मोहल्ले का मौसम




मेरे मोहल्ले का मौसम सुहाना है । फ़ेसबुक पर वो सारे लोग सावनमय हुए जा रहे हैं जिनकी खिड़की से बादल दिखता भी नहीं । हवा इतनी नरम है कि सबका शातिर मन शायराना हुआ जा रहा है । कोई निराला को याद कर रहा है कोई पंत को । सारी यादों का प्रदर्शन रूटीन लगता है । ऐसा लगता है कि यादें एक ही किस्म की हैं उसमें अलग अलग लोग एक दूसरे से अनजान फ़िट हो गए हैं । भाषा का ऐसा फार्मेटीकरण डराता है । लगता है क्या बोलें जब बोलना ही उसी फ्रेम में है तो । 

बहरहाल मौसम का मज़ा लीजिये । बारिश आती है । हम भीगते तो हैं मगर धुलते नहीं । दिमाग़ के भीतर यादों की अनगिनत खिड़कियाँ हैं । एक खुलती है तो दूसरी बंद हो जाती है । अजीब बोरियत है । नया क्या है । यादें कृत्रिम लगने लगी हैं । बादल भी एक छवि की तरह आते हैं । अब उन्हें देख कुछ बचा नहीं कहने के लिए । जो कहा जा चुका है वो तरह तरह से कहा जा रहा है । 

8 comments:

  1. छोटी छोटी खुशियों से लबालब देश, बड़ी खुशियाँ तो कब की चली गयीं।

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  2. ऐसा नहीं लगता सर आप कुछ ज्यादा ही सोचने लगे हैं ..........

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  3. khusian to Sir aap ki tarah khojne se milti hai

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  4. बहुत खूब।सर

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  5. ज्यादा सोचिये मत बस आनंद लीजिये

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  6. aapka koi mel nhi hai...ravish sir

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  7. bhasha ka formatikaran..hahaha
    enjoy d rain sir :)

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