बीजेपी कवर करने वाले जानते होंगे । बीजेपी धीरे धीरे उत्सुकता बढ़ा रही है और उसे बनाकर रख रही है । कई बार लगता है कि सब रणनीति के तहत हो रहा है । एक ख़बर आती है आडवाणी मोदी के ख़िलाफ़ हैं फिर अगले ही दिन ख़बर आती है कि आडवाणी ने मोदी के नाम पर मंज़ूरी दे दी है । आडवाणी क्या इतने महत्वपूर्ण हैं कि पार्टी में आदरणीय रूप से हाशिये पर रहते हुए भी मंज़ूरी देते हैं । विरोधी कौन है इसका नाम कोई नहीं छापता । एक रणनीति के तहत सब आडवाणी को मोहका बना रहे हैं ताकि लगे कि मोदी की राह आसान नहीं है । मीडिया द्वारा सृजित इस कृत्रिम द्वंद के कारण मोदी लगातार चर्चा में हैं । रणनीति भी यही है कि मोदी लगातार ख़बरों में बने रहें । आज सही में गाँव गाँव में लोग मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में देखने लगे हैं । जानने लगे हैं और असहमत होने लगे हैं । प्रचार की यह शानदार रणनीति है । मोदी का नंबर भी तय हो गया । वे 'वन' पर हैं और शिवराज 'थ्री' पर । बाक़ी नेता किस पोडियम पर है पता नहीं । राजनाथ सिंह मोदी को सबसे लोकप्रिय बताते हैं । मोदी के विरोध की ख़बरें ही चली हैं अभी तक । एक भी ख़बर ये नहीं आई हैं जिसमें ये विरोधी मोदी को किसी भी रूप में रोक पाये हों । हर विरोध के बाद मोदी एक क़दम और चल के आ जाते हैं ।
हो सकता है कि ख़बरें सही भी हों मगर मोदी के विरोधी हैं बड़े कमज़ोर । पर्दे के पीछे से वार और सामने से नमस्कार करने वाले ये विरोधी ख़ाक मोदी का विरोध कर पायेंगे । मोदी ने बीसीसीआई के श्रीनिवासन की तरह बीजेपी में सबको हरा दिया है । ये हारे हुए लोग पत्रकारों के ज़रिये कभी इस कमेटी के बहाने तो कभी उस रैली के नाम पर अपना सिक्का चला रहे हैं । मोदी बाहर से कार्यकर्ताओं के ज़रिये अपने नाम की घोषणा कर चुके हैं । बाद में यही विरोधी कहेंगे कि सारा विरोध मीडिया प्रायोजित था । मोदी ही हमारे नेता है । क्या अब बीजेपी के पास ऐसा कोई मौक़ा रह भी गया है कि वह कहे कि मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं होंगे । क्या बीजेपी और संघ ने मोदी के नाम के प्रचार की छूट नहीं दी ? आडवाणी जी जो लिखें और कहें अंत में सब बेअसर हैं । आडवाणी की बातें ब्लाग के लायक ही हैं । मीडिया क्यों नहीं बताता कि बीजेपी मे मोदी के विरोध का वैचारिक राजनीतिक आधार क्या है ?
दरअसल बीजेपी में मोदी का कोई विरोध नहीं है । ये आने वाले दिनों में और साफ़ हो जाएगा । हो चुका है । मोदी के विरोधी भी बीसीसीआई के सदस्यों की तरह है । जो बाहर तेवर दिखाते है और अंदर स्वागत करते हैं । मोदी ही बीजेपी हैं और बीजेपी मोदी । बाक़ी सब बातें लेख लिखने के लिए हैं । अटकलों के लिए है । पत्रकारों की ख़बरों के लिए हैं । इस कृत्रिम विरोध का मज़ा लीजिये जो दरअसल है ही नहीं । मुझे पता है आप यक़ीन नहीं करेंगे ।
नोट- हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा ने बताया है कि चुनाव प्रचार समिति की कमान 99 तक आडवाणी के पास हुआ करती थी। 2004 में इसका जिम्मा प्रमोद महाजन के पास था जब बीजेपी हारी थी। 2009 में जेटली ने ज़िम्मेदारी ली थी तब आडवाणी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया था और वे खारिज हो गए थे। इस बार ये ज़िम्मेदारी नरेंद्र मोदी को मिल रही है जो घोषित-अघोषित तौर पर खुद ही प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हैं।
नोट- हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा ने बताया है कि चुनाव प्रचार समिति की कमान 99 तक आडवाणी के पास हुआ करती थी। 2004 में इसका जिम्मा प्रमोद महाजन के पास था जब बीजेपी हारी थी। 2009 में जेटली ने ज़िम्मेदारी ली थी तब आडवाणी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया था और वे खारिज हो गए थे। इस बार ये ज़िम्मेदारी नरेंद्र मोदी को मिल रही है जो घोषित-अघोषित तौर पर खुद ही प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हैं।
if Modi is really intelligent he should not be trapped into chairmanship of चुनाव प्रचार समिति.
ReplyDeleteagreed......... no leader came up in last three years except Modi n Kejriwal.... Modi enjoys support of national organisation..........
ReplyDeleteदुर्भाग्य से एक राष्ट्रीय हीरो को तलाशती पीढी जो अब तलक शाहरुख़ सलमान धोनी या तेंदुलकर के ही भरोसे थी,बहुत दिनों बाद पहली बार किसी राजनीतिक व्यक्ति के पक्ष विपक्ष में इतने जबरदस्त ढंग से लामबंद हुई है. जयप्रकाश नारायण के बाद एक राजनीतिक राष्ट्रीय नायक का तिलिस्म बार बार टूटने से लोग राजनीतिक रूप से जाग्रत तो हैं पर व्यस्था से मायूस होकर हताश से हो चले हैं. मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरने से लोगों की राजनीतिक निरपेक्षिता में कुछ सुगबुगाहट तो निश्चित रूप से शुरू हुई है.
ReplyDeleteहिंदी फिल्मो में एक डायलॉग हुआ करता था- अपनी जान प्यारी है तो चले जाओ यहाँ से । अडवाणी जी इसको थोडा बेहतर करके निकल ले तो कितनो का भला हो - इज्जत प्यारी हो तो.........
ReplyDeleteNamsakar Sir Ji !!!
ReplyDeleteरवीश जी आजकल एक विषय बहुत ज्यादा चर्चा मे है कि २०१४ के चुनाव में किसकी सरकार बनेगी तथा कौन प्रधानमंत्री बनेगा । मेरा कहना यह है कि जब आज देश की जनता मोदी को उस पद पर देखना चाहती है तो उनकी पार्टी को यह बात क्यो समझ में नहीं आती। पार्टी को चुनाव जीतने की रणनीति तैयार करनी चाहिए, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी कोशिश मे जुट जाना चाहिये ।
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