2011 में म्यूनिख की अदालत ने एक गार्ड को पाँच साल की क़ैद सुनाई जो एक नाज़ी कैम्प में तैनात था । इसी के बाद से कैंपों में तैनात गार्डों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने का रास्ता साफ़ हो गया था । जर्मनी की सरकार हिटलर के इन कैंपों में नीचले स्तर के या मामूली रूप से तैनात या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वालों का पता कर रही है । अल जज़ीरा की साइट पर किसी का बयान है कि वक्त के गुज़र जाने से हत्यारा दोष मुक्त नहीं हो जाता । कैंपों में जो गार्ड तैनात थे उनकी वहाँ मारे जा रहे लोगों से कोई सहानुभूति नहीं थी । इसलिए ये भी सहानुभूति योग्य नहीं हैं । सोचिये इस उम्र में भी सरकार तानाशाही दौर के अपराधियों को खोज रही है गिरफ़्तार कर रही है । नाज़ी पार्टी मिट्टी में मिल गई । हम दंगों में लिप्त तमाम दलों के नेताओं को सत्ता सौंप रहे हैं । इसका बनाम उसका कर रहे हैं ।
इस ख़बर को पढ़ रहा था तभी इत्तफ़ाक़ से मेरी पत्नी अपनी छात्रा का अनुभव बताने लगी । सिख लड़की चौरासी के दंगा पीड़ित परिवारों से बात कर न्याय की अवधारणा को समझने का प्रयास कर रही है । उस लड़की की मुलाक़ात एक परिवार से होती है जो बताता है कि नरसंहार के वक्त उनके घर में हथियार थे लिहाज़ा सबने मिलकर दंगाइयों को खदेड़ दिया । थोड़ी देर में पुलिस आई और कहा कि हम आ गए हैं सुरक्षा के लिए । आप अपने हथियार दे दीजिये । परिवार ने पुलिस पर भरोसा कर लिया । उसके पंद्रह मिनट बाद ही दंगाइयों की भीड़ लौट आई और क़त्लेआम कर गई ।
सोचिये पुलिस वाले प्रमोशन भी पा गए होंगे । पेंशन भी ले रहें होंगे । मुझे नहीं मालूम केजरीवाल सरकार की एस आई टी बनाने की ख़बर सुनकर डर गए होंगे या हंस रहे होंगे । हम दलों में बँटे बेईमान लोग न होते तो दंगों में शामिल पार्टियों को समाप्त कर देते और सरकारों पर आजतक उन अपराधियों का पता लगाने के लिए दबाव डालते । गुजरात भागलपुर, दिल्ली और मुज़फ़्फ़रनगर न जाने कितने राज्य और शहर । क्या कभी आशविच कैंप में तैनात नाज़ी गार्ड की तरह इन राज्यों की पुलिस को सज़ा मिलेगी । लोगों को सज़ा देगा। कई दंगों में सज़ा मिली है लेकिन क्या जर्मनी की तरह एक एक को खोज कर दी गई है । क्या आज तक उनकी खोज जारी है । जब जर्मनी आजतक सज़ा दे रहा है तो हिन्दुस्तान क्यों नहीं ।
कई बार सोचता हूँ जो बाबरी मस्जिद ढहा कर गुमनामी में खो गए वे किसे कहते होंगे कि इस भीड़ में मैं भी था मगर पुलिस आज तक नहीं पहुँच सकी । न ही वे उन लोगों तक पहुँच पाये होंगे जो बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद बड़े नेता बन गए । उनका एकांत और अफ़सोस कितना भयानक होगा । इतनी बड़ी संख्या में हिंसक लोग बचे रह गए । इसी ब्लाग पर जब वहाँ मौजूद एक फ़ोटोग्राफ़र की तस्वीर पर लिखा रहा था तब इन सवालों से गुज़र रहा था । वे लोग जब इन तस्वीरों को देखते होंगे तो ख़ुद को पहचानते होंगे या नहीं । कोई प्रायश्चित्त भी करते होंगे या अपनी हिंसा को जायज़ ठहराते होंगे । मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों में मारने वाले हिन्दू मुस्लिम हत्यारे अपने अपराध को कैसे देखते होंगे । कौन सी विचारधारा और आग है ये जो लोगों को वहशी बना देती होगी । गोधरा ट्रेन कांड के आरोपियों को सज़ा मिली है मगर उनके भीतर की हिंसा में क्या किसी ने झाँकने की कोशिश की है । क्या कोई चुप रहकर यह सोचता होगा कि उस भीड़ में कौन लोग होंगे जो अहसान जाफ़री को घर में ही जलाकर देख रहे होंगे । चीख़ने की आवाज़ सुनकर क्या पानी फेंकने का जी नहीं किया होगा । सिखों के गले में टायर डालकर एक बार तो लगा होगा कि नहीं नहीं उतार देते हैं । इस जलते को बचा लेते हैं । कई सिख परिवार कहते हैं कि जिन हिन्दुओं के लिए हमारे गुरुओं ने अपने और अपने बच्चों के सर तक क़लम करा दिये वही हमारे गले में जलती टायर डाल रहे थे ।
पिछले हफ़्ते एक पत्रकार के ज़रिये फ़ोन आया । यह सज्जन एक राज्य में हुए दंगों के एक मामले का मुख्य आरोपी है । मुक़दमा चल रहा है मगर यह शख्स अपने पेशे में लौट चुका है । कहने लगा कि आप विश्व हिन्दू परिषद के एक नेता से बहस करो । मैंने कहा कि क्यों करूँ । बोले कि बस आप एक सवाल पूछ लो । क्या ? यही कि एक हिन्दू परिवार का नाम बता दे जिनकी सेवा की हो । मैं बस सुन रहा था । वो कहने लगे कि देखो जी एक बात समझ गया हूँ । मेरे आरोपों पर तो अदालत फ़ैसला करेगी और मुझे उम्मीद है कि मैं बरी हो जाऊँगा क्योंकि मैं शामिल नहीं था । मेरा ध्यान उनकी इस बात पर नहीं था क्योंकि ये काम अदालत का है । जनाब कहने लगे कि देखो जी इस देश से न मुसलमान जा सकते हैं न कोई और धर्म । सबका है ये देश । कुछ संगठन हम जैसे जवानों को अठारह उन्नीस साल की उम्र में बहका देते हैं । हम समझते हैं कि हिन्दुओं के लिए लड़ रहे हैं ।बाद में पता चला कि ये लोग हमारा हिन्दू मुसलमान के नाम पर इस्तमाल कर रहे हैं । हमें मिलजुलकर ही रहना है । यही मैंने सीखा है । हाल ही में एक और मित्र बताया कि नौजवानी में एक कमरे में बंदकर कोई इस्लाम इस्लाम करता था तो असर तो हो ही जाता था ।
जर्मनी की इस ख़बर से उम्मीद बढ़ती है कि भारत में भी दंगाई नब्बे साल की उम्र तक पकड़े जायेंगे। हम एक सचेत नागरिक समाज की तरह दंगों में शामिल राजनीतिक दलों को चुनाव हराने से भी सख़्त सज़ा देंगे । उन्हें ख़त्म करने तक की सोचेंगे । पूरा राजनीतिक समाज मिलकर सार्वजनिक रूप से दुख और अफ़सोस करेगा ताकि हमारे भीतर ज़रा भी हिंसा न बची रहे जो हिन्दू को हिन्दू के नाम पर मुसलमान को और मुसलमान को मुसलमान के नाम पर हिन्दू को मारने के लिए उकसाये । हम डरपोक लोग हैं । क्या जर्मनी हिटलर के बाद उसकी नाज़ी पार्टी को माफ़ी मांग लेने से माफ़ कर देता । जर्मनी नाज़ी दौर के काले इतिहास पर सिख बनाम गुजरात दंगे टाइप की बहस नहीं करता । कभी हिटलर के उदय की परिस्थितियों को जायज़ नहीं ठहराता है । हम गोधरा बनाम ताला बनाम इंदिरा की हत्या में बचाव खोजते हैं । पूरा जर्मनी अपने इस अतीत पर शर्म करता है और उस मुल्क के प्रायश्चित का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि वह आज तक हिटलर के कैंपों में लगे और चुपचाप देखते रहने वाले चपरासियों क्लर्कों से लेकर गार्डों को खोज रहा है ।पकड़ कर सज़ा दे रहा है । हमारे यहाँ सरकार या प्रशासन ऐसा क्यों नहीं है जो दंगाइयों को उनकी उम्र के अंतिम पड़ाव तक पीछा करें और सज़ा दे । हमने दंगों को मनोरंजक मैच में बदल दिया है।
'हमने दंगों को मनोरंजक मैच में बदल दिया है।'खिलाडी भी खुद,दर्शक भी,अंपायरिंग भी खुद ही करते हैं..
ReplyDeleteकाश!! पर ये होना इस देश में सम्भव नहीं हम अपने अतीत पर कभी शर्मिंदा नहीं हुए और अगर दो चार लोग होना भी चाहें तो कुछ अति राष्ट्रवादी लोग उन्हें चैन से जीने ना दें. हम भारत कि अवधारणा को समझ ही नहीं पाये।
ReplyDeleteआपकी इस खबर से रोचक और प्रेरक खबर मिली। पता नहीं , उन गार्ड 'बेचारों' ने भी गुनाह में भागीदारी की या नहीं ! या सिर्फ नौकरी बजा रहे थे। हुक्म का पालन कर रहे थे।
ReplyDeleteखैर , मैं भी आपकी तरह 90 साल तक इंतज़ार करूंगा। न्याय पढने के लिए , देखने के लिए।
पर , यह महान देश है जो वह जहाँ महान है , वहाँ उसे रहने देते हैं। यहाँ शुरू से ही प्रतिमान , मूल्य , आदर्श काफी ऊंचे रहे रहे हैं। पर व्यवहार उतना ही निकृष्ट !
यह देश एक वाद -विवाद परतियोगिता है जहाँ ज्ञान , तर्क और वाग्मिता की वाह -वाह कर सकते हैं। या उस पर हाय -हाय कर सकते हैं। न्याय कहाँ ?
1984 , 1992 , गुजरात , मुजफ्फरनगर मुहावरे में तब्दील हो चुका है। बहस करिये , कराइये ! ताली बजाइये। पर , न्याय ?
चलिए मैं भी आशावादी हूँ। उम्मीद कर सकता हूँ कि उंच्च प्रतिमान व्यवहार में बदलेगा। कभी तो !
सर, हमारे देश में दंगे भी राजनेतिक हो गए हैं। जिसमे सजा कि बजाय उसका इनाम मिलता है.
ReplyDeleteहर राजनेतिक पार्टी दंगों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है। उस समय भी और बाद में भी.
जो दंगे करवाते हैं वो भी राजनेतिक लाभ के लिए और जो जांच करवाते हैं वो भी राजनेतिक लाभ के लिए. किसी का मकसद न्याय नहीं होता।
अब हमारे देश में आप १०० साल भी इंतज़ार कर लो। तो भी कुछ नहीं होने वाला। जर्मनी में भी अब हो रहा है जब वहाँशांति है। यहाँ तो दंगे लगातार जारी हैं। .....
ReplyDeleteSir.... bas dil ki bhadas nikal sakte hain... aap blog likh kar hum use padhkar aur uspar apne comment likh kar... aap sochne par majboor karte hain..
ReplyDeletebhagwan kare aisa humare yahan bhi ho jaye
ReplyDeleteअद्भुत .................ये सब जर्मनी में हो सकता है भारत में नहीं. कमसे कम हालात से तो यही लगता है. आज भी इन दंगो कि ख़बरें ,तस्वीरें video हमें अंदर तक विचलित कर देती हैं . क्या सच में हम इंसान हैं! हम क्यूँ किसी के भड़काने से भड़क जाते है ...एस राजनीती को क्यों नहीं समझ पाते......अफ़सोस तो इस बात का है कि हम में से ज्यादातर लोग इन दंगा भड़काने वाले राजनितिक दलों को support करते हैं ...उनको हराने और सख्त देने कि बात बहुत दूर है......कौन सजा देगा ! और किस किस को!
ReplyDeleteकृपया कोई कुछ भी गलत न ले पर दंगे कहा हो रहे है क्यों हो रहे है कुछ पता नहीं था...हाँ लेकिन बालमन में एक बात किसी ने बैठा दी थी तो जब भी किसी सरदार को देखते थे तो उसे आतंकवादी समझ कर डर जाते थे...या उन्हें इसी तरह पीठ पीछे बुलाते थे...जैसे अब किसी मुस्लिम को देखते है तो एक बार में विश्वास नहीं कर पाते...शर्मनाक है...हालाँकि अब सरदार का वो डर कही पीछे छूट गया है, प्यारे और सुरक्षित लगते है वे..समय सब ठीक कर देता है...लेकिन रही बात दोषियों को सजा देने कि...तो वक्त का इंतज़ार मत करना क्योकि राजीव के हत्यारे वक्त बीतने के कारन ही खुले घूमने वाले हैं....
ReplyDeleteरही बात जर्मनी कि तो जो हो रहा है और जो दीखता है उसका पूरा सच वही का रहवासी बता सकता है..
ReplyDeleteआज मैं पहली बार हिंदी में लिख पायी, इसके लिए अनीता जी का शुक्रिया!
ReplyDeleteऔर आपका भी अमृता
ReplyDeleteआपने रिप्लाई किया.....धन्यवाद. अपनी भाषा में लिखने की बात ही कुछ और है.
ReplyDeleteमैं तब छोटा था..मुझे नही मालुम था कि मेरे दोस्त चावला जिनकी कपडे की शानदार दूकान थी..उसका इंदिराजी हत्याकांड में कोई हाथ था..लेकिन वो ऐसी उन्मादित भीड़ थी, जिसने दुकान जलाने से पहले कपड़ों के थान के थान लूटे थे फिर दुकान को आग के हवाले किया था.पुलिस मूक दर्शक बनी हुई थी..तभी खबर आई कि गुरुबचन सिंह सरदार के मकान में पथराव चालू हो गया..गट्टू सरदार के ट्रक धू-धू कर्क जल रहा है..हम दोस्त उधर भागे...कही कोई कानून-प्रशाशन नही था..बस भीड़ के हाथ में नगर था...हम उन लोगों को जानते हैं जो ये हरकतें कर रहे थे, लेकिन उनपर कोई कारवाई क्यूँ नही हुई...कभी नही हुई...मेरे सामने अम्मा के बाड़े में रहने वाले सिख परिवार के दो युवकों ने बाल-दाढ़ी कटवा लिए थे..ये सब उस मुल्क में हो रहा था, जिसे धर्मनिरपेक्ष मुल्क कहा जाता है...आपके आलेख ने हिला दिया रविश जी...सादर
ReplyDeleteमैं तब छोटा था..मुझे नही मालुम था कि मेरे दोस्त चावला जिनकी कपडे की शानदार दूकान थी..उसका इंदिराजी हत्याकांड में कोई हाथ था..लेकिन वो ऐसी उन्मादित भीड़ थी, जिसने दुकान जलाने से पहले कपड़ों के थान के थान लूटे थे फिर दुकान को आग के हवाले किया था.पुलिस मूक दर्शक बनी हुई थी..तभी खबर आई कि गुरुबचन सिंह सरदार के मकान में पथराव चालू हो गया..गट्टू सरदार के ट्रक धू-धू कर्क जल रहा है..हम दोस्त उधर भागे...कही कोई कानून-प्रशाशन नही था..बस भीड़ के हाथ में नगर था...हम उन लोगों को जानते हैं जो ये हरकतें कर रहे थे, लेकिन उनपर कोई कारवाई क्यूँ नही हुई...कभी नही हुई...मेरे सामने अम्मा के बाड़े में रहने वाले सिख परिवार के दो युवकों ने बाल-दाढ़ी कटवा लिए थे..ये सब उस मुल्क में हो रहा था, जिसे धर्मनिरपेक्ष मुल्क कहा जाता है...आपके आलेख ने हिला दिया रविश जी...सादर
ReplyDeleteआपको Primetime पर १० दिन से नहीं सुना तो सोचा Google से खोजे।
ReplyDelete"उनका एकांत और अफ़सोस कितना भयानक होगा ।" बस यह एक ख्याल काफी है हफ्ते भर सोचने को.
रवीश, क्या आपका कोई Ndtv पता है जिसपर आपको चिट्ठी लिख सकते हैं वो लोग जो अब भी कागज़-कलम में यक़ीन करते हैं ? बहुत बार इरादा करके बस पता खोजते रह गए!
दंगे राजनीति के अंग और उपांग हो चले हैं, दंगों को भुथरने के लिये पहले ऐसी राजनीति को भुथरना होगा।
ReplyDeleteHI Amrita आपके नाम और सम्बोध को मैने अग्रेजी में ही छोड़ दिया | मालूम नहीं आप मुझेसे छोटी है या बड़ी ! कई बार लगता है कि हम जी को ज़बरदःती ढो रहे है | कुछ चीज़ो को हम कुछ ज्यादा ही ऑपचारिक बना देते है | अभी अभी ऑफिस से आयी और रवीश जी का लेख पढ़ा ! सोचा कमेंट करने से पहले कमेंट पढ़ लू | कमेंट पूरा नहीं पढ़ा था कि नज़र अपने नाम पर टिक गई | और उसके नीचे रवीश जी का कमेंट | पता नहीं क्यों बहुत ही अच्छा लगा |
ReplyDeleteये सोशल मीडिया भी अजीब ही दुनिया है | ऐसा नहीं कि इसमे अभी ही एक्टिव हुई हुँ | फेसबुक पर काफी पहले से एक्टिव हुँ पर वो मेरी एक बहुत ही छोटा अपने कुछ परिवार और दोस्तों का ग्रुप है | किसी भी अनजान को मैने उसमे कभी शामिल नहीं किया | पर यहा सिर्फ अपना नाम देखा कर लगा कि जेसे आपको जानती हुँ |
ट्विटर पर एक व्यक्ति है इन्दीवर |पर ये शायद उसका असली नाम नहीं है | इंट्रो में उसने अपना उम्र भी ८० साल लिखा है वो भी गलत ही है | पर उसको पढ़कर कभी नहीं लगा किसी अनजान से बात कर रही हुँ | उसकी भाषा और शैली इतनी अच्छी लगती है जेसे एक हलकी से ठंडी हवा का झोखा | शायद ऐसे लोगो से मिलकर जिंदगी के कुछ और मायेने भी समझ आते है | वैसे रवीश जी आज आपसे एक सीक्रेट शेयर कर रही हुँ | ट्विटर पर सबसे पहले आपको ही फॉलो किया तो कुछ चेहरे जाने पहचाने नज़र आ गए | इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया |
अमृता जी, (जी लगा लिया कही रवीश जी नाराज हो जाये ) वैसे सीरियसली ये लिंक अच्छा है मैने कुछ और लिंक पर भी काम किया पर उसमे कॉपी पेस्ट करने पर हिंदी फॉन्ट टूट जाते है | इससे आप जहाँ मर्ज़ी कॉपी पेस्ट कीजिये शब्द वैसे ही रहते है | इस लिंक से अब रॉयल्टी मागूंगी फ्री पब्लिसिटी का जमाना गया !! रवीश जी अब आपके पोस्ट पर कोई कमेंट नहीं | राजनेता और दंगाईओं पर लिखने का अब मूड नहीं है | मै चली अब कुछ देर के लिए ट्विटर की दुनिया में- इन्दीवर कि शायरी पढ़ने | पर एक गुजारिश अपने चाहने वालो को अपना पता देदीजिए | नीलाक्षी कि तरफ से कह रही हुँ |
हा हा । मुझे आप जी से मुक्ति दे दीजिये । इतने साल से सुन रहा हूँ कि कई बार ये लगता है कि माँ की गोद में भी लोग जी लगाकर पुचकारते होंगे । मेरा पता -
ReplyDeleteRavish Kumar , NDTV, archana complex, GK-1, New Delhi-48
नीलकशी अब इरादे को जमा पहना ही दो.....पता नहीं कब पता बदल जाये ..वैसे भी अब लोग बहुत देर एक नौकरी पर नहीं टिकते | हवा में खबर है आप AAP में आ रहे है | कितना भी खंडन कर लीजिये | कितना भी लेख लिख लीजिये | पर कहते है न बिना आग के धुआ नहीं निकालता है | शायद आपके पीछे हम भी मतलब आपके चाहने वालो के लाइन भी आ जाये .........सीरियसली देश का भला हो जायेगा |
ReplyDeleteवाह, लगता है रवीश(जी) आज मूड में हैं। पता-वता सब दिए दे रहे हैं। लगे हाथ मोबाइल नंबर भी पकड़ा दीजिये। वैसे पत्राचार कहीं बेहतर लगता है मुझे।
ReplyDeleteअभी अभी ट्विटर पर एक खबर देखि .....किसी वेब साईट ने आपको बेस्ट एंकर घोषित किया है | सोचा आप शायद AAP कि बात से नाराज़ हो गए है खबर दे देती हु खुश हो जायेगे | वैसे जानती हु शायद आपके लिए खबर बासी होगी | But congratulations !!!!!!!!!! You truly deserve this. वेबसाइट खोलने कि कोशिश कर रही हु पर अभी नहीं खुल रहा है| शायद लिंक गलत है | अगर आपको जानकारी है तो प्लीज शेयर कीजिये |
ReplyDeleteकमाल है ये क़स्बा, पता नहीं कब और कैसे इसमें बसने वाली बातों, लोगों, कहानियों, कविताओं, आलोचनाओ, व्यंगो, और ऐसी अनगिनत चीज़ों कि आदत पड़ जाती है!
ReplyDeleteरवीश जी - कस्बे को बसाने के लिए शुक्रिया :)
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ReplyDeleteGideon's Spies (Book) : Is me bahut story hai Mossad ke operation kee par 1 story hai: Adolf Eichmann kee
ReplyDeletehe was head of extermination camp where hitler killed number of jews
After many years Mossad took operation , kidnap him form Argentina ( Where he work as common worker) and bring him to isreal secretly
Aency kam karana chahiye to kuch na mumkin nahi hai
Here is wikipidia link : http://en.wikipedia.org/wiki/Adolf_Eichmann
Time ho to sir woh book bhi padhiyega..acchhi hai
Dhanyawad aapke comment ke liye, gayab ho jate hi, to thoda baicheni ho jati hai. Aur koi baat ni hai
ReplyDeleteLaga k aag shar ko y badsha nay kaha utha hai dil may aaj tamashy ka shook bahut jhuka k sar ko ya sahparast bolay huzur shook slamat rahai shar aur bahut
ReplyDeleteलेख का सारा मर्म अंतिम लाइन में hai. जहाँ तक दोषियों को पकडे जेन की बात है तो ९० क्या ९०० साल में भी yeh नहीं होने wala. Filhaal इतना बड़ा आशावादी to main नहीं hoon. इजराइल ने भी म्युनिक ओलम्पिक के हत्याकांड में शामिल अंतिम २ लोगों को लगभग चालीस साल के baad Canada से 3-4 saal pahle pakda. हमारे दुश्मन पड़ोस में हे घूम रहे हैं हम यहाँ गेस की कीमत बढ़वाने में लगे hain. बीच के पैसे को unhe पकड़वाने में लगा देते टैक्स के रूप में तो शायद लोग usse संतुस्ट हो jate. अनवर सुहैल जी के बात से मैं 100 % इत्तिफ़ाक़ रखता hoon. वैसा ही वाक़या मेरे सामने भी हुआ आज वही लोग विधायक बनने के baad पेंशन ले रहे hai.Iska jikra maine aapke hee blog me pahle kiya hai.
ReplyDeleteअनीता जी लिंक बताने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteरवीश जी,आज international mother tongue day (पहली दफा ही सुना है आज), सोचा ट्विटर पर आज आपके कुछ और सटीक और रोचक ट्वीट्स के मज़े लूँगा, पर आपने तो अपने ट्विटर हैंडल को रेस्टिर्क्ट कर दिया । अपने चाहने वालो पे ऐसा सितम तो मत कीजिये सर । (@ImSalimuddin)
ReplyDeleteकल को अगर कलम बेचना, प्रोपेगेंडा और पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता करना अपराध हो गया,तो मैं आपको भी सजा पाते देखना चाहूँगा. आप भी उसी उसिगिरोह की नौकरी बजाते हैं और उन्ही के इशारों पर प्रोपेगेंडा करते हैं जिन्होंने पैसों और सत्ताधीशों से नजदीकी के लिए अपनी आवाज़ बेचने का गुनाह किया है.
ReplyDeleteअनीता जी , जी इसलिए क्योंकि सचमुच आप मुझसे बड़ी हैं. मैंने फेसबुक और ट्विटर पर आपको सर्च किया.
ReplyDeleteरवीश और आपने मुझे इतनी तवज्जो दी........आभारी हूँ..
मैं इंट्रोवर्ट हूँ इसलिए कई सालों से फेसबुक और ट्विटर पर होने क बावजूद बहुत ज्यादा एक्टिव नहीं हूँ. मुझे पढ़ना और देखना बहुत पसंद है......
कंक्रीट के जाल और दिखावे कि जिंदगी जीने वाले शहर (Bangalore) में रवीश और इनका क़स्बा मुझे अपना सा लगता है......
लिंक वाकई अच्छा है. मैंने पहले भी गूगल में एक दो बार सर्च किया था.......पर ओ बहुत कम्प्लिकेटेड था. हिंदी को रोमन में लिखना और पढ़ना सच में बहुत अटपटा लगता है....
एक बात और.. रवीश अपने इसी ब्लॉग पे कुछ साल पहले उनके नाम के साथ "जी" लगाने पर एक लेख लिखे थे...पढियेगा बहुत अच्छा है.
धन्यवाद
Hi Amrita, Its very unfair to blame the city (Bangalore), seems like your experience has not been very good. I would request you to venture out and explore the city - its beautiful and people are warm and friendly. I have many friends from other states who have adopted and love this city as their own. Wishing you the very best.
ReplyDeleteI actually wanted to comment on Nazi atrocities, but when I saw the comment on Bangalore, just forgot about the blog and commented on the comment.
ReplyDeleteThis probably is a reflection on Indian mentality, that we are so obsessed with religion, region, caste, creed, class, that we tend to get carried away for wrong reasons.
Ravish babu bahut achha laga padh ke lekin aapki jo umeed hai wo puri nahi ho payegi...Bada nuskil hai bhai jaha itne sarre bahkne wale log baithe ho aur unka hit sadhnewale bahkane wale baithe hain...Ravish babu India first ka nara lagane wale bhi dhakosala karte hain..Actually itne sare diffrnce hain hum indians ke bich ki sach me hamari ekta kamjor hai jo halke jhatke ko bardast nahi kar pati. Akshia ke karanNeta asani se topi pahna dete hain..aur hamara kanoon bhi itna flexible hai ki aapki kuch bhi karke nach jatee hain...isliye Ravish babu. itna mat sochiye bas achha karte rahiyeeee.....haan Kejri ki tarah mat kariyega..nahi to bahut dukh hoga...Gaon me ravish babu muskil hoti hai kabhi kabhi aapko padh kar turant answer karne mr wo to aap samjh sakte hain....haan itna to jaroor hai ki apku lekhni ko dinbhar me 5,6baardoodnnhta jaroor hoon...Bas aise hiii likhte hue. Kuch naya sunate hue badhte rahiyee. Aachha lagega
ReplyDeletehi vidya!
ReplyDeleteमैं यहाँ पिछले बहुत सालों से हूँ....वाकई बहुत ही अच्छा है....पर यहाँ न चाहते हुए भी लाइफ ऐसी हो जाती है कि जमीं से जुड़े रहना मुश्किल हो जाता है.....मेरा कहने का सिर्फ यही मतलब था....उम्मीद है आप समझेंगी......
hi अमृता अच्छा लगा उम्र के बहाने ही सही मुझे गूगल पर खोज तो सही | और भी अच्छ लगा तुम मुझसे छोटी हो | तुम्हे डाट सकती हु | एसे ही........ | और है लेख कि तारिक बता तो जल्दी खोज लुंगी नहीं तो बहुत वक्त लगता है | महेंद्र जी धन्वाद लिंक काम आ रहा है | वैसे हिमांशु आपकी दो लाइन बहुत ही अच्छी लगी | अच्छा लग रहा है आप सबो से मिलकर |
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ReplyDeleteलोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
ReplyDeleteतुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। -- बशीर बद्र
हम इंसानियत से ज्यादा, स्वार्थ का चादर ओढ़कर जीते है, मसला कोई भी सबसे पहले हम ये सोचते है, हमें कितना फायदा है।
ये दंगो पे मत लिखा कीजिए टायर डाल ले जलना ,मारना काटना ,,पढ़ के इतनी पीड़ा होती है मानो खुद ही जल रहा हूँ, किसी बेटे के सामने बाप को जिंदा जलना और बीटा मुह बंद किये लाचार देखता रहे ..इससे ज्यदा पीड़ा और क्या होगी... मानव इतना क्रूर कैसे हो सकता है ...ओस्च के ही सिहर जाता हूँ ..दर्द भरी चीखों में फर्क कैसे किया जाता होगा की ये हिन्दू की है ये मुसलमान की ..चीख और दर्द तो इंसान को पिंघला देता है ..पर फिर एक चीख पे लोग दहाड़े मारते हैं और दूसरी पे ठाहके ऐसे कैसे हो सकता है ..?
ReplyDeleteरविश जी,
ReplyDeleteआज ये ब्लॉग पढ़ते हुए लगा जैसे रविश की रिपोर्ट का शब्द रूपी शरीर बन गया है.
बहोत ही बेहतरीन अंदाज़ में व्यथा और आक्रोश प्रकट किया है.
अमृता जी और अनीता जी ... आपकी बातें पढ़ रहा था पढ़ के लगा शायद आप गूगल हिंदी इनपुट टूल ले बारे में नहीं जानती ...लिंक डे रहा हूँ इसमें आपको वो भाषा सेलेक्ट करनी है जिसमे आपको लिखना है ..उसके बाद डाउनलोड और इंस्टाल ..फिर आप नार्मल english लिखेंगे तो इंग्लिश लिखा जायेगा ...तरी कीजिए फ्री सर्विस है और मोबाइल के लिए भी है ...
ReplyDeletehttp://www.google.co.in/inputtools/windows/
ReplyDeleteइस लिंक से आप डाउनलोड कर सकती हैं
bas aap likhte rahiye aapko padh ke humesha kuch freshness aur accha lagta hai bas etna sa request hai ki ab jab bhi delhi aana hua to kisi din subah subah aapke office ke bahar aake beth jaunga aur jab tak aap na mile aap ka autograph na mile jaunga nhi. thank sfor giving me some wonderful thoughts and inspire to learn me what i am,who i am and what the base of humanity. sometimes politics seems very ugly and rubbish but honest politics is a toll to improve human life and thought. as a society we are falling down, our moral and ethics are falling day by day and we want to live Luxury style at any cost but that time we forget that every one have their own responsibility to our society and we make society, we are the society.
ReplyDeleteravish.mujhe aapka primetime bahut pasand hai..aur saath saath aapke basaye hue is qasbe mein kabhi kabhi ghoom lene mein apaar anand milta hai...aise hi likhte rahiye..dhanywaad
ReplyDeleteआपके लिखने का अन्दाज़ ही अलग है । सीधा दिल में उतरता है । काश भारत में भी दंगे को दंगे की तरह देखा जाये । वो सुबहा कभी तो आये
ReplyDeletethanks akhil raj for the link..it's really good!
ReplyDeleteAgain you started cursing hindus ...Why dont you write about Muslim rioters..?Are you afraid or you think they are inocent???
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