दिल्ली में दिख गई ढेंकी
कभी-कभी घूमते-घूमते ग़ज़ब का अनुभव हो जाता है। बवाना की पुनर्वास कालोनी में ढेंकी के दर्शन हो गए। दिल्ली में ढेंकी के दर्शन हो जायेंगे कभी सोचा नहीं था। कुछ महीने पहले चंद्रभान प्रसाद कह रहे थे कि गांवों से जांता और ढेंकी ग़ायब हो चुके हैं। जांता पर गेहूं और चना पीसा जाता था। बल्कि पीसने की जगह दरने का इस्तमाल होता था। ढेंकी से धान की कूटाई होती थी। धीरे-धीरे। वक्त लंबा होता था तो औरतों ने ढेंकी कुटने के वक्त का संगीत भी रच डाला था। मेरी चचेरी बहन,फुआ और बड़ी मां को खूब गाते देखा है। हम भी जब उधर से गुज़रे तो दस पांच बार ढेंकी चला लिया करते थे। ढेंकी से निकलती चरचराहट की आवाज़ गांव घरों में दोपहर के वक्त के सन्नाटे को अपने तरीके से चीरा करती थी।
हालांकि ढेंकी और जाता पूरी तरह से ग़ायब नहीं हुए हैं मगर गांवों में कम दिखने लगे हैं। मशीन की कूटाई-पिसाई ने न जाने कितने सैंकड़ों साल पुरानी इस तकनीक को ग़ायब कर दिया। ग़नीमत है समाप्त नहीं हो पाई ढेंकी। हम सोचते रहे कि दिल्ली जैसे महानगर में ढेंकी जाता का बात कौन करेगा। मगर महानगर में ढेंकी को देखकर ऐसे लगा जैसे बवाना में डायनासोर देख लिया या फिर अजगर निकल कर किसी के बिस्तरे पर आ गया हो। हैरानी। तीन चार लड़कियां उसी मस्त अंदाज़ में झूमते हुए चावल कूट रही थीं।
अब यही से विश्लेषण सामाजिक टाइप होने लगता है। कई संस्कृतियों वाली पुनर्वास कालोनी में एक पुरानी तकनीक का जगह बनाना। कूटने वाली महिलाएं बांग्ला बोल रही थीं। कूट रही थीं चावल। धान नहीं। महिला ने बताया कि पचास किलो चावल पीसने में तीन घंटे लग जाते हैं। पीसे हुए चावल से वो बस्ती में इडली डोसा बेचती है। हद हो गई। कॉकटेल की। बंगाली औरतें,उत्तर भारतीय ढेंकी और कूटाई-पिसाई दक्षिण भारतीय व्यंजन के लिए। बंगाल में भी ढेंकी का इस्तमाल होता रहा है। बांग्ला में इसका कुछ नाम था जो मैं लिखते वक्त भूल गया। क्या पता यह टेक्नॉलजी पूरे भारत में ही हो। बल्कि होगी ही। बहुत आनंद आया इस ढेंकी को देखकर।
अब तो लगता है गाँव की बहुत सी पुरानी जो गाँव की आवश्यकता थी वे चीजे शहर में ही मिलेगी |भले ही गाँव में घंटो बिजली न रहती हो वे चक्की में गेंहू नहीं पिसेंगे चांवल खा लेंगे यानि की जो श्रम
ReplyDeleteवहांकी पहचान हुआ करता था अब वो सब शहर आ गये है नये ढंग से अपने को स्थापित करने |
जो एकता सरकार नहीं कायम कर पाई वो एक ढेंकी ने कर दिखाया |
बहुत अच्छा लगा ढेंकी और इडली सोसे का मिश्रण |
आभार
कृपया सोसे को डोसे पढ़े \
ReplyDeleteगाँव याद आ गया ..रवीश भाई :))
ReplyDeleteओहो.. क्या चीज ढूँढ के लाये आप.. :)
ReplyDeleteहमें तो ठीक से याद भी नहीं.. बहुत छोटे थे तब घर में ढेंकी हुआ करती थी.. जांता अब भी है..
मजेदार बात यह है कि जांता जैसी मामूली चीज भी हर घर में नहीं होती... पड़ोस की औरतें अग्रिम आरक्षण कराके जांता पर अनाज वगैरह दरने आती हैं.. और दोपहर समय घर की महिलाओं का भी गप-शप में मनोरंजन हो जाता है.. गप-शप के लिए कोइ उपलब्ध न रहने पर जांता दरने वाली महिलाएं गीत गाना शुरू कर देती हैं :)
sahi kaha ravish ji thode din baad to lagega ki sheher se sheher bhi gayab ho jaenge. aapse ek request hai please delhi ke khatm hote cofee house or restaurant culture pe bhi ek report kijie aapak aabhar rahega
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ReplyDeleteजो मजा इसके पीसे आटे की रोटी मे है वो कैप्टन कुक का ताऊ भी नही दे सकता
ReplyDeleteबढ़िया लगा जान कर। मस्त।
ReplyDeleteगाँव याद आ गया ..रवीश जी ...मेरे ननिहाल में ढेंकी थी ,पर पता नहीं अब है भी या नहीं २० साल पहले देखी थी ..!!!
ReplyDeleteरवीश जी आपकी एक रिपोर्ट बाबा रामदेव द्वारा चलाये जा रहे भारत स्वाभिमान यात्रा पर भी होनी चाहिये जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में तथा गॉधीजी के बाद इतना बड़ा ऑदोलन भ्रष्टाचार ओर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कर रहे हैं तथा ये स्वर्ग तथा सेक्स परोसने वाले खबरिया चेनलों के पास इतना वक्त भी नहीं है कि उनकी यात्रा की एक झलक भी दिखाते धिक्कार है ऐसे मीडिया पर। पर आपसे आशा है कि आप अवश्य इस तरफ ध्यान देंगे।
ReplyDeleteRavish Jee Namaskar,
ReplyDeleteDheki ka jikr mere ek bihari dost karte hai, halaki me jharkhand ka hon par us samay tak Dheki se parichay nahi tha, woh Kehte "Santosh jee, kabhi (Dheki Kutal Chawal Khaye hai?) Sabdh aache lagte par swad nahi patta tha , phir mere shadi giridih me hoi aur aap ko bataoo mere Sasural me Dheki hai tab jakar us chawal ka swad mila , jhor wale murge ke sath chawal ka chilka .... swad aparampar kabhi ranchi taraf aana hua aapka tu jaroor aapko bhi taste karonga...
सच बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ गाँव की यादें सामने आती हैं....
ReplyDeleteढेंकी हम भी चलाए हैं अपनी दादी के साथ खूब. एक बार चाउर छांटते वक्त उसकाते हुए मेरी इया (दादी को हम सब भाई बहन इया ही कहा करते थे) की एक उंगली कट गयी थी जिसे बाद में पूरी तरह काटना पड़ा था. रवीश जी आपका तजुर्बा मुझे अपनी इया याद दिया गया जो लगभग याद्दाश्त से बाहर हो चुकी थीं. आपका शुक्रिया.
ReplyDeleteगांव और कसबों से शहर के मुहल्लों तक का सफ़र आम आदमी ने शौकिया कम और मजबूरी से अधिक किया है. देंकी , मौनी , सिकहवली जैसी ज़रूरत के देसी सामान भी गली कूचों मे कभी कभार दिखाई दे जाते हैं . वैसे शहरी अमीरों के लिए ये सजावट का सामान या 'एंटिक' है. राजनीति के किसी महान व्यक्ति की नज़र इस पर इनायत हुई तो शायद यही 'कुटनी' उसका चुनाव चिन्ह बन जाए यह कहना आतिशयोक्ति न होगी.
ReplyDeleteहमने ढेकी पहली बार (अस्सी के दशक में) असम में देखी थी एक गाँव में, और दूसरी बार उसकी केवल तस्वीर, अब!
ReplyDeleteचलिये, हमें भी दर्शन हो गये।
ReplyDeleteवहुविध भारत के एक रूप दर्शन
ReplyDeleteबचपन में गाँव में हमलोग ढेका (हमारे आरा के साइड उसको ढेका ही बोलते हैं) पर चढ़ने के लिए आपस में खूब लड़ते थे. आज की पीढ़ी को तो पता भी नहीं है की ऐसा भी कुछ होता था उन दिनों. एक बार मैं अपने भतीजे को बता रहा था की एक ढेका होता है जिसको एक साइड से पैर से दबाने से वो दूसरी साइड से ऊपर उठ जाता है .. तो उसने बोला की हाँ डस्टबिन भी ऐसा ही होता है :)
ReplyDeletesach me nahi pata ye 'dhenki' kis chidiya ka naam hai...haan 'jata' jaroor dekha bhi hai aur aap hi ki tarah bachpan me paas se gujarte hue,do-chaar round chala deta tha.
ReplyDeletemuje aaj bhe yaad hai jab main chota tha tab hamari nani ke ghar me bhe ek dekhe the.. shayad aaj bhe ho but bahut dino se gaya na..
ReplyDeleteaur humlog us pe chahad ke khelte the,, aur bahut daant padte the.. ke chot lag jaayege.
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anyways bahut achcha laga padh ke
क्या बात है रवीश जी, मैंने तो केवल ढेंकी का नाम ही सुना था. आज देख भी लिया :)
ReplyDeleteanewali pidhi sirf kitabon men dhenki ke bare men padhegi.apki report padhkar meri bhi yad taja ho gai.ek ajib tarah ka sangeet nikalta tha dhenki chalte waqt.hamare bihar men chura bhi dhenki men hi kuta jata tha.dhenki aur janta chlakar mahilayen svasth bhi rahti thi.
ReplyDeleteSir, You write so well...Simple tools & effective work culture..This is what real India is..A blend of cultures in day to day life..A real secular way of life..Keep writing and introducing us back to, our own year old cultural heritage, which still mingles with today's world!
ReplyDeleteDEAR RAVISH I HAVE NOTICED YOU ONLY DO SADISTIC, OR NOSTALGIC TYPE OF REPORTING ESPECIALY IN RAVISH KE REPORT, INDIA IS A EVOLVING COUNTRY, KINDLY SHOW GOOD WORK PEOPLE IS DOING FOR SOCIETY. BEING A EXECUTIVE DIRECTOR OF NDTV YOU HAVE GREAT RESPONSIBILITY.KINDLY SHOW SOMETHING WHICH SHOULD MOTIVATE PEOPLE. LOT OF YOUNG PEOPLE WATCH YOUR SHOW. AND FOR GOD SAKE CHANGE YOUR GUESTS IN PRIME TIME , I AM TIRED OF SEEING SAME FACES DAILY AND LISTENING THEIR COSERVATIVE STYLE OF RESPONDING , ESPECIALY MR JAVEDEKAR OF BJP AND OTHER FROM CONGRES I ,
ReplyDeleteI have not seen The Mahatma...but i have seen YOU SIR ANNA ..today I am fortunate enough to be a part of ur Satyagrah ....Anna your name indicates the true fact that you are not One but Thousands (Hazare)....my heart beats for my country and now I want to see it aa a corruption FREE INDIA....United we stands for U and our beloved country...Jai Hind!!!!!
ReplyDeleteye to app hai sir jo kahi say bhi report nikal laatay hai , i m really very happy to see ur report yesterday 19/12/2011 , which is related with muslim reservation quota in u.p ,,,,,,,,,,,,
ReplyDeletethnx sir
this is nazir reporting from patna like U ( i hope so )
no any channel is like NDTV
ReplyDeleteBECAUSE some body says "NDTV NEWS IS A WORLD MIROR"
ravish sir u r great can i meet in delhi , plz
nazir anwer
b.com part 2
magadh university,
patna , ( bihar ) 9334976747
ravish bai is it possible can i come in debate
ReplyDeletegaon ki yaad aa gai...
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