एक साइड मुसलमान तो दूसरी साइड हिन्दू । ऐसा लगता है कि स्टुडियो में बैठे जानकार एक ख़ास समुदाय की तरफ़ इशारा कर रहे हैं कि मुसलमान एकजुट हो रहे हैं । भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं लिहाज़ा स्वाभाविक रूप से हिन्दुओं को भी भाजपा के पक्ष में एकजुट हो जाना चाहिए । अख़बारों में भी ऐसी बातें ख़ूब लिखी जा रही हैं । कई बार लगता है कि एक रणनीति के तहत ऐसा किया जा रहा है । मतदान प्रक्रिया का एक अदना सा एक्सपर्ट भी जान सकता है कि कुछेक अपवादों को छोड़ सामान्य रूप से यह बात सही नहीं है । कई बार लगता है कि चुनाव के समय ऐसे विश्लेषणों के सहारे समाज में साम्प्रदायिकता को भड़काने का काम किया जाता है ।
क्या हिन्दू हमेशा यह देखकर वोट देता है कि मुसलमान किस तरफ़ वोट दे रहा है या मुसलमान यह देखकर वोट देता है कि हिन्दू किस तरफ़ देता है । इसका वैज्ञानिक आधार क्या है । हर चुनाव में मुस्लिम मतदाता को ब्रांड करने का खेल खेला जाता है । जैसे उसकी अपनी कोई आकांक्षा नहीं है और वो सिर्फ मुसलमान बनकर वोट करता है । अगर ऐसा होता तो यह बात सही होती कि एक आम मुस्लिम मतदाता इमाम बुख़ारी जैसे धर्मगुरुओं के कहने पर ही वोट कर देता । किसी भी चुनाव का आँकड़ा देखेंगे तो यह ग़लत साबित होता है । आम मुस्लिम मतदाता बड़े आराम से मतदान के फ़ैसले में मुल्ला मौलवियों की दख़लंदाज़ी को पसंद नहीं करता । खुलकर बोलता भी है लेकिन मीडिया ऐसे धर्मगुरुओं के बहाने मुस्लिम मतदाताओं का सांप्रदायिकरण करता रहता है ।
इसी संदर्भ में एक और बात कहना चाहता हूँ । बाबा रामदेव जैसे कई योग गुरु और धर्मगुरु भी तो किसी पार्टी के लिए वोट मांगते हैं । इमाम बुख़ारी का अपील करना साम्प्रदायिक और बाबा रामदेव या शंकराचार्य का अपील करना राष्ट्रभक्ति । कैसे ? मैं दोनों की तुलना नहीं कर रहा लेकिन मूल बात यह है कि सभी प्रकार के मज़हबी नेता चुनाव के वक्त सक्रिय होते हैं । कोई आशीर्वाद के नाम पर इनके पास जाता है तो कोई अपने भाषणों में देवी देवताओं के प्रतीकों का इस्तमाल करके धर्म का इस्तमाल करता है । खुद को ईश्वर का दूत बताना क्या है ।
आम मतदाता को इससे सचेत होने की ज़रूरत है । यह भी ध्यान में रखने की बात है कि हमारे तमाम धर्मों के गुरुओं का समाज से गहरा नाता होता है । झट से उनके किसी राजनीतिक आचरण को साम्प्रदायिक क़रार देने से पहले देखना चाहिए कि वे क्यों ऐसा कर रहे हैं । उनका आधार सांप्रदायिक है धार्मिक है या राजनीतिक । अगर विरोध करना है तो एक साथ डेरों, मठों, मस्जिदों की राजनीतिक दख़लंदाज़ी का विरोध कीजिये ।
मैं फिर से लौटता हूँ अपनी मूल बात पर । तमाम अध्ययन बताते हैं कि मुस्लिम मतदाता अपनी पसंद के हिसाब से अलग अलग राज्यों में अलग अलग पार्टी और नेता को वोट करता है । मुसलमान एक नहीं कई दलों को वोट करने के साथ साथ बीजेपी को भी वोट करता है । मध्यप्रदेश राजस्थान और गुजरात में भी करता है । हो सकता है कि प्रतिशत के लिहाज़ से कम हो लेकिन आप यह भी तो देखिये कि बीजेपी ने इन राज्यों में लोकसभा के चुनावी मैदान में कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं । उत्तर प्रदेश में कितने उतारे हैं । पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी को पचीस छब्बीस प्रतिशत मत मिले थे शेष और पचहत्तर फ़ीसदी मत अन्य दलों को । अगर हिन्दू वोट जैसा कुछ होता तो बीजेपी को पचहत्तर फ़ीसदी वोट मिलते । जो हिन्दू बीजेपी को वोट नहीं करते उनके न करने के आधार क्या हैं । हमारे ये जानकार हिन्दू मतदाताओं के विवेक के साथ भी अन्याय करते हैं । मतदाताओं का अति हिन्दूकरण कर साम्प्रदायिक रंग देते हैं ।
चलिये इस बात को एक और तरीके से देखते हैं । हर समुदाय या जाति के लोग अपने उम्मीदवारों को वोट देते हैं । इसी आधार पर कांग्रेस बीजेपी सब अपने उम्मीदवार तय करते हैं । तब भी बीजेपी को हराने के लिए मुसलमान किसी मुसलमान उम्मीदवार को वोट नहीं करता है । वो उसी दल या उम्मीदवार को वोट करेगा जिसके पास पर्याप्त वोट हो । यह वोट कहाँ से आता है । कथित रूप से हिन्दू समाज से ही न । तो यह बात कैसे उचित ठहराई जा सकती है कि हिन्दू एक तरफ़ जाते हैं और मुस्लिम दूसरी तरफ़ । क़ायदे से तो एक दूसरे की पार्टी को हराने के लिए दोनों मिलजुलकर एक दूसरे के ख़िलाफ़ गोलबंद होते हैं । इसके बाद भी सारे मुसलमान किसी एक व्यक्ति या दल को वोट नहीं करेंगे ।
मुसलमानों को कथित रूप से बीजेपी के ख़िलाफ़ पेश किये जाने के बाद भी जानकार जानते हैं कि वे कहीं भी एकमुश्त वोटिंग नहीं करते । यह संभव भी नहीं है । ऐसा होने लगा तो समझिये कि मुस्लिम समाज के भीतर आपसी टकराव ही समाप्त हो जायें । आप भी जानते हैं कि मुसलमानों के बीच अगड़े पिछड़े और दलित मुसलमानों के हक़ को लेकर ज़बरदस्त टकराव है । पिछले दिनों कई राज्यों में जैसे उत्तर प्रदेश, केरल और असम, मुस्लिम दलों का उदय हुआ है क्या ये सभी बीजेपी के ख़िलाफ़ उभरे हैं ? नहीं । इनसे चुनौती कांग्रेस सपा बसपा लेफ़्ट को भी मिलती है ।
इसीलिए जानकारों को ध्रुवीकरण की बेहद सतही और ख़तरनाक व्याख्या से बचना चाहिए । बनारस में नरेंद्र मोदी जब अपने नामांकन के लिए जा रहे थे तो उस भीड़ में भी कैमरे मुसलमान ढूँढ रहे थे । उनका क्लोज़ अप दिखा रहे थे । मुझे इस बात से आपत्ति है । क्या कैमरे उस भीड़ में शामिल अन्य लोगों को भी उसी निगाह से देख रहे थे । अगर नहीं तो फिर एक या दो मुसलमान की तलाश क्यों हो रही थी । तब भी जब नरेंद्र मोदी के साथ मुख़्तार अब्बास नकवी नज़र आ रहे थे । बीजेपी भले हिन्दुत्व या संघ के कहने पर चले पर उसे मिलने वाला हर वोट इसके लिए नहीं मिलता । बीजेपी के कार्यकर्ता चाहें जितना हिन्दुत्व के रंग रूप में ढल कर आक्रामक हो जायें उनकी पार्टी को मिलने वाला हर वोट हिन्दू वोट नहीं है । ज़्यादातर दलित मतदाताओं को खुद को इस पहचान से जोड़ कर देखे जाने से आपत्ति हो सकती है जबकि हो सकता है कि वो वोट बीजेपी को दें ।
हमें जनमत का साम्प्रदायिकरण नहीं करना चाहिए । सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण हमारी राजनीति की ख़तरनाक सच्चाई है लेकिन ऐसा हर जगह किसी एक फ़ार्मूले के तहत नहीं होता कि मुसलमान इधर गए तो हिन्दू उधर चले जायेंगे । कई बार लगता है कि जानकार मुस्लिम मतदाताओं का मज़हबी चरित्र चित्रण करते हुए ग़ैर मुस्लिम मतदाताओं को इशारा कर रहे होते हैं कि उन्हें वोट कहाँ देना चाहिए ।
TV to hai nahi, ya kahen to jaroort hi nahi mahsoos hoti par aapki baat hai solah aane sachchi. Muzzaffarnagar me kya hua voh conflict Jaat versus Kuraishee ka tha usme Hindu aur Muslim ka chakkar kahan tha lekin media ne yahi prachar kiya.
ReplyDeleteYou are very low level paid pimp type reporter who is fine with the division on the basis of caste bcoz it suits politically to your masters but dont expect Hindu Muslim divide..
ReplyDeleteBoth are the facts but you ignore other..
Bhai abhi aap Qasba padhne layak nahi ho. Apni Rajneetik samajh ko improve karo tab baat karo. TV Aur FB par namo namo karne se Sachchai nahi badal jaati hai. Aur jo aap Kab se sir ko jativadi kaha rahe hai to ek din TV, tweeter ki duniya se nikal kar bahar nikalye tab pata chalegaa Sir kya kaha rahe hai.
DeleteBhai hamko apna rajneetic gyan mat dejiyegaa Kyoki hum brahmin hai Aur pita jee bjp jaunpur ke president hai to puri ranjneet samajhte hai. Pura election jaati, sampradaikata Aur zuthe vikas ke name par lada jaa raha hai.
Deleteये पंक्ति आपने अपने लेख में एक जगह इस्तेमाल की है: "कई बार लगता है कि चुनाव के समय ऐसे विश्लेषणों के सहारे समाज में साम्प्रदायिकता को भड़काने का काम किया जाता है।"
ReplyDeleteजब आप चुनाव के समय जात आधारित विश्लेषण कर रहे है, जब आप यादव, जाटव, कुर्मी, जाट आबादी के आगार पे रिपोटिंग कर रहे है तो ये क्या है रवीश.
जहा तक आप मानो या न मानो मुस्लिम रणनीति के तहत करता है वोटिंग, हां ये भी सच है की सभी नहीं.
लेकिन इक बड़ी आबादी जो आज भी कुरी (जिसे आप कुल भी समझ सकते है) के रूप में संगठित है वो टैक्टिकल वोट करता है.
वो उसे ही वोट करेगा जो बीजेपी को हराएगा.
सारी कवायद इसी वोट को पाने की है.
100% true...
ReplyDeletePolitical parties dhuruvikaran karne mein kaamyaab ho chuki hai.
ReplyDeleteJo durbhagya purn hai . rajniti ke liye aur desh ke liye bhi.
एनडीए की ओर से पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की बढ़त में बीजेपी, संघ, लालकृष्ण आडवाणी का चाहे जितना योगदान रहा हो, वह तो है ही! नरेंद्र मोदी की सफलता, टीआरपी में''सेकुलर'' दलों और नेताओं का भी बड़ा योगदान है!
ReplyDeleteनरेंद्र मोदी मुद्दा बन चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव का मुद्दा क्या है? यूपीए-2 की असफलता, महंगाई और भ्रष्टाचार? नहीं जी, यह चुनाव 'गुजरात' पर लड़ा जा रहा है!
भारतीय मुसलमानों की दशा-दुर्दशा में कांग्रेस और ‘सेकुलरों’ का बड़ा हाथ रहा है। उनकी रोजी-रोटी, शिक्षा, बेकारी, बीमारी को नजरअंदाज़ कर बस उन्हें ''वोट'' मात्र बना दिया गया है। प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (1857) से स्वतंत्रता प्राप्ति तक (1947) भारतीय मुसलमान देश की मुक्ति के लिए कंधे-से-कंधे मिलाकर लड़े। मातृभूमि के लिए कुर्बान हुए।
आजादी के बाद भी विभाजन और अन्य अनेक चुनौतियों से निबटने में एक नागरिक की तरह, राष्ट्रभक्त की तरह उनके योगदान अन्यतम हैं। इसके लिए किसी दल और नेता के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।
2014 के आम चुनाव के सन्दर्भ में देखें तो मुसलमानों को किसी राजनीतिक दल की तरह मीडिया द्वारा बांचा जा रहा है। मोदी बनाम राहुल, मोदी बनाम केजरीवाल, मोदी बनाम माया, मोदी बनाम मुलायम, मोदी बनाम नीतीश, मोदी बनाम… सभी आदि तो समझ में आने वाली बात है। पर, मोदी बनाम मुसलमान का क्यों जबर्दस्ती पाठ किया जा रहा है? क्या कभी मोदी बनाम सिख, मोदी बनाम जैन, मोदी बनाम ब्राह्मण, मोदी बनाम यादव का पाठ किया जाता है? जयललिता, नवीन पटनायक, नीतीश, ममता को मुख्यमंत्री बनानेवाली जनता कौन है? क्या वे सभी मुसलमान हैं? क्या वे सभी सिर्फ एक जाति-समुदाय के हैं? …तो फिर मोदी बनाम बंगाली, मोदी बनाम पटनायक का पाठ क्यों नहीं किया जाता है। …और यदि कभी किया जाता है तो जैसे एक वर्ग को लांछित करके किया जाता है वैसे ही किया जाता है? लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी को मुस्लिम वोट नहीं मिलते थे? क्या राजस्थान में दो मुस्लिम विधायक बीजेपी से नहीं चुने गए हैं? …और यदि मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं देते तो आप यह विचार क्यों नहीं रखते कि बीजेपी कितने मुसलमानों को टिकट देती है!
आखिर, देश में संघ और बीजेपी के बिना सरकार नहीं बनती है क्या? यूपीए, सपा, बसपा, जयललिता, ममता, माणिक सरकार आदि अनेक नेता और दल संघ के कारण थोड़े ही हैं। या फिर सिर्फ एक जाति, समुदाय के बल पर चुनाव जीत कर आए हैं?
क्या मोदी के पहले मुस्लिमों की सारी समस्याएं दूर हो गई थीं? मुस्लिम समुदाय दूसरे लोगों की तरह जिसे चाहे, उसे वोट क्यों न करे?
अगर सभी बहुसंख्यक बीजेपी को वोट देते ध्रुवीकरण के आधार पर तो फिर बीजेपी की हर जगह सरकार होती! प्रायः हर राज्य में। जबकि अनेक दक्षिण, उत्तर-पूर्वी राज्यों में बीजेपी kaa खाता भी नहीं खुलता।
भारतीय जनता पार्टी के आज के ''राम'' (एनडीए वाले पासवान) जब बिहार का मुख्यमंत्री मुस्लिम को बनाएंगे की जिद ठाने हुए थे उस समय उनके साथ लादेननुमा (लेआउट डिज़ाइन में) एक मुस्लिम नेता उनके साथ होते थे। पता नहीं आज वे कहां हैं! मानों मुस्लिम के आदर्श लादेन ही हों।
बनारस जैसे ''समुद्र संगम'' की नगरी जो ब्राह्मण ही नहीं, श्रमण धारा का भी प्रमुख केंद्र रहा है। तुलसी ही नहीं कबीर और रैदास को भी अपने पेटे में समेटे हुए हैं। भारतेन्दु से लगायत प्रेमचंद, आचार्य शुक्ल, प्रसाद, बिस्मिल्लाह खान जैसे मनीषियों की परम्परा जहां रही हो, उसे धर्म के चस्मे से मीडिया माध्यमों द्वारा खेला-ताना जा रहा है। गंगा -जमुनी संस्कृति की तान को किस चस्मे से देखा जा रहा है?
अरे भाई, मोदी या तो चुनाव लड़ने के योग्य हैं या नहीं हैं! क्या चुनाव आयोग ने कुछ नया प्रावधान कर दिया है कि मोदी ही बनारस से लड़ सकते हैं राहुल नहीं?
ध्रुवीकरण में नेताओं का जो महान योगदान है वह तो है ही मीडिया का भी महान अवदान है... खास कर टीवी मीडिया का! मीडिया की मूर्खता, दृष्टिहीनता खूब दिख रही है टीवी पर। मोदी और बनारस पर तो पूछिए ही नहीं !
'' कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ? '' (कबीर )
appreciate
DeleteI Find Nitin Shrivastava interesting man. almost he comment in every blog thinking that Ravish is against his God.. :) :) Thoda Thanda Peelo Bhaai Nitin Bahut Garmi hogayi hai...
ReplyDeleteRavish Bhaiya Pranam,
ReplyDeleteIs desh mein dhruvikaran ek sachchai hai, achha hai ya bura, shai hai ya galat wo alag baat hai. Aur ye sach hai ki 80% muslim use hi vote karenge jo BJP ko haraata hua dikhega. Magar haan Hindu abhi bhi isme peeche hai aur yahi unko vote bank nahin banne deta. Agar aisa ho jaata to saare dal hindu dharm guruon ke darwaje pe aise hi dikhai dete jaise Imam sahab ke yahan dikhai padte hain. Lekin is ki shuruaat aaj nahin hui ye to tab se hi shuru ho gaya tha jab mazhab ke aadhar par is desh ke do baar vibhajan hua aur phir bhi is desh mein vibhajan ka dar khatm nahin hua hai. Kya kahen yahi rajneeti hai. Baki to jo hai so haiye hai.
regards
Stos Ji
ReplyDeleteRavish Kumar aapke God hain..tabhi sab sahi dikhta hai..Jaati kee baat karo but dharam kee nahi..communal ho jaaoge..Jati kee baat karo toh samajik nyay lakin dharam kee karo to samprdayik...Tum burnol le lo kaam aayegi 19 may ko
सर मई २०१२ में लिखा था - भारत डेमोक्रेसी है या थेओक्रासी ? थेओक्रासी- पॉलिक्स ऑफ़ बाबास
ReplyDeleteवेटिकन में पोप का चलता है , मुस्लिम देशो में इमाम का चलता है , तिब्बत में दलाई लामा का तो भारतमे भी कुछ कुछ हाल होने ही लगा है
>> डेरा सच्चा सौदा का असर १५-२० विधानसभा की सीट्स पर है हरियाणा में (टी वी में ही सुना था )
>> सोनिआ गांधी का श्री शिवकुमार स्वामी को कर्णाटक में उनके जनम दीं पर इलेक्शन के पहले मिलाने जाना
>> शाही इमाम के जमाई और राज्यसभा की सीट को चल रहा विवाद
>> नार्थ ईस्ट की स्टेट्स में चर्चो का बहुत ज्यादा वोटर पर प्रभाव होना
>> और रामदेव बाबा , श्री श्री रविशनकार , भय्यूजी महाराज - इनका सबका और राजनीती के कनेक्शन का तो अच्छा कवरेज किया है मीडिया ने
अब थेओक्रासी है या डेमोक्रेसी यह तो भगवान ही जाने - शायद इसे डेमोक्रेटिक थेओक्रासी कहते है
एक बात और कहनी चाहिए थी, कई जातियों का तो चुनावों में प्रतिनिधित्व भी नहीं होता| कहीं उनकी संख्या कम है तो कहीं उनमें नेतृत्व की समस्याएं हैं|
ReplyDeleteवो जातियां भी तो मतदान करतीं हैं|
एक बात और कहनी चाहिए थी, कई जातियों का तो चुनावों में प्रतिनिधित्व भी नहीं होता| कहीं उनकी संख्या कम है तो कहीं उनमें नेतृत्व की समस्याएं हैं|
ReplyDeleteवो जातियां भी तो मतदान करतीं हैं|
एक बात और कहनी चाहिए थी, कई जातियों का तो चुनावों में प्रतिनिधित्व भी नहीं होता| कहीं उनकी संख्या कम है तो कहीं उनमें नेतृत्व की समस्याएं हैं|
ReplyDeleteवो जातियां भी तो मतदान करतीं हैं|
Ravish k Andhbhakton
ReplyDeleteIf he likes so much Jativadi vampanthi china model ask him to develope Motihari with that model thn pin point shortcomings of other and or ask him to live in any Muslim ghetto he will fully understand the democracy :)
Burnol abhi bikta hai. Usse achcha to soframycin honee chahiye. Phir iskee jarroorat 16 ko hogi na ki 19 ko. Shapathgrahan ke date to abhi decide nahi huee hai.
ReplyDeleteRavish bhai..
ReplyDeleteKabhi Asam,Keral,Kashmir main dukan lagao...Laal dukan sorry laal salam ho jayega.Kabhi shiya,sunni,bohra,pathan khel k dekho fir pata chalega secularism.
ravish, is post ko main self criticism ki tarah dekhoonga - as a representative of the media. baaki, without going into good and bad.. tactical voting mithak hai kyaa?
ReplyDeletemere khayal se nain hai.. it is a very natural consequence of the first past the post system that we follow. Jahaan bhi ye voting system hota hai.. vahaan dekha jaata hai.. People do not always vote for their most preferred candidate in the first past the post system. they optimize preference with winnability.. kyunki is system ka nature hai- "winner takes all".. aapke program mien bhi bahut baar dikha - brahman ke gaon mien..they voted for the BSP even if their most preferred party seems to be BJP.. because they optimize preference with winnability.. muslims ko single out karna galat hai.. just like in the case of bukhari appeal.. lekin once again this is a natural consequence of the voting system that we have. it is embedded in its design.
Ab ek aur baat ismein opinion polls ki.. i think this can be a very insidious instrument in our political system.. because it accentuates the worst parts of it. tactical voting totally depends on information/perception of who is ahead, and by manipulating that perception one can influence votes. My question - why is the media (generally not you) spending more time on who is going to win, and less time on what the issues are..
lastly with all due respect, singling out a single party for this is probably incorrect. everyone does it.. across the political spectrum. With the possible exception of AAP.. wo bhi lagta hai ki ab seekh rahe hai
ReplyDeleteI agree with Mr. Ravish There are More Layers instead to see polarization of two Religion in Casting Vote.
ReplyDelete1- Religion
2- Caste
3- Personality influence(Candidate)
4- Interest group (Work for some Mission)
5-Individual aspiration(to get something from local candidate or Party)
6-Wave of Parties/individual
7-Development
Last but not least if Voting percentage goes Less then 1 & 2 points are dominating if voting percentage goes higher then 3 & 6 will dominate, If Voting Percentage goes 90 to 100% means 7th points are dominating
SIR JI padh kar bura laga.
ReplyDeletein bjp walo ne hindu musalmaan ko tod diya hai ....pehle rajnaath singh maafi manghai phir dekhte hai ki kuch nhai ho raha to kehte hai muslim vote nhai chaiyee.
ReplyDelete125 cr abadi me 17.5 musalmaan ka vote na bhi mila to polarize karke hindu vote sab lekar p.m ki kursi loot lege .
mailogo ke dil me aajkal d hindu muslim ke name par katuta sadak par aa gayee hai . log ek dusre ke paksh me hava banate dikh rahe hai .
sawala ye hai ki kya muslim ke bagaar chunva jeet kar p.m pad tak pahucha ja sakta hai ....agar ue hai to humme aur pakistaan me phark kya hai . media bhi issme jam kar biasing karta dikh raha saar newpaper aur channel pata pada hai hhar haar modi se ... aisa lagta hai jaise modi ko khud abhi abhi aasmaan se utara gaya hai ek masiah ki tarah ....
100% right brother
DeleteKishi media ne gujarat ki dark side par kabhi cover nahi kiya,itana bikavu he media?
Sorry ravishbhai
शाजिया इल्मी के कट्टरपंथी छवि को मुसलमानों के बीच भुनाने में आम आदमी पार्टी लग गयी ... अहमदाबाद में राजमोहन गाँधी हिन्दू एरिया में प्रचार कर रहे है तो शाजिया इल्मी चाँदबीबी तलाव, जुहापुरा, कालूपुर, जमालपुर जैसे मुस्लिम एरिया में प्रचार कर रहे है ...
ReplyDeleteइस बारे में गुजरात के कन्वीनर ने कुछ कहने से इंकार कर दिया लेकिन इतना जरुर माना की मुंबई में शाजिया के बयान के बाद शाजिया को मुसलमानों के बीच उतारना पार्टी को फायदे का सौदा लग रहा है |
Nitin bhai aap ke khilaaf kiye jaa rhe negative comments PR mujhe meri likhi kuch panktiyan smaran ho aayin
Delete"Sabhi naraaz hain mujhse,hain aisa Kya kiya Maine
Khata bad itni hi to h galat ko galat kehta hun"
Vyaktigat.. Jaatigat.. Sampradaygat... fir ilaka.. Pradesh.. Desh videsh... Sab laga dijie..
ReplyDeleterajneeti ke kayi pehlu hain... Desh ki bhrashta vyavastha mein har kisi ko rajneetik pakad chahie.. Jarurat pad hi jati hai.. Or ek jis prakar ka mahaul ban chuka hai... Muslims ko bhi ab bjp k sath jane m jaan bachti dikhai pad rahi hai..balki kayi chehro k to waare nyare se hote dikh rahe hain.. Bahut jyada chaunkiyega mat agar jo mahaul media ne banaya hua h uska bhi prabhaw dikhai de 2014 m wo yuva voter or hindutva wale k alawa.... Ab to modi modi sunkar ham paq gye.. Ye patrakar log nhi thakte kya? Are bhai 16 tarik taq ruk jao.. Itni bhi kya jaldi hai rajyabhishek ki?
Agle chunaw tak k lie ek hi ichha hai.. Media house apne agende ko clear karein.. Or election commission tay kare ki kya hona hai kaese hona hai..
Ek or baat ravish bhai.. Ab jara do char studio wali behes ho jayein.. Ab or nahi dekha jata.. Desh ki dasha or disha ka koi mel hota nahi dikhra. Par bada din ho gya h ek dhng ki behes sune hue.. Class lagaiye jara do char tho..
साधुवाद आपके वनारस देहात पर रिपोर्टिंग के लिए,
ReplyDeleteअच्छा लगा की कोई देशी पत्रकार (हिंदी) गॉव गॉव घूम तो रहा है भले ही चुनाव की रिपोर्टिंग में।
जहा तक सरोकारों की बात है कुछ - कुछ सतही लगा सायद अनुभव की कमी या फिर जनता की इंटेलिजेंस पर सक रहा हो।
मिडिया का चुनाव बिश्लेषण तो सिर्फ बर्ग बिशेष, जातिगत सामुदायिक और क्षेत्रवाद पर अटक कर कही खो गया है आप ही के शब्दों में बाकी पत्रकार यातो सिर्फ गंगा और घाट के ही कवरेज पर लगे हुए हैं या किराये के प्रवक्ताओ के साथ बेमानी बहस पर। और बाकि सारा सरोकार जनता के कंधो।
कभी - कभी आप भी कुछ बहके हुए लगने लगते है। काश रिपोटिंग में सरकारी नौकरशाही, अनुदानों का लूट घूसखोरी जनजीवन की परेशानियों का भी कुछ उल्लेख होता।
उम्मीद है इसपर कुछ देखने- पढ़ने को मिलेगा
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ReplyDeleteदेश मै चुनाव चल रहा है। भारत का अकार और विभिन्ता अपने आप मे कई मुद्दे पैदा कर देता है। पर भारतीय होने के नाते एक बात अच्छी नहीं लगी की इस बार भी कुछ अलग करने का मोक्का चूक गया। कई मुद्दे अंत तक आते-आते दब गए। गांव फिर से शहरी विकास के मुद्दो मै खो गया या घोषणा-पत्रो मै दब कर रह गया । और शहर अपने ही रंग मै फिर से दुबारा रंग गया पीछे की दरारे ढकी दिख रही है, पर कब तक , शायद १६ मई तक। अंत मै रह गया तो वही जाती-धर्म- क्षेत्र का पुराना दानव जो शायद भारत की कई इंकाइयो के मंथन से निकला अमृत पी चूका है इसलिए शायद मरता ही नही।
ReplyDeleteनोट: रविश एक पत्रकार है और वही काम वह कर रहे है। उनका काम है मुद्दो को उठाना इसमें बुरा नहीं मानना चाइये। मोदी पर आरोप लगता है , केजरीवाल को थप्पड़ पड़ते है और न जाने क्या-क्या लेकिन पत्रकार को बात रखने का स्पेस मिलना चाइये। सहयोगी अपने मत से अपने राजनेता को जिताये किसी से जबरदस्ती इज्जत भी तो नहीं करवा सकते , आखिर है तो यह भारत ही :)
Correct everyone has right to spread the propaganda for he/she is paid.
ReplyDeletePadhe-likhe log bhi Jaati-Dharm ki hawa ke aage natmastak ho jaate hain. BJP samarthak is sach se aankhein ferte hain, Giriraj ke comments par Rajnath party ko nuksaan hone ki baat karte hain, desh ko kitna nuksaan hoga wo vichaar kahin azar nahin aata. Kya isi deshbhakti ki baat BJP karti hai.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletePadhe-likhe log bhi jaati-dharm ki bayaar mein beh jate hain, Rajnath giriraj ke bayaan par takeed karte hain ki isase BJP ko nuksaan pahunchega, unhein Desh ki fikr nahin hai, votes ki chinta hai. Dhanya hai BJP walon ki deshbhakti.
ReplyDeleteKamalbhai bjp valo ko desh bhakti ki bate muhh se karte he,par gujarat bech diya amiro ko ab ki bar india bechne chale ,
Deleteमौलाना बुख़ारी और शंकराचार्य की तुलना में क्या हर्ज है?
ReplyDeleteApp apna rajneetic gayan hamko mat dejiyegaa Kyoki hum brahmin hai Aur jaati ki rajneet ko pura samajhte hai. Pita jee bjp jaunpur ke president hai To pura election jaati, dharma, aur Gujrat ke zuthe vikas ke name par lada jaa raha hai.. Sir Sachchai ko TV par dikha rahe hai to problem kyu aa rahi hai?
ReplyDeletemitra rishabh shukla ji
ReplyDeleteapna rajneetik gyan dene ke liye dhanyavaad.
lekin tathya dete to achcha lagta.
tathya ki jagah pita ka parichaya thoda ocha laga.
mai raveesh ko taget nahi kar raha.
aapko agar kast hua to maaf kare.
mai ye kahna chahta hu ki jaatiya hi jab mudda hai to to bijli pani vikas ka bakvaas kyu?
bhai jatiya agar mudda hai to to arvind kyu?
raveesh bhi kahte hai ki agar yadav yadav ko jatav jatav ko brahmin ko vote de raha hai to partiya jitti kaise?
bhai vo aise jitti hai ki abhi bhi 10% vote candidate ki jaat nahi uska kaam dekh kar rahe hai.
mera to bas yahikana tha ki pnews paper aur media me hi log pahle batate hai ki fala seat pe itne yadav itne brahmin hai bas mamala fit jiski jitni bhagidari uski utni hissedari.........
yaar blog papa ka prachar kendra mat banao....
रवीश भाई, मुझे तो उस दिन का इंतज़ार है है, जब कोई उम्मीदवार ये कहे
ReplyDelete१. "ये मेरी जाति, धर्म-संप्रदाय, वर्ग आदि का है"
२. "ये सिर्फ मेरी जाति, धर्म-संप्रदाय, वर्ग आदि के लिए काम करेगा"
अगर ऐसा सोचकर कोई मतदाता मुझे वोट दे रहा है, तो मत दो, मुझे ऐसे सोच के वोट से सांसद, प्रधानमंत्री बनने से अच्छा है
मैं देश का सड़को पे झाड़ू देकर(नो ऑफेंस) जी लूंगा।
एक नैतिक एवं संवैधानिक मूल्यों पे जीने वाला सफाई कर्मचारी(अगेन नो ऑफेंस)
उस प्रधानमंत्री से बेहतर है, जिसके चयन में नैतिक और संवैधानिक मूल्यों का गला घोटा गया हो।
रवीश भाई, मुझे तो उस दिन का इंतज़ार है है, जब कोई उम्मीदवार ये कहे
ReplyDelete१. "ये मेरी जाति, धर्म-संप्रदाय, वर्ग आदि का है"
२. "ये सिर्फ मेरी जाति, धर्म-संप्रदाय, वर्ग आदि के लिए काम करेगा"
अगर ऐसा सोचकर कोई मतदाता मुझे वोट दे रहा है, तो मत दो, मुझे ऐसे सोच के वोट से सांसद, प्रधानमंत्री बनने से अच्छा है
मैं देश का सड़को पे झाड़ू देकर(नो ऑफेंस) जी लूंगा।
एक नैतिक एवं संवैधानिक मूल्यों पे जीने वाला सफाई कर्मचारी(अगेन नो ऑफेंस)
उस प्रधानमंत्री से बेहतर है, जिसके चयन में नैतिक और संवैधानिक मूल्यों का गला घोटा गया हो।
"Ameere shahar Aksar Gareebo ko loot leta hain ,
ReplyDeleteKabhi baheela - e -majhab to kabhi baheela -e-watan ke naam per".
Desh or Dharam ke naam per jitna thagna chaho utna kisi ko bhi thag lo...
"Ameere shahar Aksar Gareebo ko loot leta hain ,
ReplyDeleteKabhi baheela - e -majhab to kabhi baheela -e-watan ke naam per".
Desh or Dharam ke naam per jitna thagna chaho utna kisi ko bhi thag lo...
I agree with Nitin Shrivastava. I used to wonder how Ravish has stayed on in Congressi chamcha NDTV so long. Now I know, it is because he is one too. Sly, pretending to be dharti ka aadmi with his exaggerated bihari accent, the insinuating casteism, and the visceral hatred of BJP I can see his true colours now.
ReplyDeleteBhai log, before you start abusing, I am a bojpur niwasi too.
Ravish was pushing for a BSP- congi alliance to defeat BJP in UP. Didn't materialise, hence his current frustration
मुझे भी लगता है की मुसलामानों को cammunal हो जाना चाहिए और अपने मफ़ाद के लिए वोट करना चाहिए.
ReplyDeleteRavish is blog me kuch youvaon k vichar Pad k laga K Akhir Is Electon M Uva U Va k Naare To Bot H Par Mudde Kyo Ni H.bt in Mansik Rogiyon K Chinta Chod Apne Kam Pe Lage Raho
ReplyDeleteअब अपनी जो समझ है उससे तो अब तक एक ही बात समझ पाए हैं कि 'हर पत्रकार एक तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित है' और इस कदर ग्रसित है की उसे यही नहीं पता चलता की कब पाठकों और दर्शकों को उसके झुकाव का पता चल गया. या तो "तथाकथित चौथे-खम्भे को ढहा दिया जाए' या फिर उस तरह का व्यवहार किया जाए लेकिन ये हो नहीं रहा है, कतई भी नहीं. मीडिया ने नकारात्मक-रिपोर्टिंग करते-2 कब किसी को हीरो बना दे, कह नहीं सकते (आपने फिल्म "डर" देखी है?अगर नहीं, तो देखिये कि कैसे दर्शक खलनायक से प्यार करने लगता है!).नमस्ते!
ReplyDeleteDear Ravish,
ReplyDeleteI just wanted to bring this story of a place from Jharkhand to your notice, May be you already know.
Still I am pasting the you tube link of the related documentary here. Please go through it.
If possible, please organize a prime time discussion on this issue, asking our political leaders their opinion about this issue.
May be that will progress this serious issue towards some solution.
Thanks,
Kapil
https://www.youtube.com/watch?v=upzt4ESu908
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ReplyDeleteT.V Sach me karaupt ho gya hai... 99% tak aub to ye sochna padta hai ki kon sa ek programe sahi hai....... sirf dikhwava.. kuch bi kahean door darshan aaj bhi kuch jyada sachaa hai.......
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