महिंद्रा का युवराज

अचानक नज़र इस छुटकु ट्रैक्टर पर पड़ी तो पचीस साल पहले की घटना याद आ गई । पटना में किसी ने मित्शुबिशी ट्रैक्टर की डीलरशिप ली थी । सवा लाख का सफ़ेद रंग का छोटा सा ट्रैक्टर । बेहद ख़ूबसूरत । लगा कि ये तो कमरे में आ जाएगा और हम भी जापानी तकनीक से खेती में क्रांति कर देंगे । बात आई गई होगी । किसी ने ख़रीदा नहीं तो दुकान बंद हो गई । मित्शुबिशी का वो ट्रैक्टर बड़े ट्रैक्टर का लघु रूप नहीं था जैसा कि महिंद्रा का युवराज 215 है । हमारे पास इसका बड़ा भाई स्वराज हुआ करता था । 



आज इंदिरापुरम में इस ट्रैक्टर को देखा तो रहा नहीं गया । पहले तस्वीर ली और बाद में पता किया तो ड्राईवर ने बताया कि ग़ाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण ने कचरा उठाने के लिए ऐसे आठ ट्रैक्टर लिये हैं । ये ढाई लाख का है और काफी फ़ुर्तीला है । 

गूगल किया तो पता चला कि यह छोटा ट्रैक्टर तीन साल पहले लाँच हो चुका है । राजकोट की फैक्ट्री में बनता है । गूगल में क़ीमत क़रीब दो लाख ही है । पच्चीस किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से चलता है । बड़े ट्रैक्टर मालवाहक ज़्यादा हो गए हैं । जोत का आकार घटता जा रहा है । शायद ऐसे ट्रैक्टर की ज़रूरत है जिसे किसान खुद चला सके । जिसे खेती करने वाली महिलायें चला सकें । ड्राईवर रखने की ज़रूरत नहीं होगी । लिहाज़ा किसान का ख़र्चा बचेगा । इससे कोई भी खेत जोत सकता है । गूगल से पता चला कि युवराज 215 गुजरात और महाराष्ट्र में काफी लोकप्रिय बताया 

गूगल में भी बहुत जानकारी नहीं है । दुख की बात है कि न्यूज़ चैनलों पर हर हफ़्ते मोटरसाइकिल से लेकर नाना प्रकार के कारों की समीक्षा होती है । लेकिन ऐसे शो में किसानों और क़स्बों की ज़रूरत वाली गाड़ियों की कभी चर्चा नहीं होती । खेती को तकनीकी की ज़रूरत है । हम इस पर बात नहीं करेंगे तो इसे लेकर अनुभव और ज्ञान का संचय कैसे करेंगे । 

33 comments:

  1. अगर मैं सही समझ रहा हूँ तो वो मित्शुबिशी मेरे गाँव में एक था, ड्राईवर पीछे-पीछे चलता था मेरा मतलब ड्राईवर को बैठने कि जगह नहीं थी.
    वो मुलयम मिट्टी के लिए सही था, अगर जमीन बंज़र होती थी तो उसकी हालत ख़राब हो जाती थी. वैसे ट्रैक्टर के मामले मैं हमारे देश मैं उतनी क्रांति नहीं हुई जितनी कार और मोटरसाइकिल में हुई.

    ReplyDelete
  2. sir aapke twitter account ko kya hua?

    ReplyDelete
  3. sir ji kranti sambhav ko boliye hamari taraf se ki ek Raftaar episode Tractor ka bhi banta hai....

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. https://www.facebook.com/Amit.Bhaskar.Official.Fan.Page

    Sir iss page pe aapka photo dekha .....Modi ke Gujarat mein poncha lagate hue.....kya itni buri halat hai gujarat ki......

    ReplyDelete
  7. Sir Friday Saturday and Sunday ko Prime Time mein kyun nahi aate................


    bahut aalsi ho gaye ho aap

    ReplyDelete
  8. Sir, kabhi google hangout pe baat karo na

    ReplyDelete
  9. सर. आज कई दिनोँ के बाद ट्रैकटर का ज़िक्र हुआ है। लेख पढ़ कर Achha लगा।

    ReplyDelete
  10. Each media house have dozens of journalists to cover lekmi fashion week to understand the various design of gowns

    but no one have a single full time rural reporter to cover the conditions of the farmers who grow the cotton and gown made from cotton ( P.sainath on the suicides of Vidarbha farmers )

    ReplyDelete
  11. रवीश जी आप दूरदर्शन के 'कृषि दर्शन' को भूल रहे है. अभी भी आता होगा शायद दूरदर्शन की प्रादेशिक सेवा(डीडी 1 पर शाम को)पर. वैसे कई लोगो ने कृषि दर्शन जैसी बोरिंग चीजो की वजह से ही दूरदर्शन देखना बन्द कर दिया था.

    ReplyDelete
  12. Hindustan aaj bhi gaon me rahta hai, 66% (latest data) ke anusar par unki baat karne wale shayad 6% log bhi nahi honge. Durbhagya hi hai hamara. seharon ne gaon ko kahi kha liya hai. Phir bhi aapki nazar is politics ki bhid me se hatkar tractor par chali gayi man gaye ustad (thoda change ke liye). Phir bhi kahunga aaj ki politics kaafi jaruri hai, hum sabke isliye.

    ReplyDelete
  13. mere ghar me bhi mitshubishi wala tractor.. papa batate hain..

    ReplyDelete
  14. Aaj rahul Gandhi ne jo meeting ki ya Kahe apna manifesto ki tayri ki.. Uski baat zarur kijeye ga.. apki Xray report rahul jee pe kya kheti hai dekhna chauga..

    ReplyDelete
  15. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  16. Hello sir !! Today(13-12-2013)I saw you(at 5:20 pm) in front of Neelpadam apartments(Near Shoprix Mall).I think you were going for a evening walk.I was spilled up to watch you there and doesn't have the endure to Say hello or Hi to you !! Literally saying I was befuddled to saw you there. You were looking as phenomenal as your are.You looked at me once and then you just continued your walk.Then after I thought to follow you but you were vanished up like. Saying it was like a memorable moment for me cause am a fan of yours. Hope to See you again somewhere there around !!

    ReplyDelete
  17. छोटा और सुन्दर, कार्य पूरा करता हो तो खरीदने योग्य भी।

    ReplyDelete
  18. सुबह अपने ऑफिस की तैयारी और बच्चों की स्कूल की तैयारी के दौरान डीडी पर कृषि दर्शन देखता हूं। इसलिये भी अदबदा कर देखता हूं कि बच्चे स्कूल की तैयारी के दौरान कुछ कुछ खेती किसानी को जानते रहें। पहले वो भी कुढ़ते थे पापा ये क्या लगा कर देखते हैं सुबह सुबह। लेकिन अब वे भी किसी किसी क्लिप पर ठहर कर देखते हैं। विशेषत: कुछ अलग किस्म की जानकारियों को। एक दिन रूद्राक्ष के पेड़ों के बारे में जानकारी दी जाने लगी तो सभी मन से देखने लगे। उनके मन में भी प्रश्न आया कि ऐसे उगता-बनता है क्या रूद्राक्ष का फल ? फिर एक मुखी और दो मुखी का क्या बताते रहते हैं सब पोंगा बाबा लोग ? फल ही तो है। ऐसी ही तमाम बातें कृषि दर्शन में देखने मिलती हैं। अच्छा लगता है देखना। बकरी पालन को एटीएम के समतुल्य बताने पर हैरानी हुई लेकिन बात समझने पर पता चला कि वाकई बकरी पालना गाँवों में एटीएम कार्ड रखने के जैसे ही है। कई लोग बकरीयां पालते हैं और जब जरूरत आती है उसे तुरत फुरत बेच कर एटीएम कार्ड की तरह पैसे निकाल अपने रोजमर्रा के कामों को निपटाते हैं।

    फिर अब तो प्राईवेट चैनल वाले भी भी कृषि से जुड़े कार्यक्रम ठीक उसी समय दिखाते हैं जब दूरदर्शन दिखता है। सुबह साढे छह बजे कई चैनलों पर कृषि से जुड़े कार्यक्रम दिखाये जाते हैं। उसमें भी खेती किसानी के वैसे ही कार्यक्रम दिखाये जाते हैं। इसलिये यह कहना कि डीडी के इन्हीं बोरियत वाले कार्यक्रमों के चलते लोगों ने डीडी देखना बंद किया होगा- थोड़ा अजीब लगता है।

    एक विशेष बात यहां देखने मिली कि कार्यक्रम की प्रस्तोताएं समाचार चैनल वाली कन्याओं की तरह बेहद पतली, डायटिंग वाली, छरहरी नहीं होतीं। अधिकतर प्रस्तोताएं हष्ट-पुष्ट या स्थूलकाय होती हैं ( इसे किसी विभेदक दृष्टि से न देखा जाय, एक ऑब्जर्वेशन है सो लिखा)। कृषि कार्य के दौरान नाजुक, छरहरी महिलाओं द्वारा कार्यक्रम की प्रस्तुति लोगों को शायद खटके...ऐसी भी कोई भ्रांन्ति या बात हो।

    ReplyDelete
  19. Yuvraj 215 is like Yuvraj Singh,, only hoopla and no longeivity. can be used only for pulling small pay loads.Highly unstable. However M&M are recommending your blog site

    ReplyDelete
  20. आपका लेख अच्छा लगा , वास्तव में इस देश नयी चीजों का आविष्कार हुआ कहाँ ? मोटर साइकिल या कारों की बात भी करें तो यहाँ का क्या है हीरो ने होंडा के साथ , बजाज ने कावासाकी के साथ टी वी एस ने सूजुकी के साथ collaboration करके जैसे तैसे मोटर साइकिल बनाना सीख लिया , थोड़ा आगे पीछे करके अपनी नई तकनीक का नाम दे दिया , यही हाल कारों के सन्दर्भ में भी है ले दे के एक नैनो या इससे पहले इंडिका थी जिसे भारतीय कार कहा जाता है . भारत में भारत के लिए नयी चीज़ों की खोज या आविष्कार कहाँ हो रहा है हम तो भोंडी नक़ल करने वाले देश बन कर रह गए है .. पश्चिम में अगर छोटे ट्रैक्टर का निर्माण हुआ होता तो यहाँ भी हम नक़ल कर लेते लेकिन पश्चिम में जोत बड़े है , इसलिए वहां ऐसी आवश्यकता नहीं है . हमें महिंद्रा हो धन्यवाद देना चाहिए ऐसे उपयोगी उपकरण के निर्माण के लिए ..

    ReplyDelete
  21. Sir aap beech beech me kahan bhaag jate hain?

    ReplyDelete
  22. रवीशजी:)

    तस्वीर1--right angle

    तस्वीर3--left angle

    लेकिन..

    तस्वीर2--में युवराज के पीछे कांग्रेस लगती है नै? :-p

    और मैंने बिलोरी कांच ले कर ढूंढा:)....
    i know समझ गए होंगे:) फिर भी...लिख ही दूँ रहा नहीं जाएगा...:)
    ये....युवराज के 'साहेब' ने माहिती दी लेकिन 'फोटू' नही न दिया AAP को तो:)

    दिल्ली मैं गाँव की झांकी?:)बस 'designation' बदल जाता है नै?:-( 'कमाने वाले' से 'कचरे वाला' शहर ये देते है गाँव को....

    आप ATUL का भी गूगल कीजिएगा--जामनगर की फर्म है--आप की शिकायत दूर हो जाएगी-लगेगा...महिंद्रा मार्किट मैं लेट है..

    ReplyDelete
  23. वाकई ईसे बिहार यु पी के गांवो में भी पहुंचाने की जरुरत है.
    अति सुंदर

    ReplyDelete
  24. वाकई ईसे बिहार यु पी के गांवो में भी पहुंचाने की जरुरत है.
    अति सुंदर

    ReplyDelete
  25. good one.. touching the topics which touches majority of the population.. gaon ka desh bharat !!

    ReplyDelete
  26. सर ये काफी वक्त पहले आ चुका हैं मार्केट मैं खूब मार्केटिंग भी हाई हैं .इसे न बिकने के बहुत से करण हैं एक तो आज की जो जमीन हैं वो बहुत ही टाईट हैं और इस ट्रक्टर मैं इतनी शक्ति नहीं की जमीन को चीर सके जमीन का इतना टाईट होना आप को पता ही होगा क्यों हो चुकी हैं .जमीन मैं इतनी खाद की मात्र ज्यादा हो गई हैं की जमीन धीरे धीरे बहुत ही कठोर होती जा रहा है.दूसरा की ये खेतों मैं मेड पर ही फस जायेगा :)

    ReplyDelete
  27. Sir, bahut samay se 'Ravish ki Report' ke naye episodes ka intzaar hai. Kya ab naye episodes nahin aayenge.

    ReplyDelete
  28. Ravishji,yeh tractor maine Chapra- Hajipur ke Madhya nayagaon me dekha tha fur r r... se nikal gaya. satish pancham sir ke comments bahoot achche lage

    ReplyDelete
  29. Pahle jamane me Ram n Krishna k yug me log 12-14 foot k bhi hote the , samay k sath hmari hight kam hoti gayi...fir samye k hisab se jarurat k mutabik hamne compact cheeje bhi banani shuru kar di....Ek choti but improatat aviskar per dhyan kheechne k liye dhanyavad....!!!

    ReplyDelete
  30. मुझको चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र,
    रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊंगा...!!

    ReplyDelete
  31. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  32. sir , india ka economy ka model america k model k saman chalta h.. waqt badlega aur logo ka dhyan agriculture par bhi aayega.. par uss mein kuch waqt lag sakta h.. iss mein media ka bahut mehtpurn yog dan rahega.. kyun ki ye media hi h... jo "kabhi kisi neta ka raj tilak kar deti h aur kabhi ussi ko acharan ki kasauti par bhi fail kr deti h"

    jab media itna kuch kar hi sakti h toh logo ka dhyan bhi iss aur keench sakti h...

    ReplyDelete
  33. गांव याद आ गया सर

    ReplyDelete