मैं देवा हूं। यहां का देवा। चल कैमरा दे। टेप निकाल। ऐ आकर घेरे इनको। बाहर मत जाने देना। किससे पूछ कर अंदर आए। किसलिए शूट कर रहे हो। चल निकाल टेप और कैमरा दे। यहां से अब तू बाहर नहीं जाएगा। तू जानता नहीं मैं कौन हूं। मैं देवा हूं। मैंने बसाया है इनलोगों को। उजाड़ा नहीं है किसी। जाकर बाहर बोल देना कि देवा ने कैमरा ले लिया।
लंबे कद का लोकल गुंडा। दोनों हथेलियां मरहम पट्टियों से ढंकी थीं। लगा कि पिछली रात उस्तरेबाज़ी में दोनों हाथ ज़ख़्मी हुए हैं। मैंने बोला कि इसमे चिप है,टेप नहीं है। आपके किसी काम का नहीं है। आप एक बार चला कर देख लो। कई लोगों ने मुझे घेर लिया था। देवा बार-बार बोल रहा था कि इनको बाहर मत जाने देना। मीडिया और सरकार ने नहीं मैंने तुम लोगों को बसाया है। लोग भी हां में हां मिला रहे थे। आखिर देवा मान गया। मैंने कैमरे का चिप रिवाइंड कर दिया। अब टेप का इस्तमाल कम होता है। चिप पर रिकार्डिंग होती है।
देवा ने हेडफोन पहन लिया। ध्यान से सुना। मैं बोल रहा था कि क्या हम कभी शहरी ग़रीबों की रहने की जगह को कानून-ग़ैर कानूनी दायरे से निकल कर मानवीय या अमानवीय संदर्भों में देखने की कोशिश करेंगे? इनके पास शौच के लिए जगह नहीं है। दो किमी से पानी भर कर लाते हैं। घर तक पहुंचने के रास्ते नहीं हैं। यह सुनकर देवा की आंखें चमक गईं बोला तू अच्छा इंसान मालूम होता है। बढ़िया पत्रकार है। चल इसे कैमरा दे दे। ये हमारी बात कर रहा है। इसको चाय पिला। फिर मुझे अपने कमरे में ले जाने लगा। बोला आओ कभी ग़रीबों के साथ चाय पी लो। मेरा नंबर ले जाओ। जो दिखाना है,दिखाओ। तुम्हारे इस कैमरे से देवा का कुछ नहीं बिगड़ेगा। बच गए तुम। हम लौट आए। देवा किसी बी टाइप फिल्म के दादा की तरह सबको बाय बोलकर अपने कमरे की तरफ चला गया। हमने चाय नहीं पी। मेरा नंबर ले लिया। अपना भी दे दिया।
फ़रीदाबाद के खोरी गांव में शूट कर रहा था। धीरे-धीरे अरावली के चट्टानों के नीचे मकानों की तरफ बढ़ गया। बिना सड़क की बस्ती थी। काफी अंदर चला गया। पीछे-पीछे लोग चले आ रहे थे। मना कर रहा था कि पीछे न आएं। रहने की मजबूरी आदमी को कहां-कहां ले जाकर बसा दे रही है। जिसके लिए आज भी देवा टाइप लोग पैदा हो रहे हैं। एक किस्म को अघोषित टैक्स दे रहे हैं ये लोग। गुंडों को। यहां तक कि वोटर आई कार्ड के नाम पर भी पैसे वसूल हो जाते हैं। डराया जाता है कि यह नहीं बनेगा तो झुग्गी परमानेंट नहीं होगी। दिल्ली साइड आया तो पता चला कि डीडीए और पुलिस मिलकर हर झुग्गी से दस-दस हज़ार रुपये वसूलते हैं। लोगों ने कहा कि हम यह झुग्गी खरींदें तो भी इन्हें इतने पैसे देने पड़ते हैं वर्ना ये आकर लैट्रिन तोड़ देते हैं और नया लैट्रिन का रेट ही दस हज़ार है। तभी हम अपने घरों में लैट्रिन बनवा सकते हैं। वर्ना जाइये खुले में। इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है जी। डीडीए में भी देवा हैं। पुलिस में भी देवा है। मीडिया में भी देवा हैं। फंस जाते हैं कुछ हम जैसे फटीचर पत्रकार जिन्हें हर तरह के मानकों पर कस कर गरिया जाता रहता है।
अपनी शौकिया फोटोग्राफी के चलते इस तरह की अजीबोगरीब स्थिति में मैं भी कई बार मुंबई में फंस चुका हूँ :)
ReplyDeleteएक बार तो मुझे पत्रकार समझ एक शख्स एकदम से चढ़ आया था - तुम लोग काएका फोटो खिचता है....क्या करेगा दिखा कर....क्यो होएंगा.....दिखा रहा है तो इसको भी दिखाओ....उसको भी दिखाओ। बहुत अलग अलग तरह के expectations होते हैं लोगों के।
एक बार बहुत ज्यादा बारिश के चलते पेड़ गिर गये थे और मैं दादर में फोटो शूट कर रहा था कि एक बंदा पास आकर बोला ये गिरेला पेड़ का फोटो खिच के क्या करेगा, पेपर में देगा ?
इसका फोटो मत खिचो, हम सोसायटी वाले इसको रस्सी बिस्सी से खड़ा करने जा रहे हैं। इसका फोटो पेपर में आएगा तो बीएमसी वाले इधर वृक्ष छाटणी वाले को भेज देगा औऱ वो लोग इसको काट डालेगा। हमको पेड़ नहीं कटने देने का है।
देवा जैसे लोग हर जगह मिलेंगे.....सहमत।
Dear Ravish Sir................U r really brave!
ReplyDeletesahi kaha
ReplyDeleteकभी कभी बोले गये शब्द संकट मोचक बन आ जाते हैं।
ReplyDeleteघुमक्कड़ी के साथ ऐसा होने की संभावना बनी रहती है.
ReplyDeleteदेवा ने कल ज़िंदगी बख्श दी!
ReplyDeleteहा.. हा.. हा..
अजब हालात पर गज़ब टाईटिल।
सवजी चौधरी,अहमदाबाद-९९९८० ४३२३८.
क्यों रवीश भैया,
ReplyDeleteदेवा का फोटो नहीं लिया क्या?
बड़ी रोचक बातें की उसने!
फिल्मों में ऐसे लोग तो हीरो होते है.
मीडियाकर्मी के साथ ऐसा होना कोई अभूतपूर्व नहीं है यही तो उनकी निष्ठां का परिचायक है
ReplyDeleteइ झुग्गी का लोकल गुंडा देवा था कि बच गए आप। नहीं तो लुटियन जोनवाला होता तो सटका ही देता।.
ReplyDeletesir abhi to aap ne mazak me likh diya par us samay dar to laga hoga........????????
ReplyDeleteravish ji se takrane wala deva kaun hai? uska photo to daliye sir.... jara hum bhi dekh lein?deva jaise log aaj hamare samaj me har field me baithe hai....
ReplyDeleteravish ji k jajbe ko salam............... media k devao k bare me aap jaise log hi likhne ka sahas kar sakte hai
बहुत रोमांचक अनुभव रहा यह भी ।
ReplyDeleteशुक्र है सब ठीक रहा ।
इसे ही कहते हैं प्रोफेशनल हज़र्ड्स ।
Achi prastuti
ReplyDeleteनमस्कार!
ReplyDeleteभारत में भ्रष्टाचार की अच्छी तस्वीर है. पूरे भारत में इस प्रकार कितने पैसे बनते हैं कोई नहीं जानता.
:)
ReplyDeleteRavish Jee,
ReplyDeleteAapne Deva ka charit chitran bahut rochak dhag se kiya hai, Aap Nidar patrakar hai, ek dum Sehwag ki tarah .
संभलकर भाई, जान है तो जहान है। जान रही तो
ReplyDeleteरवीश की रिपोर्ट रोज जाती रहेगी।
देवा और उसका दर्द .... पूरे देश में फैले हैं....
ReplyDeleteअच्छा है कोई देवी नहीं मिली....
ReplyDeletebahut khub
ReplyDelete...
रवीश जी ये लोकल टाईप के देवा कम से कम गरीब जनता को पैसे लेकर सर छुपाने के लिऐ छप्पर तथा अश्रय तो दे ही रहे है किंतु जो देवा लोकतंत्र की बड़ी कुर्सियों पर धाक जमाये बैठे है उन्होंने इस देश को लूट कर भी लोकल देवाओं की तरह कोई सुविधा इस देश की प्रजा को उपलब्ध नही ंकरायी है जबकि रोटी कपड़ा मकान सड़क स्वास्थय सुरक्षा बिजली पानी सड़क उपलब्ध कराने के बडे़ बड़े वायदे इन देवाओं द्वारा पिछले साठ सालों से किये जा रहे है इससे अच्छे तो ये लाकल देवा है कम से कम वायदे तो पूरे कर रहे है।
ReplyDeleteDear Ravish bhai apki ptkarita ko salam...........
ReplyDeletedeva jaise log hamare hi nhai hai jo shayad samay ke anusar chal rahe hai..........
wo sochate hain jab desh ka raja aam janta ka koon pee sakta hai vo bhi unhe bina kuch diye to main kyo nahi.........
ye deva jese bhai koi maa ke pet se to nahi janmte...........
inhe kallu se kaliya banaya jata hai............thanx fo great post..............9315888825
sir please manna mat karna ek baar jarur...............
bahut hi badhiya ravish ji, plz keep it up
ReplyDeleteWell presented..Sir agar aap apne aap ko "Fateacher Patrkaar" kahte hain toh shayaad aaj desh ki media ko aap jaise Fateacher patrakaron ki hi zaroorat hai.. Keep writing and exposing the social wounds,Regards.
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