ग़ज़ल मौसम और दिल्ली

जब से हम तबाह हो गए 
तुम जहाँपनाह हो गए 
हुस्न पर निखार आ गया 
आइने स्याह हो गए 
तुम जहाँपनाह हो गए 

आँधियों की कुछ पता नहीं 
हम भी दर्दे राह हो गए 
तुम जहाँपनाह हो गए । 
दुश्मनों को चिट्ठियाँ लिखो
दोस्त ख़ैरख्वाह हो गए 

दिल्ली का मौसम बदला हुआ है । मिज़ाज ए शहर में हम नहीं हैं । जगजीत चित्रा की ग़ज़ल बारिश की तरह सुन रहा हूँ । कितनी बार इस ग़ज़ल पर लिखूँगा और सुनूँगा पता नहीं ।पर मुश्किल से आठ दस पंक्तियों की इस ग़ज़ल को ऐसे गाए जा रहे हैं ये दोनों कि आरी पर ज़िंदगी कटती जा रही है । एक बार मौसम बदल जाए लोग झूमने के इंतज़ार में बैठे रहते हैं । हवा शायद यही ख़ूबसूरत है जो बारिश से पहले आई है । कहीं से भीग कर आई है । 

6 comments:

  1. यह जहाँपनाही दिल्ली को ही आती है, हर चीज़ तरसा कर मिलती है।

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  2. दिल्ली का मौसम भारतीय राजनीति की तरह है कब पलटे और किसको भाये कुछ कहा नहीं जा सकता।

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  3. Sunte rahiye... aur sunate rahiye sir jii.......

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