इनायत अली ज़ैदी जामिया विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हैं। उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एक सेमिनार में सोहबत करने का मौका मिला। इनायत अली साहब जोधा अकबर के सलाहाकार इतिहासकारों में भी हैं। इन्होंने कई बातें ऐसी बताईं जिन्हें दुबारा से जानकर लगा कि इतिहास के पन्नों में अभी कितना खजाना बाकी है। इससे पहले कि मैं उनकी बातों को भूल जाऊं, कोशिश है कि उन्हें बिन्दुवार यहां पेश कर दिया जाए
१.अकबर से पहले भी राजपूत राजाओं और मुग़लों के बीच शादियां हुआ करती थीं। इस तरह की शादियां संप्रभु सत्ता और अधीनस्थ सत्ता के बीच हुआ करती थी। धर्म आड़े नहीं आता था। सत्ता को बचाए रखने के लिए राजपूतों ने जाट और मीणा ज़मींदारों के यहां भी अपनी बेटियों की शादी की।
२.भारमल के अलावा अन्य राजपूतों ने अपनी बेटियों की शादी अकबर से की थी। अकबर की ३४ शादियों में से २१ शादी राजपूत परिवारों में हुई थी अकबर के मनसबदारों में ज़्यादातर राजपूत मनसबदार थे। कछवाहा राजपूत के मनसबदार।
३. अकबर की खूबी यही थी कि उसने धर्म परिवर्तन नहीं कराया था।
४. हरम में राजपूत स्त्रियों के वचर्स्व के कई उल्लेख मिलते हैं। एक उल्लेख में मथुरा का एक ब्राह्मण पैगम्बर को गालियां देता है। उस वक्त बहस चलती है कि ब्राह्मण को मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए। अकबर विरोध करता है और कई दिनों तक फैसला टाल देता है। उस वक्त बदायूंनी लिखता है कि अकबर पर हरम से दबाव था। जबकि ऐसा भी था। राजपूत स्त्रियों ने अकबर पर दबाव बढ़ाया कि ब्राह्मण को नहीं मारा जाना चाहिए। अकबर का दरबारी अब्दुल नबी भी मौत की सज़ा की मांग करता रहा। हार कर अकबर ने ब्राह्मण को मौत की सज़ा तो दी लेकिन अब्दुल नबीं को दरबार से हटा दिया।
५.अकबर के काल में एक विधवा के सती होने पर काफी हंगामा हुआ। अकबर सती होने से रोकना चाहता था। वो अपने साथ कई राजपूत राजाओं को लेकर उस जगह पर गया जहां सती के लिए विधवा तैयार बैठी थी। लोग उत्साह में थे और सती होते देखना चाहते थे। अकबर के हरम से दबाव था कि इसे सती होने से रोका जाना चाहिए। राजपूत राजाओं ने कहा कि लोग नाराज़ हो जाएंगे मगर अकबर फैसले पर कायम रहा। सती होने से रोक दिया गया।
६.अकबर ने एक कानून बनाया कि सती होने से पहले काज़ी की अदालत में अर्ज़ी देनी होगी। काज़ी समझायेगा। फिर भी विधवा नहीं मानेगी तो उसे सती होने की इजाज़त होगी लेकिन उसे सीधे सती होने की छूट नहीं होगी।यह कानून जहांगीर तक बना रहा।
७.अकबर के समय में अहमदाबाद की एक मिसाल मिलती है। इतिहास के स्त्रोत में ज़िक्र आता है कि कुछ मुसलमान गाय को मारने जाने जा रहे थे। ईद के मौके पर। लेकिन हिंदू लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। बात राजा अजीत सिंह तक पहुंची तो उन्होंने गाय को मारने की अनुमति दे दी। कहा कि ये उनका रीति रिवाज है। हमें दखल नहीं देनी चाहिए।
८.अकबर के समय में गायों के चरने के लिए अलग से ज़मीन दी गई।
९.अकबर की मां हमीदा बानो बेगम का देहांत हुआ तब अकबर ने हिंदू रीति रिवाज के अनुसार सर मुंडवाया था। उसके साथ कई राजपूत राजाओं ने भी सर मुंडवा लिया।
१०. अकबर भारमल पर बहुत यकीन करता था। जब वह गुजरात के दौरे पर निकला तो भारमल को आगरा का प्रभार सौंप गया। अकबर भारमल को बराबरी का दर्जा दिया करता था। इसे देख दूसरे राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों के शादी का प्रस्ताव खुद भेजा।
११.एक सोर्स से यह जानकारी मिलती है कि अफगानों से हारने के बाद हुमायूं ईरान में शरण ले रहा था। वहां के शाह ने जब हार का कारण पूछा तो हुमायूं ने कहा कि वह अफगानों से घिर गया था। उसके पास लड़ने के लिए सेना नहीं थी। ईरान के शाह ने कहा कि तुम स्थानीय राजाओं से वैवाहिक संबंध क्यों नहीं कायम करते। ताकि ऐसे वक्त में तुम्हारी मदद कर सके। हुमायूं को दी गई यह सलाह अकबर के वक्त काम आने लगी।
१२. अकबर के समय वेश्याओं के लिए अलग मोहल्ले बनाये गए। इनका नाम होता था शैतानपुरा। यहां आने जाने वाले लोगों का हिसाब रखा जाता था। ताकि पता चल जाए कि अकबर का कौन सा दरबारी वेश्याओं के यहां आता जाता है। अकबर ऐसे दरबारियों को दंड देता था। इसी रिकार्ड से एक दिन पता चल गया कि बीरबल भी एक रात वेश्याओं की सोहबत में थे। अकबर गुस्से में आ गया। डर कर बीरबल ने जोगी बनने का एलान कर दिया और कहा कि वह दरबार में नहीं जाएगा। लेकिन अकबर ने माफ कर दिया।
१३.यह सबसे दिलचस्प है। आज भी राजस्थान में जल्लेरा गीत गाया जाता है। जब दुल्हा घर आता है तो यह गीत गाते हैं। जल्ला मतलब जलालुद्दीन अकबर। अकबर इन गीतों में एक आदर्श दुल्हे की तरह नवाज़ा गया है। साथ ही इन गीतों में दुल्हा एक सत्ता का प्रतीक भी है।
१४. राजस्थान के एक महाराजा ने १९५३ के आस पास कुछ इतिहासकारों को बुलाया। कहा कि जितने मर्ज़ी पैसे ले लो लेकिन यह साबित करते हुए इतिहास लिखो कि राजपूतों ने अपनी मर्ज़ी से मुग़लों को बेटियां नहीं दी। इतिहासकारों ने कुछ दिन के बाद मना कर दिया कहा कि यह संभव नहीं है।
१५. कौटिल्य ने लिखा है कि हारने पर या राज सत्ता के विस्तार के लिए बेटों को बंधक नहीं देना चाहिए क्योंकि उनसे वंश बढ़ता है। बेटियों को बंधक दिया जा सकता है।
इनायत अली ज़ैदी राजस्थानी और फारसी स्त्रोतों के जानकार हैं। उन्होंने कई ऐसी बातें बताईं जिनसे बहस सार्थक हो सकती है मगर कौन सुनेगा। मीडिया के पास वक्त नहीं और राजपूत सेनाओं को राजनीति करनी है। वो इतिहास बदलना चाहते हैं। उस इतिहास को जिससे एक साझा हिंदुस्तान बना है। शादियों की कहानी यहीं नहीं रुकती है। ज़ैदी बताते हैं कि अठारहवीं सदी तक आते आते कई अमीर मुस्लिम औरतों ने अपना मज़हब बदल लिया और बाहर से आए मर्सिनरी से शादी रचाई। उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।
जरूरी और उपयोगी जानकारी । क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इन्हीं जानकारियों को यहीं पर आगे बढ़ाया जाये । मीडिया सुने ना सुने । यहां से बहुत लोगों तक पहुंचेंगी ये बातें ।
ReplyDeleteHumare Desh ke Har Insan ko History ke Baer Janna Chahiye or Purani Dharohar ko Bacha kar Rakhna Chahiye...
Deleteरवीश जी..हम इतिहास को जानना कहां चाहते हैं...बस गढ़ना चाहते हैं..अपने अपने हिसाब से...और तभी हमारी सोच हमारी जानकारी की तरह खंडित रह जाती है...बहुत बहुत धन्यवाद इस जानकारी के लिए
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद....
ReplyDeleteItihas ya tarikh
ReplyDeleteDarshata hai kaal ke
Badalte roopon ke sath
Admi ke badalte chehron ko
Talwar se shaktishali
Kalam jani gayi ek samaya
Ab kalam ki jagah
Leli hai computer ne
Gode mein ho ya mez per
Car mein ho ya ghar per
Akbar ka nahin
Shahjahan ka bhi nahin
Ab computer ka raj hai
Machine havi hai
Ab manav per
Kal ki lardai
Kal ki hi hogi
Kalki avatar ki
Krishna ki dwaper saman
Upastithi mein shayad...
रवीश भाई, आपके पोस्ट से वाकई कई दिलचस्प जानकारियां मिलीं। अगर जैदी साहब की बात पर यकीन किया जाए तो अकबर के कई रूप हमारे सामने आते हैं। साथ ही हरम में राजपूत कन्याओं के दबदबे की जानकारी भी काफी रोचक रही, इसके अलावा मौजूदा राजपूत राजाओं के चरित्र पर भी बहस हो सकती है। सती प्रथा पर काजी की मुहर वाली जानकारी मौजूदा परिवेश में टूटते घरों को बचाने के लिए की जाने वाली सरकारी प्रयास जैसी ही है। सभी जानकारियों के लिए एक बार फिर से धन्यवाद।
ReplyDeleteदी गई जानकारियों के लिए धन्यवाद। आप ने बहुत कुहासा साफ कर दिया। आप फतेहपुर सीकरी के महल देख कर आएं तो उस के निर्माण में ही अकबर की मानसिकता को पहचान सकते हैं।
ReplyDeleteबेहद जानकारी भरा आलेख।
ReplyDeleteक्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम सारे राजनेताओं और ओछी बयानबाजी करने वाले धर्म और समाज के ठेकेदारों को बोरे में बंद कर दूर कहीं ऐसी जगह छोड़ आयें जहां से ये कभी वापस न आ सके। समाज में शांतिपूर्वक रहने का यही हल दिखता है मुझे। ये कलाकारों तक को नहीं छोड़ते, जीना हरमा कर रखा है, टटपुंजिये मुद्दों पर आंदोलनबाजी किये जाते हैं।
इन दिनों हरबंस मुखिया की 'द मुग़ल्स' पढ़ रहा हूं.. अंसारी रोड पर कोई फाऊंडेशन बुक्स है, उन्होंने यहां डिस्ट्रिव्यूट किया है.. बाबर, हुमायूं के दौरान, और फिर अकबर के शासनकाल से सुल्ह कुल के असर में किस-किस तरह से नये रीत-रिवाजों का चलन शुरू हुआ, पारंपरिक इस्लामिक सोच से अलग एक विशुद्ध भारतीय पहचान की नींव रखी गई, इसका किताब में बड़े डिटेल में और दिलचस्प किस्से हैं. लहाइये और धन्य होइए. बाकी तो जो सरकार और शिक्षा चलानेवाले धंधेबाज हैं वो अपना गाना पीटते रहेंगे ही..
ReplyDeleteयह जानकारी भी जोड़ लें की महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर रोया था.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है। मुगलों में भारत में जमें रहने के लिए राजपुतों से ऱिश्ते कायम किये थे। वह फैसला पूरी तरह से राजनैतिक था। लेकिन हिन्दुओं से सहिष्णुता दिखाने वाले अकबर ने ही चित्तौड की जीत के बाद भयानक नर संहार किया था। फिल्म में दिखाया गया है कि अकबर ने हिन्दुओ की तीर्थ यात्रा पर लगने वाला कर हटा दिया था लेकिन पूरा सच ये है कि अपनी मुस्लिम छवि को पुख्ता करने के लिए कुछ सालों के बाद ही उसनें ये कर दुबारा भी लगा दिया था। इतिहास में बहुत सी बातें अभी तक सामने नहीं आ पायी हैं।
ReplyDeletejaidi sahab agar bataiyenege to pseudo secular ki bat hibolenege akbar a mugal king and hindu se harmony .haram ka matlab hi tha jabrdasti kya bat karte hai ap ravishji
ReplyDeleteAkbar ke nau ratnon mein
ReplyDeleteBirbal shrestha tha
Ya ho sakta hai
Ye jhooti kahaniyan ho
Jo baad mein likhi gayin ho
Jaise itihaskar aj bhi
Lague hain itihas ko
Jaspal Bhatti ki tarah
Ulta-pulta karne mein
NDA ke kal mein kuch
Aur UPA ke kal mein kuch aur
Majboori ka nam Mahatma Gandhi
Kaha jata hai kuchh logon dwara
Pehle lardayiyan hoti thi
Panipat jaise maidanon mein
Dushman jeet gaya
To raj uska ho jata tha
Jeetne wala juari ki tarah
Sab mal ka hakdar ho jata tha
Rajaon ke haram hote the
Unse hi fursat nahin hoti thi
Kam to Diwan adi
Anya darbari dekhte the
Diwan Germany Das ki kitab
Maharaja pardh lo
Yadi satya janna ho
Raja aur Nawab kya karte the
Mere mahan desh mein...
Aur Satya katu hota hai
ReplyDeleteKah gaye gyani-dhyani
Mira Bai bhi Rajputani thi
Usne bhi Krishna ko kaha
Moorakh ko tum raj diyat ho
Pundit phire bhikari
Santo karman ki gati nyari!
Jaise Gabbar Singh se
Gabbar hi chhurda sakta hai
Maha-itihaskar ki Maya
Maha-itihaskar hi jane
Kasturi-mrig to bhatkega hi!
अकबर की हस्ती को एक छोटा सा धडा यदि अस्वीकार भी करे तो इससे अकबर की महानता कम नहीं हो जाती. सच तो यह है कि अकबर भारत वर्ष का शायद पहला और आखिरी सेकुलर शासक था. दीन-ए-इलाही की स्थापना अकबर के सेकुलर पक्ष को और मजबूती से प्रदर्शित करती है.सम्राट अशोक के बाद बादशाह अकबर के काल में ही अखंड भारत अथवा मुकम्मल हिन्दुस्तान की तस्वीर दिखाई देती है वर्ना आज के हंगामेबाजों के तथाकथित वीर पूर्वजों ने सामंतवादी रियासती दंभ में भारत के टुकड़े करने में कोई कसार नहीं छोड़ रखी थी. मुगलों का सैकडों वर्षों तक भारत पर सफलतापूर्वक शासन करना तथाकथित जन्मजात वीरों की पोल खोलने के लिए काफी है.बहरहाल, अकबर न सिर्फ एक दूरदर्शी शासक थे बल्कि वे एक कला के पारखी और दार्शनिक व्यक्ति भी थे.उन्हें अगर एक सूफी शासक कहा जाए तो अतिशियोक्ती नहीं होगी.काश ये बात कुछ लोग समझ पाते तो उन्हें कम से कम घांस की रोटियाँ तो नहीं खानी पड़ती.
ReplyDeleteVanmanushji
ReplyDeleteEk 'Bharatiya' ki kathnayi hai
Ki wo kisi ek hasti ko sach manle
Jo asthayi ho
Ya phir us hasti ko khoje
Jisko khojne wo aya hai zameen per
Jiske pratibimba hum sab hain
Usko jisne racha
Sampoorna Brahmand ko
Kewal Akbar the Great hi nahin
Jo vanmanush athva manushya
ReplyDeleteParvat ke shikhar per kharda ho
Aur behosh na ho
Athva moorkhon se ghira na ho
Wohi apne neeche sab dekhta hai
Kewal akash ke satya ko chhord
Jise ek hi hasti janati hai...
Jise koi nahin janata...
मान्यवर JC जी, इतिहास तथ्यों पर आधारित है न कि कोरे अध्यात्म पर.
ReplyDeleteVanmanushji kaunse tathya?
ReplyDeleteAkbar mahan tha
Is mein sandeha nahin
Per wo bhi asthayi patra hi tha
Manushya jeevan ke natak ka
Kaun karega pushtikaran
Tatakathit tathyon ka?
Udaharan ke taur per
Kitna janata hai aam aadmi
Niji zindagi ke baray mein
Aj ke rajaon aur netaon ke bhi?
Mahatma Buddha bhi ban gaye hein
Natak ke matra ek patra ban-ker
Aur Mahatma Gandhi adi bhi…
Satya ki khoj avashyak nahin aj?
Hindu ne jagat mithya kyun kaha?
Adi, adi, prashna hain anek
Per uttar nahin chahta hai koi
Shayad yahi hai pranhav maya ka!
Shayad Raveeshji batayen
ReplyDeleteKya hai Mayawati ke mun mein
Ya Manmohan ke!
उम्दा लेख और जानकारी
ReplyDeleteRavish jee
ReplyDeleteEk muslim juth ko aap sach bana ke paros rahe hai..I am sure none is going to take your fool's story...
ham es se shamat nahe hae hamae pr.ka email dane ka kast karae
ReplyDeleteham es se shamat nahe hae hamae pr.ka email dane ka kast karae
ReplyDeletethanks for the knowledge...could you tell me any related historical book about Akbar(in hindi)..kindly tell me..my email Id : sahiltheking73@yahoo.com..
ReplyDeleteThanks and Regards
sahil
Tehseen Munawer--
ReplyDeleteProf Inayet Zaidi saheb Rajasthan ke hi hain aur wahan ke itihas per unki acchi pakad hai...Agar unki jankari hai to ise manna hi hoga....accha rehta agar is silsilay mien logon ke shak o shubhat ko door kerne ke liye unse kucch kitabon ke hawale aur page number le ker foot notes ki tarah de diye jaate to jo iss se ittefaq nahin rakhte hain khud hi padh lete...
Aik aur kitab in dinon charcha ka wishey hai.."" Sexual & Gender Representation in Mughal India "" by Dr Syed Mubin Zehra. Iska link yeh hai
http://www.flipkart.com/sexual-gender-representations-mughal-india/8178312115-4v23fgyf8e
MUJHE APNE DOSTO KO YE MANORANJAK BAATE BATANE ME MAJJA AAYE GA KYONKI MERE DOSTO KO AKBAR PASAND NAHI PARNTO AB VO SAMAJH JAYGE. THANX SIR.
ReplyDeleteaap ke dara jankari se mujko jankari melti ha iske leye thanks
ReplyDeletevery knowledge ful
ReplyDeleteबाबर, हुमायूं के दौरान, और फिर अकबर के शासनकाल से सुल्ह कुल के असर में किस-किस तरह से नये रीत-रिवाजों का चलन शुरू हुआ, पारंपरिक इस्लामिक सोच से अलग एक विशुद्ध भारतीय पहचान की नींव रखी गई,लेकिन हिन्दुओं से सहिष्णुता दिखाने वाले अकबर ने ही चित्तौड की जीत के बाद भयानक नर संहार किया था। सच तो यह है कि अकबर भारत वर्ष का शायद पहला और आखिरी सेकुलर शासक था. दीन-ए-इलाही की स्थापना अकबर के सेकुलर पक्ष को और मजबूती से प्रदर्शित करती है.सम्राट अशोक के बाद बादशाह अकबर के काल में ही अखंड भारत अथवा मुकम्मल हिन्दुस्तान की तस्वीर दिखाई देती है जानकारियों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteसभी जानकारियों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeletethanks for this information.
ReplyDeleteravish g us samay ke anusar AKBAR ko mahan kahane me koe burae nahi hai . wo galat kam akabar ne bhi kiye jo bhartiy raja karate the ........ main thing ki akbar ne hindustan nahi choda tha or bahadur shah jafar ne apna jivan bharat ke liye tyag diya tha .
ReplyDeleteakbar to mahan tha hi .
ReplyDeletenice story
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