" सर छठी सातवीं आठवीं में फ़ेल बहुत हुआ । पढ़ने का शौक़ तो बहुत था मगर अंग्रेज़ी और गणित में फ़ेल होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी । तब मेरे पिता दिल्ली के डीसीएम फैक्ट्री में काम करते थे । मज़दूर थे । मैं शाहदरा के किसी डाक्टर के यहाँ काम पर लग गया । रोज़ सात बजे किशनगंज से शाहदरा अठारह किमी साइकिल चलाकर जाता था । अठारह महीने नौकरी की लेकिन कभी क्लिनिक देर से नहीं खोला । मगर पढ़ाई से ध्यान गया नहीं ।
मैं पहलवानी भी करता था । सुबह पाँच बजे उठ कर रेलवे के अखाड़े में जाता था । इसी कारण रेलवे के होमगार्ड में लग गया । पटरी से लाश उठाकर मोर्चरी तक पहुँचाने का काम करता था । इस काम में सिस्टम पुलिस और जीवन की क्रूरता और अच्छाई को क़रीब से समझा । उस वक्त भी साइकिल से दिल्ली के दफ़्तरों में जाकर पता करता था कि वैकेंसी कैसे निकलती है । मेरे दोस्त ने बताया कि रोज़गार कार्यालय में रजिस्टर करा लो । वहाँ से नेशनल ओपन स्कूल में डेली वेज पर लग गया ।
इस बीच में मेरी शादी हो गई । लड़की एम ए पास थी समाजविज्ञान में । बड़े घर की थी । उसके नाना १९२२ में रूड़की से इंजीनियर हुए और दादा लाहौर रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर से रिटायर हुए थे । लड़की मंगली थी और घर वालों को मँगला लड़का नहीं मिल रहा था तो मुझसे शादी कर दी । मैं मँगला था ।
शादी के समय मैं बारहवीं पास हो गया था । नेशनल ओपन स्कूल से ही । दसवीं में पहली बार सारे विषय में पास हो गया मगर यहाँ भी अंग्रेज़ी में फ़ेल हो गया । खैर बारहवीं पास होने के बाद इग्नू से सी आई सी की डिग्री ली, लाइब्रेरी साइंस में बीए और एम ए किया और नेशनल पिछले सात आठ सालों से नेशनल ओपन स्कूल में लाइब्रेरी असिस्टेंट बन गया ।
लाइब्रेरी ने मेरे लिए किताबों की दुनिया उपलब्ध करा दी । मैं उन बच्चों के बारे में सोचने लगा जिनकी पढ़ाई मेरे जैसे हालात में छूट जाती है । पहले दिल्ली की एक बस्ती में लाइब्रेरी खोल दी । वहाँ पर चल नहीं सकी । तभी मीडिया में 1857 के डेढ़ सौ साल पर खूब लेख छप रहे थे । मैं दरियागंज से ढाई सौ रुपये में टाफी का डब्बा ले आया । बच्चों से कहा कि जो 1857 पर आर्टिकल की कटिंग लाएगा उसे टाफी मिलेगी । अख़बार वाले से कहा कि पिछले दिन का अख़बार दे जाए । किसी भी भाषा का । बच्चे इन्हीं अख़बारों में जहाँ भी 1857 लिखा देखते घेरा लगा देते थे । इस बहाने सात सौ लेख जमा हो गए । इन लेखों को लेकर मैंने लक्ष्मीनगर में प्रदर्शनी लगा दी । हिट हो गया । नेहरू युवा केंद्र ने चालीस हज़ार इनाम में दिये जिससे हमारा तीन साल का ख़र्चा निकल गया ।
अब पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी के पास अशोकनगर में चौदह सौ रुपये महीने पर एक छोटा सा कमरा ले लिया है । वहाँ लाइब्रेरी बना दी है । हज़ार के आय पास किताबें हैं । चम्पक, चकमक, सरिता, गृहशोभा जैसी पत्रिका मँगाता हूँ । बच्चें की माएँ उनसे ये पत्रिका मँगा कर पढ़ती हैं । इसके साथ साथ छोटी बहन को भी पढ़ाने लगा । मेरे ख़ानदान में पढ़ने में वही अच्छी थी । गणित में चालीस में चालीस लाती थी । अब वह बीए हो गई । ससुराल वालों ने कह दिया कि हमारे घर में ज़्यादा पढ़ाई पढ़ाई मत करो तो बहन का घर था इसलिए छोड़ दिया । पर अब यही बहन शाम को दो घंटे लाइब्रेरी खोल देती है ।
मैं लाइब्रेरी में मज़दूरों के बच्चों को बुलाकर पढ़ाता हूँ । हालाँकि अब स्कूल के बच्चे ज्यादा आते हैं । एक सौ तीस बच्चों के पास लाइब्रेरी के कार्ड हैं । पंद्रह बीस बच्चे आ कर पढ़ते हैं । "
अशोक की लाइब्रेरी बनाने की कहानी ग़ज़ब की है ।
वो अब मनरेगा के मज़दूर बच्चों को जमा कर दिल्ली लाना चाहता है । उसने दिल्ली के बाईस म्यूज़ियम का रूट बना रखा है इसमें कुछ आर्ट गैलरी भी है । अशोक स्कूल के दिनों में दो बार गांधी दूत बना था । ये राजघाट पर चलने वाला कोई कार्यक्रम है । जिसके तहत उसे पुणे का आगा खान पैलेस और वर्धा का गांधी आश्रम देखने को मिला था । अशोक ने कहा कि वास्को डिगामा, बुद्ध इन सबने भ्रमण से सत्य और दुनिया को खोजा था । अशोक वही चीज़ बच्चों को लौटाना चाहता है । उसके पास ग़रीब बच्चों की पढ़ाई को लेकर अनेक आइडिया हैं ।
जाते जाते कहने लगा कि उसने अलग अलग अख़बारों और पत्रिकाओं में नैनो कार पर छपे पंद्रह सौ आर्टिकल जमा किये हैं । नैनो कार कंपनी का एक मैनेजर पैसे देकर मांग रहा था । शर्त रख दी कि नाम अशोक का नहीं रहेगा । इंकार कर दिया । अशोक का कहना है कि वह ये लेख रतन टाटा को देगा । काश मैं रतन टाटा को जानता तो अशोक की ये इच्छा पूरी कर देता । कोई टाटा कंपनी का यह लेख पढ़ रहा है तो प्लीज़ रतन टाटा तक अशोक की बात पहुंचा दे ।
अशोक अपनी लाइब्रेरी में कई मुद्दों पर बहस कराता है । कुछ साल पहले टीवी की उपयोगिता पर बहस कराई । नौवीं का एक लड़का तैयारी करके आया । वो इकोनोमिस्ट बनना चाहता था । उस लड़के ने कहा कि टीवी हम ख़रीदें । रखने का जगह भी दें । बिजली का बिल हम दें । केबल का किराया भी दें । मगर किस लिए ? चौदह मिनट का सीरीयल और सोलह मिनट का विज्ञापन देखने के लिए । वो लड़का इकोनोमिस्ट नहीं बन पाया । पटरी पर चप्पल की दुकान लगाता है । काश !
है न कमाल की कहानी । हम पत्र पत्रिकाओं को कितनी आसानी से फेंक देते हैं । अशोक ने लीफ़ फ़ाउंडेशन बनाया है । योजना है कि बीस साल की नौकरी होते ही छोड़ देगा और पेंशन से बच्चों के लिए काम करेगा । मैंने आज बहुत सी किताबें दी हैं ।
तबसे सोच रहा हूँ कि इस देश को चला कौन रहा है । मोदी राहुल या अशोक ।
तबसे सोच रहा हूँ कि इस देश को चला कौन रहा है । मोदी राहुल या अशोक ।
नोट: अशोक की संस्था की वेबसाइट है जो पैसे की कमी के कारण बंद हो गई है । अशोक का नंबर दो रहा हूँ
09213976949 कई लोग संपर्क का ज़रिया पूछ रहे हैं ।
Speechless :)
ReplyDeleteI am an assisstant profeesor in a college and i teach math.after reading your blog tears are about to fall from my eyes.
ReplyDeleteAapke last to last blog mein jo dard ubhra tha kejriwal ke media virodth ko lekar uska saar ye h ki aapki ye dil chune wali story indian media kabhi cover nahi karta balki faltu ki breaking news banane mein busy rehta h.
Media mein ravish aur sharad sharma jaise neutral patrakar to hain par wo itne majbur hain ki unki asli patrkarita sirf blogs aur twitter tak simit hokar rah jaati h
U always gives us surprices sir. Hats off. Love ur writing
ReplyDeleteU always gives us surprices sir. Hats off. Love ur writing
ReplyDeleteAdbhut!!
ReplyDeletemai ek engineer student hu.aapko last one year se follow kar raha hu.
ReplyDeleteaap apni dil ki baat sirf prime time or blog me rakhte hai.
aap neutral patrakar ko salam.....
I am just thinking what am i doing?
ReplyDeleteAnyways aapko batana bhul gaya ki aapke colegue sharad sharma ne bhi blog likhna shuru kiya h(shayad meri salah par)
ReplyDeletehttp://teerthyatri.blogspot.in/?m=1
Kuch aache comments likh dijiyega pls coz wo aapko apna ideal manta h ,aacja lagega use..i wud really appericiate it as well....baaki pehla blog jo likha h usne wo bilkul aapki yaad dilata h....same soch h dono ki media ke baare mein....hogi bhi kaise nahi....dono neutral aur sacche patrkar jo thehre
सर देश तो अशोक जैसे लोग ही चला रहे हैं। मोदी - राहुल तोह हर गली-मोहल्ले में ठेके खुलवा रहे हैं। खुद तो पी रहे हैं मिनरल वाटर, लोगो को देसी से मरवा रहे। इलेक्शन है तोह चाय पर चर्चा या फिर कुली-ऑटो-रिक्शा वालो के साथ मैनिफेस्टो बना रहे।
ReplyDeleteThanks for thi blog sir
ReplyDeleteWell Sir, Its people like these that keep this huge and diverse country rolling.
ReplyDeleteModern democracy makes it extremely difficult for politicians of any kind to effect drastic changes. They come in to enjoy the illusion of being in power and 'doing somethig for the country.'
Thanks for such blog
ReplyDeletesirji sahi maayno me socity ko msg inhi logo ki wajah se ja raha hai baaki to paisa aur resource rahne se policy bana k koi bhi desh ko kaise bhi chala lega ......
ReplyDeletesirji sahi maayno me socity ko msg inhi logo ki wajah se ja raha hai baaki to paisa aur resource rahne se policy bana k koi bhi desh ko kaise bhi chala lega ......
ReplyDeleteOutstanding..Never Give up attitude by Shri Ashok Rohila.
ReplyDeleteWe as a society could draw many lessons from life of this simple man.Truly simple leaving.. high thinking.. Ravish..Thnks a lot for bringing into limelight..
आपकी ही पंक्तिया अशोक को समर्पित;
ReplyDelete"हर वक्त कई चीज़ें करने का मन करता है। शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर।"
niche likhi gyi line agar sab log dil mein utaar kein toh Dharti Jannat banjaygi doston ....
ReplyDelete"पैसा ही सब कुछ नहीं होता | "
Happy Holi ToYouAll
bola nhi ja raha hai muz se.. padne ke baad
ReplyDeleteप्रिय रवीश भाई,
ReplyDeleteमैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं, ऐसे शख्स को सामने लाने के लिए.
किताबों के शौक की वजह से कई तरह की किताबें मेरे पास हैं. मैं भी
कुछ किताबें इनकी लाइब्रेरी के लिए देना चाहता हूं. यदि इसी ब्लौग
पर इनसे संपर्क का पता देने का कष्ट करें तो आपकी मेहरबानी.
धन्यवाद!
great sir................. this kind of story inspire us to do better for us and best for those who don't have resources.
ReplyDeleteSatyamev Jayate... Sir!! aise logo ko aap Prime Time pe 10 min ka slot nikaal ke dikhaya kijiye. Inspiration milega. Neta logon ka batkuchan sunne se accha hai Ashok Rohilla ko Prime Time pe dekhna.
ReplyDeleteJo kam amir khan #satyamev jayatey se kar rahey hai, vahi kaam aap karrahey hai....har desh bhakt is vakt aapne kaam par hai.
ReplyDeleteAshok Rohila ji Kitni asafalataon ke baad bi safal hai... isi ko sachi safalta kahte hai......
ReplyDeleteRavish Ji Apka to jawab nahi....
apka har lekh touch kar jata hai...kanha se late hai itni touching...
क्या खूब प्रेरणादायक है.. सही में कौन चला रहा है देश..
ReplyDeleteयह पाखंडी भारतीय मध्य वर्ग के मुह पे एक जबरदस्त तमाचा है.
ReplyDeletePersons like Ashok made India. Political parties never can create such personalities. If you have an eye for it, there are millions in India like Ashok. No invasion can destroy spirit of India. That is why inspire of 2000 years of invasions, India is livable
ReplyDeleteआज जो देश चला रहा है अगर वो इसे पढ़ ले तो उसको भी लगेगा कि शायद देश तो अशोक जैसे चपरासी ही चला रहे हैं।
ReplyDeletewhat a story..ravish ji ..neta logo ko thoda araam dijiye Prime time mai ab..in sab stories ko dikha ke India Shine hone ke chances jyada hai ..aap TRP wale waise bhi nahi hai ..to kya fark padta hai..yakin maniye election ke iss time mai jab muddo ke siwa har cheez mai behes ho rhi hai ..to yahi tarika bacha hai public aur neta logo ko mudde pe laane kaa..soch rha tha shayad aap iss baar hum log mai media wala blog karenge..bt na jane kyu aap ye bhadas sirf blog pe hi nikalte hai..ajeeb lagta hai..!!
ReplyDeleteएक लेख लिखा था बुद्धू बक्से आपके इस मानवीय लेख के प्रसंग में वो आज प्रासंगिक हो गया है, शायद आपके लिए लिख गया था
ReplyDelete‘’ बिना दर्शक का मीडिया कैसा होगा ?
कर्मचारी वो जो प्रबंधन की इच्छानुसार कार्य करे यदि वो ऐसा ना करे तो अच्छा कर्मचारी नहीं माना जाता , भले ही वो कितना ही काबिल क्यों ना हो, मीडिया भी तो ऐसा ही करता है, पसंद हो ना हो ’’ देखो ‘’ वही देखो, समझो जो दिखाया और समझाया जा रहा है| अंतर केवल इतना है दर्शक और कर्मचारी में की कर्मचारी को इच्छा विरुद्ध कार्य करने का मेहनताना मिलता है और दर्शक के साथ तो घोर अन्याय उलटे खर्च करना पड़ता है, क्यों भाई मीडिया दर्शक आपको अपनी इच्छा , परेशानियो के विरुद्ध जा कर झेलता है, चाहे विज्ञापन हों या कार्यक्रम या कवरेज , क्यों इतना अन्याय अपने उस दर्शक से जो आपकी टी.आर.पी. बढाता है, आपके अस्तित्व के होने का आधार दर्शक से इतना घोर अन्याय ?
दर्शक
1. आपकी टी.आर.पी. बढाता है
2 . जबरियन झेलता है
3. अपना समय खर्च करता है
4. अपना पैसा खर्च करता है ,
इसके बदले में आप देते क्या हैं, अनुपयोगी लोगों का महिमामंडन, शोषकों की तरफदारी, और साइलेंसर जन मानस की आवाज पर ?
अपने सबसे अहम् हिस्से ‘’ दर्शक ’’ का कोन सा कार्य सरल करते हैं आप जो सुबह शाम आपकी पूजा की जाय |
इतना इच्छा विरुद्ध कार्य तो कोई पेड कर्मचारी भी नहीं करेगा तो दर्शकों को मीडिया का ‘’आज्ञाकारी कर्मचारी ‘’ मानते हुए दर्शक को मीडिया कर्मचारी मानने एवं तदनुसार वेतन देने में क्या हर्ज़ है |
‘’ बुद्धू बक्से तुम तो बुद्धू ही ठहरे “
ReplyDeleteबुद्धू बक्से तुम सचमुच बुद्धू ही हो, कितना समझाया तुम्हे पर तुम हो की सुनते ही नहीं , फिर कहते हो मेरे सारे तार निकाल के क्यों रख दिए आपने | अरे भाई बुद्धू बक्से, तो क्या करें तुम्हारी बुद्धूगिरी को अपने खून-पसीने की कमाई से कब तक सींचे | बुद्धू बक्से तुम जानते हो तुम सदैव एक ऋणात्मक ऊर्जा के स्रोत की तरह जीवन में जबरियन घुसते से प्रतीत होने लगे हो, तुम वही तत्व आत्मसात करते हो जो तुम्हारे अंकगणित के हित में होता है और उस हित को तुम बुद्धू बक्से जबरियन हम पर थोपने लगे हो ‘’ मान ना मान में तेरा मेहमान ‘’|
बुद्धू बक्से क्या तुम जानते हो, तुम्हे चन्द्रगुप्त पसंद नहीं, शिवाजी पसंद नहीं, अहिल्या पसंद नहीं, लक्ष्मीबाई पसंद नहीं, निराला पसंद नहीं, पन्त पसंद नहीं, धर्मवीर भारती पसंद नहीं, जन साधारण पसंद नहीं, जन मानस पसंद नहीं, चेन्नमा पसंद नहीं, और मातृत्व और देश भक्ति का नाम बन चुकी पन्ना धाय का नाम तो सुना भी नहीं होगा तुमने | अब तुम ही कहो बुद्धू बक्से मातृत्व की वीरता के कपड़े उतारते हुए तुम्हे कब तक सहें | खेतों में काम करती, सीमा पर लड़ती माँ और बेटियाँ ग्लेमरस नहीं होती फिर भला वो तुम्हे फबेगी कैसे | पर हम जानते हैं बुद्धू बक्से तुम अंकगणित के जाल में इस कदर उलझ गए हो की हमें भी उस में उलझाने लगे हो, बुद्धू बक्से पर क्या तुम जानते हो की “ अंकगणित से अतिशय प्रेम साहस को खा जाता है ‘’ |
बुद्धू बक्से तुम जब से आये हो किताबें दूर हो गईं, खेल का मैदान सूना हो गया, पुस्तकालय वीरान हो बंद हो गए, सूरज का उगना भी संशय में खोता गया बस सत्य रहा तो केवल तुम्हारा हर पल चलना और जबरियन हमारा बिजली का बिल बढ़ाना | बुद्धू बक्से जब तुमने खुद को हमारी जरूरत मान लिया तो फिर तुम उतर आये अपनी असलियत पर, जबरियन विज्ञापन का जहरीला इंजेक्शन हमारे दिमाग की नसों में लगाने के षड्यंत्र पर | देखो यार बुद्धू बक्से हर बात की हद होती है, पर तुम तो उसे भी नहीं मानते, लगे रहते हो अपनी ठेसम-ठेस मचाने | अब तुम्हे कौन समझाये बुद्धू बक्से कि, “ ठसने से ठसा तो जा सकता है पर बसा नहीं जा सकता ‘’ |
बुद्धू बक्से तुम जानते हो, तुम कुछ विचलित से दिखने लगे हो, जानते हो क्यों तठस्तता एक हद तक इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती है, याद कर सको तो करो भीष्म पितामह को, अपनी प्रतिज्ञा के प्रति तठस्तता ने उन्हें सच से दूर कर स्वयं इच्छा से मरने के वरदान के होने के बावजूद उन्हें दिया शरशैया का दंड | साथ सत्य का तो देना होता है क्या तुमने भी बुद्धू बक्से यह तय कर लिया है की शरशैय्या पे जाने से पहले तुम सत्य का साथ सुनिश्चित नहीं करोगे ? पर कोई करे भी तो क्या “” मरे बिना स्वर्ग भी तो नहीं मिलता “ |
अंत में ‘’हे’’ बुद्धू बक्से तुम ठहरे बुद्धू के बुद्धू, 30 साल के अपने जीवन में तुम यह पता नहीं कर पाए की जाना किधर है, तो भाई हम क्यों तुम्हे अपने पल्ले बांधे भला, वैसे भी अंकगणित के ना सुलझने वाले समीकरण के फेरे में तुम खुद को पूरी तरह बांध कर अपना सम्पूर्ण साहस तो तुम खो चुके हो, साहस का जाना अकेले घटने वाली घटना नहीं इस के साथ विवेक भी चला जाता है | पर तुम अब भी नहीं मानोगे, वैसे भी ‘’ भुगते बिना मान लेने से, अहम् को ठेस जो लग जाया करती है “ सो तुम भी क्यों मानने लगे , इंसानों के साथ रहते-रहते बुद्धू बक्से कुछ तो संक्रमित होना ही है ना ?
प्रिय मित्र बुद्धू बक्से अंत में एक बात कहेंगे तुम्हे बुरा लगेगा , बहुत बुरा लगेगा पर क्या करें तुम से ही सीखा है ठेसम-ठेस मचाना सो कुछ हम भी तुम से संक्रमित हो गए हैं :-
‘’ चालाक की चालाकी को दुनिया खूब समझती है पर चालाक इस सत्य को कभी समझ नहीं पाता “
looking for Anita Aulak " chand santare aur" published in sarika in early seventies.
ReplyDeleteHoli ki subhkamnayein aap sabhi ko..
ReplyDeleteAap Sabhi ko Holi ki Shubhkaamnaae ..
ReplyDeleteOutstanding blog!!!
ReplyDeleteEse logon ke sath milkar kuchh karna hai . Jo number aapne diya hsi wo Nahi mil raha hai. Email ho to post keejiyega. Main wapas pahuch kar fundraising try karungi.
ReplyDeleteरवीश जी, आज से आपका ब्लॉग फॉलो किआ है - पहले सिर्फ पढ़ लेता था :)
ReplyDeleteकल रात 'क्वीन' पिक्चर देखि थी - कुछ कुछ वैसे ही लगा के जिंदगी कब क्या सिखा/दिखा दे कौन जानता है - लिखते रहिये - होली कि शुभकामनाएं - आपको और छुटंकी को भी :)
Ravish sir thanks for this great full blog.
ReplyDeletewe all salute u dil se.holi mubark..... .
aap ki umda reporting youtube pe dekh lia kati hu....news channels se to tauba hi kar li maine.....aap hi ki tarah journalist banna chahti thi kabhi...ab khayal se bhi dar lagta hai...
ReplyDeleteAny address and account no?
ReplyDeleteAbhi bhi acche log jyada hai.Lekin Negative chizo par jyada charcha hoti hai
ReplyDeleteravish ji aapko aur aapke samsta parivar ko holi ki hardik shubkamnaye.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletesir, happy holi !!!
ReplyDeleteVery inspiring.
I wanted to thank you sir. Now a days whenever I am bored of something I try to imagine how you would have seen this.
Once I was reading about a protocol and it was not at all interesting and then I got an idea, I took interview of that protocol in your style.... "today we have ipsec in our studio ...." and suddenly it became very interesting.
I must say, you are very inspirational and having a very deep insight.
one more thing sir the number is not correct, I have tried twice. :)
--- anurag asthana
Sachmuch Ashok ji ek bahoot bade prena shrot hai. unke jajbe ko salam . Aap sab "khawatino hajraat" ko holi ke dher saree mubarkbad .
ReplyDeleteरविश जी,
ReplyDeleteइस लेख का अंग्रेजी अनुवाद करके thebetterindia.com पर प्रकाशित करने की इच्छा है. उन्होंने कहा है कि अगर आपकी इजाज़त हो तो वो यह प्रकाशित करने को तैयार हैं. आपकी रज़ामंदी हो तो बताएँ (bits[dot]pratik@gmail[dot]com पर).
आभार
-प्रतीक
Its heart warming to read positive stories in our society.
ReplyDeleteIn reference to your tweet on Oscar Wilde, wanted convey that you can access (for free) a lot of English Classics at Project Gutenberg website (if you don't mind reading ebooks!).
http://www.gutenberg.org/
सर, चला तो देश राहुल - मोदी और उनके जैसे और लोग ही है, लेकिन ये देश चल अशोक जी जैसे लोगों से रहा है।
ReplyDeleteआपने बताया कि उनकी वेबसाइट पैसे की कमी के कारण बंद हो गई है, मैं वेबसाइट डिज़ाइनर/डेवलपर हूँ, हमेशा अपने हुनर से सामाजिक कार्य में योगदान देना चाहता और करता रहा हूँ, मैं उनकी वेबसाइट बनाना और उसे चलना चाहता हूँ, निःशुल्क। मेरे पास अपनी एक छोटी से लाइब्रेरी है मैं उसे भी उनकी लाइब्रेरी को सौपना चाहता हूँ। आपने जो मोबाइल नंबर दिया है उससे अशोक जी से संपर्क नहीं हो रहा है। मेरा नंबर 9971553365 है, आप अशोक जी से मेरा संपर्क करा सकें, आभारी रहूँगा।
अशोक जी कि सोच काफी अछी है और उससे अछी बात है कि उस सोच पर वो कार्य कर रहे है नही तो लोग सोचते तो बहुत है लेकिन कर पाते कम लोग है और उस अछे कार्य को जो ब्लॉग के माध्य्म से हम सब तक आपने पहुचाया उसके लिए आप भी धन्यवाद् के पात्र है नही तो आज कल के जाने माने पत्रकार बड़े लोगो का गुणगान ही लिखने मै ब्यस्त है ! गोरे राज सम्राट , जयपुर
ReplyDeletemai ravish bhai ka bahut sukh gujar hu ki ve hamesa ki tarah ki kahani se ribbro karte hai jisko sun kar apne aap ko fir se sochne ko majbur kar deti hai
ReplyDeletePrakriti humesha balance karti hai ache kharab me... Hidustan me itne chor, brasht hai unke bich aise log bhi hai.. Agar koi bhagwan hai kahin o pakka mathematician hoga mujhe lagta hai. kamal ke equations hote hai mother nature ke.
ReplyDeleteSir, I never miss your programm at NDTV.
ReplyDeleteअशोक की हिम्मत को सलाम सच हम नहीं कर पा रहे हैं हिम्मत .....
ReplyDeleteअनुपमा तिवाड़ी
Bahut khub.likhte hai aap....bata nai sakti kitna.intezar rehta hai aapke blog ka...
ReplyDeleteनमन है रोहिलाजी की लगन को।
ReplyDeleteRavish ji, its an eye opener. i would love to visit his library and give some books
ReplyDeleteRavish ji, astounding!
ReplyDeletestun silence...!!...salute for you Ashok
ReplyDeleteधन्यवाद रविश जी.. ऐसे अन्छुए किस्से सुनाने के लिये.. वाकई प्रेरणादायक है।
ReplyDeleteHi Ravish
ReplyDeleteThanks for such a inspiring story, well his website is back in action now, i got all the data from him and it will be fully functional in couple of days.
Thanks again for your story on him, only then i am able to know about him and help a bit from my side
ravish Baiya Pranam,
ReplyDeleteDesh chalane ki khushfahmi to anginat paries aur unke leaders ko hai ki wohi khe rahe hain badi mehnut se desh ki naav, per sachchai yahi hai ki ASHOK ji jaise log hi wo patwar hain jinse desh ki naav chal rahi hai. Ise kahte hain sachcha sant jo dil ki sune.
regards
i talk to ASHOK JI and IT WILL BE MY GOOD LUCK IF I CAN DO ANYTHING for the ASHOK JI....9811664539
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदेश अशोकजी जैसे लोग ही चला रहे है अच्छा है ब्लॉग के जरिये से उनसे मिलना और प्रेरित होना ,वर्ना टी वि पर आने से सिर्फ सेलिब्रिटी ही बन जायेगे।
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