कोई बड़ा हो गया होगा इसे चलाते चलाते और यह साइकिल छोटी ही रह गई होगी । अपने अपार्टमेंट में जहाँ तहाँ रखी ऐसी छूटी साइकिलों को देखकर बचपन के बीत जाने का अहसास होता है । सीढ़ी के नीचे, पेड़ के सहारे टिका कर छोड़ दी गई साइकिलें कविता की पुरानी किताब लगती हैं जिसकी ज़िल्द उतर गई हो । ऐसी साइकिलें महीनों पड़ी रहती हैं । बच्चों की और बड़ी साइकिल आ जाती है । किसा का दिल आया तो काम करने वाली को दे दिया । इसलिए आप किसी अपार्टमेंट के बाहर कपड़े प्रेस करने वाली झुग्गियों के बाहर ऐसी साइकिलें पड़ी रहती है । कुछ चलती हैं तो कुछ चलने लायक नहीं रहतीं । कबाड़ी की दुकान में भी ऐसी साइकिलें मिलेंगी जिन्हें लोग बेच गए होते हैं । यह वही साइकिल है जिसे ख़रीद कर लाने के दिन का उत्साह, बच्चे की आँखों की चमक किसी को याद नहीं रहती । जीवन ही चलता चलता आगे बढ़ जाता है । साइकिल रूकी रह जाती है ।
Ahmedaabd BRT going to start a new experiment with cycles : ( Link )
ReplyDeletehttp://epaper.indianexpress.com/237301/Ahmedabad/03-March-2014#page/4/2
Keen observation.. As it symbolize to many other aspects of our life
ReplyDeleteसाइकिल की सवारी के बाद अब बारी है बच्चों को हवाई सफ़र पर ले जाने की। आजकल मार्केट में बहुत सारे हवाई जहाज़ उपलब्ध हैं जैसे पल्सर 220, यामाहा R1, अपाचे RTR 180 जिनपर बैठकर ये मासूम बच्चे महाकाल बन जाते हैं।
ReplyDeletenice !!
ReplyDeleteduniya mein sab bahut jaldi badal raha hai sir
ReplyDeleteबहुत याद आता है एक छोटी सी साइकिल पर बैठे आप और पीछे दौड़ते भागते धकियाते आपके दोस्त !
ReplyDeleteएक ऐसा ही फोटो जहाँ पर वो साइकिल अभी अबही आये है!
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/photo.php?fbid=277587742396674&set=a.242618385893610.1073741825.100004363500223&type=1&theater