हम क्वालिटी बेचते हैं











एक अर्से से दरियागंज जा रहा हूं। प्रिंस पान की दुकान देखता रहा हूं। लेकिन पंद्रह साल बाद आज सड़क पार कर गया। तस्वीरें ली और प्रिंस पान वाले से बात की। दुकान की सजावट देख कर लगा कि ये लोग अपने काम को कितनी गंभीरता से लेते हैं। चबाकर थूक दिये जाने वाले पान की सज्जा देखकर हैरान हुआ। अंठावन साल से ये दुकान चल रही है। पूछा कि टेंशन फ्री पान क्या है। जवाब मिला कि मुंह में छाले पड़ जाएं तो टेंशन फ्री खाने से आराम होता है। हर पान खास लेबल के साथ पैक किया हुआ था। सादा पान खरीदा। पंद्रह रुपये का एक। रैपर हटाया तो चांदी का खूबसूरत वर्क दिखा। पान बहुत अच्छा था। तभी प्रिंस पान का यह नारा अद्भुत है- हम क्वालिटी बेचते हैं। लोग तेल बेच रहे हैं और ये क्वालिटी बेच रहे हैं। कम बड़ी बात नहीं है।

23 comments:

  1. अरे ये चकाचौध तो ऐसी की बनारसी पान सचमुच तेल बेचने चला गया !
    कभी दिल्ली आऊँ तो दुकान पर ले जाकर खिलायिगा न ?
    और आपका हक़ तो याहं कब का सुरक्षित हो चुका है !

    ReplyDelete
  2. आशा है की आप पान की पीक से सड़कों, दीवारों, गलियारों, गाड़ियों की खूबसूरती नहीं बढाते होंगे. आपके स्टूडियो के गलियारों के क्या हाल हैं?

    ReplyDelete
  3. पान एक - रूप अनेक। इसे कहते हैं क्वालिटी के नाम पर बाजारवाद।

    वैसे मैं पिछले ३५ बर्षों से नियमित पान खा रहा हूँ पर ऐेस दुर्लभ पान नहीं मिला।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. स्वादिष्ट पोस्ट

    मज़ा आया..........

    ReplyDelete
  5. अब पान के शौकीन तो हम भी हैं। पर हमारा अपना ब्रांड है। फिर भी दिल्ली के सफर में इस दुकान को आजमाने की कोशिश करेंगे।

    ReplyDelete
  6. रवीस जी
    सादर वन्दे!
    आपने पानवाले का प्रचार करके उसके दोस्ती का हक अदा कर दिया!
    अच्छी पोस्ट, साधुवाद
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete
  7. क्या संयोग है। मैं भी आज करीब डेढ़ साल बाद दरियागंज में लगी पुरानी किताबों की दूकानों के आस-पास भटक रहा था। मेरी भी जाने क्या इच्छा हुई कि आज पान खाया जाए। मैंने पान खाया तो नहीं लेकिन बंधवा लिया। गोलचा के पास ही पानी में उबला हुआ पानी फल जिसे कि मां इसोरल सिंघाड़ा कहा करती है,आधा किलो खरीदा। कमरे तक पहुंचकर थक गया। आराम से सिंघाड़े छीले। उस पर फ्रूट चाट डाला और नमक निचोड़े और पान खाया। लगा कि आधे घंटे के लिए दिल्ली से बाहर होकर जी रहे हैं।.

    ReplyDelete
  8. पान तो मुझे बहुत रास आता है या युं कह ले दिमाग का ताला एक बेहतरीन गिलौरी मुंह में रखने से खुल जाता है!
    http://manhanvillage.wordpress.com

    ReplyDelete
  9. पान तो भाई मैंने भी कई वर्ष खाया - देखा-देखी, जब तक सुपारी ने दांत न तोड़ दिए! अब पान खाने वालों की लाल जिव्हा (जीभ) देख कर लगा क्यूँ माँ काली की जुबान लाल दिखाई जाती है...

    मेरे एक ताऊजी के लड़के बनारस में पढ़े और वहीँ से उन्हें पान की आदत पड़ी. उसे छोड़ने के लिए उन्होंने 'पान-बहार' खाना शुरू किया, और अब ७० वर्ष की आयु से कभी-कभी गले का ऑपरेशन करवाते हैं .यह तो शुक्र है कि कैंसर नहीं निकला...

    "हर चमकीली वास्तु सोना नहीं होती!"

    और गले में प्राचीन हिन्दुओं में शुक्र ग्रह का सार माना और केवल नीलकंठ शिवा को ही गले में विष धारण करने में सक्षम माना :)

    ReplyDelete
  10. पान की क्वालिटी तो ठीक है लेकिन उसमे डले पान मसाले और कत्था-चूना कैसा था?

    ReplyDelete
  11. आफिस के बगल में ही है दरियागंज। किसी दिन समय मिला तो देखते हैं पान का जलवा। वैसे तो बनारस छोड़ने के बाद भारत के किसी जिले में मुझे बेहतरीन पान नहीं मिला, हो सकता है कि वहां का पान मेरे मुंह लग गया हो, इसलिए ऐसा लगता हो। अब तो पान छूट सा गया है, क्योंकि कहीं और का पान खाकर मूड खराब हो जाता है।

    ReplyDelete
  12. ravish ji shayad aapne banaras ka pan nahi khaya wo 1.5rs ka pan jisme chakachaundh nahi hoti na hi koi tagline lekin pan ki jo definition hai use satisfy karti hai..aap kisi banaras wale paan premi ko batayenge use anand nahi aayega..pan ek sukun hai na ki dikhawa ...waise mai paan nahi khata..:)

    ReplyDelete
  13. बनारस का पान खाया है। उसका मुकाबला नहीं हो सकता। लेकिन मैं पान का विशेषज्ञ नहीं। कभी कभार खा लेता हूं। उस हिसाब से अच्छा था।

    ReplyDelete
  14. जो "मीठा" या "सादा" पान खाते हैं उन्हें 'पान खाने वाले' नहीं माना जाता...और यह बनाती है तम्बाखू खाने की आदत और, अंततोगत्वा, परेशानी का महा कारण...

    ReplyDelete
  15. नार्थ एवेन्यू में भी एक पान भंडार है जो क्वालिटी ही नहीं बल्कि पोलिटिकल स्टेटस भी बेचता है! जीं हां, पांडे पान भंडार में आपको पांच रुपये से लेकर डीलक्स मार्का पान भी मिलेगा। पान का दुकानदार पांडे ठसक में रहता है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मर्सडीज में आए हैं या किसी दूसरे महान नाम वाली गाड़ी में। उसके दुकान में इंदिरा गांधी,डा राधाकृष्णन और न जाने कौन-कौन पान खा चुके हैं। उसने बकायदा उनका फोटो फ्रंट में ही लगा रखा है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कोई वहां पान खाता है तो मन ही मन अपनी औकात को नाप रहा है! यूं,पांडे पान भंडार के पान की रेंज 5 रुपये से शुरु होती है जो तीन अंकों तक जाती है। लेकिन इसकी खासियत ये है कि अगर आप उस दुकान को नहीं जानते हैं तो लोग दिल्ली के पोलिटिकल सर्किल में आपको फ्रेसर की निगाह से जरुर देखेंगे!

    ReplyDelete
  16. सही है कम से कम कोई तो है जो क्वालिटी बेचता है

    ReplyDelete
  17. आपने पान की याद दी. अभी जाता हूं पान खाकर आता हूं. वैसे अबके दिल्‍ली जाऊंगा तो प्रिंस का पान जरूर खाकर देखूंगा.

    ReplyDelete
  18. हिंदी फिल्म में, मेरी याद से, पान खाने को बढावा राज कपूर ने "पान खायें सैंयाँ हमारो" और अमिताभ बच्चन ने "खइके पान बनारस वाला" गानों से दिया...

    ReplyDelete
  19. क्वालिटी के नाम पर ही तो सबकुछ बिकता है...
    क्वालिटी के नाम पर ही जनता बेवकूफ़ बनती है..
    और क्वालिटी के नाम पर ही नकली माल परोसा जाता है...
    वाह रे क्वालिटी...

    ReplyDelete
  20. क्वालिटी शब्द अंग्रेजी का है...प्राचीन भारतीय सभ्यता की मान्यता के अनुसार मानव जन्म केवल भगवान् को पाने के लिए ही हुवा है जिसे आप किसी भी माध्यम से पा सकते हैं, कभी भी, और कहीं भी, कोई भी कार्य करते - भले ही वो झाडू लगाने का ही क्यूं न हो...अंग्रेजी में भी एक कहावत है, "They also serve who just stand and stare."

    "मानो तो गंगा नहीं तो बहता पानी" )

    ReplyDelete