लोकल बैटरी का बिज़नेस खूब चल रहा है । बारह वोल्ट की बैटरी तो गाँवों में लाइफ़ लाइन है । ज़्यादातर लोगों के पास ये बैटरी है । रोज़ सुबह गाँव के लोग पाँच पाँच रुपये देकर जनरेटर से चार्ज करा लेते हैं । फिर उसके ज़रिये रात को एक बल्ब, मोबाइल फ़ोन और लैप टाप चला रहे हैं । इन सब चीज़ों की ज्यादा समझ नहीं है इसलिए जो बातचीत हुई उसे जल्दी जल्दी लिख रहा हूँ । वो बता रहे थे कि एक चाइनीज़ कनवर्टर चार्जर आ रहा है जो बैटरी के डायरेक्ट करेंट एसी में बदल कर मोबाइल चार्ज कर देता है ।
फिर फ़ोन का क्या करते हैं अतुल जी । उस पर फ़िल्म देखते हैं रवीश जी । गाँव के ज़्यादातर लोगों के पास दो से तीन हज़ार वाले चाइनीज़ फ़ोन हैं । सबके पास दो जीबी के चिप हैं । चार या आठ जीबी के चाप चाइनीज़ फ़ोन में सक्सेस नहीं है जी । दो जीबी के चिप में बीस फ़िल्में आ जाती हैं । एक फ़िल्म डेढ़ सौ एमबी में आ जाती है । अतुल जी पढ़ें लिखे नहीं है । ( अन्यथा न लें यह एक सूचना भर है ) लेकिन उनकी बातों को ध्यान से सुनिये । कहने लगे कि तीस रुपये में बीस फ़िल्म डाउनलोड करा लाते हैं सब । बुलेट राजा शुक्रवार को रिलीज़ हुई और शनिवार को इंटरनेट पर इसका हाई डेफिनेशन वीडियो आ गया । अब कोई गाँव का दुकानदार बरेली जाकर वीडियो कनवर्टर के ज़रिये अपने चिप पर डाउन लोड करा लाया । पचास रुपये में । उस चिप से उसमें हज़ारों मोबाइल में दो दो रुपये में डाउन लोड कर दिया । पचास रुपये लगाकर उसने हज़ार दो हज़ार कमा लिये । बारह वोल्ट की बैटरी से मोबाइल चार्ज किया और रात भर में बुलेट राजा फिल्म देख डाली । डीवीडी प्लेयर तो बेकार है जी । बिजली होती नहीं है न । सब मोबाइल चार्ज कर फ़िल्म देख रहे हैं ।
अच्छा ये बताइये इंटरनेट का इस्तमाल करते हैं सब । मेरे इस सवाल पर अतुल जी उछल पड़े । कहने लगे कि हर लड़के के मोबाइल में इंटरनेट कनेक्शन है । अठारह रुपये से लेकर दो सौ तक में अनलिमिटेड प्लान आता है । सबने न जी रट लिया है । जैसे इम्तहान में रट कर पास होते हैं न । अंग्रेज़ी तो आती नहीं । अब गूगल में राम लीला ग़लत भी लिखेंगे तो सही कर देता । उनको पता है जैसे मेरे को भी मालूम है कि सर्च में लिखने से आ जाता है । लड़के उसमें ज़्यादातर पोर्न देख रहे हैं । गंदी फ़िल्में देखते हैं । थ्री जी यहाँ नहीं है । टू जी कनेक्शन सस्ता भी है । डाउनलोड करके धीरे धीरे देख ही लेते हैं । फ़िल्म और ट्रिपल एक्स फ़िल्में देख रहे हैं । मोबाइल में अलग से भी डाउनलोड करा कर रखते हैं । चाइनीज़ मोबाइल का स्क्रीन भी बड़ा होता है ।
अतुल जी एक और बात बताने लगे कि अखिलेश ने जो लैंप टाप बाँटे हैं उससे कोई इंटरनेट नहीं चला रहा । सब फिल्म और पोर्न देख रहे हैं । इंटरनेट तो फ़ोन में है । लैपटॉप बिक तो रहा ही है लेकिन एक और धंधा चल पड़ा है । उनसे विंडो करप्ट हो जाता है । विंडो को ठीक करने के लिए दुकानदार तीन तीन सौ कमा रहे हैं । मामूली प्राब्लम भी आती है तो दुकानदार कह देता है कि विंडो करप्ट हो गया है ।
अतुल जी बातों बातों में नई जानकारियों के दरवाज़े खोलते रहे । ग्रामीण भारत ने बिजली का इंतज़ार छोड़ बारह वोल्ट की बैटरी को अपना लिया है । लालटेन ग़ायब है । इस बैटरी से आँगन में चाइनीज़ डिजीटल लाइट भी जल रही है । लोग न्यूज़ कम देख रहे हैं क्योंकि टाटा स्काई के सेट टाप बाक्स को डीसी में बदल कर टीवी चलाने का आइडिया कम लोगों में हैं । मगर मोबाइल फ़ोन अब बात करने का माध्यम कम रह गया है । यह टीवी का विकल्प हो चुका है । गाँव का गाँव मोबाइल में वीडियो देख रहा है । अतुल जी बात कर ख़ुश हो गए । कहा कि आज इस खुशी में बढ़ती रोटी खाऊँगा यानी एक रोटी ज्यादा । शुक्रिया अतुल जी मुझे नई जानकारी देने के लिए । एक रोटी ज्यादा मैं भी खाऊँगा ।
वाह बहोत बढ़िया तरकीब है गावं के लोग भी अब हाइटेक होते जा रहें। बिजली नहीं तो बैटरी ही सही।
ReplyDeletebilkul satik aur sahi jaankaari di hai atul ji ne..
ReplyDeleteक्या आपको नहीं लगता भारत का युवा अब उधमी हो रहा है
ReplyDeleteभारत की तुलना अब चाइना से नहीं जापान से करनी चाहिए
ख़ुशी होती है ऐसा सुन के अब लोग सरकार के भरोसे नहीं बैठते अपना जुगाड़ खुद कर लेते हैं और भारत में रहने का टैक्स के रूप में 5 साल में मत दान कर देते हैं
Mujhe hairani hai ki apko ye sab baate ab pata chala.
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ते पढ़ते ...विंडो करप्ट हो गया ... :P
ReplyDeleteशायद इसीलिए कहा गया है, Incredible India मुलभुत सुविधाओ से वंचित गांव का एक आदमी अपनी 'सोंचन क्षमता' के बल पर 'शहरी छोरे' को भी पीछे छोड़ रहा है| उस आदमी का खिल्ली उड़ाने कि बजाय यह सोचने की बात है कि,
ReplyDelete''कुछ ऐसे फूल भी हैं जिन्हे मिला नही माहौल,
महक रहे हैं लेकिन जंगलो में रहते हैं|''
यह भी एक उभरते हुए भारत की तस्वीर है
ReplyDeleteयह भी एक उभरते हुए भारत की तस्वीर है
ReplyDelete1984-86 के बीच रायबरेली के पास एक गांव ऊंचाहर में था मैं. तब वहां भी बिजली रात को ही आती थी और वह भी कब चली जाए पता नहीं. दिन में आ जाए तो किन्नरों का बधाई मॉंगना बनता था. केल्ट्राॅन का ब्लैक/व्हाइट पेार्टेबल टी.वी. लिया था जो 12 वोल्ट की कार-बैट्री से चलता था. टी.वी. के लिए दूरदर्शन प्रसरण शाम को शुरू होकर रात 11 बजे समाप्त हो जाता था. तब तक केबल टीवी का ज़माना न आया था. 15 दिन के करीब एक चार्ज पर चल जाती थी बैटरी. फिर 2-1 दिन चार्ज करवाने में लग जाते थे.
ReplyDelete30 साल में भी ऊपी में अभी भी कुछ नहीं बदला. कितने पक्के परंपरावादी हैं हम लोग. I love my India.
शुक्रिया अतुल and sir जी मुझे नई जानकारी देने के लिए
ReplyDeleteYeh padh kar accha laga kee China based instrumebnts se gaon me kuch to achcha ho raha hai...Trade deficit aur chidambaram jee ka jo hona ho woh ho...gaon ke log khush ho rahe hai to achcha hee hai :)
सर मैं आपका बड़ा फैन हूँ खाफई अच्छा लगा व्लाग पढ़ के एक तो भारत के ग्रामिण इलाकों के युवाओं का फोन यूज पता चला जो शहरी युवाओं से कम नही है यानी आदमी चाहे गांव को या शहर का इंटरनेट की दुनिया में कोई पीछे नही है। आपसे एक सवाल था जिस देश में नारियों को देवा तुल्य मानने की बात कही जाती है क्या वहीं उसी देश में नारियों का वैश्याबृत्ती जैसे गलत काम में होना सही है और क्या भारत सरकार द्वारा इसे लीगल करना सही है जबकी हम नारीयें को देवी के तुल्य मानते है ?
ReplyDeleteबाकी सब तो ठीक है,पर सूचना क्रांति के इस युग में पोर्न फिल्में कही यौन हिंसा और अपराध को तो नहीं बढ़ा रहे हैं ये विचारणीय है ।
ReplyDeleteरविश सर ये जुगाड़ तकनीक तो गाँव के जीवन की सच्चाई है,अतुल भाई ने आपको जो कुछ बताया उसका शाब्दिक चित्रण हमेशा की तरह लाजबाव है। बांकि आपके शब्दों में जो है सो हईये है।
ReplyDeleteमज़ा आ गया ये पोस्ट पढ़कर । नई और रोचक जानकारियाँ मिलीं। "जुगाड़" कहकर इनकी उद्यमता को कमतर नहीं करूँगा। ("जुगाड़" शब्द और उसके अविवेकी इस्तमाल से कुछ परहेज़ है मुझे , खैर वो कभी और ) ये विंडो करप्ट वाला नाटक बहुत पहले से कंप्यूटर वालों को करते देखा है। रेफोर्मेट करने में दिमाग और समय दोनों नहीं लगता। पाइरेटेड कॉपी का बेतलब अच्छा ख़ासा दाम ले लेते हैं । आपका डाटा गया सो अलग ! (ये आख़िरी टिपण्णी वक्तिगत कोफ़्त निकलने भर के लिए थी। घर में जब भी कंप्यूटर ख़राब होता है, तो "टेक्नीशन" आकर धलल्ढ़े से फॉर्मेट कर जाता है। दुष्ट )
ReplyDeletesabbhe jagah e mobile kranti aa gaya hai.
ReplyDeleteरवीश जी, प्राइम टाइम पर आपको एस एम एस भेजने का क्या तरीका है? हमउ भेजना चाहते हैं.
ReplyDeleteकरते हैं न आप चाहे जो कुछ भी पढ़ ले या चाहे जहाँ पढ़ ले लेकिन जो कौशल एंव गुण भारतीय होने मे हैं वैसा शायद ही किसी और मुल्क के लोगो मे होगा यह सिर्फ एक गाँव की कहानी नही हैं मेरा गाँव सिवान शहर से 6 किलोमीटर दूर टिकरी हैं जो किसी भी टाउन से कम नही हैं वहाँ पर बिजली की समस्या का बेहतरीन उपाय निकाला हैं जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता हैं
ReplyDeleteसाहेब.. माफ़ी मांगने का भी अपना अलग मज़ा है तो लीजिये अंग्रेज़ी वाला एक्सक्यूज़-मी|
ReplyDeleteएक्सक्यूज़-मी, भारत आत्मनिर्भर हो गया है| स्वाभिमान की बात है, हम कब तक इन नेता लोग के बंगलों पर चिट्ठी, चप्पल(आजकल जूते)घिसते रहेंगे|
जनता-नेता ने एक-दूसरे को खुद के हाल पर छोड़ दिया है | ना आये बिजली, बैटरी है| कम आये एम्प्लीफायर/स्टेबलायज़र है| पानी के लिए जज़्बा है, केन्ट प्योरीफायर है|
राजस्थान से हूँ, जयपुर में बिजली आती है| कोटा, आइआइटी कोचिंग में जनरेटर है, पास ही थर्मलपावर स्टेशन है लोग संतुष्ट हैं| कटौती होनी होती है तो टाइम अखबार में छापा हुआ आता है|
24 घंटे बिजली का वादा फ़ैशन की डिमांड है और फ़ैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना बाबा ना| हमारे गांवों में 12 वोल्ट की बैटरी नहीं है, इन्वर्टर है| सचिन वाला नहीं, लोकल मेड|
बड़ी बैटरी है डिस्टिल्ड वाटर डालने वाली पर हम बारिश के पानी का एक उपयोग यहाँ भी पाते हैं| बालिका-वधू और दिया-बाती की तरह सब उजला-उजला तो नहीं ही है पर ठीक है मैनेज हो जाता है| यू-ट्यूब, फ़ेसबुक इतने पॉपुलर नहीं है| जातिवाद और आरक्षण(प्रकाश झा वाला नहीं कर्नल बैंसला वाला)बच्चे-बच्चे को पता है| तकनीक अभी पीछे है मोदी आगे हैं|
जय हो भारत देश की, अपने मन के मन से उपाय निकाल लेते हैं।
ReplyDeleteहम सब के लिए एक रोटी अधिक वाली सूचना. खासकर ''एक फ़िल्म डेढ़ सौ एमबी में''
ReplyDeleteवाह रविश भाई वाह । क्या दोस्ती निभाया है । फेसबुक में दोस्त थे अब आप ने सीधे अनाफ्रेण्ड कर सिर्फ हमें फालोअर के लिए नामित किया है । पहले फेसबुक पर कामेन्ट किया जा सकता था पर आप ने उससे भी वंचित किया है । क्या कहने, वाह । मोतिहारी का बबुआ सचमुच बहुत जानकार हो गया है । आज ही सुबह सोशल मिडिया के ऊपर आप का भाषण भी सुनने को मिला । पर हकीकत वैसा नहीं है जो आप कह रहे थे । बहुत बढिया कइलह । बाधाई बा ।
ReplyDeleteछत्तीसगढ मे तो हमारे गांव से दुर्ग ४० किमी दूर है फिर भी पांच छह साल से २४ धण्टे बिजलीा हां कभी कभी मौसम के चलते गुल हो जाता हैा
ReplyDeleteरवीश जी, बिहार के गाँव में आपने बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था देखि हि होगी. जेनेरटर से पुरे गाँव में बिजली के आपूर्ति की जाती है, कम से कम चार घंटे के लिए. रेट भी कम है, प्रति बल्ब १०० रुपैया या फिर कुछ लीटर किरासन तेल. ये एक तरह की क्रांति हि हो गयी है. गेन में भी अब लालटेन और डिबिया दरवाजे पर कम हि दीखता है. अच्छा लगता है. लेकिन इससे न तो टीवी चलता है और ना मोबाइल चार्ज होता है. हाँ रौशनी में पढाई कर बच्चे अपने को शहरी बच्चे के आस पास बराबर जरूर मानने लगते है. ये जो उद्यमी है, मेहनत भी बहुत करते है, अच्छी खासी कमाई भी हो जाती है.
ReplyDeleteबिलकुल सही जानकारी दी है अतुल जी ने । रविश जी वैसे मोबाइल का यूज़ तो हर जगह इसी लिए हो रहा है चाहे गाँव हो या शहर ।
ReplyDeleteबिलकुल सही जानकारी दी है अतुल जी ने । रविश जी वैसे मोबाइल का यूज़ तो हर जगह इसी लिए हो रहा है चाहे गाँव हो या शहर ।
ReplyDeleteरवीश जी मध्यप्रदेश में बुंदेलखण्ड अंचल में भी बिजली के कोई बहुत अच्छे हालात नहीं हैं . हां फिलहाल चुनावी साल है सो भरपूर बिजली मिल रही है . खैर बताना यह था कि हमारे यहां मोबाईल पर वीडियो देखने से एक कदम आगे जाकर टी.व्ही. भी देखा जा रहा है . जब मैच के दौरान बत्ती गुल हेाती है तो यही चाइना मोबाईल भीड का केंद्र होता है . पर एक बात आपने गौर की होगी कि यदि तुलनात्मक रूप से देखें तो हमारे ग्रामीण या युवा अपने हमउम्र शहरी-नगरीय-महानगरीय युवा की अपेक्षा कहीं अधिक प्रयोगधर्मी या सही मायने में कहें तों जुगाडू हैं , और विण्डो करप्ट वाली बात तो सर जी भारत में कम्प्यूटर का अखिल-भारतीय रोग है, साथ ही इसका भारतीय उपचार काश्मीर से कन्या-कुमारी तक लगभग एक ही crack key वाला pirated version . अतुलनीय भारत.
ReplyDeleteHamare gujrat me asa nahi he, hamare yha 24 ghante bijli hoti he.
ReplyDeleteतब तो हमें सरकार से कहना चाहिए कि जो राजीव गांधी ग्रामीण विधुतीकरण योजना वो करोडो के बजट में चला रही है उसे बदलकर ग्रामीण बैटरीकरण योजना कर दे कुछ पैसे तो बच जायेंगे ही उसके… साथ ही जो मोबाइल योजना वो लायी थी उसे चाइनीज मोबाइल योजना बनाकर जल्दी लागू कर देना चाहिए फिर टीवी जैसी बड़ी चीजे नहीं आयत करना पड़ेंगी न…सही कहा न रवीश जी.…
ReplyDeleteवह क्या शैली है भाई.......कमाल यथार्थ का चित्रण इतना सटीक की दृश्य आँखों के सामने नाचने लगता है......बिलकुल सहज भाषा का प्रयोग है.....अधिक से अधिक जन को अपील करेगा....लगे रहिये....खूब आगे जायेंगे.....
ReplyDeleteशाइनिंग इंडिया , बुलंद भारत , सिर्फ नारे है। तस्वीर का यह पहलु किसी (मोदी ,राहुल ) को क्यों नहीं दीखता ?
ReplyDeleteRavish ji....Bahut accha laga padkar....aap ne jo baat likhi hai....aur uske sahare jo aap batana chahte hain... bahut difference hai dono mein
ReplyDeleteye sab to sahi hai lekin aap ye batao ki Twitter pe aap mujhe follower kyon nahi accept kar rahe ho
ReplyDeletechunav prachar ke samay yehi partiyan bijli aur vikas jaise mudde par raajneeti karti hai lekin aasliyat yahi hai jo aapne likha hai.....padh k bahut accha laga ravish ji...
ReplyDeleteIsrael की एक घोषणा याद आ गई
ReplyDeleteउन्हों ने कहा था वे उनके त्रासवादीयों को torch से ढूंढेंगे...
बैटरी अगर त्रासवादी को भी ढूंढ़ सकती है तो tv/movies क्या चीज़ है:)
nonconventional energy source की और
लोकल gov का ध्यान खींचना चाहिए और लोगों को भी सजग होना चाहिए-वर्ना कल बिजली मिलेगी और महँगी होगी तो यही निर्दोष नागरिक अपनी आदतों से मजबूर crime को अंजाम देंगे
ये तो यूरेका मोमेम्ट रहा - आपके लिए भी, हमारे लिए भी ।
ReplyDeleteकल का कुरुक्षेत्र मज़ेदार वानगी था-elections में रोज़ आएगा क्या? बढ़ती रोटी:) you see!
ReplyDeleteSir Ji , Maza aa Gaya ye Ghana sun kar. Aur aapka andaaz -e- bayan ke Kya kehne.
ReplyDeleteGood news
ReplyDeleteये भारत है यंहा सब कुछ जुगाड़ से चलता है और सबसे जादा तो गाँव में देखने को मिलता है
ReplyDeletehttp://goo.gl/vjH5wr
बड़ी ही विचित्र बात है सूचनाओं के सागर में रहने वाले हम हजारों Km दूर दूसरे देश की बातों को जानते हैं और उनके बारे में बहुत ही सहज भी होते हैं लेकिन अपने पड़ोस के गाँव में गोबर से आँगन लीपती हुयी बुधिया को देखकर सैफ अली खान style में wow करते हैं,
ReplyDeleteवास्तव में हम अपने देश के बारे में अपने लोगों के बारे में कितना कम जानते हैं, नरेंद्र मोदी 24 घण्टे बिजली देने की बात करते हैं लेकिन अभी भी ऐसी न जाने कितनी जगहें हैं और कई तो मेरी खुद की देखी हुयी जगहें हैं जहां पर पहुँचने को पक्का तो छोड़ो proper रास्ता नहीं है बंदरों की तरह उछल कूद करते हुये पगडंडियों पर चल कर लोग अपने अपने गंतव्य को जाते हैं, बिजली तो दूर बिजली के लट्ठे तक नहीं हैं,
NaMo को सब मर्जों की दवा बताने वाले भक्तो कोई "साहब" को जाकर बताता क्यो नहीं की उनके "मित्रो" (मित्रों नहीं :P) का क्या हाल है।
बाकी चाइना के फोन का तो यही इस्तेमाल हो रहा है, पॉर्न और गाने, जिसे अखिलेश लैपटाप मिला तो वह बड़ी स्क्रीन पर देख रहा है। मेरे पड़ोस में एक लड़की को मिला जब वह उसे मेरे पास लायी सीखने के लिए तो उसका पहला सवाल था कि "भैया इसमे गाने हैं क्या?"
2 दिन उसने बस यही सीखा कि गाने कैसे चलाते हैं, फिल्म कैसे चलाते हैं और ये सब लैपटाप में "भरे" (store) कैसे जाते हैं, मुझसे भी डिमांड उसकी यही थी कि भैया मेरे लैपटाप में गाने और पिच्चर भर दो।
खैर हर बात पर नकारात्मक सोच सोच कर कहीं बीमार न पड़ जाऊन इसीलिए मान लिया है कि ये भी किसी अच्छे के लिए ही हो रहा होगा
(हाँ माँ को थोड़ी तकलीफ है कि अब जिसे देखो उसके हाथ में लैपटाप है जिससे उनके लैपटाप वाली होने का रसूख घट गया है :)
Jaroorat hi Innovation ya research ka main karan hota hai aur yeh agar sahi direction me ho to sone per suhaga.
ReplyDeletejugadu bharat ke rojbetee...........
ReplyDeletejugadu bharat ke rojbetee...........
ReplyDeletejugadu bharat ke rojbetee...........
ReplyDeleteरबीश जी आपके इस पोस्ट से मुझे उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की नेपाल सीमा से लगे गांवों में बिजली के अभाव में गोबर तथा नमक के मिश्रण को एक निशिचत अनुपात में मिलाकर प्लस-माइनस टर्मिनलों से एलर्इडी बल्व जलाने के जुगाड़ की याद आ गयी। बिना किसी खर्चे के रातों में उजाला करने का यह अदभुत तरीका शायद ही किसी ने कही सुना और पढ़ा हो।
ReplyDeleteरबीश जी आपके इस पोस्ट से मुझे उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की नेपाल सीमा से लगे गांवों में बिजली के अभाव में गोबर तथा नमक के मिश्रण को एक निशिचत अनुपात में मिलाकर प्लस-माइनस टर्मिनलों से एलर्इडी बल्व जलाने के जुगाड़ की याद आ गयी। बिना किसी खर्चे के रातों में उजाला करने का यह अदभुत तरीका शायद ही किसी ने कही सुना और पढ़ा हो।
ReplyDeleteसन दो हजार में हम भी विंडोज और विभिन्न साफ्टवेयर इंस्टाल करके पॉकेट मणि बनाते थे. पूरे पटना में उसका एक ही रेट था उन दिनों. 750 रूपया.
ReplyDeleteपता नहीं था की अभी भी ये धंधा चल रहा है. :)
This is the Ravish Kumar, which I was trying to find at twitter :-)
ReplyDeleteJabardast story sir................:)
ReplyDeleteRavish Ji...apki ye story kafi intresting lagi...gaon me to aaj bhi light nhi hai log kuch na kuch jugad karke apne manoranjan ka sadhan dhoondh hi lete hai...serkar ko to park, laptop aur midday meal hi bantna hai...moolbhoot suvidhaye kya hoti hai unhe kya pata...azadi 66 sal gujar gaye per kahi kahi aaj bhi azadi wali condition hai...Arvind Kejriwal ne in logo k khilaf hi awaj uthai hai..bas jarurat hai ek imandar koshis ki..janta janardan ka sath bahut jaruri hai bas datre raho INDIA....Jai Hind.
ReplyDelete