एक अर्से से दरियागंज जा रहा हूं। प्रिंस पान की दुकान देखता रहा हूं। लेकिन पंद्रह साल बाद आज सड़क पार कर गया। तस्वीरें ली और प्रिंस पान वाले से बात की। दुकान की सजावट देख कर लगा कि ये लोग अपने काम को कितनी गंभीरता से लेते हैं। चबाकर थूक दिये जाने वाले पान की सज्जा देखकर हैरान हुआ। अंठावन साल से ये दुकान चल रही है। पूछा कि टेंशन फ्री पान क्या है। जवाब मिला कि मुंह में छाले पड़ जाएं तो टेंशन फ्री खाने से आराम होता है। हर पान खास लेबल के साथ पैक किया हुआ था। सादा पान खरीदा। पंद्रह रुपये का एक। रैपर हटाया तो चांदी का खूबसूरत वर्क दिखा। पान बहुत अच्छा था। तभी प्रिंस पान का यह नारा अद्भुत है- हम क्वालिटी बेचते हैं। लोग तेल बेच रहे हैं और ये क्वालिटी बेच रहे हैं। कम बड़ी बात नहीं है।
अरे ये चकाचौध तो ऐसी की बनारसी पान सचमुच तेल बेचने चला गया ! कभी दिल्ली आऊँ तो दुकान पर ले जाकर खिलायिगा न ? और आपका हक़ तो याहं कब का सुरक्षित हो चुका है !
क्या संयोग है। मैं भी आज करीब डेढ़ साल बाद दरियागंज में लगी पुरानी किताबों की दूकानों के आस-पास भटक रहा था। मेरी भी जाने क्या इच्छा हुई कि आज पान खाया जाए। मैंने पान खाया तो नहीं लेकिन बंधवा लिया। गोलचा के पास ही पानी में उबला हुआ पानी फल जिसे कि मां इसोरल सिंघाड़ा कहा करती है,आधा किलो खरीदा। कमरे तक पहुंचकर थक गया। आराम से सिंघाड़े छीले। उस पर फ्रूट चाट डाला और नमक निचोड़े और पान खाया। लगा कि आधे घंटे के लिए दिल्ली से बाहर होकर जी रहे हैं।.
पान तो भाई मैंने भी कई वर्ष खाया - देखा-देखी, जब तक सुपारी ने दांत न तोड़ दिए! अब पान खाने वालों की लाल जिव्हा (जीभ) देख कर लगा क्यूँ माँ काली की जुबान लाल दिखाई जाती है...
मेरे एक ताऊजी के लड़के बनारस में पढ़े और वहीँ से उन्हें पान की आदत पड़ी. उसे छोड़ने के लिए उन्होंने 'पान-बहार' खाना शुरू किया, और अब ७० वर्ष की आयु से कभी-कभी गले का ऑपरेशन करवाते हैं .यह तो शुक्र है कि कैंसर नहीं निकला...
"हर चमकीली वास्तु सोना नहीं होती!"
और गले में प्राचीन हिन्दुओं में शुक्र ग्रह का सार माना और केवल नीलकंठ शिवा को ही गले में विष धारण करने में सक्षम माना :)
आफिस के बगल में ही है दरियागंज। किसी दिन समय मिला तो देखते हैं पान का जलवा। वैसे तो बनारस छोड़ने के बाद भारत के किसी जिले में मुझे बेहतरीन पान नहीं मिला, हो सकता है कि वहां का पान मेरे मुंह लग गया हो, इसलिए ऐसा लगता हो। अब तो पान छूट सा गया है, क्योंकि कहीं और का पान खाकर मूड खराब हो जाता है।
ravish ji shayad aapne banaras ka pan nahi khaya wo 1.5rs ka pan jisme chakachaundh nahi hoti na hi koi tagline lekin pan ki jo definition hai use satisfy karti hai..aap kisi banaras wale paan premi ko batayenge use anand nahi aayega..pan ek sukun hai na ki dikhawa ...waise mai paan nahi khata..:)
नार्थ एवेन्यू में भी एक पान भंडार है जो क्वालिटी ही नहीं बल्कि पोलिटिकल स्टेटस भी बेचता है! जीं हां, पांडे पान भंडार में आपको पांच रुपये से लेकर डीलक्स मार्का पान भी मिलेगा। पान का दुकानदार पांडे ठसक में रहता है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मर्सडीज में आए हैं या किसी दूसरे महान नाम वाली गाड़ी में। उसके दुकान में इंदिरा गांधी,डा राधाकृष्णन और न जाने कौन-कौन पान खा चुके हैं। उसने बकायदा उनका फोटो फ्रंट में ही लगा रखा है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कोई वहां पान खाता है तो मन ही मन अपनी औकात को नाप रहा है! यूं,पांडे पान भंडार के पान की रेंज 5 रुपये से शुरु होती है जो तीन अंकों तक जाती है। लेकिन इसकी खासियत ये है कि अगर आप उस दुकान को नहीं जानते हैं तो लोग दिल्ली के पोलिटिकल सर्किल में आपको फ्रेसर की निगाह से जरुर देखेंगे!
क्वालिटी के नाम पर ही तो सबकुछ बिकता है... क्वालिटी के नाम पर ही जनता बेवकूफ़ बनती है.. और क्वालिटी के नाम पर ही नकली माल परोसा जाता है... वाह रे क्वालिटी...
क्वालिटी शब्द अंग्रेजी का है...प्राचीन भारतीय सभ्यता की मान्यता के अनुसार मानव जन्म केवल भगवान् को पाने के लिए ही हुवा है जिसे आप किसी भी माध्यम से पा सकते हैं, कभी भी, और कहीं भी, कोई भी कार्य करते - भले ही वो झाडू लगाने का ही क्यूं न हो...अंग्रेजी में भी एक कहावत है, "They also serve who just stand and stare."
अरे ये चकाचौध तो ऐसी की बनारसी पान सचमुच तेल बेचने चला गया !
ReplyDeleteकभी दिल्ली आऊँ तो दुकान पर ले जाकर खिलायिगा न ?
और आपका हक़ तो याहं कब का सुरक्षित हो चुका है !
आशा है की आप पान की पीक से सड़कों, दीवारों, गलियारों, गाड़ियों की खूबसूरती नहीं बढाते होंगे. आपके स्टूडियो के गलियारों के क्या हाल हैं?
ReplyDeleteपान एक - रूप अनेक। इसे कहते हैं क्वालिटी के नाम पर बाजारवाद।
ReplyDeleteवैसे मैं पिछले ३५ बर्षों से नियमित पान खा रहा हूँ पर ऐेस दुर्लभ पान नहीं मिला।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
स्वादिष्ट पोस्ट
ReplyDeleteमज़ा आया..........
chaliye kahin to QUALITY bachi hui hai.
ReplyDeleteअब पान के शौकीन तो हम भी हैं। पर हमारा अपना ब्रांड है। फिर भी दिल्ली के सफर में इस दुकान को आजमाने की कोशिश करेंगे।
ReplyDeleteरवीस जी
ReplyDeleteसादर वन्दे!
आपने पानवाले का प्रचार करके उसके दोस्ती का हक अदा कर दिया!
अच्छी पोस्ट, साधुवाद
रत्नेश त्रिपाठी
क्या संयोग है। मैं भी आज करीब डेढ़ साल बाद दरियागंज में लगी पुरानी किताबों की दूकानों के आस-पास भटक रहा था। मेरी भी जाने क्या इच्छा हुई कि आज पान खाया जाए। मैंने पान खाया तो नहीं लेकिन बंधवा लिया। गोलचा के पास ही पानी में उबला हुआ पानी फल जिसे कि मां इसोरल सिंघाड़ा कहा करती है,आधा किलो खरीदा। कमरे तक पहुंचकर थक गया। आराम से सिंघाड़े छीले। उस पर फ्रूट चाट डाला और नमक निचोड़े और पान खाया। लगा कि आधे घंटे के लिए दिल्ली से बाहर होकर जी रहे हैं।.
ReplyDeleteपान तो मुझे बहुत रास आता है या युं कह ले दिमाग का ताला एक बेहतरीन गिलौरी मुंह में रखने से खुल जाता है!
ReplyDeletehttp://manhanvillage.wordpress.com
पान तो भाई मैंने भी कई वर्ष खाया - देखा-देखी, जब तक सुपारी ने दांत न तोड़ दिए! अब पान खाने वालों की लाल जिव्हा (जीभ) देख कर लगा क्यूँ माँ काली की जुबान लाल दिखाई जाती है...
ReplyDeleteमेरे एक ताऊजी के लड़के बनारस में पढ़े और वहीँ से उन्हें पान की आदत पड़ी. उसे छोड़ने के लिए उन्होंने 'पान-बहार' खाना शुरू किया, और अब ७० वर्ष की आयु से कभी-कभी गले का ऑपरेशन करवाते हैं .यह तो शुक्र है कि कैंसर नहीं निकला...
"हर चमकीली वास्तु सोना नहीं होती!"
और गले में प्राचीन हिन्दुओं में शुक्र ग्रह का सार माना और केवल नीलकंठ शिवा को ही गले में विष धारण करने में सक्षम माना :)
पान की क्वालिटी तो ठीक है लेकिन उसमे डले पान मसाले और कत्था-चूना कैसा था?
ReplyDeleteआफिस के बगल में ही है दरियागंज। किसी दिन समय मिला तो देखते हैं पान का जलवा। वैसे तो बनारस छोड़ने के बाद भारत के किसी जिले में मुझे बेहतरीन पान नहीं मिला, हो सकता है कि वहां का पान मेरे मुंह लग गया हो, इसलिए ऐसा लगता हो। अब तो पान छूट सा गया है, क्योंकि कहीं और का पान खाकर मूड खराब हो जाता है।
ReplyDeleteravish ji shayad aapne banaras ka pan nahi khaya wo 1.5rs ka pan jisme chakachaundh nahi hoti na hi koi tagline lekin pan ki jo definition hai use satisfy karti hai..aap kisi banaras wale paan premi ko batayenge use anand nahi aayega..pan ek sukun hai na ki dikhawa ...waise mai paan nahi khata..:)
ReplyDeleteबनारस का पान खाया है। उसका मुकाबला नहीं हो सकता। लेकिन मैं पान का विशेषज्ञ नहीं। कभी कभार खा लेता हूं। उस हिसाब से अच्छा था।
ReplyDeleteजो "मीठा" या "सादा" पान खाते हैं उन्हें 'पान खाने वाले' नहीं माना जाता...और यह बनाती है तम्बाखू खाने की आदत और, अंततोगत्वा, परेशानी का महा कारण...
ReplyDeleteनार्थ एवेन्यू में भी एक पान भंडार है जो क्वालिटी ही नहीं बल्कि पोलिटिकल स्टेटस भी बेचता है! जीं हां, पांडे पान भंडार में आपको पांच रुपये से लेकर डीलक्स मार्का पान भी मिलेगा। पान का दुकानदार पांडे ठसक में रहता है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मर्सडीज में आए हैं या किसी दूसरे महान नाम वाली गाड़ी में। उसके दुकान में इंदिरा गांधी,डा राधाकृष्णन और न जाने कौन-कौन पान खा चुके हैं। उसने बकायदा उनका फोटो फ्रंट में ही लगा रखा है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कोई वहां पान खाता है तो मन ही मन अपनी औकात को नाप रहा है! यूं,पांडे पान भंडार के पान की रेंज 5 रुपये से शुरु होती है जो तीन अंकों तक जाती है। लेकिन इसकी खासियत ये है कि अगर आप उस दुकान को नहीं जानते हैं तो लोग दिल्ली के पोलिटिकल सर्किल में आपको फ्रेसर की निगाह से जरुर देखेंगे!
ReplyDeletemuh me pani aa gaya
ReplyDeleteसही है कम से कम कोई तो है जो क्वालिटी बेचता है
ReplyDeleteआपने पान की याद दी. अभी जाता हूं पान खाकर आता हूं. वैसे अबके दिल्ली जाऊंगा तो प्रिंस का पान जरूर खाकर देखूंगा.
ReplyDeleteहिंदी फिल्म में, मेरी याद से, पान खाने को बढावा राज कपूर ने "पान खायें सैंयाँ हमारो" और अमिताभ बच्चन ने "खइके पान बनारस वाला" गानों से दिया...
ReplyDeleteक्वालिटी के नाम पर ही तो सबकुछ बिकता है...
ReplyDeleteक्वालिटी के नाम पर ही जनता बेवकूफ़ बनती है..
और क्वालिटी के नाम पर ही नकली माल परोसा जाता है...
वाह रे क्वालिटी...
क्वालिटी शब्द अंग्रेजी का है...प्राचीन भारतीय सभ्यता की मान्यता के अनुसार मानव जन्म केवल भगवान् को पाने के लिए ही हुवा है जिसे आप किसी भी माध्यम से पा सकते हैं, कभी भी, और कहीं भी, कोई भी कार्य करते - भले ही वो झाडू लगाने का ही क्यूं न हो...अंग्रेजी में भी एक कहावत है, "They also serve who just stand and stare."
ReplyDelete"मानो तो गंगा नहीं तो बहता पानी" )
मेरा है पान...
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