सिथेंटिक साड़ी का घूंघट
गांव की औरतों के साथ घूंघट पर बहस चल रही थी। महिलाओं ने कई प्रसंग सुनाने शुरू कर दिये। एक ने कहा कि सिथेंटिक साड़ी के घूंघट से दिक्कत नहीं होती। घूंघट के भीतर से आप बाहर की दुनिया साफ साफ देख सकते हैं। सूती साड़ी या पुरानी मोटी साड़ी के घूंघट से बहुत दिक्कत होती थी। बाहर कुछ दिखता ही नहीं था। सर नीचे कर चलना पड़ता था ताकि कम से कम ज़मीन दिख जाए। सिथेंटिक साड़ी आने से आप नाक की सीध में चल सकती हैं। देख सकती है कि कौन किधर खड़ा है और उसके चेहरे की प्रतिक्रिया क्या है। लेकिन सिथेंटिक के पारदर्शी होने से दिक्कतें भी खड़ी हो जाती हैं। एक प्रसंग में पता चला कि एक नई नवेली दुल्हन ने ससुराल में घूंघट के भीतर किसी की बात पर मुंह चिढ़ा दी। पास खड़ी महिलाओं ने साफ साफ देख लिया कि घूंघट के भीतर दुल्हन ने मुंह बिदका दिये हैं। बस बवाल मच गया। तब एक महिला ने उसे सलाह दी कि ऐसे वक्त में सिथेंटिक की बजाय गार्डन बरेली की साड़ी पहना करो। मैंने पूछा इसमें क्या खास है तो जवाब मिला कि मोटी होती है। बाहर से कोई अंदर नहीं देख सकता। किसी ने सोचा है घूंघट के भीतर औरतें के चेहरे का भाव कैसे कैसे बदलता होगा?
"घूँघट" की आड़ से किसी को मुह बिद्काना भी एक कला है ! पर बाज़ार मे नाचने कूद ही गए तो फ़िर कैसा "घूँघट" ?
ReplyDeleteहर किसी के नसीब मे गार्डन वरेली वाली साडी नही होती है ! अब वो "दुल्हन" सिन्ठेतीक वाली साडी का ही सहारा लेगी , न - मुह तो बिद्काना ही है - अब कोई देखे या न देखे - "दुल्हन" को किसी की परवाह नही -
आप मे गजब की प्रतिभा है - भगवान् न करे - किसी की नज़र लगे - बस बेवजह घटिया विषय को ना उठाएं - मन मे कोई तूफान आए भी - मजबूत इरादों से उसे दबा लें !
TRP की दबाब के चक्कर मे कुछ भी न लिखें !
"समाज" को आप से बहुत आशा है ! "प्रतिभा" बहुत लोगों के पास होता है - लेकिन भगवान् "अवसर" बहुत कम को देते हैं - आप से ज्यादा प्रतिभावान लोग सड़क के धूल चाट रहे हैं - आप भाग्यशाली हैं - "अवसर" को "समाज हित" मे लगाएं !
आपका शुभचिंतक !
"गाँव की याद ताजा हो गयी - धन्यवाद "
ReplyDeleteऊपर वाले भइया वाला कोमेंट - जीलेबी की तरह क्यों लिख रहे हैं ? चन्दा इकठ्ठा कर के इनका इलाज करवाना चाहिए !
घूँघट में किसी महिला को हाल के वर्षो में देखा याद नहीं आता. धूप से बचने के लिए दुपट्टा जरूर इस्तेमाल होता है, बाकि शहर क्या हमारे गाँव से भी घूँघट गायब हो चुका है.
ReplyDelete@ Anti ji ,
ReplyDeleteghoonghat par ek prashnchihn is post ki undertone hai . use samajhiye .
ghoonghat ya parda hate to samaaj ke ek bade hisse ka jeevan sudhar jayega .
yah saamajik chinta hee hai mere hisaab se .
baki harek ka apna nazariya !
@ Sanjay ,
ReplyDeletegayab nahee huaa hai jee , mai apne pati ke gaanv chalee jaaoon to haath bhar kaa ghoonghjat lenaa hogaa .
सुजाता आपको भी..?
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