"उनका एक ही व्यक्तित्व था और वह था - स्वयंसेवकत्व । उनकी एक ही आकांक्षा थी- पूर्ण स्वयंसेवक ।" नरेद्र मोदी ने एक किताब लिखी है ज्योतिपुंज । इस किताब में वे गुरु गोलवलकर की सबसे बड़ी ख़ूबी का ज़िक्र करते हैं जिससे वे काफी प्रभावित हुए हैं । गोलवलकर से जुड़े अनेक प्रसंगों के सहारे मोदी एक स्वयंसेवक के स्व के विलीन हो जाने पर ज़ोर देते हैं । लिखते हैं कि गुरु जी ने एक स्वयंसेवक को 'मेरे कार्यकर्ता'कहने पर टोका था कि सब सहयोगी हैं । उन्हें कोई भी भेद-रेखा मंज़ूर नहीं थी । मैं हूँ वही तू है । कैसे गुरु जी दीनदयाल उपाध्याय को टोकते हैं जब खाने की पाँत में बैठे लोगों को रोटी बाँटते वक्त उनके हाथ से टोकरी गिर गई । गुरु जी ने हँसते हुए कहा कि क्यों पंडित जी आजकल शाखा में जाना बंद है ?
नरेंद्र मोदी को जो भी संघ या स्वयंसेवक से बाहर देखने के अभ्यस्त हैं उन्हें उनकी किताब ज्योतिपुंज का गहन अध्ययन करना चाहिए । नरेंद्र मोदी अपनी किताब में गुरु गोलवलकर की एक बात से गहरे प्रभावित हैं । वे बार बार बता रहे हैं कि न तो वे संघ से दूर हैं और न ही उनके भीतर स्वयंसेवक के अलावा कुछ और भी है ।किसी नेता को समझने के लिए उसकी किताब से बेहतर कोई सार्वजनिक मंच नहीं । जिसे वो लिखते हुए अपनी सोच और इरादे की झलक देता है । प्रभात प्रकाशन ने गुजराती में छपी नरेंद्र मोदी की किताब ज्योतिपुंज का हिन्दी अनुवाद छापा है । संगीता शुक्ला ने सहज अनुवाद किया है ।यह किताब अपनी सामग्री में कई जगहों पर साधारण भी लगती है क्योंकि संघ के संस्थापक डाक्टर हेडगेवार और उनके बाद बने एम एस गोलवलकर पर पहले से ही इतना व्यापक और जटिल साहित्य मौजूद है कि कोई नई जानकारी नहीं मिलती । सिवाय इसके कि मोदी संघ के इन मूल आधार स्तंभों के बारे में क्या सोचते हैं और किन गुणों का ज़िक्र करते हैं, उनके प्रति कितनी श्रद्धा रखते हैं । इस प्रक्रिया में स्वयंसेवक मोदी की निष्ठा और ध्येय का अंदाज़ा मिलता है ।
जैसे कई बार लगता है कि वह ख़ुद को स्वयंसेवक साबित करने के लिए किताब लिख रहे हैं । उनकी सोच में एक रणनीति भी झलकती है । यह किताब गुजराती में तब आई जब बीजेपी के भीतर उनकी राष्ट्रीय दावेदारी उभर रही थी । मोदी संघ के संस्थापकों का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं । यूँ तो वह कभी भी कर सकते हैं लेकिन क्या इसका सम्बंध इससे है कि वे इस धारणा को ध्वस्त करना चाहते हैं कि गुजरात में मोदी ने संघ को कभी पनपने नहीं दिया । आर एस एस को अपनी सत्ता से दूर और नियंत्रित रखा । पब्लिक डोमेन में इस तरह की बातें होती रहती हैं । इस फ़्रेमवर्क में अगर मोदी की किताब ज्योति पुंज पढ़ेंगे तो लगेगा कि वे इस धारणा को चुनौती देने के लिए संघ और प्रचारकों से अपने सम्बंधों और उनके विचारों के असर का ज़िक्र कर रहे हैं । वे ऐसे उदाहरण दे रहे हैं जिन्हें पढ़कर यक़ीन होता है कि मोदी ने शायद ही कभी खुद को संघ से आगे करने का प्रयास किया या नियंत्रित किया हो । हो सकता है कि यह धारणा भी एक रणनीति के तहत बनने दी गई ताकि मोदी की स्वीकार्यता ऐसे नेता की तरह हो जो ज़रूरत पड़ने पर हिन्दुत्व से आगे जाकर सोच सकते हैं । हिन्दुत्व संगठनों पर नियंत्रण रख सकते हैं लेकिन मोदी की इन संगठनों में अगाध श्रद्धा को देखते हुए ऐसा कहना उचित नहीं लगता । जबकि यह किताब बताती है कि उनके लिए हिन्दुत्व से बाहर राष्ट्र को समझने का कोई और ज़रिया - नज़रिया नहीं है। संघ के तमाम प्रचारकों का मोदी के प्रति स्नेह भी अगाध है ।
मोदी की लिखावट बेहद साफ़ है । वे अपनी बात साफ़ साफ़ लिखते हैं । पढ़कर लगता है कि वे सिर्फ राजनीति सोचते रहते हैं । राजनीति करते रहते हैं । वे राजनीति के सतत विद्यार्थी हैं । जिसे लेकर अपनों के बीच भी लड़ते रहते हैं । उनकी यही ख़ूबी मज़बूत विरोधियों को कमज़ोर और आलसी बना देती है ।वे भले अपनी रैलियों में भारत भारत करते हैं मगर किताब में लिखते वक्त हिन्दुस्तान भी नहीं हिन्दुस्थान लिखते हैं । हिन्दुस्तान और हिन्दुस्थान में विचारधारा से लेकर उच्चारण तक का भेद है । पर वे रैली में हिन्दुस्थान क्यों नहीं बोलते ?
ज्योति पुंज पढ़कर किसी को शक नहीं होना चाहिए कि मोदी की सोच या संस्कार संघ से इतर हैं । ये तो वही बता सकेंगे कि सायास या सोच के साथ वैसे संघ हस्तियों का ज़िक्र किया हैं जिन्होंने गुजरात आकर संघ के लिए काम किया और मोदी पर भी उनका असर हुआ । लेख में कहानी बनाने की भी प्रवृत्ति है यानी कई जगहों पर कम जानकारी होने के बाद भी वे भावपूर्ण वाक्यों से लेख को बड़ा कर देते हैं । राजकोट और अहमदाबाद के डाक्टर हेडगेवार भवनों की तस्वीर भी है जिससे लगे कि उनके राज्य में संघ के दफ़्तर भी चकाचक लगते हैं । जैसे लेखक नरेंद्र मोदी विस्तार से बताते हैं कि कैसे गुजरात में संघ और बीजेपी के लिए कार्यरत के का शास्त्री के सौ साल होने पर उनके सम्मान में राज्य सरकार ने समारोह मनाया जबकि विरोधी सवाल कर रहे थे । राज्य सरकार पर काफी ज़ोर है ।
शास्त्री जी के साथ एक प्रसंग का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि गुजरात में गोधरा कांड के बाद जब भी
दंगे फ़साद हुए कब शास्त्री जी विश्व हिन्दू परिषद के गुजरात एकम के प्रमुख थे । उन्होंने गुजरात के हित की ज़ोरदार वकालत की थी । उन्होंने एक अखबारी मुलाक़ात में कहा था " गुजरात के दंगों के बाद गुजरात की छाप टी वी चैनलों और राष्ट्रीय अख़बारों ने बिगाड़ी थी । उन्होंने गोधरा कांड को नहीं लेकिन उसके बाद में हुए दंगों को तूल दिया और विश्व के सामने उसे दिखाया जिससे गुजरात को नुक़सान हुआ ।" उन्होंने कहा " यह चैनल भारतीय संस्कृति के लिए बहुत ही जोखिम भरा साबित होंगे । शास्त्री जी ने बहुत ही धैर्यपूर्ण हिन्दुओं को जगाने का आह्वान किया था ।" ये पुस्तक से शब्दश: है । इसके पहले की कई पंक्तियाँ भी शब्दश: है ।
मोदी पर शास्त्री जी का गहरा असर मालूम होता है । कहते हैं कि वे पितातुल्य वात्सल्य रखते थे । जल शास्त्री की संज्ञा देते हुए सरस्वती नदी की खोज का एक प्रसंग मोदी सुनाते हैं । जिसके बाद विद्वानों ने राय दी कि लुप्त सरस्वती के प्रवाह में आज यदि फिर से ट्यूबवेल द्वारा काम किया जाए तो शायद पानी का प्रवाह फिर से प्राप्त होने की संभावना है । मुरली मनोहर जोशी तो वाजपेयी सरकार के समय सफल नहीं हुए लेकिन मोदी के आने पर सरस्वती की प्राप्ति की उम्मीद करनी चाहिए ।
मोदी इन प्रचारकों के योगदान को गुजरात से जोड़ते हैं । गुजरात को इनका क़र्ज़दार बताते हैं । कैसे शास्त्री जी ने संसार को दिखाया कि गुजराती अमाप और समृद्ध भाषा की खाई है । शास्त्री जी ऐसा आग्रह करते थे कि गुजराती भाषा को बचाने के लिए घर में गुजराती भाषा बोलनी चाहिए । मोदी लिखते हैं कि हावर्ड यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में शास्त्रीजी की पुस्तक को रखा गया है । हावर्ड के प्रति मोदी जी की ऐसी श्रद्धा चिदंबरम के संदर्भ में नहीं दिखाई देती है !!
शास्त्री जी के प्रति मोदी का लगाव काफी गहरा है । लिखते हैं कि उनकी पत्नी के हाथ का बनाया बेसन का लड्डू उनकी ऊर्जा का अहम कारण है । मोदी उन्हें बा कहकर बुलाया करते थे । इसी प्रकार महाराष्ट्र से गुजरात में प्रचारक के रूप में काम करने आए वक़ील साहब का भी ज़िक्र करते हैं । मोदी लिखते हैं कि लक्ष्मणराव इनामदार को गुजरात के गाँवों में भी लोग वक़ील साहब के नाम से जानते हैं । वक़ील साहब पच्चीस साल की उम्र में संघ की योजनानुसार गुजरात में नवसारी आ पहुँचे । वक़ील साहब को मोदी ने संघ योगी लिखा है ।मोदी इन प्रचारकों के योगदान के सहारे विश्व हिन्दू परिषद की भी तारीफ़ करते हैं । एक जगह वी एच पी को आशावादी दल बताते हैं ।
हर चैप्टर के बाद मोदी उस शख्स के प्रति भावांजलि भी अर्पित करते हैं । कविता की शैली में । जिससे प्रतीत होता है कि वे किस हद तक पूर्णकालिक स्वयंसेवक और राजनेता है । उनके लगातार सोचने और बोलने की प्रक्रिया का निखार कविता लिखने के प्रयास में दिखता है । जो लोग मोदी को हल्के में लेते हैं उन्हें ज्योतिपुंज पढ़नी चाहिए । खुद लिखने का ऐसा अभ्यास मैंने मायावती में भी देखा है ।
लेखक मोदी ने एक चैप्टर मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत के पिता पर भी लिखा है । इस लेख को भी पढ़ते हुए उस फ़्रेम से बच पाना मुश्किल लगता है कि आख़िर मोदी साबित क्या करना चाहते हैं । क्या यह कि देखिये उनके ताल्लुकात कैसे रहे हैं । वे संघ के प्रति कितने समर्पित रहे हैं और रहेंगे । जिस तरह से मोदी अपनी रैलियों के भाषणों में उस स्थान के किसी व्यक्ति,इतिहास या प्रसंग को गुजरात से जोड़ देते हैं उसी तरह अपनी किताब में चौदह प्रचारकों को गुजरात से जोड़ते हैं । डा हेडगेवार और गोलवलकर के अलावा लेखक मोदी गुजरात के बाहर के अपने कार्य क्षेत्रों में सम्पर्क में आए प्रचारकों के बारे में नहीं लिखते हैं । कोई कारण ?
खैर मोहन भागवत के पिता मधुकरराव भागवत के बारे में लिखते हैं कि उनके पहनावे में मराठी एक गुजराती की छाप झलकती थी । गुजरात हमेशा श्रद्धेय मधुकरराव का ऋणी रहेगा । समाज भक्ति और राष्ट्र भक्ति ने भी आध्यात्मिक अनुष्ठान दिलाने में संघ का अत्यंत अद्भुत दृष्टिकोण रहा है । इस परंपरा को चलाने वाले श्री मधुकरराव को समाजभक्ति का शक्तिपात करते हुए मैंने स्वंय अनुभव किया है । मेरे जैसे हज़ारों लोगों को शक्तिपात का लाभ मिला है । मोदी लिखते हैं कि मधुकरराव के पिता भी संघ से जुड़े थे । तो इस तरह से मोहन भागवत संघ में तीसरी पीढ़ी हैं । महाराष्ट्र से गुजरात काम करने आए मधुकरराव ने अपने नाम के अनुरूप ही उन्होंने गुजराती बोलना भी सीख लिया था । नाम के अनुरूप ? ख़ैर । मोदी बताते हैं कि आडवाणी जैसे अनेक स्वयंसेवकों को मधुकरराव के पास शिक्षण लेने का सुअवसर मिला ।
नरेंद्र मोदी ने डा प्राणलाल दोशी यानी पप्पाजी के बारे में लिखते हैं कि "कान में यदि पप्पाजी शब्द पड़े तो राजकोट ही नहीं गुजरात के कोने कोने में एक बड़े वर्ग की आँखों में चमक का अनुभव होता है । लिखते हैं कि राजकोट में भी कलकत्ता की जवानी की छाया झलकती थी । पश्चिम रंग का असर दिखे बिना न रह सका । शाम को क्लब कल्चर,ताश खेलना और सिगरेट के धुएँ में ज़िंदगी हरी भरी रहती है । सरदार पटेल की ज़िंदगी में भी ज़रा झाँककर देखें तो ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा । वक़ील का व्यवसाय,बार में बैठना, क्लब में साथियों के साथ ताश खेलना, सिगरेट के धुएँ में आज़ादी के दीवानों का मज़ाक़ उड़ाना, महात्मा गांधी के प्रति भी मज़ाक़ में कभी-कभी बोलना । सरदार पटेल के जीवन का यह स्वाभाविक क्रम था किंतु महात्मा गांधी के स्पर्श ने सरदार पटेल का जीवन बदल दिया । पप्पाजी के जीवन में कुछ ऐसे ही आमूल परिवर्तन देखने को मिलते हैं ।"
सरदार पटेल पर मोदी की यह जानकारी तथ्यात्मक है या नहीं मैंने चेक नहीं की है । सरदार पटेल के इस रूप के बारे में कभी पढ़ा नहीं । खैर मोदी जब गुरु गोलवलकर पर लिखते हैं तो सबसे पहले उन्हें दी गई श्रद्धांजलि का ज़िक्र करते हैं । आश्चर्य है मोदी या किसी बीजेपी ने गोलवलकर के संदर्भ में अपनी आलोचना का जवाब देते वक्त इस बात को कैसे भूल जाते हैं । लेखक नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था " े संसद के सदस्य नहीं थे, एक ऐसे प्रतिष्ठित सज्जन श्री गोलवलकर आज हमारे बीच नहीं हैं । वे विद्वान थे, शक्तिशाली थे आस्थावान थे । अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और अपने विचारों के प्रति अटूट निष्ठा के कारण राष्ट्र जीवन में उनका महत्वपूर्ण स्थान था ।" मोदी लिखते हैं कि गोलवलकर के निधन पर संसद के दोनों सदनों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी ।
इसी तरह वे कई अख़बारों का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि जनसत्ता ने तब लिखा था कि स्वामी विवेकानंद और मदन मोहन मालवीय ने भारतीयत्व के लिए जिस प्रकार के उपदेश दिये हैं वे वर्ष दर वर्ष परंपरानुसार चालू रहनेवाले तथा स्वदेशी और भारतीयत्व सम्बंधी देश के वर्तमान नेताओं में वे अकेले ही ज्योतिर्धर थे । स्पष्ट नहीं है कि आज वाले जनसत्ता ने लिखा था या कोई और जनसत्ता था । मोदी पौने तीन सौ पेज की किताब में संदर्भ नहीं देते है । पता नहीं चलता कि उनके किस्से उनके ही देखे या गढ़े हुए हैं या किस किताब किस भाषण से लिये गए हैं । स्मृति के आधार पर इतनी लंबी किताब ? कमाल है ।
यह पुस्तक नरेंद्र मोदी की लेखकीय प्रतिभा को सामने लाती है। उनके आलोचक और समर्थन करने वालों को पढ़ना चाहिए । मोदी और संघ के बीच तनाव की बातों को वे मनगढ़ंत साबित कर देते हैं । मोदी के भीतर संघ है और संघ के भीतर ही मोदी । इस घनघोर घमासान राजनीतिक जीवन में मोदी किताब भी लिख सकते हैं पढ़कर हैरानी हुई । हमें राजनेताओं के बारे में पढ़ना चाहिए । इससे आलोचना और प्रशंसा समृद्ध होती है । किताब जितना बताता है उतना टीवी नहीं बता सकता । एक चुटकी मेरी तरफ़ से । किताब की भूमिका लिखते हुए स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी की आख़िरी पंक्ति है- " परमात्मा उन्हें स्वस्थ रखे और उन्हें गुजरात की ही नहीं पूरे राष्ट्र की सेवा करने का अवसर प्रदान करे, ऐसी कामना एवं प्रार्थना है।" कहीं इसीलिए तो नहीं लिखी ये किताब !! कोई भी किताब जिसे महत्वपूर्ण नेता स्वयं लिखते हों पढ़नी चाहिए ।क़ीमत है चार सौ रुपये ।
Pranam, ravishji aajkal kahan hain, dhundhte-dhundte aapke blog per pahunch gaya. Sikta Prime Time lek kar aa rahin hain, lekin yeh jo dil hai ravishji ko hi dhundhta hai. Pichhle dino AAP ki aandhi mein Ashutosh ji bah gaye, kahin aap bhi to hava ki dhhar to nahi dekh rahe hain.
ReplyDeleteRavishji Pranam,
ReplyDeletePrime time per intzaar karte- karte aapke blog per pahunch gaya.
Aapka hi
Awadhesh
aap rent pe denge?
ReplyDeleteनहीं
ReplyDeleteagle hafte to aayenge na.... prime time me???
ReplyDeleteआपका आलेख बेहद सहज और सरल होता है, पढ़ कर दिल प्रफुल्लित हो उठता है. आपकी पत्रकारिता का भी मुरीद हूँ।
ReplyDeleteNRI hone ki wajah se mujhe ndtv ka prasaran to nahi milta lekin mai har roz ndtv ki website par jakar aapke naam ka search karta hoon. pichle hafte koi naya video upload nahi hua. aap kya kar rahe hain sir?
ReplyDeletelekin qasbe par aakar hindi me padne ka anand bahut samay baad mila, dhanyawad.
Hmm..aaj aapke duara Modi ko ek or tarah se janne ka Muka mila.Modi kya h ye baat hr tv wale apni tarah se batate h..book padh kr dekhte h aakhir Modi khud ko kis tarah se batate h.
ReplyDeleteAapke jariye hm bahut kuchh jan pate hain....achha lagta hai.
ReplyDeleteAapki agli kitab kabtak aa rahi hai....
Yahan bangalore me ye sab jan pana mushkil hota hai.....
kuch ho na ho, aapke chutti ke bahane aapka blog famous ho gaya. Sub internet mein aapko dhundte dhundte yahan pahoch gaye. Main bhi unme se ek hun. Lekin ek baat hai sir. Aapko upne blog comments pe aur proactively answer karna chaiye. Internet media hi ek aisa jariya hai jahan aap upne darashako se seedhe aur aasani se sanwad kar sakte hai. Main aapke jawab ka intezaar karunga.
ReplyDeleteNamaster Ravish ji .....pichle hafte se aapke prime time ka intezaar kar rahe hain ....kab darshan milenge aapke ...ab to prime time dekhne me accha hi nahin lag raha hai .....
ReplyDeleteSomeone's comment on facebook below :)
ReplyDeleteDaljit KafirAam Aadmi Party
क्या हुया रवीष ndtv वाला, क्यों दिखा नही ,, ?
लगता है बागी हो गया वो, आकांऔ को बिका नहीं,,
.#काफ़र
मैं आप सब की टिप्पणी पढ़ता हूँ । जवाब देना संभव नहीं हो पाता है । आप सब मुझे ढ़ूंढ रहे हैं यह जानकर थोड़ी हैरत भी हो रही है । मैं छुट्टी पर हूँ । चौबीस फ़रवरी से आ जाऊँगा । किसी ने मेरी राजनीति में जाने पर टिप्पणी की है । आप इसी ब्लाग पर मेरा जवाब पढ़ सकते हैं जिसका शीर्षक है क्या मैं भी !
Deleteकिताब के कुछ अंश मैंने भी पढ़ा है। स्वअलोकन और संघ के प्रेरक या उत्प्रेरक पर कोई विवेचना जैसी लगी मुझे। कोई भी विवरण और लय को सराहे हुए नहीं रह सकता। संघ और मॉर्डर्न गुजरात की राजनीति में दिलचस्पी लेने वालों के लिए यह किताब लुभाएगी।
ReplyDeleteआप तो छुट्टी में हैं। चम्पारण , मोहल्ला सभा पर कुछ लिखा है , सततः स्वः सुखायः की चेष्टा है। हिन्दी में भी प्रयास किया है। राहुल देव और एक मेरे इलाके के पत्रकार को समर्पित है http://atulavach.blogspot.in/
by the way Ravish Bhai aapki mahima to aparamparita ki seema langhne lagi hagi ,halanki samajh ne nahi aata ki twitter pe kabhi kabhi aap vilupt jaise kyun ho jaate hain
ReplyDeleteविचारधारा स्पष्ट होने में कोई हानि नहीं है, हानि तो तब होती है जब विचारघारा और निष्कर्षों में अन्तर होने लगता है, तब लगता है कि छल किया गया हमारे साथ।
ReplyDeleteएक पूर्णकालिक स्वयंसेवक को अपने जीवन काल में दर दर घूमकर इतने कार्य करना पड़ते हैं जितने एक राजनेता कभी नहीं कर सकता। मोदी एक पूर्णकालिक स्वयंसेवक से पूर्णकालिक राजनेता बन चुके हैं. स्वभाभीक है इस रूपांतरण में वो स्वयंसेवक की कई सारी शिक्षाओं को भूल चुके हैं मसलन सादगी जो उनके व्यक्तित्व से निकल चुकी है और अब वो हेलीकॉप्टर से घूमने वाले, डिज़ाइनर कपडे पहनने वाले, सलीके से बाल बनाने वाले, विभिन्न मुद्राओं में अपने ही छायाचित्र को निकलवाने वाले बन चुके हैं. अगर मोदी भी इस किताब के पन्ने पलटें तो उन्हें बहुत सीखने मिल सकता हैं. ये बात आपने सही तरह से दर्शायी "पढ़कर लगता है कि वे सिर्फ राजनीति सोचते रहते हैं । राजनीति करते रहते हैं। वे राजनीति के सतत विद्यार्थी हैं । जिसे लेकर अपनों के बीच भी लड़ते रहते हैं । उनकी यही ख़ूबी मज़बूत विरोधियों को कमज़ोर और आलसी बना देती है।" संजय जोशीजी पूरी तरह से गायब हैं. किताब जरुर ही रोचक होगी। धन्यवाद।
ReplyDeleteआजकल मोदी हवा भी छोड़े तो उसका गूढ़ मतलब होता है? हो भी क्यूँ नहीं, आखिर अगला प्रधानमंत्री है.इर्द-गिर्द मिथक भी होंगे. क्या लगता है, गोल्वोरकर का यह चेला(आपके या किताब के अनुसार)क्या करेगा ? "We OR Our Nationhood Defined" करेगा या कुछ और? वैसे इसकी झांकी गुजरात में २००२ में दिखा चूका है. देश के स्तर पर इसका प्रयोग देखना बाकी है.
ReplyDeleteका हाल बा,ठिक न:
ReplyDeleteआपकी समझ और लेखनी दोनो का कायल है,गुजरात मे रहकर ( मेरी मातृभुमि )अपनी जऩमभुमी से जोड दिया आपने,
आपके एक उपर किसी को कहा है ( किसी ने मेरी राजनीति में जाने पर टिप्पणी की है । )बनारस की भाषा मे जवाब दू,अगर किसी मे राजनिती नही तो ऊ का करे के वासते ईहा आयल ,
क़ीमत है चार सौ रुपये ।
ReplyDelete400 me modi ko samjhane ki kya jarurat? kuch aur bhi padhane vali pustak padhi ja sakti hai.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद, किताब कि जानकारी देने लिए। छुटियों का भरपूर आनंद लीजिये। वापस आकर हमें भी आंनदित कीजिये।
ReplyDeleteक़ीमत है चार सौ रुपये । हे हे हो हो ..मार्केटिंग में भी चतुर है छोरो..रिपोर्टरी छूट भी गयी तो भुखे नहीं रहोगे ..बात किताब कि तो अंकल क्या सबूत है कि इ उन्ही ने अपने कर "कमलों" से लिखी है ;०)
ReplyDeleteRight brother,
DeleteEkdam sahi kaha,
Ravishbhai unki dusri bhi kitab he,pollution pat zarur padhna nam unka he par kisi or ne likhi he,
हाँ स्वयं सेवक तो हमने भी देखे हैं..शादी न की, जीवन घूमने में लगा दिया..किसी कि कही सिफारिश न की..जहा मिल गया खा लिया...अब सब ४५+ हैं, प्रचारको के भी बड़े प्रचारक हो गए हैं..लोगो को शादी जरूर करने की हिदायत देते है(राखी भाई बहनो को भी, और ३५+ महिलाओ को ३-४ साल छोटे पुरुष से ) , सिफारिश कर कर के रूका पैसा दिलवा देते हैं, सरकारी प्राइवेट नौकरिया दिलवा देते हैं..बहुत परोपकारी हो गए हैं...स्वयंसेवक
ReplyDeleteRavish ji, Namaskar, Badi muskil se dhoondhte dhoondhte apke Blog tak pahinch gaya hu. Pichhale 2 weeks se NDTV par dhoond rahe hai. Apke bina prime time dekhna acchha hi nahi lagta. Blog par aane se pata chala aap LEAVE par hai & 24 Feb se vapas a rahe hai. Sukoon mila, Thank you. Come soon.
ReplyDeleteaapki chhuti ne bahut sare logon ko aapke blog tak pahunchaya....
ReplyDeletekayi baar aapki kami.. aapke bahut khas hone ka ehsas karati hai :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahut khub..apke bina primetime adhura lgta hai.
ReplyDeleteमोदी हमे अच्छा लगते है,पर लिखने के मामले मे आपके सामने कही नही टिकते है|| आप geniue है||
ReplyDeleteApne facebook account pe mujhe block kar diya shayad,mai dekh hi nhi pata .meri galti kya thi?
ReplyDeleteYe bahut jyada leave le li hai sir aapne .....isko parts mein devide kiya kijiye....kai important issues pe aapka prime time miss ho jaata hai.....hamara bhi dhyan rakha karo.......
ReplyDeleteApne facebook account pe mujhe block kar diya shayad,mai dekh hi nhi pata .meri galti kya thi?
ReplyDeleteAap nahi aate to hame goswami ji ko jhelna padta hai...aur koi option nahi hai hamare pass...
ReplyDeleteaapka mobile no. mil sakta hai kya sir ji.....
ReplyDeleteमोदी प्रतिभाशाली और गुड़वान तो है ही तभी तो एक कार्यकर्ता से प्रधानमंत्री पद तक का सफ़र तय किया। आत्मकथा पर लिखी गई हर किताब में उसके किरदार कि तारीफ होती है तो मोदी के किताब में उनकी तारीफ कोई नई बात नहीं है
ReplyDeletehttp://doingkamaal.blogspot.in
Modiji ko.likhana chahiye ke shang ne bharkit azadi me kya yogdan diya he?
ReplyDeleteYah bhi likhana chahiye ki ghadhiji par goli sangh ke ek karyakar nekyu chalaye?
Mr.Modi Ji Can do anything,if he want to do it...........!
ReplyDeleteRavish ji aap ka blog parha bahut accha laga aap nay apnay blog may zikr keya hia ki Modi ko kaysay itna time mil jata hai Kitab likh nay kay liya yah waqai nahut adbhut bat hai per aap ki bhi tarif karni ho gi aap bhi kam nahi hain ... hum logon kay leya aap apna kimti waqt nikal layte hian , itna wayast honay kay bawajood blog kay leya time nikal layte hian ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThere was a Jansatta in Gujarati and reference clearly must be to that paper. There was no Hindi Jansatta in 1973.
ReplyDelete