वो मेरा दोस्त नहीं है । मेरा एक और मैं है । हम एक ही क्लास से सरकते भटकते चले आ रहे हैं । गिरते-पड़ते । पाँचवी से । वो नहीं आता तो मैं यहाँ नहीं आता । उसे देखकर मैंने उससे ज़्यादा सीखा । बहुत सी बुराइयों लोपरवाहियों से बच गया । जिन्हें वो ख़ुद भी करता तब भी मुझे बचा लेता था । मुंबई में उसका घर भी मेरा घर है । दिल्ली में मेरी उसका । मुंबई जाकर उसके घर गया नहीं ये और बात है । पटना में जब भी उसके घर गया बाहर का दरवाज़ा खुलते ही सारे दरवाज़े खुलते रहे । उसके घर से जो भी खाने का सामान आया मेरे लिए भी आया । ख्याल रखने की उसकी आदत मेरे भीतर बेख़्याली पैदा कर गई । मैंने कभी आवाज़ नहीं दी और उसने हमेशा सुन लिया ।
जिस राज्य और समाज से आता हूँ वहाँ कभी किसी को नियमों पर चलते नहीं देखा । जिसे भी जानता था सब किसी न किसी चोरी में शामिल रहे । नियमों की धज्जियाँ उड़ाते रहे । किसी भी समाज में शहरी नागरिकता के संस्कार पनपने में वक्त लगता है । उसके पिता ने मेरी ज़िंदगी बदल दी । बिजली का मीटर तेज़ भाग रहा था । बचपने में कह दिया चाचाजी जीभिया( जीभ साफ़ करने वाली प्लास्टिक की पत्ती) लगाकर रोक दें । छठी सातवीं में पढ़ता था । उनका हल्का ग़ुस्सा और समझाना ऐसे घर कर गया कि कभी निकला ही नहीं । वक़ील होकर भी यही साख थी । ग़लत नहीं करते हैं । वे जब दिल्ली आते तो यही बताते कि पैरवी नहीं कर सकते । जितना मिला उससे ख़ुश रहे । कभी लालच करते नहीं देखा । उनका ही असर है कि आज भी ग़लत करने से दस बार सोचता हूँ । होता नहीं । लगता है कि उनका भरोसा टूट जायेगा । ये वही असर था जिसे मेरे ससुर जी ने धार में बदल दिया ।
पिछले के पिछले साल पटना गया था । मुझे देख ऐसे ख़ुश हुए जैसे उनका बेटा आया हो । वो ऐसे ही ख़ुश हुए । उनके चेहरे की झुर्रियाँ मुझे देखकर जवान हो गईं । कभी मेरी ग़ैर हाज़िरी में मेरा ज़िक्र करके देखियेगा वो ऐसे ही ख़ुश होंगे । इतना आशीर्वाद दे देते हैं कि कुछ वहीं छोड़ कर आना पड़ता है । वो वहाँ नहीं था । ख़ाली घर । फिर भी कह दिये कि जाओ भीतर जाकर घर देख लो ।
पटना में वो मेरा दूसरा घर था जहाँ मैं अपने घर की विसंगतियों और असहमतियों को छोड़ हक़ से जा सकता था । आज भी वो मेरा ही घर है । इस बार पटना साहित्य मेले में गया था । पाँच घंटे के लिए । चाचाजी से मिलने नहीं जा सका । ऐसे खटका जैसे चोरी करके पटना से भाग रहा हूँ । लगा कि फोन कर दूँ । नहीं कर पाया । हवा में उड़ते जहाज़ के नीचे
मैं अपना नहीं उनका घर ढूँढ रहा था । एक बार फ़ोन तो कर ही लेना चाहिए था । खैर ये अफ़सोस भी सबके लिए नहीं होता । कहने के लिए भी नहीं होता ।
मुंबई से लौटते वक्त केनरा बैंक के कार्यकारी निदेशक ने कहा कि दिनमान पत्रिका न होती तो मैं घूसखोर हो जाता । मैं बताने लगा कि जो दोस्त इस वक्त मेरे घर पर इंतज़ार कर रहा है वो न होता तो मैं भी चोर बेईमान और दहेज़खोर होता । मैं उनके घर अपने घर से अलग होने जाता था । मेरे घर में पढ़ाई का माहौल बिल्कुल नहीं था । नाते रिश्तेदार भरे रहते थे । दिन भर रिश्तेदारों के पैंतरें और तानेबाज़ी । उसी का असर है कि दिल्ली में जब अपना घर ख़रीदा तो सबसे पहले रिश्तेदारों को बैन कर दिया । मैं अब इस घर से नहीं भागना चाहता था । तब घर और चौपाल में फ़र्क ही नहीं लगता था । शहर में घर के बाहर शहरी संस्कार वहीं से मिला ।उसके घर में सब पढ़ते ही थे । कोई बड़ा अफ़सर था तो कोई अच्छा नागरिक । स्कूल से हम कालेज और पटना से दिल्ली तक आ गए । जहाँ जहाँ मैं फँसा वहीं वहीं वो गया । मैं ख़ुद की जगह उसे भेज देता था । वो ख़ुद भी चला जाता । तुमसे नहीं होगा मैं देखता हूँ । उसने न जाने कितने नए लोगों से मिलवाया । वो सबसे मिलता और मुझे साथ ले जाता । उसके नाते रिश्तेदार उसे देखकर मेरे बारे में पूछते रहे । अरे रवीश नहीं आया ।
हम दोनों की ज़िंदगी में दोस्त बहुत आये । जो भी उसके ज़्यादा क़रीब हुआ लगा कि मेरा हिस्सा कम हो गया । उम्र ही ऐसी थी । ईर्ष्या होती थी । हम अलग अलग जीना सीख गए मगर बेहद तकलीफ़ के साथ । उसका पता नहीं पर मुझे तकलीफ़ हुई । एक ही ट्रेन से दिल्ली आए थे । हर अनुभव साझा । उसके जाने के बाद उसके बनाए दोस्तों में उसे ढूँढता रहा । मिला ही नहीं । धीरे धीरे मैं भी जीने लगा । पर बहुत ढूँढा । मिस किया । हम पहली बार अकेले रहने जा रहे थे । मेरा शहर और घर बस रहा था और वो घर बसाने के लिए शहर ढूँढ रहा था । उसकी कमी ऐसे ख़ली कि ख़ुद का भरोसा कमज़ोर होने लगा । वो नहीं है । कैसे करूँगा मैं । ख़ुद से बचने की रेस में मैं किसी और रेस में शामिल हो गया । काम ।
हम एक दूसरे से ग़ैरहाज़िर हो गए । इस अनुपस्थिती में कितना कुछ हो गया है । फिर भी लगता है कि कुछ नहीं हुआ है । हम अब कम जानते हैं पर सब जानते हैं । हमारे रिश्ते में ग़लत सही को जगह नहीं मिली । हमारे बीच प्राइम टाइम टीवी नहीं है और न वो दुनिया जिससे मैं अचानक घिर गया हूँ । मेरी दीदी ने बिरयानी बनाकर भेजा तो नयना ने बताया कि उसके लिए भी पैक कर दिये हैं । वो लेकर गया भी । मुंबई । मैं पटना में था ।
वो रात मैं भूल नहीं पाता । बाबूजी चले गए । उनका शरीर पड़ा था । मैंने तो कहा भी नहीं कि चलो । कुछ बात ही नहीं हुई । बहुत बाद में ध्यान आया कि बगल की सीट पर बैठा जो कार चला रहा है वो अनुराग है । पटना से मोतिहारी के उस तकलीफ़देह सफ़र से रोज़ गुज़रता हूँ और रोज़ ही अनुराग ड्राइविंग सीट पर होता है । उसी का भरोसा है कि डर नहीं लगता । वो आ जायेगा । आया भी है । तभी जब लिफ़्ट में था तो ख्याल आया कि देखें आज वो दरवाज़ा खोलता है कि नहीं । मेहमान होकर मेज़बान की तरह । वही हुआ । मैंने घंटी बजाई और दरवाज़ा उसने खोला । जब भी वो आता है लगता है मैं आया हूँ ।
आपके राजनीति वाला रंग और रिश्तों वाली लेखनी रंग में बहुत अंतर है। ये रंग दिल को छू गया। पालीवाल साहेब वाली लेखनी ने भी झकझोर दिया था। मेरे शहर का नाम ही काफी है। उसने तो महात्मा को भी कुछ नया दिया था।
ReplyDeleteपढियेगा जरूर। एक आध शब्द कमेन्ट के छोडेंगे तो आपकी भी मेरे शहर से आत्मीयता हो जाएगी
छूटता बंधन & "The Other Experiment Of Mahatma" at http://atulavach.blogspot.in/
जब कुछ लिखा, कहा या सुना हुआ बहुत छू जाता है तो कुछ भी लिखा कहा या सुना नहीं जाता। अभी फिर कुछ कुछ वैसा ही हो रहा है। हर पंक्ति की आखिर में और हर पैरा के शुरू में, अपने कुछ भूले हुए (खोये हुए नहीं ) दोस्तों को ढूँढ रहा हूँ। उस तलाश में कुछ कुछ खुद को भी खोता जाता हूँ। सफ़र अकेला था नहीं , पर हर मज़िल अकेली लग रही है। यहाँ ज्य़ादा नहीं लिखना चाहता। ये लेख आपके और आपके मित्र के बार में है। पर फिर भी लगता है उस दरवाज़े से मेरे अंदर ही कोई चला आ रहा है।
ReplyDeleteतीसरी बार पढ़ रहा हुँ , अकेले में और भी पढ़ुंगा। ऐसे रिश्तो की अहमियत टूटती और छूटती जा रही है।
ReplyDeleteऊपर से मेरे शहर का ज़िक्र
Jab bhi aapka blog padhta hun , lagta hai ki koi meri hi baat ko bade hi sulajhe hue shabdon me vyakta kar raha hai .. Adbhut !!! Kai rishton ko pata nahi ham abhivyakta nahi kar paate keval unhe mahsoos hi karte hain . Bahut Badhiya sir .
ReplyDelete:-|
ReplyDeletedear ravish ji
ReplyDeletevinod dua ji ka parashan kal ibn7 per kaisa laga.
bataye.
NDTV LOST GREAT ANCHOR AND REPORTER(VINOD DUA)
रवीश भाई, बहुत बढ़िया लिखा है, दिल को छु गयी। प्राइम टाइम पे वापसी अच्छा लगा, पहले से काफी स्वस्थ लग रहे थे, इसी तरह बीच-बीच मे छुट्टी ले लिया कीजिये(जानता हूँ मुश्किल है फिर भी), सेहत के लिए अच्छा होता है, सलाह के लिए नहीं, एक शुभचिंतक होने के नाते लिख रहा हूँ। वैसे आप दर्शक लोगो को पढ़ा-लिखा समझते है ये सुनकर अच्छा लगा, वर्ना नेता लोग तो हमें बेवकूफ ही समझते है।
ReplyDeleteमोहन राकेश और कमलेश्वर की कहानी की तरह इस ब्लॉग पोस्ट को पढता गया. अंत तक पहुँच कर सिर्फ नम आँखें रह गयीं।
ReplyDeleteRavishji बहुत जबर्दस्त स्क्रिप्ट "बीस साल baad" टाइप . अनुरागजी का जिक्र अंतिम अनुछेद में किया है . फिल्मो के लिए अच्छी स्क्रिप्ट लिख सकते हो . हाथ आजमाने में कोई हर्ज नहीं है . अनुराग sahib और उनके बाबूजी का सनिद्य सबके नसीब में नहीं होता आप बहुत खुशकिस्मत है .
ReplyDeleteRavishji बहुत जबर्दस्त स्क्रिप्ट "बीस साल baad" टाइप . अनुरागजी का जिक्र अंतिम अनुछेद में किया है . फिल्मो के लिए अच्छी स्क्रिप्ट लिख सकते हो . हाथ आजमाने में कोई हर्ज नहीं है . अनुराग sahib और उनके बाबूजी का सनिद्य सबके नसीब में नहीं होता आप बहुत खुशकिस्मत है .
ReplyDeleteनौकरी में आने के बाद मैने भी अपनी डायरी में इस तरह के अनुभव को लिखा था लेकिन अफसोस इस बात का है कि वो डायरी भी अपने दोस्तो को दिखा नही पाया। मेरा 'वो' तो कभी "चोरी-छुपी" के खेल में भी कभी मुझे 'चोर' नही बनने दिया और उसका आलम यह था कि मोहल्ले में कोई उत्पात मचाने पर भी वो कभी मेरा नाम उसमें शामिल नही होने दिया। सारी गलती वो अपने नाम पर ले लेता था। उदाहरण के तौर पर 'होली' में किसी के घर से लकड़ी चुराना हो या आम, पपीता या केले चुराना !
ReplyDeleteनमस्कार रविश सर
ReplyDeleteआपकी लेखनी कमाल की है कितने रंग है और हर रंग बेमिशाल | मैं हर रोज आपका blog पढ़ता हूँ लेकिन आज पहली बार कुछ लिख रहा हूँ | आज यह post पढ़ने के बाद खुद को रोक नही पाया कुछ देर के लिए किसि और दुनिया में खुद को महसुस करने लगा | शुर्किया आपका मेरा मुझे याद दिलाने के लिये |
Ek bar pada dil nahi mana phir ek bar phir ek bar aur har bar lagta hai ki ek bar aur kuch ristay asay hi hotay hai jha uska hona hamara hona hi hota hai
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteFor true friendship
ReplyDeleteवो देखने में लगता भी मेरे जैसा था
सिर्फ लहज़ा ही नहीं चेहरा भी मेरे जैसा था
वाक्इ आप और आपके मित्र किस्मत वाले हैं। ऐसी दोस्ती किस्मत वालो को मिलती है। दुआ करता हूँ की ये दोस्ती ऐसे ही बनी रहे।
ReplyDeletehttp://ravishingravish.blogspot.in/
ReplyDeletebahut dino ke bad pt. me aapko dekhna , sunna sukhad laga. ye blog padhte hi sabhi ko apne dost jarur yad aayege. ye social media bhi kamal ki chej hai. f.b. ki madad se mujhe kuch din pahle hi ak dost mili jo 14-15 sal pahle duniya ke jhamele me kahi kho gayi thi.ho sakta hai ki ise padhkar hame is tej bhagti jindgi me kuch aur chute,bhule hue log mil jaye.
ReplyDeleteEK DIN GHAR PAHUNCHANE PAR DEKHATA HOON MAIN..
ReplyDeleteKI JAB MAIN GHAR NAHI RAHATA HOON , TAB BHI GHAR RAHATA HAI ...
(Gyanendrapati ki ek kavita )
kya baat hai sir............aap to great ho ......
ReplyDeleteआपकी कहानी पढ़कर अपने दिल की एक बात करने से अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ. पता नहीं कभी इसका इजहार भी कर पता या नहीं. मेरी जिंदगी में तिन ऐसे मोड़ आये जहाँ मैं टूटने के कगार पे था. इन तीनों मौकों पर मैंने स्वतःस्फूर्त रूप से सिर्फ एक ही आदमी को याद किया और वो मेरा सबसे घनिष्ट मित्र था. हालांकि वो मुझसे 1500 KM की दूरी पे था. आप यकींन मानिये उसने तीनों मौकों पे मुझे बचा लिया. यह कैसे हुआ, मैं अभी तक समझ नहीं पाया हूँ. क्या कोई रूहानी रिश्ता बन जाता है या हम एक दूसरे की मानसिक बनावट में पैवस्त हो जाते है. पता नहीं. पर कुछ तो है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखे हैं ..हमेशा की तरह....
ReplyDelete"वो मेरा मैं है"शीर्षक पढ़कर मैं समझ गयी कि आज आप हमें भावनावों से भिगोने वाले हैं....कई बार पढ़ा.
आपने सबको हिंदी के रंग में रंग दिया है....अच्छा लग रहा है.
Pahle aapka Prem Patra fir " Wo mera mai hai" kya kahoo ? Aap bahut sunder likhte hai.
ReplyDelete...................बहुत देर से सोच रहें हैं कि क्या लिखें........
ReplyDelete"किसी ने ज़हर कहा,किसी ने शहद कहा,
कोई नहीं समझ पाया, ज़ायक़ा आपका...!!
इनसानियत, ईमानदारी, भरोसा,अच्छाई,.....
कितने नामों में सिमटें हो...'सिर्फ एक तुम '
ज़िन्दगी में इस एक छोटी चीज़ का बहुत बड़ा मलाल है कि मेरा 'ऐसा' कोई दोस्त नहीं.. शायद मैं नहीं बना पायी या कोई बन नहीं पाया या शायद मैं ही नहीं निभा पायी ! ये भी सच है कि अब ऐसे दोस्त मिलते नहीं.. आपने मेरी इस कमी को और बढ़ा दिया।
ReplyDeleteहर किसी की कहीं न कहीं ऐसी ही कहानियां हैं, जिन्हें हम जिन्दगी की आपाधापी में बिसराते जाते हैं. बस आपके शब्दों की जुबान से साकार होकर वो कहानिया सामने खडी हो जाती हैं.
ReplyDeleteनिर्मल भावों का सुहृदय प्रवाह मन मोह कर ले गया। काश अपनत्व हर पल के साथ पल्लवित होता रहे।
ReplyDeleteRavish babu..bahut sunder lekhle bara...iitne achii tarah se likha ki ek baar me mujhe damjh me nahii aaya to char baar padha....is daudti bhagti jindgi me aapne dabko apne pechhe sochne per majboor kar diya...kal ke primetime me bahut fresh dikh rahe the..isliye break jaroori hai......m
ReplyDeleteदिल को छू गया......टटोला तो अहसास हुआ कि मेरा भी एक और मैं है लगता है कि जैसे मैं ही हूँ.....शुक्रिया इस तरह से सोचने और अहसास करवाने के लिए । मुझे अब लगता है कि हम सबकी जिंदगी में कोई न कोई ऐसा होगा जो कि हमारी तरह ही हो या यूं कहूँ कि हम ही हो ।
ReplyDelete"ख्याल रखने की उसकी आदत मेरे भीतर बेख़्याली पैदा कर गई । मैंने कभी आवाज़ नहीं दी और उसने हमेशा सुन लिया ।"
ReplyDeleteजो भी है इसका अर्थ पर इतना जरुर है की किस्मत वाले है आप..:) सबको नसीब नही होता कोई ऐसा और तलाश हर किसी को होती है..:) हम चाहेंगे आपका "मैं" हमेशा आपके साथ रहे..
Dil ko chu jata hai aap ka likha hua.......
ReplyDeleteAnurag ji ka Patna wale ghar ka address dijiyega, kisi sunday ko babuji se mil aaoonga. Lagta hai hamari aur unki frequency ek si hai.-mahendrasingh68@gmail.com
ReplyDeleteBhai Sahab kirpa karke politics pe likhne ki jagah kuch likhiye jaisa aaj likha hai aapne. or Prime time pe bhi kuch aisa hi naya kijiye.
ReplyDeleteBhagwan aapko Hamesha khush rakhe :)
अब समज आया , शायद इसी दोस्त की वजह से आपने उस दोस्त को उस दीन मंच पे बुलाया था हमलोग में , तभी ही लग रहा था की आपने भी शायद यह अनुभव किया है , अब समज आया
ReplyDeleteजब आपने हमलोग में २ आई ऐ एस और १ आई आई एम वाले को बुलाया था , जिसमे एक दोस्त ने अपने दोस्त की जी जान से मदद की और आई ऐ एस बनाने का स्वप्न को साकार कर दिखाया
और आपने कहा था की " जब माँ बाप डांटे दोस्त के साथ दोस्ती करने पर , तो उनसे कहियेगा की दोस्त ऐसे भी होते है "
शायद आपने अपने अनुभव से प्रेरित होक ही वोह किया था
dhanyawad .
ReplyDeletekuchh aisa sochne par majbur karne k liye
isse yah yehsas hua ki humne bhi kuchh chhod diya hain
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ReplyDeletedhanyawad .
ReplyDeletekuchh aisa sochne par majbur karne k liye
isse yah yehsas hua ki humne bhi kuchh chhod diya hain
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ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा रवीश जी! आपकी बात मौखिक हो या लिखित, अंत तक सुनने और पढ़ने का मन करता है।
DeleteEk aisa hi dost bachpan ka, nursery se saath tha dono ka... Dono saath hi rehte, khana khelna sab saath... dono saath hi pite b kai baar.. jindgi aisi rang layi ki wo kolkata reh gaya main na jane kaha-2 ghumta raha, delhi..mysore..bangalore..hyderabad aur ab fir bangalore me bas gaya. Sehar to ye b acha hi hai pat yaha aisa koi nahi iske hone se lage ki main hu....
ReplyDeleteक्या रवीश ये क्या अपने जीभिया को प्लास्टिक का बोले दिया | प्लीज भ्रम न फैलाये | मेरे पास तो स्टील का जीभिया है | और कुछ दिन पहले ताम्बे का भी जीभिया मार्किट में आया है जिसमे जंग नहीं लगता | बचपन में गाव में हम लोग नीम , भांग , बॉस और कितने ही तरह के दत्मन का इस्तमाल करते थे और फिर उसी से जीभिया | मतलब जीभिया सिर्फ प्लास्टिक का नहीं होता है |
ReplyDeleteपर आप हमेशा घंटी मत बजाइये | कभी कभी आप भी उसके लिए दरवाज़ा खोल दीजिय | दोस्त के लिए | उसको भी अच्छा लगेगा दरवाज़ा खोले और आप दिखे | हम सब उस दोस्त को खोजते है जो हमारे पास ही मिल जाता है पर पता नही क्यों हम चाह कर भी अपने दिल कि बात नहीं बोल बताते | पता नही लगता है वो समझ रहा है | शायद सही में समझ रहा है या हमने फॉर ग्रांटेड ले लिया है | जो भी हो अच्छा लगा आपको पढ़कर | और ये जानकर कि आपको भी दरवाज़ा खोलने पर उसका इंतज़ार रहता है |
अब छोटा क्योकि कम से कम आप ध्यान से तो पढ़ेंगे | मोदी पर लिखना कुछ चाहती थी कुछ लिख दिया | पढ़ कर देखा ठीक लगा | सोचा भावना ही तो होने जाहिए शब्द में क्या | लगा आप मेरी भावना समझ रहे है | आप समझ रहे है न ! प्लीज एक बार बोले दीजिये अच्छा लगेगा | लिखते रहिये अच्छा लगता है आपका पढ़कर !!!!
Ravish bhaiya kabhi bhabhi ji ke baare me likhiye na please...
ReplyDeleteAisa hi mera "mai" bilaspur me rehta hai....koi bhi ghatna hoti hai to mai samajh jata hun ki vo wahan kya soch raha hoga....
ReplyDelete:D
Ravish bhaiya kabhi bhabhi ji ke baare me likhiye na please...
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteजो बात दिल से निकलती है उसमें बेशुमार रंग होते हैं। इतने खूबसूरत रंगो से परिचय कराने का शुक्रिया दोस्त। हमसबों कि जिंदगी में कुछ लोग इसी तरह शामिल रहते हैं.पर उनको कहां सब सहेज पाते हैं। जब एहसास होता है देर हो चुकी होती है। आपके जीवन में ऐसे दोस्त बने रहें और मनुष्यता बची रहे इस कामना के साथ। निवेदिता
ReplyDeletejyada nahi likhna chahta,samajh rahe honge, par kuch aiso ki hi yaad dila di
ReplyDeleteबहुत दिन से कमेंट नहीं लिखा. लिस्ट में बहुत सारे नाम होते थे. सोचता बहुत लोगों ने लिखा है, रहने देते हैं. लेकिन इस पोस्ट को पढ़कर लिखने को मजबूर हूँ. आपने तो मेरे भी लंगोटिया यार की यादें ताजा कर दी.भाव का प्रवाह अनोखा है. खांटी देशी शब्दों का प्रयोग करने में आप माहिर हैं. जय हो!
ReplyDeleteपुत्र सहित आपका fan हूँ। आप कई दिनों तक नहीं आए तो कुछ कुछ खोया खोया सा रहा। बेटा जो graduation कर रहा है आपके बारे बारे पूछता रहा। परसों आपको दुबारा देखा तो राहत मिली। बहरहाल; आपके आलेख नियमित रूप से पढ़ता हूँ और यकीं मानिए पढ़ता नहीं आपके शब्दों और आपके स्वर में सुनता हूँ। इस उम्र में सबके सामने रोना तो नहीं हो पाता लेकिन अकेले में तो आंसू रोक नहीं पाता हूँ। कमाल का लिखते हैं रवीश भाई आप! कई बार लगता है कि आप मेरे बारे में इतना कैसे जानते हो? दिल का हर तार झनझना' देते हो.……
ReplyDelete10 baar se zyada padh chuki hoon aur har baar ro chuki hoon. par khushi hai is baat ki ke meri zindagi me bhi meri ek "main" hai jise main apna "life time achievement" manati hoon.
ReplyDeletedhanyawaad meri bhi bhavnao ko shabd dene k liye :)
Jab bhi TV pe aapko sunti hoon..apko padhti hoon..ek apnapan sa lagta hai.
ReplyDeleteNa jany kitni bar pada phir bhi shabd nahi mil rahy nishabad hu kabhi kabhi chup rahna hi acha hota hai
ReplyDeleteदिल को छू गयी "सर" आपकी लेखनी....
ReplyDeleteऔर बहुत सारे दोस्तों और उनसे जुड़े खट्टी मीठी बातें याद आगयीं..., और हाँ अगर ऐसे लिखें तो सही में फिल्मों में भी अच्छा चांस है.
आपके 9 -10 प्राइम टाइम का बेसब्री से इंतज़ार रहता है आलम ये है कि जब भी पत्नी का फ़ोन आ जाता है (आजकल घर गईं हुईं हैं) इस वक्त तो मैं केवल हूँ हूँ में जवाब देता हूँ , तो उधर से गुस्से में यही कहती हैं "प्राइम टाइम चल रहा होगा..."
आज ही सर्वे पर आपका आर्टिकल पढ़ा और आज ही प्राइम टाइम सर्वे वाला। अब आप ही पढो उसे और देखो आपके विचार बदले है सर्वे पर। इसी ब्लॉग में feb 2017 -सर्वे का सच
ReplyDeleteYaaron yeh hi dosti hai
ReplyDeleteOh kismat se jo mili hai
Sab sang chalen
Sab rang chalen
Chaltey rahen hum sada
जी चाहता है आपके बारे में पढता रहूँ .क्यूँ के लगता ही नहीं की किसी और को पढ़ रहा हूँ,लगता है मानो खुद ही को खुद बांच रहा हूँ...
ReplyDeleteशब्द ढूंढता रह गया लेकिन मिले नहीं.
ReplyDeleteअभी के लिए सिर्फ़ प्रणाम स्वीकारें.
शब्द ढूंढता रह गया लेकिन मिले नहीं.
ReplyDeleteअभी के लिए सिर्फ़ प्रणाम स्वीकारें.
Sir ji tears are in eyes and please don't touch the heart so deeply otherwise I will cry for overnight. Still after 12 hrs I am unable to right this post because due to tears in eyes I am unable to see the keyboard.
ReplyDeleteSir ji tears are in eyes and please don't touch the heart so deeply otherwise I will cry for overnight. Still after 12 hrs I am unable to right this post because due to tears in eyes I am unable to see the keyboard.
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