इसलिए ऐसा उम्मीदवार होना चाहिए जो मनमोहन सिंह की परंपरा का विस्तार न हो । निलेकणी और चिदंबरम के सामने मोदी यह चुनौती पेश करेंगे । मुझे लगता है कि कोई ऐसा नेता आएगा जो मनमोहन की परंपरा से अलग लगेगा । मगर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी लोगों की नज़र में कांग्रेस को बेहतर नहीं कर सकेगा । मोदी बहुत आगे निकल चुके हैं । राहुल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे । यह मेरी साधारण समझ कहती है । एक बात और । जब जनमत ख़िलाफ़ हों तो रणनीतिक चतुराइयां टाइम पास बन जाती हैं । मीरा कुमार के अलावा कांग्रेस के पास कोई दूसरा नाम नहीं है ।
किसी भी राजनीतिक दल को समझना चाहिए कि पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की फ़ौज से बड़ी पूँजी कुछ और नहीं होती । इससे पहले कि कांग्रेस अगले साल के नतीजों के बाद अपनी ग़लती के लिए माफ़ी माँगे और जनादेश के स्वीकार करने की विनम्रता का प्रदर्शन करने की नौबत आए इन सत्तर अस्सी मंत्रियों से छुटकारा पा लेना चाहिए । भले ही उनमें कई अच्छे हैं । मनमोहन सिंह जितने दिन रहेंगे कांग्रेस की सीटें उतनी तेज़ी से घटती चली जायेंगी । उनके रहते पार्टी का कोई नया उम्मीदवार विश्वास हासिल नहीं कर पायेगा । जनता की नज़र में किसी मंत्री की पहचान उनके काम से नहीं है । महँगाई और भ्रष्टाचार के अलावा मनमोहन सिंह सरकार का सबसे बड़ा संकट यह है ।
कांग्रेस पार्टी ने लोकपाल आंदोलन को तिकड़मों से ध्वस्त करने की जो ग़लती की है वो अब उसके बनाए लोकपाल के पास होने से भी नहीं सुधरने वाली । कांग्रेस समय के साथ चल रही होती तो वह मज़बूत लोकपाल पास कर देती । ग़ुस्सा भी निकलता और ग़ुस्से का सामना करने के लिए उसके पास बोलने के लिए भी कुछ रहता । अब वो मौक़ा चला गया । यह नहीं हो सकता कि नरेंद्र मोदी चुन चुन कर मनमोहन सिंह सरकार की नाकामियों को गिनायें और कांग्रेस उसे छोड़ कर अधिकारों को गिनवाये । पार्टी के नेताओं का सरकार में विश्वास नहीं रहा, वही अपनी सरकार की उपलब्धियों की बात नहीं करते हैं । सरकार के मंत्री भी सरकार की बात नहीं करते । आँकड़े वाकड़े होंगे दस बीस विकास के मगर चार सौ बीस वाले मामले ने जनता का विश्वास हिला दिया है ।
चार राज्यों में हार का ज़िक्र कर दोहराना नहीं चाहता । पार्टी को पहले से पता तो होगा ही कि जनमत ख़िलाफ़ है मगर उसे ध्रुवीकरण की राजनीति पर इतना यक़ीन हो गया था कि कोई भी नेता पुराने नतीजों को निकाल कर इसी बात से ख़ुश हो जाता था कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे । क्या इस प्रमेय का उत्तर एक ही है कि मोदी नहीं बनेंगे तो राहुल बन जायेंगे । हद है । क्या कांग्रेस के लिए यही बड़ी जीत होगी कि मोदी न बनें । खुद सरकार न बना सकी तो वो हार मोदी की हार से छोटी होगी या बड़ी । क्या हर चुनाव पिछले चुनाव की पुनरावृत्ति है ? कांग्रेस के नेता को यह सोचना होगा कि नाम जपने से राहुल प्रधानमंत्री नहीं हो जायेंगे । पार्टी बदलने से जनता ख़ुश नहीं हो जायेगी । दिक्क्त सरकार में है । उसे बदलना होगा । इस बार काग़ज़ फाड़ कर नहीं बल्कि इस्तीफ़े का काग़ज़ लिखाकर कीजियेगा भाई जी !
राहुल गांधी ने कहा कि वे पार्टी में तीव्र गति से बदलाव करेंगे और लोगों को एक गर्व करने लायक पार्टी देंगे । पर ये ज़रूरत कौन महसूस कर रहा है । राहुल, कांग्रेस या पब्लिक । जो काम आप दस साल में नहीं कर पाये क्या आप चार महीने में कर लेंगे ।राहुल ने इतने दिनों में कुछ तो बदलाव किया होगा उससे क्यों नहीं कुछ हुआ । कहीं ऐसा तो नहीं कि पार्टी में बदलाव राहुल का प्रोपेगैंडा भर है । हर समय किसी भी पार्टी में बदलाव पार्टी की ज़रूरत होती है । राहुल को पट्टी वहाँ लगाना है जहाँ से मवाद बह रहा है । इसका साहस नहीं है तो बाक़ी सब बातें हैं । इससे पहले कि जिस सरकार की वजह से उनकी पार्टी ख़ारिज हो जाए उनकी पार्टी ही सरकार को ख़ारिज कर जनता की तरफ़ हो जाए ताकि जो मणिशंकर कह रहे हैं कि विपक्ष में रहकर पार्टी को बदलना होगा वो लोगों की नज़र में विश्वसनीय हो ।
क्या राहुल गांधी अपने अधिकांश मंत्रियों का टिकट काटने का साहस कर पायेंगे । शायद नहीं । मनमोहन सिंह सरकार के कई मंत्री हारने वाले हैं । जब प्रचंड लहर में शिवराज सिंह अपने दस बदनाम या नकारे मंत्रियों को हार से नहीं बचा सके तो राहुल गांधी कैसे बचा लेंगे । क्या ये मंत्री टिकट छोड़ चुनाव प्रबंध में जुट सकेंगे । नहीं । ये पार्टी के लिए त्याग नहीं करेंगे इसलिए राहुल को इनका त्याग कर देना चाहिए । कांग्रेस को मोदी से पहले अपनी सरकार और पार्टी से लड़ना होगा । घमासान करना होगा । बीजेपी में यह घमासान हो चुका है । वक्त से पहले बीजेपी बीजेपी से और बीजेपी संघ से लड़ चुकी है । यह जंग पार्टी के भीतर और बाहर मीडिया में भी लड़ी गई । मोदी का उदय उसी घमासान मंथन का नतीजा है । इसीलिए बीजेपी का टाइम ठीक चल रहा है और कांग्रेस समय से छह महीने की देरी से चल रही है । टिंग टाँग । कांग्रेसगण कृपया ध्यान दें !
ह्म्म्मम्म.....आलाकमान तक यह बातें पहुंचा देता हूँ ...:)
ReplyDeleteये बातें ऊपर तक पहुंचानी होगी ..:))
ReplyDeleteSir , Shinde nahi ho skate kya ?
ReplyDeletePehle Shinde Maharashtra Bacha le, desh to door ki kauri hai.
ReplyDelete:) हा हा :) ये देरी से चलने की स्पीड नापने वाला टिंग-टोंग यन्त्र कहाँ से मिला एंकर महोदय?:) :-p क्या है न अरविन्द केजरीवाल से कहकर जनता को उपलब्ध करने की मांग की जा सकती है कम से कम दिल्ली तक तो हो?:) :-p
ReplyDeleteकांग्रेस की प्रधान मंत्री चयन परेड आप को मोदी के 'विदेशी प्रधान मंत्री बहिष्कार' की याद नहीं दिलाती क्या? मेहमान कितने भी अज़ीज़ हो प्यार करते हो-वे घर के सदस्य कभी नहीं बनते-मेहमानों के नाम पैतृक संपत्ति नहीं लिखी जाती।
मनमोहन सिंह न सही-तो नेहरु परिवार क्यूँ वाही का वाही? यह आम और सहज सवाल है बाकी सब अक्कल का आचार ! जो बिलकुल बेस्वाद है जी:)
voters कांग्रेस प्रबंधन भी कर के दें?:)
:) next 5-6 months mast maje aane wale hai
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ReplyDeleteNai Bach payegi congress..aisa lagta hai...NAMO honge ya nai...Bol nai sakte...Kya pata koi Kejriwaal hi ho jaye...ya fir bahot sare yadav,patnaik aur Naidu..wagera wagera line mein hai..Confuse hai janta...lekin ant mein aaj ke bharatvarsha ki janta yahi kehti hai ki nai bach peyegi congress..
ReplyDeleteMujhe bhi aisa lagta hai..bachni nai bhi chahiye...Par fir ekabag dimag mein aata hai...NAMO NAMO NAMO....NAHI NHAI NAHI...Fir dil aur dimag dono mayush ho ke chup ho jate hai aur bhartiya monovriti panap ke nikalti hai aur bolti hai..DEKHTE HAI..
Lekin kyu nai chahti aaj ki janta congress ko..Wo congress jo 10 saal se raaj kar rahi hai...Kya janta uub gayi hai?
Kya janta pareshan hai?
Kya janta badlaw chahti hai?
ya fir janta sahi mein bharat ko So called NAMO ka Gujrat banana chahti hai...Pata nai..Sab kuch Bhavisya ke garv mein hai..
Congress ko bachna hai to 6 ball pe 6 chakka lagana padega..matlab kuch aisa jo game palat de..pata nai koi aisa yuvraj singh hai ya nai congress ke kheme mein...ant mein...DEKHTE HAI
रवीश जी , ये बातें किसको सिखा रहे हैं आप ,
ReplyDeleteआज का खुर्शीद जी का बयान पढ़ लेते तो आप ये ब्लॉग लिखते ही नहीं ,
"Sonia Gandhi is not just Rahul Gandhi's mother. She is also our mother, she is mother of entire India," said External Affairs Minister Salman Khurshid.
वे कहते हैं " सोनिया गाँधी राहुल की मम्मी नहीं , अपितु हमारी मम्मी हैं , और और और वो तो मदर इंडिया हैं "
चाटुकारिता की भी हद्द होती है !
देखिये खुर्शीद जी क्या क्या बोल रहे हैं !
में हैरान था , जब मैंने राजदीप सरदेसाई को उनके चैनल पर संजय झा को देखा ,उनसे राजदीप ने सवाल किया की राहुल की क्या उप्लाभ्दियाँ हैं !
मुझे पता हैं श्रीमान संजय झा एक नंबर के चाटुकार हैं , पर मुझे हँसी राजदीप पे आ रही थी , जिस चैनल ने 2009 में राहुल गाँधी को Indian Person Of The Year से नवाज़ा वेह ये सवाल कर रहा था .
दरअसल में media की खिचाई नहीं कर रहा पर ये एक ,न छुपाये जाने वाला सच है की media कांग्रेस के चमचे की तरह व्यवहार करता है , राहुल गाँधी को भी नहीं पता था की वे इतने महँ हैं ,वो तो media ने बताया उनको.
पर अब media को राहुल से आस नहीं है , उसके पास केजरीवाल जो आ गए हैं ,
हाँ अगर ये चुनाव राहुल बनाम केजरीवाल हो जाए तो में गारंटी देता हूँ ,media राहुल के ही गुण गाएगी,पर अफ़सोस ये चुनाव मोदी के साथ है media की कांग्रेस से आस टूट चुकी है , केजरीवाल ही आस दिख रहे हैं ,
अगर केजरीवाल लोक सभा में 40 सीट भी ले आयें तो भी ,कांग्रेस को यकीन है ,सरकार उनकी बन जायेगी , क्यंकि ये देश SICKULAR है !
अगर सच बोलूं तो media केजरीवाल के सिद्धांतों को कभी मान ही नहीं सकती , क्यंकि उसकी रोटी ही कांग्रेस से चलती है !
अगर ये सच हो जाए की केजरीवाल PM बन जाएँ,तो media गरीब हो जाएगा ,हाँ पर सच्चा पत्रकार बहुत खुश होगा , केजरीवाल से नहीं बल्कि media के अन्दर की सफाई से !
देखिये सर , जो कांग्रेस का नेत्रत्त्व कर सकता था उसको मैडम जी ने राष्ट्रपति बना दिया क्यंकि ,वो किसी के रोबोट नहीं हैं , न ही पार्टी के न ही किसी शख्स के ,
मेरा मानना है की प्रणब मुख़र्जी देश के उम्दा उमीदवार होते ,मोदी से भी बेहतर ,
पर वो अब राष्ट्रपति हैं !
अब कांग्रेस चाहे किसी को भी लेकर आ जाए ,इनका कुछ नहीं हो सकता !
सच बोलूं तो जो कांग्रेस में अच्छे लोग हैं वो भी PM नहीं बनना चाहते क्यंकि ,वो रोबोट नहीं बन सकते , मनमोहन की जगह प्रणब को पम क्यं नहीं बनाया ये सारी media को पता है,पर खुल के बोल नहीं सकते ,न बोलने के भी तो पैसे मिलते हैं !
अच्छा है कम से कम media अभी DD News नहीं बना , उसमे तो मुझको घुटन होती थी ,क्यंकि वो सिर्फ सरकार की तारीफ़ ही करते थे !
बेबाक , इसीलिए मुझे आप की ये पत्रकारिता शैली रोमांचित करती है , बड़े ही प्यार से आप विरोधियों को मारते है और क्या मजाल किसी को उफ़ तक हो .....आपसे मुलाकात करनी है , कृपा मौका प्रदान करें ....
ReplyDeleteyuvraj ko apne budhe senapatiyon se chhutkara pana hoga tabhi congress ka kuchh bhala ho sakta hai.
ReplyDeleteकाँग्रेस की प्रमुख समस्या ये है कि ये दस साल से सत्ता में है...अब तो न उसके नेता क्षेत्र में जाकर काम करने लायक रहे ना पीछे कुछ खास किया है जो उसी की फसल काट लें.. उलटे एक के बाद एक की गई गलतियाँ और भ्रष्टाचार ने लोगों की नज़र में उसकी जमा पूंजी खत्म कर दी.. अब तो दिल्ली में जैसे लड़ी वैसे ही पूरे देश में लड़ेगी । सिर्फ चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ही नहीं एग्जिट पोल भी अभी ही निकाल सकते हैं...कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।
ReplyDeleteअब सोचने का टाइम नहीं रहा...प्रियंका लाओ काँग्रेस बचाओ ।
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ReplyDeleteतमाम 'रिएक्शन' के बीच एक 'रिएक्शन' कांग्रेस प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी का भी था। हार की खलिश को आंखों से कई बार पोछते नज़र आए। एक बात उन्होंने कही 'हम अपनी बात जनता से मनवा नहीं पाए' दिक्कत कांग्रेस की यही सामंती मानसिकता है। जनता कि बात मानने के बजाए जब-जब जनता को बात मनवाने के लिए धकियाया जाएगा। ऐसी ही होगा।
ReplyDeleteDear ravish bhai,
ReplyDeleteAapne bat to pate ki ki hai. Lekin is bat ko sahi pate tak pahuchayega kon. Or fir agar pahuch bhi jaye to sunega kon. Koi bhi aaiene me apna asli chehra nahi dekhna chahta.
Ek bahut bara scientist tha. Lekin tha bahut badsurat. Iske bavjud use jab bi samay milta wah aiene ke samne kHara ho jata.
Ek din unke bete ne pucha ki aap aiene ke samne kyo khare ho jate ho. Kya aapko pata nahi aap kase ho.
Scientist ne muskarate hue kaha mujhe pata hai ki main badsurat hu or yahi yad rakhne ke liye main aiene ke pas khara ho jata hu. Taki muje mera chehra har samay yad rahe or main eisa kam karu ki log mere chehre she nahi mere kam she mujhe Jane. Aaj ki hakikat iske thik ulat hai.
Aap kisi ko uski sachai bata kar uski thori si aalochna kar den, fir aap dekh lijiye. Wase aap ko tv par sun ne or blog par aapke vichar padhte hue kai bar eise logon ke reactions padh chuka hu.
Lekin aap ke sach ko mera Salam hai kyoki jhooth bolna to bahut asan hai jabki sach kahne ke liye bahut sahas or naitik bal chahiye hota hai.
Dhanywad.
अगर congress जीतना चाहती है तोह उसके पास अब सिर्फ एक hi विकल्प बचा है|
ReplyDelete"आरक्षण" के विरुद्ध मोर्चा लगा के | मान लीजिये अगर कुछ आरक्षित वर्ग इस से नाराज़ हो भी जाते है , किन्तु इस से भारत के सभी "जनरल कोटा " के लोग उनको वोट देंगे |
Congress m to peeche chalne ki bimari h...chahe kuch b ho jae is bar p.m. To humare sbke priy mananiy NARENDRA MODI ji hi bnege...
ReplyDeleteRahul Gandhi-- Now the abandoned child. Congress looking for a sun/son..Scindia & Pilot beware...Salman saab has thrown in his hat..ND tiwari contemplating too...
ReplyDeleteC0ngress-- mark the 2nd letter is zero, no prizes for guessing why?
mani Shankar aiyer comes out and talks post 2014 general election.
time congress removes the halo of visionary on RG.
most leaders want something to do in Delhi only..
Laloo Mantra-- Chalo Gaon ki oar
अब अन्ना भी जागृत हुये उपर से सुप्रीम कोर्ट ने समलिंगी वाला मामला भाजपा के लिये परोस कर रख दिया / अगर राहुल, सोनिया द्वारा समलिंगी शादी का समाधान संसद मी धूंडने कि कोशिश की तो हिंदू धर्म कि अस्मिता को समलिंगी के साथ घोलकर भाजपा राजनीती नही करेगी इस्की क्या ग्यारंटी ? magistrate भी बडे राजनीतिक हो गये , वक़्त देखकर ही फैसला सुनाते है /
ReplyDeleteबदलाव का रास्ता जिस कठिनता से उपजता है, उससे भी अधिक कठिन वह स्वयं होता है।
ReplyDeletepar congress ki kosis to keval janta ko gumrah karne ki hai. tabhi to food security bill lekar aaye hai.jabki pds to pahle se kam kar raha hai.Inko ise hi durust karne ke jarurat thi bewajah 120000 crore ka extra bhar desh par dal diya.
ReplyDeletepar congress ki kosis to keval janta ko gumrah karne ki hai. tabhi to food security bill lekar aaye hai.jabki pds to pahle se kam kar raha hai.Inko ise hi durust karne ke jarurat thi bewajah 120000 crore ka extra bhar desh par dal diya.
ReplyDeleteमुझे ये समझ नहीं आता कि सरकार की विफलताओं का ठीकरा मनमोहन सिंह पर क्यों फोड़ा जा रहा है जबकि ये सर्वविदित है कि वे तो सिर्फ रबर स्टाम्प ही हैं। क्या ऐसा एक भी निर्णय है जो मनमोहन सिंह जी ने कांग्रेस नेतृत्व की सहमति के बिना किया हो ?
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