आश्रम जाम का एकांत- तीन

घर पहुंचना नहीं चाहता था। दफ्तर रूकना नहीं चाहता था। वो कहीं और रूकना चाहता था। लेकिन दिल्ली के तमाम रास्ते रूके पड़े थे। देर से घर पहुंचने से पहले के वक्त को अपने हिसाब से गुज़ारने की ख़्वाहिश उसे आश्रम चौक पर ले आई। मूलचंद से पहले लाजपत नगर फ्लाईओवर चढ़ा फिर उससे लुढ़कते हुए आश्रम फ्लाईओवर पर। कार का स्टीरियो मद्धम मद्धम संगीत को उसकी रूह में उतार रहा था। घर दफ्तर के तनाव भरे लम्हों के बीच आज जाम ने उसे वो एकांत दिया जिसकी तलाश में उसने न जाने कितनी सिगरेट पी, कितने दोस्तों को फोन किया।

तारे ज़मीन पर का गाना बज रहा था। पर मैं अंधेरे से डरता हूं मैं मां। राकेश सुन रहा था और रो रहा था। यह गाना उसे आश्रम से उड़ा कर सीधे पटना के उस आंगन में ले जा चुका था जहां उसके घुटनों ने अभी रेंगने से फुर्सत पाकर चलना सीखा था। वो अपनी कमज़ोरियों और परेशानियों को उसी तरह कहना चाहता था जैसे वह बचपन में मां को देखते ही बक देता था। मम्मी देखो न राजू ने मार दिया। मैं गिर गया और चोट आ गई। खूब रोता रहा। अब वह किसी से नहीं कह पाता। दोस्तों से नहीं। पत्नी से नहीं। राकेश अपने भीतर के जाम से निकल रहा था। उसके भीतर एक ऐसा रास्ता खाली हो रहा था...जहां उसका मन एक नई रफ्तार पकड़ने के लिए बेचैन था। तभी बम बम बोले...मस्ती में डोले का गाना आते ही वह झूमने लगा। अंगुलियों से स्टीयरिंग पर थाप देने लगा था। उसकी कार वहीं खड़ी थी जहां थी। इस बीच सिर्फ एक लंबा वक्त ही गुज़रा था लेकिन इससे भी कम समय में राकेश एक लंबा सा सफर तय कर वापस जाम में आ चुका था। रोते रोते उसकी आंखें साफ हो चुकी थीं। जैसे किसी ने वाइपर चला दी हो और आंसूओं के बूंद और धूंध पोछी जा चुकी हो। आश्रम के जाम में ऐसे कितने एकांतों में लोग अपने भीतर खुद के लिए रास्ता बनाते होंगे। तभी रेडियो जौकी इतना मुस्कुराता रहता है।
जारी...

10 comments:

  1. एकांतों में लोग अपने भीतर खुद के लिए रास्ता बनाते होंगे।
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    हाँ ,सही बात है । और यह होना भी चाहिये । और ये भीतर की यात्रा चलती रहे इसके लिये एकांत की चाह भी बनी रहनी चाहिये । ज़रूरी यह है कि ऐसे एकांत के लिये अपने अपनों की ज़रूरत को ध्यान मे रखना ज़रूरी है ,जिसे हम अक्सर भूल जाते है ।
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    ऐसे एकांत आपको मिलते रहें ,यही कामना :-)

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  2. रवीश जी दिल्ली और पटना की दूरी में यादों के ना जाने कितने पन्ने पलटे जा सकते हैं...पलटते रहिये..अनुभवों और यादो का बेहतरीन सिलसिला चल निकला है...

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  3. Jo bahar hai
    Wo hi bhitar bhi hai

    Satyam Shivam Sunderam
    Man changa to katauthi mein Ganga
    Kah gaye gyani-dhyani

    Ek na ek din ant to nischit hai
    Yani chir-nidra ani hi ahi sabko

    Ekant mein swapna dikhte hein
    Kintu vicharon ke roop mein
    Jaise ardhamrit awastha mein
    Athva nidra mein
    Swapna bhi lagbhag nischit hein
    Bollywood film ki tarah

    Kintu bata na saka
    Koi channel wala
    Ki udgam unka hai kahan
    Shayad apne bhitatar ho
    Andhera hai jahan shayad
    Kaliyuga hai kyunki!

    “Tamaso ma jyotirgamaya”
    Yani “Lead the kindly light”
    NDTV ke bus ka hai?!

    Ab to Shiva ke bhooton ka
    Gabba mein nach bhi ho liya
    Holi bhi kareeb hai!

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  4. वाकई में रवीश भाई, कभी कभी भीड में आदमी इतना अकेला हो जाता है कि वह खुद में खो जाता है। रही बात तारे जमीन पर के इस गीत की तो यह वाकई में इतना भावुक है कि मैं भी रो पडा था, मां की याद उसी तरह मुझे भी आई थी जैसे आपके पात्र राकेश को। एक बात और जो मैं आपसे कहना चाहूंगा कि कस्बा में आते ही उस्ताद नुसरत फतेह अली का गाना जो सकून देता है कि सबकुछ भूल जाता हूं। इसके लिए आपका शुक्रिया। आपके उपन्यास के अगले अंक का इंतजार रहेगा। वैसे ही जैसे आजकल महिलाएं अपने फेवरेट सीरियल का इंतजार करती हैं। खुदा हाफिज

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  5. वाह,
    आश्रम के बिल्कुल करीब ही रहता हूँ, इसीलिए यह लेख पढने के साथ-साथ मेरी नज़रों में भी एक आश्रम उभरता रहता है...कई बार पढ़ चुका हों.........उम्मीद है आपका उपन्यास आह्रम के जाम जितना ही लंबा होगा.....अविनाश जी, आप ऐसे ही उकसाते रहे रवीश जी को.....और आ भी लिखें....दिल्ली में जाम के कई चौक हैं.....
    आज टी.वी. पर आपकी स्क्रिप्ट की हुई मेरठ वाला feature देख रहा था..... जब देख रहा था टैब ही समझ गया था कि इसमें आपका टच है.....

    निखिल आनंद गिरि

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  6. मेरा सफ़र रोज़ाना नोयडा सेक्टर 63 से शुरू होकर पंचशील इन्क्लेव पर ख़त्म होता है। ये सफ़र मेरा पतली-दुबली, मरियल सी ट्रेन्डी पर होता है लेकिन होता है दिलचस्प क्योंकि भले ही आप अकेले सफ़र कर रहे हों लेकिन फिर भी आपके साथ होते हैं ढेर सारे विचार जो आपके लिए कभी परेशानी का सबब बनते हैं तो कभी प्रेरणा। उन विचारों के उधेड़बुन में भटकते हुए, झुंझलाते हुए और फ्लाईओवर पर कभी ख़ुद को उड़ता हुआ महसूस करके हम अपनी मंज़िल पर पँहुच ही जाते हैं।
    स्मृति

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  7. Ravishji we are waiting for your next episode. Basically I am also trying to find such an silence in myself. Your writing help me to go inward. Thanks

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  8. प्रणाम,
    कृपया अपने ब्लॉग पर रंगकर्मी भी शामिल करें ताकि आपके विचार जानने वाले पाठक इस पर भी नज़र दौड़ा सकें...... इसके संचालक परवेज़ सागर जी हैं जो आज तक मे लम्बा समय बिताने के बाद सीएनईबी से जुड़े हैं। श्री सागर उत्तर प्रदेश के जानेमाने टीवी पत्रकारों मे शामिल हैं। उनके ब्लॉग का लिंक www.rangkarmi.blogspot.com है।
    उम्मीद है आपका सहयोग मिलेगा।

    सादर

    आपका नसीम

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  9. ravish ji apke blog par ye mer pahla comment hai.
    apke blogs main aksar padhta hoon par tare jameen par ke is gane ke jikra ne mujhe comment likhane par majboor kiya hai..


    is kadi ke agle lekh ka besabri se intezar rahega

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  10. sir ab aage ke liye kab tak intezar kren?
    book stals par kab tak aa jayegi ye book?

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