पागलनामा- पार्ट थ्री

कुछ दिल ने कहा 
कुछ भी नहीं 
ऐसी भी बातें होती हैं 
लेता है दिल अंगड़ाइयां
इस दिल को समझाये कोई 

रात ऐसी ही होती है । विविध भारती के जैसी । धीरे धीरे आवाज़ साफ होती सी । सिरहाने के क़रीब रखा रेडियो चुपचाप गाये जा रहा है । तारों से भरा रात का आसमान थिरक रहा है । जो भी है बस यही इक पल है । पाँव बिस्तर के बाहर झूल रहे हैं । इन गानों की सोहबत में रात दोस्त की तरह बात करती है । सारे राज़ के वेवलेंथ पकड़ लेती है । हौले हौले बातों से अच्छा करती जाती है । टेबल फ़ैन की हल्की हवा का शोर गुम हुआ जाता है । रेडियो है कि गाता है । 

"अनजाने सायों का राहों में डेरा है 
अनदेखी बाहों ने हम सबको घेरा है । 
जीने वाले सोच ले यही वक्त है 
कर ले पूरी आरज़ू "

वायलीन जैसा कुछ बज रहा है । माउथ आर्गन है क्या । मालूम नहीं । कौन है उस तरफ़ जानता नहीं । गानों में कौन है जो किसी से मिलता जुलता है । जीवन में कौन है जो गानों सा लगता है । मैं हूँ तो भी नहीं हूँ । पैराग्राफ़ बदलना गुनाह लगता है । लिखना बादल के फटने जैसा है । सब कुछ बह जाता है । जो होता है वो भी और जो नहीं होता है वो भी । लिखी हुई बातों से मन दूर निकल आता है । पागलनामा क्यों लिख रहा हूँ । क्यों जाग रहा हूँ । नींद किस शहर से आती है । वो ग़ाज़ियाबाद नहीं आती क्या । पतंग की कटी डोर पकड़ने सा मंज़र है । बचपन में डोर के पीछे दूर तक भागना नींद के पीछे दौड़ना जैसा है । क्या है जो सोने नहीं देता । क्या है जो जागने से मिल जाएगा । क़ानून बनाओ । क़ानून बनाओ । हर ख़्वाब को जुर्म में बदल दो । सलाखों  के पीछे मिलेंगे सपने और जेलर बना जाग रहा होऊँगा मैं आपका रवीश कुमार । कोई परेशानी तो है नहीं फिर परेशान कैसा । केदारनाथ सिंह को पढ़ूँ क्या, लेकिन काशीनाथ सिंह से शांति नहीं मिली । मंगलेश की कविता ठीक रहेगी । नहीं न्यूज़ चैनल देख लूँ । नहीं नहीं । नहीं देखनी । मैं तो पागल हूँ । न्यूज़ तो समझदार देखते हैं । पागल तो जागता है । नींद नहीं आती । अरे अरे फिर कोई गाना आ गया । 
दुनिया में लोगों को 
धोखा कभी हो जाता है 
आँखो ही आँखों में 
यारों का दिल खो जाता है । 

विजेता कहीं भी सो लेता है । करवट नहीं बदलता है । ग़ाज़ियाबाद हारे हुए लोगों का शहर है । हिन्दी कविता पढ़ने वालों की दुनिया । जो अपना पैसा देकर संग्रह छपवाते हैं कवि कहलाने के लिए । तुम सोते हो कि नहीं । 

15 comments:

  1. पार्ट थ्री से ही शुरुआत कर रहा हूँ आपके ब्लॉग को पढने की,क्यूँ दिल को शक सा होने लगा है के कोई तो है जहाँ में जो रात हो जाने पे भी नींद का इंतजार करता है जो आसमान में तारों को देखकर स्वप्न बुन रहा है.मिलेगा वही जो मुकद्दर में लिखा है पर क्या करें ये कुत्ते की पूँछ है सीधी कब हुई है.... रविश भाई तहे दिल से आप और आपकी शक्सीयत को प्रणाम करता हूँ. शुभ रात्रि

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  2. ये पागलनामा है ?
    वेदना कहना ठीक होगा !

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  3. दिन निचोड़ डालता है, रात के लिये कुछ छोड़ता ही नहीं। जो निचोड़ ले, वही विजेता।

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  4. बहुत ही शानदार।।। ढेर सारी शुभकामनायें।।।

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  5. जादुई यथार्थ!!!

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  6. dohra vyaktitva hai.....news' views kuchh aur, vichar manthan kuchh aur.......badhiya hai.....nind udd jaye teri chain se sone wale..........

    Arjun

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  7. केदारनाथ सिंह से मंगलेश डबराल तक विचलित दुनिया है कुछ खो जाने का डर आँखों में जगता है सोचता नींद क्यूँ रात भर नहीं आती

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  8. अगर ये पागलपन है तो आप कभी होश में ना आएं, हम यूं ही पढ़ते रहना चाहेंगे

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  9. I just came to know about your blog site via google devta... just had a look on your this latest blog, it is awesome, somehow it is telling the truth of every one's life.

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  10. 'likhna badal ke fatne jaisa hai'
    hats off to you sir!!

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  11. Bahut sundar likhte hai aap ravishji....:)

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  12. radio ke gane aur taaron bhari raat ... ye sirf wo samajh sakta hai jo apne gaaon ki chhat par hawamahal aur vividh bharti ke gaane sun kar soya ho.. ye yaadon ki wo jamaa poonji hai jisko ravish ji ka khaanti andaaj hi chhoo sakta hai...

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  13. pagalnama ekdam damdar...shaili aisi ki aur kisi blog ka rasta bhul gaye ab..

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  14. मेरा खाने खाने का समय और आपके प्राइम टाइम का समय एक ही है, खाने खाते हुए आपको सुनना अच्छा लगता है, हालांकि कभी कभार आप खुद की निजी राय थोपते ज्यादा नजर आतें है, मगर फिर भी आप प्रिय है, फेसबुक पर तो आप मित्र बनायेंगे नहीं......तो आपको यहीं पकाते रहेंगे......ये अपना पागलनामा है :)

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