संसद सत्र की सुबह सुबह आपको टीवी पर इधर उधर देखते हुए परन्तु बोलते हुए सुनता हूँ तो लगता है कि आप कुछ कन्नी काट रहे हैं । रोज़ सुबह कहते दिख जाते हैं कि सब साथ हैं । मिलकर रास्ता निकाल लेंगे । सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है । कोयला मंत्री जवाब देंगे । हम बहस के लिए तैयार हैं । मैं यह सब सुनकर इतना आश्वस्त हो जाता हूँ कि दिमाग़ से यह बात उतर जाती है कि पहले भी यही कहा था मगर संसद नहीं चली थी । आप की संवैधानिक मर्यादा समझता हूँ । संसदीय कार्यमंत्री विपक्ष की रणनीति को भाँपने और उसकी काट तैयार करने के लिए जाने जाते हैं । मगर आप इतना ही कह कर चले जाते हैं और संसद नहीं चल पाती । आप ज़रा कैमरे में देख कर बात किया करो वर्ना ऐसा लगता है कि आपको ही अपनी बात पर भरोसा नहीं है ।
संसद चले या न चले ये सवाल अब प्रासंगिक नहीं रहा । बीजेपी के पास रोज़ एक गंभीर मुद्दा होता है । वो पिछले दिन जिस मुद्दे पर हंगामा करती है उसे अगले दिन भूल जाती है । बीजेपी को लगता है कि रोज़ नया मुद्दा लाकर संसद का काम रोक कर वह घिरी हुई सरकार को घेर रही है । बीजेपी रोज़ एक ज्वलंत मुद्दे पर वन डे मैच खेलती है । एक तरफ़ से यशवंत सिन्हा का बाइट आता है तो दूसरी तरफ़ से रविशंकर प्रसाद का । पहले के टीवी में एक पार्टी के एक नेता का ही बयान चलता था मगर बीजेपी के कई बड़े नेताओं की सीरीयस है सीरीयस है कहते हुए बाइट चलने लगती है । ऐसा लगता है कि संसद न चलकर रोज़ बीजेपी के उठाये मुद्दे पर अपनी श्रद्धांजली पेश कर घर चली जाती है । आपकी पार्टी के सासंद तेलंगाना विरोध का बैनर लिये व्हेल में आपके भरोसे की पुष्टि करते रहते हैं कि संसद चलेगी !
' हैविंग सेड दैट' अभिप्राय यह है कि आपको कोई मुद्दा तो मिलता ही नहीं बीजेपी को घेरने का । या तो है नहीं या उठाने या उठवाने का साहस नहीं है । कमलनाथ जी आपके आगे न नाथ लगते हैं न पीछे पगहा । आगे नाथ न पीछे पगहा ये भोजपुरी कहावत है ।
संसद नहीं चल रही है । मगर आप चले चले जा रहे हैं । पता नहीं राजनीति में आपको कहाँ से कृपा आती है । निर्मल बाबा भी फ़ेल । आप लोड न लो जी । संसद को न चलने से कुछ नहीं होता जी । देश में दो ही सत्य । एक कांग्रेसी सत्य और दूसरा भाजपाई सत्य । जय हो इस सत्य संसद की ।
आपका
रवीश कुमार ' एंकर'
there should a body or a system who should impose fines on the politicians who disrupts the Parliament.
ReplyDeleteBut gods knows,when will that system come in our great nation.?
http://chalte-rahiye.blogspot.in/2013/08/blog-post_19.html
ReplyDeleteएंकर रवीश कुमार जी
एंकर रवीश कुमार जी,
बहुत बार मन करता है कि आप से किसी तरह बात हो,
पर ऐसा संभव ही नहीं हो पाया,
तो सोचा क्यों न ब्लॉग के जरिए ही इस आंकाक्षा-महत्वकांक्षा को,
परवान चढ़ाया जाए,
तुम्हे दोस्त कहूं या अपना प्रिय एंकर कहूं,
या कस्बे का ब्लॉगर कहूं,
टविटर पर आप को पढ़ते हुए,
बहुत बार चलते-रहिए सुना तो,
यह वाक्य अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण एंव अवधारणात्मक लगा,
तो सोचा क्यों न ,
इसी नाम से ब्लॉग ही बनाया जाएं,
ब्लॉग बनाया तो सोचा कि पहली पोस्ट आप को ही लिखी जाएं,
पर किन्हीं कारणों से नहीं लिख पाया,
कई बार हम बहुत कुछ सोचते ही रह जाते है,
कर नहीं पाते,
शायद यह भी चलते रहने का ही परिणाम हो,
खैर,मेरी बातें उपरी तौर पर फोलोवर जैसा आभास भले ही देती हो,
पर वह मैं किसी का नहीं हूं,न हो सकता हूं,
वैसे भी चलता हुआ इंसान किसी के हाथ का मोहताज नहीं हुआ करता,
बहरहाल,
दोस्त तुम को पढ़ते हुए,सुनते हुए,
काफी कुछ समझने और अभिव्यक्त करने में मदद मिलती है,
जिसका मैं कायल-सा हो गया हूं,
पता नहीं कब से मैं एक सम्मोहन की स्थिति में पहुंच गया,
इसका आभास मेरी प्रेमिका ने कराया,
जब उसे लगा कि--
उसके जितना या उससे ज्यादा स्पेस,
मैं आपको देने लग गया हूं.
इसी कारण वह आपसे ईर्ष्या भी करने लगी है,
वरना वह भी तो प्राइम-टाइम तथा हम-लोग बड़े ही चाव से देखा करती थी,
अक्सर हम बात भी किया करते थे,
बातों ही बातों में उसे आपका असर मुझ पर दिखने लगा होगा,
इस मुग्धता से बाहर निकलने के लिए ही,
मै यह पोस्ट लिख रहा हूं,
इसे अपने पाठक-दर्शक की फीडबैक समझ कर स्वीकार करे.
आपका पाठक-दर्शक
नवीन
sir aapne post lighter note pe likha hai par yeh serious issue hai :(
ReplyDeleteसंसद आप मत ही चलो और सांसदों आप चलते रहो :) :-p
ReplyDeleteगुजराती मैं भी दो कहावतें ऐसी है--
ReplyDelete"कोई धणी नहीं अने कोई धोरी नहीं" (धोरी = बैल)
और दूसरी कहावत है
"आगळ ऊलाळ नहीं अने पाछळ पलाळ नहीं"
तो 'पगहा' का अर्थ क्या होता है?(i think गुजराती मैं एक शब्द है ' पगी ' जो समान्यतः रजवाड़ों के यहाँ bodyguards + survents थे या एक अर्थ है शिकार के वख्त राजाओं के आगे पग यानि पेदल चला करते थे और उनकी बेटियों की डोली कन्धों पर उठाने लायक विश्वासी ।
गुजराती मैं भी दो कहावतें ऐसी है--
ReplyDelete"कोई धणी नहीं अने कोई धोरी नहीं" (धोरी = बैल)
और दूसरी कहावत है
"आगळ ऊलाळ नहीं अने पाछळ पलाळ नहीं"
तो 'पगहा' का अर्थ क्या होता है?(i think गुजराती मैं एक शब्द है ' पगी ' जो समान्यतः रजवाड़ों के यहाँ bodyguards + survents थे या एक अर्थ है शिकार के वख्त राजाओं के आगे पग यानि पेदल चला करते थे और उनकी बेटियों की डोली कन्धों पर उठाने लायक विश्वासी ।
Sansad ki bhut majburiya hai, sare sisasi dal is antim chamahi me khub mehnat kr rhe hai apni siyasat chamkane me krne diya jaye unhe tbhi unhe krne me maja ayega aur hume dekhne me
ReplyDeletemere vichar jarur padhe @aaapkablog.blogspot.com
SIR DONO MESE KOI BHI DAL NHI CHAHTA HIA KI SANSAD CHALE, BJP KO FOOD SECURITY BILL KA DAR HAI TO CONGRESS KO COAL FILE KA DAR HAI, FALL OF RUPEE AND ECONOMY KA DAR HAI..
ReplyDeleteAAPNE KAL SAHI KAHA THA KI CONGRESS AB ECONOMY KO LEKE COOLING PERIOD ME HAI KI KISI TARAH SE ELECTION HO JAAYE AUR UNKA JHANJHAT KHATAM HO
sir g sansad ka time nahi kharab hona chahiye mahatvpurn bill charcha hoke hi pass hona chahiye
ReplyDeleteसच ही है, सारी बहसें तो टीवी में और अखबारों में ही हो जाती हैं।
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