mai usse ubarne ki jugat sochne laga par shayad aisi koi jugat hai hi nahi. Isiliye ise apoorniya kshati kehte hain. Hum sab aur poora desh apke sath hai raveesh ji.
    Apke babuji ko shradhanjali.

    Bhalendu Shrinet
    Deoria(Uttar pradesh)

    ReplyDelete
  67. रवीश भैया बहुत रोना आया पढकर, आपकी ये चिठ्ठी.
    कुछ कह नहीं पा रहा हूँ बस आंसूं बह रहे है और माँ बाप के आत्मीय प्रेम को घर से दूर होते हुए भी महसूस कर रहा हूँ. बाबू जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रधांजलि!!

    ReplyDelete
  68. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  69. कमेन्ट? आंसू को कैसे लिखे?!

    ReplyDelete
  70. रवीश जी माँ बाप का साया बच्चो के लिए बहुत जरूरी है। आशा करता हु की आपके पिताजी कि आत्मा को शांति मिले और आपको सत्य और मानवता कि राह पर चलने कि शक्ति मिले।

    ReplyDelete
  71. ईश्वर के आगे कभी किसी किसी की नही चली! आपकी प्रसिद्धि आपको आपके पिताजी और उस परमेश्वर का ही आशीर्वाद है! आज उनकी आत्मा आपको देख कर ज़रूर खुश हो रही होगी की उनकी परवरिश रंग लाई है! भगवान उनकी आत्मा को शांति दे!

    ReplyDelete
  72. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  73. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  74. Ravish sir...pune mein rehta hu
    ..naukri kar raha hu...3 saal se...10 saal se bahar hu......babuji aur maa dono hai...par ye blog paadhne k baad aansu band nai ho rahe..mann kar raha kahi. Door sunsan mein chala jaun aur chigghar chigghar ke kante rahu....kante hi rahu...

    Bhagwan mere babuji ma ko kabhi na chhinna..

    ReplyDelete
  75. kasam se .... very emotional !!
    aankhe bhar aayi

    ReplyDelete
  76. मार्मिक , बाबूजी कि यादे हमें भी भिगो गई !
    नमन, श्रदांजलि बाबूजी को ...........

    ReplyDelete
  77. निशब्द..... आँख में पानी आ गया । यह 'फादर्स डे' पर नेशनल मैसेज होना चाहिए ।

    ReplyDelete
  78. Bahut khoob likha hai aapne. Pad Kar aankhe num ho gayi. Dhanyavad

    ReplyDelete
  79. Bahut khoob likha hai aapne. Pad Kar aankhe num ho gayi. Dhanyavad

    ReplyDelete
  80. Ravish Ji
    Aap kay is laikh nay bahuton ko rula dia mujhko bhi rona ga gaya mere yah duwa hai Allah rabbul izzat aap bay babu ji ko aap ki yah tahreer zaroor pahuncha day ga
    Ameen

    ReplyDelete
  81. EK BETE KA APNE PITA KE PARTI APNE MANOBHAV KI EK ADBHUT PRASTUTI EK LETTER KE ROOP ME...ADBHUT...

    ReplyDelete
  82. बहुत रोना आया पढकर, आपकी ये चिठ्ठी.
    कुछ कह नहीं पा रहा हूँ बस आंसूं बह रहे है और माँ बाप के आत्मीय प्रेम को घर से दूर होते हुए भी महसूस कर रहा हूँ. बाबू जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रधांजलि!! aur kuch likh nahi pa raha hu to ek sajjan ke likhe mein se thoda sa copy paste kar liya,iske liye sorry.

    ReplyDelete
  83. सर....ये ब्लॉग मैं बुलेटिन पढ़ते वक्त पढ़ रहा हूं.बहुत मुश्किल से खुद के आंसू रोक पा रहा हूं.....एक ख्वाहिश है कि आपसे मिलूं...रवीश कुमार के रुप में नहीं..रवीश भैया के रुप में....

    ReplyDelete
  84. सर आज तो आपने रुला ही दिया, भगवन कि कृपा से मेरे माता पिता अभी जीवित हैं और भगवन उन्हें और दीर्घायू करे | काश ये प्रेम, आदर और स्नेह आज हर बच्चों में रहे अपने माता पिता के लिए .....

    ReplyDelete
  85. Adbhut Lekhni. Aapney jasbaton ko ek unchey sthar par legaye.Aapney shayad bahut logon kee aankhen khol dee aur unko bhavuk kar unke aankhen bhi nam kardi. Bhagwan aapko aisey hee achee cheezey sochney aur likhney ko protsahit karey.

    ReplyDelete
  86. रवीश जी काफी भावुक कर दिया आपने। बड़ा ही दर्द भरा और करुणामय लेख है आपका। भगवान से प्रार्थना करता हु कि आपके बाबूजी जहा हो उनकी आत्मा को शांति मिले। मुझे मेरे बाबूजी कि याद आ गयी।जो अभी भारत में माँ के साथ रहते हैं। विदेश रहता हु। हर साल एक बार जाना होता हे. आशा करता हूँ कि भविष्य में आपके साथ तो क्या किसी के साथ ऐसी घटना न घटे

    ReplyDelete
  87. ढेर सारी बातें .. मुझे भी करनी थी| .... :(... कैसे लिख लेते हैं?

    ReplyDelete
  88. ढेर सारी बातें .. मुझे भी करनी थी| .... :(... कैसे लिख लेते हैं?

    ReplyDelete
  89. आँखें बाहर आयीं रवीश जी। माँ और पिता जब होते हैं तो लगता ही नहीं की बड़े हुये भी हैं। आज भी 40 का हो गया हों सुबह का नाश्ता माँ के ही हाथ का खाता हूँ। और वे भी जानतीं हैं जैसे। जब जैसा मेरा मन वैसा ही खाना ऑफिस में टिफन से निकलता है। ईश्वर आपके बाबूजी की आत्मा को शांति दें।

    ReplyDelete
  90. This is the best letter/article I have read in years, thanks Ravish for bringing me more closer to my parents !!!

    ReplyDelete
  91. रविशभाई,

    रुला दिया आपने तो.… आपने बहोत कुछ दिया है हमें, बस यही कहना है कि हम आपके दर्दमें शामिल है, आपके साथ है. अपना ख़याल रखियेगा.

    ReplyDelete
  92. Dear Ravishji , After reading your letter I am unable to express my feeling . I also have such feeling for my Parents, & everybody must have the
    such feelings & serve them as much as they can do . The blessings of Parents are ANMOL .

    Regards,

    Alok Bhardwaj




    ReplyDelete
  93. CRIED LIKE A KID WHILE READING.................SO TOUCHING!!! WISH WE COULD BRING BACK THOSE WHO HAVE GONE BEFORE US............WISH......

    ReplyDelete
  94. Hindustan ke har kone me har jagah dil to Hindustani hi milega ,
    Jish dil me apnoke leye jashabat he,yahito to he mera bhart mahan

    Raviahji ankho me ganga ji ka pani bahnelaga Jo ekdam niramal he,

    Najane kyu ham itna bhagtehe ke apne sapne pure Ho jaye par jab sapne pure Ho jate he,tab apne hamare pas nahin hote jinkeliye sapne sanjoy vahe pas na Ho tab dil ka dard ganga ji ke nirmal pani ki tarh anshu nikal atehe he jinme mare purkho ke asti bahane lagte he,

    ReplyDelete
  95. पहली बार किसी ब्लॉग पर कमेंट लिख रहा हूँ । लिख क्या रहा हूँ बस लिख देने को जी मचलने लगा। सच कहूँ तो लिखे बिना रह नहीं सका - मजबूर हो गया... अब आंखे तो नम हुई ही, न जाने कितनी देर तक स्तब्ध कुछ-कुछ सोचता रहा॥ कितने सारे यादों का ताना-बाना बुनता चला जा रहा था । चौंक सा गया जब अचानक टेलीफ़ोन की घंटी बजी । याद आया की मैं तो सुबह सुबह ऑफिस मे बैठा हूँ । पर सोचा आज किसी दूसरे कार्य का श्री गणेश करने से पहले इस ब्लॉग पर अपनी कुछ भी , टूटी-फूटी प्रतिक्रिया अवश्य देता जाऊँ ॥ रवीश जी आप जैसे लोगों को सामने रख कर हम अपने बिहार पर गर्व कर सकते हैं... बहुत बहुत धन्यबाद ...

    ReplyDelete
  96. रवीश जी आपका पत्र आपके और आपके पिता के मार्मिक रिश्ते और अनुभवों को दर्शाता है |इसे पढ़कर मुझे अपने पिता और अपने रिश्ते याद आने लगे आज भी उनके साये में सुरक्षित महसूस करती हूँ|आप के पिता जी आज भी वहां से अपना अपार स्नेह आपके ऊपर बिखेर रहे हैं जब आप के बाल हवा से बिखर जाएँ तो सोचना पिताजी आपको याद कर रहे हैं|उन्हें शत-शत नमन कीजिये जिनके आशीर्वाद से आज आप निरंतर सफलता के पथ पर बढे जा रहे हैं|आपकी लेखनी ने आज अश्रु धारा बहा दी|

    ReplyDelete
  97. रवीश जी आपका पत्र आपके और आपके पिता के मार्मिक रिश्ते और अनुभवों को दर्शाता है |इसे पढ़कर मुझे अपने पिता और अपने रिश्ते याद आने लगे आज भी उनके साये में सुरक्षित महसूस करती हूँ|आप के पिता जी आज भी वहां से अपना अपार स्नेह आपके ऊपर बिखेर रहे हैं जब आप के बाल हवा से बिखर जाएँ तो सोचना पिताजी आपको याद कर रहे हैं|उन्हें शत-शत नमन कीजिये जिनके आशीर्वाद से आज आप निरंतर सफलता के पथ पर बढे जा रहे हैं|आपकी लेखनी ने आज अश्रु धारा बहा दी|

    ReplyDelete
  98. जिस किसी ने पढ़ा ...याद हो आये बाबूजी जो अब नहीं हैं साथ, आप तो किस्मत वाले हैं जब वो थे तब भी उनकी बात मानते थे ...
    जाने के बाद बहुत पछतावा हो रहा हैं, काश कुछ और कर दिया होता बाबूजी के लिए | उस कमी को माई में पूरी करने की कोशिश
    जारी हैं ...

    ReplyDelete
  99. dhanybad ravish !!!!! kiya kahoo, kuch samjhta nahi par aisa lagta hai ki bas ro lu aaj man bhar kai ....mere pitaji ko bhi teen saal hui aur aaj bhi bahut yaad attai hai.....par sayed mere pitaji sayed abhi mujhsai naraz hai....kiyoki wo mere sapno mai bhi nahi aatai.....bas socta hu ki sayed aaj aayengai ....aur abhi bhi intzaar hai....

    ReplyDelete
  100. Hi unable to control on my tears...... I couldn't recall my father as he passed away when I was a year old only .....but trust me ...I thought will try to keep Happy my Mom...otherwise generally when they passed away people put up a Framed Photo with garlands...
    Thanks Ravish to remind the importance of our Parents.....

    ReplyDelete
  101. Hi unable to control on my tears...... I couldn't recall my father as he passed away when I was a year old only .....but trust me ...I thought will try to keep Happy my Mom...otherwise generally when they passed away people put up a Framed Photo with garlands...
    Thanks Ravish to remind the importance of our Parents.....

    ReplyDelete
  102. आपसे कितना कुछ कहना था पापा....अब क्या करू...Miss u PAPA

    ReplyDelete
  103. प्रिय रवीश जी, सचमुच आज जब अक्सरहां सफल तो क्या निकम्मे बेटे जो ख़ुद माँ-बाप के ऊपर आश्रित हो जीते हैं;भी कभी उनके बारे में सोचते तक नहीं, आपका संस्मरण पढ़कर दिल भर आया। पता नहीं क्यूँ आज हम इतने ख़ुदपसंद होते जा रहे हैं कि यह तक भूल जाते हैं, कि कोई ऐसा भी है जिसने हमें यहाँ पहुंचाने के लिए अपनी राते काली की होंगी, हमारे छोटे-छोटे सुखों की ख़ातिर ख़ुद बड़ी-बड़ी तकलीफ़ें सही होंगी, हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अपने कई सपनों को त्याग दिया होगा और हम हैं कि कृतज्ञ होना तो दूर, दो प्यार के बोल और इज्ज़त तक नहीं दे पाते उन्हें। ऐसे समय में आपका ये संस्मरण याद रहेगा हमेशा। धन्यवाद आपका मनुष्यता पर मेरा विश्वास मजबूत करने के लिए. आपका, प्रणव

    ReplyDelete

  104. नमस्कार

    आपकी लेखनी ने भावनाओं मे बहा दिया...बस इतना ही कहूँगा की ऐसे ही लिखते रहिए...मैं भी पटना से ही हूँ और आपको टीवी पे देखना भी कम आनंदायक नही है...आपके जैसे लोगों से ही बिहार की मिट्टी पे सबको गर्व है....

    आलोक श्रीवास्तव
    पुणे

    ReplyDelete
  105. Rula diya aapne. Mujhe dadajiki yaad aa gayi.

    ReplyDelete
  106. I am a 53 yrs old voracious reader. Must have read thousands of articles, features, blogs, letters, magazines, books, etc. This is the best read of my life. Yeh parhtey huvey ronaa bhi achchha lagta hai. Aur main vahi kar raha hoon. Eleven years ago when my father left us to meet his maker, overnight I turned a 41 year old man from a 41 year old kid. Before that I had my FATHER.

    ReplyDelete
  107. निशब्द.... कर गए आप

    ReplyDelete
  108. आज आपने आँखे नम कर दी हमारी. आपकी मन की बाते पड़कर आज अपने पिताजी को बहुत प्यार देने का मन हो रहा है. दिल से आपका शुक्रिया

    ReplyDelete
  109. आपका लेख पढ़कर फिर पिताजी की याद आ गई. आँखें भर आईं. पांच साल पहले कानपुर रहते हुए वे चल बसे. कहते हैं मरते वक़्त उनकी आँखें किसी को ढूंढ रही थीं शायद वह मैं था. साल २००० में अम्मां गई थीं और २००८ में पिताजी. मेरा दुर्भाग्य कि तब ही पहुँच सका जब वो नहीं रहे. याद आती है तो खूब आती है. धन्यवाद् रवीशजी.

    ReplyDelete
  110. Itnaaa Pyaaar..aapki puri chiththi padh-te padh-te aank mein aansoo aa gaye. unka aashirwaad sada rahega aap ke saaht. kaash ki duniyaan ka har beta aap ki tarah apne pita jee ko pyaar kartaa. aanke nam ho gayee.

    ReplyDelete
  111. very touching. meri bhi same feeling hai apni mother ke liye bas farak itna hai aapke pass shabd hai hamari dil mein rah jaati hai.
    Thank you ravish ji bahut time baad kuch aisa pada jo dil se likha gaya aur dil tak gaya.

    ReplyDelete
  112. Aabhi do mahine pehle maa ko khoya hai, kaam main man nahi lagta. Shayad sabka dard ek jaisa hota hai.

    ReplyDelete
  113. Only true journalist in the main stream news channels in India.

    ReplyDelete
  114. Ravish ji

    dil se likha hai, pad ke rona aa gya or maa yaad aa gyi jinko gye hue 4 saal ho gye.

    ReplyDelete
  115. Ravishji..aapne mere grandfather (dada) yaad dila di..me unke baare me b lik khar aapki bejunga.pls padna..aansu la diya ank se..

    ReplyDelete
  116. Aapka varnan parh kar aisan lagal ki jaisan kauno gaon ke chaupaal par chachaa ho rahee ho........voh paisey ki kamee ke karan achhey daactar sey naa dikhaa paana......ingland sey daactri parha hum sthaneeya logon kko thoochh keedey makodey jaisa..... sirf.....ooskey paisey kamaaney matr sadhan samajhana.......hemant jaisey vilayati parhey daactar kayee mil jaayengey......aapka lekhan sarahneeya hai......

    ReplyDelete
  117. aapke lekh par to koi comment nhi kar paunga..aapki esi kabiliyat ki wajah se mujhe lagta hai ki aap apne profession me kitne imandaar hai ...

    ReplyDelete
  118. aapke lekh par to koi comment nhi kar paunga..aapki esi kabiliyat ki wajah se mujhe lagta hai ki aap apne profession me kitne imandaar hai ...

    ReplyDelete
  119. Ravish ji, ye padne ke baad merei aankh gili dekh kar meri 6 saal k beti mere gale lag gayi. pooch rahi thi - ky hua papa. maine bas ose kas ke pakad rakha tha. kooch keh nahi saka...

    aapko dher sari shubkaamnaye.

    ReplyDelete
  120. Bilkul mere papa ki kahani hai' mai samajh v nahi paya aur papa hum logo ko chhod Karl McHale gaye..

    ReplyDelete
  121. atyanta marmik. aapne apna dil kholkar rakh diya.hamme se adhikansh logo ko apna vichova yaad aa gaya.
    achi yaadon ke saath rahen

    ReplyDelete
  122. Santoshanand ji ki pankitya yaad aa gayee"
    " jo beet gaya hain woh,
    aab aur na aayega,
    , aab iss dil me siwa tere,
    koi aur na aayega,
    bas likhte rahiyee. i also lost my father 12/10/12 due to cancer. unki har peera yaad aa gayee.

    ReplyDelete
  123. क्या लिखो पढ़ कर बस यही प्रण करने का मन करता है कि जब भी पापा को मेरी जरूरत हो मैं उनके साथ हुँ। उस डॉक्टर को फूल नहीं गुलदस्ता भेंट दिजेयगा।शायद उसे पछतावा हो और किसी और को ऐसे मन न करें।

    ReplyDelete
  124. मेरे बालों में एक बार हाथ फेर दीजिये न । अच्छा लगेगा ।

    ReplyDelete
  125. मेरे बालों में एक बार हाथ फेर दीजिये न । अच्छा लगेगा ।

    ReplyDelete
  126. ravish ji aankhein nam ho gayi padh ke

    ReplyDelete
  127. mai padh kar nishabd hun ...aankhe namm hain

    ReplyDelete
  128. mai padh kar nishabd hun ...aankhe namm hain

    ReplyDelete
  129. SIR JI 13 March se 21 March ho gaya ,har din yeh letter padhti ho .Har din apne us darr ka samna karti ho jiske bare me sochna nahi chahti,par kya karo yeh sachayi hai ki hamare apne zindagi bhar hamare sath nahi rahate, bas rahe jati hai to yaadein .Vaise zindagi ki jang abhi to shuru hi huyi hai mere liye ,aur kafi kuch kho diya hai maine. Jinhe khoya hai kabhi agar sapne me ajate hai to pata nahi kyu darr jati ho.Apni amma se liptana miss karti ho,nana ki plate me khana miss karti ho aur nani ki kahaniya sunana miss karti ho. Kash vo vakt vapas ajaye.

    ReplyDelete
  130. kya likhu tere bare me ki tune to ek

    itihas hi likh diya hain

    ReplyDelete
  131. kya likhu tere bare me ki tune to ek

    itihas hi likh diya hain

    ReplyDelete
  132. RAVEESH JI.....YOUR FATHER WILL PROUD TO HAVE SON LIKE YOU...........GOD ALWAYS BLESS YOU.........

    ReplyDelete
  133. बाबूजी जहां भी होंगे, आपको देखकर बहुत ख़ुश होते होंगे।

    ReplyDelete
  134. aankhen gili ho gayi office me rhte hue padh raha tha verna akele me hota to khoob rota ...abhi mere pita ji ko gaye ek saal bhi nahi hua..
    sir ye aisa khalipan hai jo jindagi bhar satayega

    ReplyDelete
  135. हर एक बच्चे को ये पढना चाहिए......फिर उसे लगेगा की पिता से कितना प्रेम किया जा सकता है.......

    ReplyDelete
  136. Ravish Sir..E blog dil ke chhu gail..

    ReplyDelete
  137. Bada hi mushkil raha bina aankhein gili kiye padh pana. Apratim varnan. Saubhagyashali hoon main, iss rishte ki garmi abhi hai.

    ReplyDelete
  138. kitne salon baad aaj phoot-phoot kar roya hoon..........

    ReplyDelete
  139. बहुत रोया हु पढ़कर और लिखते लिखते भी आंसू नहीं रुक रहे । किसी ऐसी जगह पे आपने अपनी बात रख दी की लगा अपने आप में आपको देख रहा हूँ । घर से बाहर रहते रहते अक्सर इनकी कमी खलती है लेकिन किसी के चले जाने का डर जो मन में है आपने सामने लाकर रख दिया और उनके अपनेपन का अहसास भी । आज तक अपने आप को आपका प्रशंसक ही समझता रहा आज विचारो की इस अभिव्यक्ति ने उम्र में न सही पर मित्र तो बना ही दिया । लोग कमजोर होते है और किसी के न होने का बोध सबसे बड़ा आघात । रोज पिताजी से आपकी तरह सुबह में फ़ोन पे बात होती है लेकिन न तो वो अपनी चिंता जाहिर होने देते और ना कभी मै । लेकिन उस खामोशी में भी लगता है हम दोनों ने अपनी सारी बातें कह दी हो । बहुत कुछ लिखना चाहता था पर अभी सिर्फ धन्यवाद् इस बोध के लिए ।

    ReplyDelete