यह फिल्म सबको आहत की क्षमता रखती है। एक फिल्म के लिए इससे बड़ी कामयाबी क्या होगी कि उसने आहत करने के बहाने सबको झकझोरा। जब मैं यह बात कह रहा हूं तब यह बिल्कुल मान कर नहीं चल रहा है कि मैंने कोई गाथा देखी है। लेकिन मैंने सामान्य रूप से एक अच्छी फिल्म ज़रूर देखी है। अफगानिस्तान के यथार्थ को हिन्दुस्तान दर्शकों के करीब लाने की कोशिश में विश्वरूप हिन्दुस्तान के मुसलमान नायक के ज़रिये एक ऐसे सिनेमाई समाधान को पेश करने की कोशिश करती है जो यहां की साझा संस्कृति में पला बढ़ा हुआ है। जब कमल हासन को लात पड़ती है तो चीख में कृष्णा निकल जाता है। तालिबानी सरगना हैरान होता है कि जो खुद को मुसलमान बता रहा है वो कृष्णा कैसे पुकारता है। उसका एक नाम विश्वनाथ कैसे हो सकता है। कमल हासन के किरदार का जवाब दिलचस्प है। कहता है कि हूं तो मुसलमान लेकिन कलाकार भी तो हूं । कृष्णा के कैरेक्टर में बह गया था। उसे लात पड़ती है लेकिन एक अच्छी फिल्म अपने पर्दे पर हर छोटी बात का वृतांत रचते चलती है। फिल्म शुरू होती है कमल हासन के कृष्ण रूप से। कृष्ण लीला में मगन एक कलाकार किरदार उस लीला में विलीन हो जाता है जिसे कोई और रच रहा है। कृष्ण का सारथी बना यह विश्वरूप अर्जुन की भूमिका में अफगानिस्तान की गुफाओं में पहुंचता है।
पहले हिस्से की कहानी उस अफगानिस्तान को हमारे नज़दीक लाती है जिसके रहस्यों को हम कुछ जानकारों और विदेश सचिवों की बपौती समझते हैं। यहीं पर मज़हब सिसायत की बिछाई बिसात के बीच कितना लाचार नज़र आता है, जिसके नाम पर ख़ून ख़राबा है,जिसके नाम पर बेगुनाहों की हिंसा है और जिसके नाम पर एक वाजिब लड़ाई भी जो पेट्रोल के लिए अमेरिका उसकी धरती पर खेल रहा है। इस पूरे ख़ून ख़राबे में इस्लाम भी फंसा हुआ नज़र आता है। कमल हासन उस फंसे होने की पीड़ा को सामने लाने की कोशिश करते हैं। जहां बच्चों बीबीयों को ऐसे भून दिया जाता है जैसे वो किसी मज़हब के बिना ही पैदा हो गए हों। मज़हब भी अपने आप में एक ऐसा वहशी मुल्क है जो अपने ही नागरिकों को मज़हब-बदर कर मार देता है। मुल्क की सरहद भी ऐसी ही होती है। वो कब दूसरे मुल्क को दूसरे मज़हब की सीमा समझ घुस जाता है और अपने हिसाब से हिंसा को अंजाम देता है। कमल हासन का किरदार वहां फंसा हुआ है। उसकी हिंसा पीड़ा को समझ रहा है। अपने ज़रिये हिंदुस्तान के आम दर्शकों के सामने परोस रहा है।
फिल्म पूरी तरह व्यावसायिक है। पैसे कमाने के लिए बनी है इसलिए गाथा बनते बनते अंत में जाकर सीआईडी सीरीयल की तरह खत्म होती है । क्लाइमेक्स हिन्दुस्तान के निर्देशकों की भयंकर कमज़ोरी रही है। मगर इस एक कमज़ोरी को छोड़ दें, प्रधानमंत्री के फोन को छोड़ दें तो फिल्म हमेशा हमारे भीतर की हिंसा की तमाम मंज़ूरियों को व्यावसायिक सिनेमा के स्तर पर बेहतरीन तरीके से उभारती रहती है। तभी कमल हासन का किरदार कहता हैं –“ to answer your question I am both-good or bad, hero or villain” यह कोई सामान्य संवाद नहीं है। इस संवाद के बाद तस्वीरों का जो वृतांत रचा जाता है उसके ज़रिये कमल हासन हर कहानी को नायक और खलनायक, अच्छे और बुरे के महिमागान और हिसाब किताब के दायरे से बाहर निकाल कर उसकी बारीकियों से बने यथार्थ को दिखाने की कोशिश करते हैं।
फिल्म कहीं से भी मुसलमान की छवि ख़राब नहीं करती है। बल्कि फिल्म बताती है कि बात नायक खलनायक की नहीं है। देखिये कि मज़हब और मुल्कों की सियासत में अच्छाई बुराई कैसे फंसी हुई है जहां इंसान आलू प्याज की तरह कट छंट रहा है। बल्कि यह फिल्म बहुत चालाकी से हिन्दुस्तान के मुसलमान को इस्लामी मिल्लत से अलग कर देती है। अगर आप इस नज़रिये से कमल हासन के मुसलमान को देखना चाहते हैं तो देख सकते हैं कि यह वो मुसलमान है जो अल कायदा के गढ़ में तटस्थ भाव से देख रहा है। उसके आंखों में आंसू है। वो देश के लिए एक दूसरे मुल्क की ज़मीन पर वो तबाही देख रहा है जिससे जुड़ने का ज़रिये उसके पास एक ही है और वो है इस्लाम। बल्कि कमल हासन ने दुनिया भर इस्लाम के नाम पर फैलाये और पैदा किये गए अमरीकी आतंक का जवाब हिन्दुस्तान के इस्लाम और मुसलमान से दिया है। यह फिल्म अपने व्यावसायिक हदों में जिरह करती हैं कि हिन्दुस्तान मुसलमान ही समाधान है। नज़ीर है। फिल्म दावा करती है कि भारतीय मुसलमान ही विश्वरूप हो सकता है।
यहीं पर फिल्म उस व्यापक कूटनीतिक दुनिया में दखल देने लगती है जिसे ओबामा अफगानिस्तान की ज़मीन पर भारत और पाकिस्तान के साथ खेल रहे हैं। अफगानिस्तान में भारत की भूमिका उसकी बेजान पहाड़ियों और खून से सनी मिट्टियों को हरा भरा करने की सियासत चल रही है। पाकिस्तान यहां आईएसआई के पिछलग्गू से ज्यादा कुछ नहीं है। इसलिए चेन्नई के जिन चौबीस मुस्लिम संगठनों ने इस फिल्म को देखने के बाद भी विरोध किया उन्होंने हिन्दुस्तान के मुसलमानों को बदनाम करने का काम किया है। अखिलेश यादव ने सही दिमाग लगाया और मुस्लिम वोट बैंक के दबाव में न आते हुए इस फिल्म को उत्तर प्रदेश में रीलीज होने दिया जिसके एक सिनेमा हाल में यह फिल्म देखकर मैं लिख रहा हूं। जयललिता चूक गईं और चेन्नई के मुस्लिम संगठन उनकी इस सियासी चूक के चारा बन कर रह गए।
चलते चलते- हां इस फिल्म ने ब्रा जैसे वर्जित वस्त्र को आम संवाद में लाने का भी प्रयास किया है। सफीना उबेराय की डाक्यूमेट्री याद आ गई जिसमें वो अपनी मां के विदेशीपन को पेश करने के लिए बालकनी में पैंटी और ब्रा को लहराते हुए दिखातीं हैं। मगर फिल्मों के स्तर पर ब्रा एक सामान्य वस्त्र कभी नहीं रहा। हमेशा नायिका की साड़ी या ब्लाउज के किनारे से सरक कर उन निगाहों का खुराक बनाकर पेश किया जाता रहा है जो औरत को भोग बनाती है। इस फिल्म के आखिर में कई बार बोला जाता है। कमल हासन की पत्नी से कि तुम्हारे कपबर्ड में ब्रा के पास वो सामान रखा हुआ है। कमल हासन की पत्नी हैरान है। उसकी हैरानी दो स्तर पर है। ब्रा के बोले जाने से और उसके निजी स्पेस में घुस आने से। हर कोई उसे याद दिलाता है कि जल्दी करो तुम्हारे ब्रा के पास वो चीज़ रखी हुई है ले आओ। निर्देशक चाहता तो यह भी कह सकता था कि तुम्हारे दुपट्टे के बगल में वो चीज़ रखी है। इस एक बात के लिए फिल्म का विशेष रूप से शुक्रिया। ब्रा को सामान्य बनाने के लिए। उस पर बात करने के लिए। वर्ना हिन्दुस्तान में उसे कभी खुली जगह नहीं मिली। बालकनी में भी नहीं। जहां वो या तो साड़ी के नीचे या कई कपड़ों के बीच में दुबका होता है। मुझे नहीं मालूम की ब्रा का जेंडर क्या है। ब्रा रखा गया है या ब्रा रखी गई है। मैं इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहता वर्ना आपसे यह पूछना पड़ेगा कि मूंछ स्त्री लिंग कैसे है और पेटिकोट पुल्लिंग कैसे हैं।
(मेरी समीक्षा से प्रभावित होकर फिल्म न देखें। क्योंकि आपकी शिकायत से मिज़ाज भड़क जाएगा। आइटम सांग देखने वाले दर्शकों की जमात की शिकायत को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। बाकी जो सिनेमा के दर्शक हैं उनकी पसंद नापंसद सर आंखों पर)
Honest comment about the film...would liove to watch. Thanks for the review.
ReplyDeleteenjoyed your honest opinion.
ReplyDeleteअब तो फिल्म देखनी पडेगी।
ReplyDeleteअब तो फिल्म देखनी पडेगी।
ReplyDeletesuperb review i just watched vishwaroopam.. having the same views as u are having .. salute to u sir for providing us with crystal clear views.. this film depicts how in the name of religion terrorism is furnishing..!!
ReplyDeletent even a single point presnet in the whole movie which can hurt anybody felling.. rather it compels us to thnk.. my appeal to all please must watch oce.. & i m one of those who never watch tamil movies. even first time i watched kamal hasan movie.. please go & watch.!!!
Dr. pushpendra singh
sir ye filme jaror deekhunga.
ReplyDeleteREVIEW PADHA BAHUTAE ACHA LIKHAE HAI
ReplyDeleteरविश, शैली चौतिल और चपल है !
ReplyDeleteऐसा लगता है व्यब्सयिक तौर पर इस तरह की फिल्म सफल न होती अगर इस में प्रतिबन्ध का इतना लम्बा और तीखा छोंक न लगा होता।
लेकिन समय आ गया है हम सम्प्रद्य्वाद के ऊपर उठ कर सोचना, देखना और बहसना सीखे। उस लिहाज़ से ये फिल्म्स चलचित्र जगत में एक किलोमीटर का पत्थर साबित होगी इसमें दो राय नहीं हो सकती !
The people who have made it a part of their religion to get offended do not need an actual reason to get offended. They also know that this weak govt/ will yield to their demands however stupid. The artiste/prod/dir is also unable to stand up to these lumpen elements. This ia a shameful failure of the state and another sign of talibanization of life and times in India. This also raises a question about the ability of the muslims to coexist peacefully w/o violence with the other religions, to register protest w/o the threat of violence. A community which uses the threat of violence should not complain when thwe same is visited on them.
ReplyDeletejaata hu bra wali wishwroop dekhne....
ReplyDeleteHad to watch Bijli ka Mandola after reading your review. Disapointed.
ReplyDeleteBut forget the movie, this review of yours is 5 star rated. Words selected so carefully. Those who are pure at heart they see perfection everywhere.
I am not happy with the title of this blog. As per belief trade mark of Vishwaroop held by Krishna who portrayed at six occassions in Mahabharat. We must honour his rights.
Yeh zaroor keh shakte hain ki Bhartiya muslim vishwa ka swaroop hain.
सर नमस्कार!
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद किसी फिल्म के बारे में गहराई से लिखा हुआ कुछ पढ़ा...... वरना समीक्षा के नाम पर टीवी में जो कुछ चलता है उसे देखकर मन दुखी हो जाता है। समीक्षा करने कनफ्यूजन में दिखते हैं कि यह कहना है या नहीं।
अक्सर कहते हैं कि फिल्म मुझे तो अच्छी नही लगी... आप देख लीजिए, अच्छी हो सकती है... समीक्षा में वे कहते हैं सैफ अली खान के कपड़े और दीपिका पादुकोण की खूबसूरती अच्छी लगी.....
दुख हुआ देखकर...... इसलिए कह रही हूं... कुछ गलत लगे तो माफी चाहती हूं.......
वंदना
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकल रात एक भयानक और समसामयिक स्वप्न देखा, कदाचित समाचार और चर्चा ज्यादा देखने के प्रमाद वश आई वैचारिक मूर्छा का परिणाम हो। तो सपने में हुआ यह कि संत कबीर दास को ठर्राते हुए यमदूत सरीखे दो पुलिस वाले एक सभा में ले आए जहाँ कई प्रकार का बाना धरे जनता के पैरोकार बैठे थे। किसी के लाल भभूका परमविस्तारित श्रीमुख में लंबा केसरिया टीका लगा था जो अपनी विशाल तोंद पर हाथ फिराते हुए खिचड़ी दाढ़ी के बीच से खाए पिए सुर्ख होंठों पर कंटीली मुस्कान मारे जा रहे थे। तो दूसरी तरफ लंबी दाढ़ी धरे और चढ़ा पैजामा, लंबा अचकन पहने सफेद टोपी के अंदर से दिमाग खुजाए जा रहे हैं कि कबीरे को कैसे लताड़ा जाए। पुरातन और नवीन की अजीब खिचड़ी थी, न जाने कहाँ से एक काले कोट में सिनेमा वाले माई लार्ड आ धमके और बोले इसने धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, खुदा के लिए पढ़ी जाने वाली पाक नमाज को बांग और मौलवी को मुर्गा बना दिया। यही नहीं जिस मूर्ति को पूजने पूरा हिन्दू समाज दौड़ दौड़ कर एक तीर्थ से दूसरे जाता है और मची भगदड़ की परवाह न करके अपनी जान पर खेलकर जल चढ़ाता है उससे बेहतर चकिया को बता रहा है मूरख, आटा खोर। इसकी पोथी को जला के सुपुर्दे खाक कर दिया जाय आखिर इसे पढ़कर कोई पंडित तो होगा नहीं उल्टे दंगे जरूर फैलेंगे। कबीर दास ने तुरत फुरत अपनी सफाई में कह डाला कि मिल बैठ के फैसला करते हैं माई बाप मैं अपनी पोथी से कांकर पाथर और पाहन पूजै जैसे सारे धरम विरोधी, हिंसक और आहत करने वाले दोहे निकाल देता हूँ, आखिर जिसने गीता औ कुरान पढ़ा है उनसे पंगा कैसे ले सकता हूँ, अपने भी बाल बच्चे हैं। मैं सभा में पीछे बैठा बड़बड़ा रहा हूँ कि कबीरे फिर तेरे दोहे कौन पढ़ेगा जो हिन्दी के मास्साब भावुक होके बाँचा करते हैं और मैने इनका हवाला दे देके बड़े बड़े स्कूली निबन्ध रच मारे थे। मैं चिल्ला पड़ा कि इन बाबा मौलियों से मत डरो और जोर जोर से रहीमे का हवाला देने लगा कि ये कुछ नहीं जानते-
ReplyDeleteरहिमन बात अगम्य की, कहिन सुननि की नाहि
जे जानत ते कहत नहिं, कहत ते जानत नाहि
कहत ते जानत नाहि......, कहत ते जानत नाहि।।।।
एक पुलिस वाले ने पीछे से हरहरा के झकझोर दिया...अयं ये क्या मैं चौंक के बिस्तर पर उठ बैठा बीवी चिल्लाए जा रही है कि बौड़म हो गए हो आफिस नहीं जाना है.....टी.वी. पर समाचार आ रहा था, जयललिता विश्वरूपम पे बैन लगानी की मजबूरी का हवाला दे रहीं थीं...।
मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ, फिल्म देखकर मुझे भी कुछ ऐसा लगा..
ReplyDelete‘विश्वरूप’ रिलीज हुई, लोगों ने सराहा
ReplyDeleteनई दिल्ली (श्रवण शुक्ल): अभिनेता कमल हासन की फिल्म `विश्वरुपम` का हिंदी संस्करण ‘विश्वरूप’ आज दिल्ली, लखनऊ, नॉएडा समेत उत्तर भारत के सभी शहरों में रिलीज हो गई। फिल्म देखने के बाद सभी लोगों ने कलम हासन के साहस की तारीफ़ की है।
http://jeewaneksangharsh.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
Good review.. Honest..
ReplyDeleteravish ji you are realy legend of indian journlism, after read this artical clear that you are allrounder.
ReplyDeleteRavish Ji... Ab toh film dekhni hi padegi... Ghaziabad ke usi Mall me jahan aap Zyming karte hain...
ReplyDeleteThanks to Ravish ji
ReplyDeleteab tak to apki TV apr charcha hi sunak karta tha,,
lakin apki ye film samkeesha, bato ka kahne ke dang bhi neerala hai....
mai phali bar kisi ka blog upar se lekar neeche tak pad paya.
thanks a lot..
Wese es sare ghatna karam ko dekhne k baad me muje ek baat yaad aagyi k kisi ne kya khoob kaha tha "hamare desh me boolne ki ajaadi to hai, Par boolne k baad koi ajaadi nhi".
ReplyDeleteब्लॉग पढते हुए,मैं आपको बोलते हुए सुन रहा हूँ। आपकी शैली और विचार बहुत प्रभावित करते हैं।
ReplyDeleteOr jo bhi hamre desh me bhavnao ko deis phohchane k naam per ho raha hai, usse me yahi kahu ga, hamra desh dobara usi vichardhara ki taraf ja raha hai, jaha har independent awaaj ko dabba dya jata hai ya hamesha k lye khamosh kar dya jata.
ReplyDeleteOr wese bhi aap jo kuch karte hai ya bolte hai usse sab khush ho jaye ye imposible hai, koi na koi to aahat hota hi hai, per eska matlab ye to nhi ham sabko khush karne k lye sach bolna chod dein. Ya apne 'point of view' ko hi jatana chod de. "Hame bas es baat ka per dhyan deina chahye jo galt hai vo galt hai, or jo sahi hai vo sahi hai, chahe ussse kisi ki bhanaye ahat ho per usse sach nhi badal jaye ga.
ReplyDeleteपिछले तीन दिनों में जो भी तमिलनाडु में हुआ उसका थोडा बहुत आभास तो कमल हासन को भी रहा ही होगा ..यह आशंका हर उस निर्माता निर्देशक को रहता होगा जो अपनी फिल्म में कुछ दुस्साहस (हमारे मानकों पर ) करने का जोखिम लेता है ..
ReplyDeleteफिल्म की अच्छाई बुराई, व्यावसायिकता,कलाकारी ..सब साथ ही चलते हैं ..ठीक उस संवाद की तरह ..मैं हीरो और विलेन दोनों ही हूँ अच्छा बुरा दोनों ही है मुझमे ..आपने ठीक तरीके से इस संवाद को रेखांकित किया है ..
सही है कि ब्रा और पैंटी को जिस गुप्त तरीके से पहना जाता है, उसी तरीके से उसने हेंगर पर भी अपनी जगह बनायीं है ..उसके बोले जाने, सुने जाने और देखे जाने पर पहरा हम मर्दों का ही रहा है ..
आपकी की फिल्म समीक्षा किसी भी दूसरे समीक्षक से ज्यादा प्रभावकारी है ..क्योंकि आप सिर्फ अपनी बात रखकर दूसरे को उसे तोलने का मौका देते हैं ..असरदार है क्योंकि बात फिल्मों से कहीं आगे चली जाती है ..और ताजगी रहती है क्योंकि हर फिल्म की समीक्षा आप नहीं करते ..
accha laga..film jarur dekhunga
ReplyDeleteThanku Sir For ur Comment....hmne news padh ke kuch aur hi opinion bna liya tha movie ke baare me....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकाश कि यह फिल्म इन्टरनेट पर भी औपचारिक रूप से उपलब्ध होती और हम पायरेटेड स्ट्रीमिंग के बजाय टिकट देकर देख पाते
ReplyDeleteकुछ अच्छी फिल्मो के लिए टिकट नहीं खरीद पाने का अफ़सोस रहता है
गुजराती में "केवी रीते जईस" भी अच्छी मूवी बनाई गयी लेकिन
ऐसी फिल्मे किसी के दबंग या सिंग्हम या तो स्विट्ज़रलैंड-ऑस्ट्रेलिया के लोकेशन के पीछे दब जाती है
Very simple n deep expression..nice
ReplyDeleteदेख कर आते हैं, कमल हासन का अभिनय सदा ही चमत्कृत करता है।
ReplyDeleteमैंने फिल्म तो अभी नहीं देखी ,पर आपकी समीक्षा से लगता है की अच्छी होगी , बुरी तो नहीं होगी और अगर बहुत अच्छी है तो इसे और अधिक आकर्षित बनाने के लिए "विरोध " को ही धन्यवाद दिया जा सकता है, शायद कुछ की राजनीति चल नहीं पाई ,कुछ "यूज़ " होगये किसी ने राजनीति फायदा ले लिया ,विरोधी सोच में पड़े होंगे , तथाकथित "मुस्लिम ठेकेदार" ठेके का रिव्यु करने में लगे होंगे "मुसलमान" सोच रहे होंगे हमने न कुछ कहा न हमसे किसी ने कुछ पुछा -.....फ़िलहाल फिल्म देख कर ही और कुछ लिख सकता हू .फ़िलहाल आप भी मानेंगे की फिल्मो से धर्म का विनाश तो शायद हो नहीं सकता है ....अब धर्मो के बीच किसी धर्म के कुछ लोगो का धर्म खतरे में पड जाये तो फिर पड़ने दो भाई . अंत में आपकी भाषा शैली बहुत अच्छी है ,पूरब का असर है भाई गाली भी देंगे तो" आप" करके ---नमस्कार --सूरज (नई दिल्ली )
ReplyDeleteI do not know hw u speak n what u speak is real or fabricated bt if it is real then i am fortunate to hv
ReplyDeletepolitician like kejriwal
and journalist as you ....prqactically impossible personality always self satisfying nevr take side of any body.....
"Nispaksha Stambh" bahut khoob
जब तक मुस्लिम एक वोट बेंक के रूप में खुद को स्थापित रखेंगे और इनके नेता इन वोटों के थोक दुकानदार बन कर इन लोगों की भावनाओं का सौदा करते रहेंगे मुझे नहीं लगता तब तक एक भारतीय मुसलमान विश्वरूप में खुद को स्थापित कर पायेगा.
ReplyDeleteबाकि आपकी पोस्ट को फिल्म समीक्षा की केटेगरी में रख कर सोचा गया है कि फिल्म जरूर देखेंगे.
Maja Aa Gaya Sir, Main Aapka Pehle Se Hi Fan Hun, Chahe Wo Ravish Ki Report Ho Ya Prime Time,
ReplyDeleteLekin Aap Itna Achha Review Bhi Likhte Ho... Aaj Pata Chala
Good Luck For Ur Future
सर जी ,मैंने तो आपके पहले समीक्षा पर ये समझा की सिर्फ " ढिसक्यू " से शुरू और "ढिसक्यू " से अंत हॉलीवुड का रूपांतरित बौलीवुड संस्करण है ! परन्तु आपके गहन समीक्षा को पढ़ कर इस सिनेमा को देखना ही होगा ! वैसे मै कमल हसन के अभिनय के प्रतिभा का प्रशंसक पहले से भी रहा हूँ !
ReplyDeleteसबसे मुख्य बात एक है - > ' अल कायदा हो या बुखारी हो या अन्य कोई भी ' मुस्लिम ' वे सदा ' चुप ' रहते हैं और उन्हें ' हिन्दू या अमरीकी या दुसरी कौम के लोगों का उनके मजहब या धारणाओं के बारे में कुछ भी कहना, अपना मत बतलाना , कोई चिचार प्रसारित करना [ जैसे इस फिल्म के जरिए ]
ReplyDeleteइत्यादी सारी बातें नागवरा हैं। इसे कट्टरता ही समझ लें।
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यह फिल्म बहुत चालाकी से हिन्दुस्तान के मुसलमान को इस्लामी मिल्लत से अलग कर देती है। --> आप यही तो नहीं समझे ...अधिकाँश यही तो नहीं चाहता।
फिल्म देखने का मन है अब ..... अगर ऐसा ही कथानक है तो फिर बेवजह का विवाद क्यों...?
ReplyDeletethank you for bringing such film to the notice......zaroor dekhne jaaunga......aur ek sawaal aapse....any thoughts of joining politics....??
ReplyDeleteFilmi story apke kitni jaldi samjh aa gayi ravish bhai per real story apke samjh kiyo nahi aayi tamilnadu ki . Kiyo nahi apke samjh aaya ke film release se pahle hi musalmano ko story kaise pata lag gayi unhe kewal mohra banaya gaya jai lalita ki government ne ab aap sochenge ke musalman hi akhir mohre kiyo bane to phir main ye kahunga ke jab film taliban per or afganistan per bani hain to usme sardaro ko or hindu dharam ke logo ko aap kaise bhadka sakte hain or aap kiyo nahi samjhe ke jab keral main 25% muslim hone ke baad film release ho rahi hain to tamilnadu main 10% muslim kaise ban kar sakte hain. Aap kahenge ke muslim dharm guru to kar kah rahe hain ke is film ko ban karna chahiyye wo aisa kiyo kah rahe hain? To main fir ye kahunga ke muslim dharam guru film nahi dekha karte or jab koai media wala unse jaker sawal karega ke ek film hain viswaroopam jis main musalmano ko quran padte huae namaz padte huae atankwad karte huae deekhaya gaya hain or musalman iska virodh kar rahe hain to aap kiya kahenge? To wo bechare kiya jawab denge wo to ye hi kahenge film per ban sahi hai or ab media walo ki breaking news ban gayi ke muslim dharam guru ne film per ban ko sahi kaha ab us news ko jab simple musalman dekhta hain to wo bichara kiya samjhe ga wo aap samjh gaye honge bechara musalman ise akhir kis baat ki saza mil rahi hain sirf is baat ki ke ye sabhi dharmo ki tarah apni dharmik kitab main badlaw nahi karpaya ya is baat ki ke wo ek khuda main yakin rakhta hain jabki sabhi dharmo ki kitab main yahi likha hain ke us bhagwan ki koai photo nahi hain koai murti nahi hain vedo main , bible main, quran main per musalman sahi lakin or galat hain lakin na jane kiyo apni kitab kholker nahi dekhte geeta main kiya likha hain ved main kiya likha per apni kitabo ke khilaf chal rahe hain log ager apko dharam ke bare main hi janna hain to DR ZAKIR NAIK KE VIDEO CLIP YOU TUBE PER JA KER DEKH LO jo ye kahta ho dharam kuch bhi nahi hain kewal insaniyat honi chaiyye to mujhe kewal ek baat aisi bata do jo islam main insaniyat ke khilaf ho ek baat kewal ek baat per nahi dekha sakte dekhaoge to unhe jo islam per chal rahe hain galat main to itna hi kahta hoon ravish bhai aap bhi islam kabool kar lo fayeda isi main hi hain kiyo ke vedo main bhi prophet mohd sallallahu wasallam ka zikar hain or bible main bhi jab sab dharmic book ye hi kahti hain ke bhagwan ek hai to fir kiyo ek ko hi nahi mante DR ZAKIR NAIK KI VIDEO YOU TUBE PER DEKHO .SHAYAD KUCH SAMJH AA JAYE ALLAH AAP KO KHUSH RAKHE
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लाग पर आया, सोचता था टेलीविजन पर स्क्रिप्टेड पढ़ते होगे, अपनी सोच कितनी है, शक होता था, परन्तु आज पढ़कर लगा कि वही शैली, वही व्यंग्य और वही चुभते हुए शब्द, फिल्म कैसी है, अच्छी है या बुरी वह बाद का पहलू है, परन्तु आपकी समीक्षा बेहतरीन है, यकीनन, काबिल ए तारीफ,
ReplyDeleteFilm name- Vishwaroopam
ReplyDeleteOur system- Kurupam
One thing I am very well aware of is that the only thing that offends someone is 'The Truth'.
Only truth has the power to offend someone, lies may hurt a bit but any sensible person will ignore them or counter them with truth, but will not cry, 'I am offended'.
And if a lie offends you, then you are neither sensible nor worthy enough of warranting any treatment for what ails you.
-Dr Archit
nationality- indian
religion- humanity
archwordsmiths.blogspot.in
Appreciate your clarity of thought and word, few are blessed with this quality.Good analysis as always. Forbidden words in our culture,yes and living in America when my kids speak these words at ease as it is part of culture here it makes me laugh just like the mooch and petticoat visualisation.
ReplyDeleteIt sounds like a Kamal Hassan movie and plan to watch it. Subtle messages are abound in his films like Hindustani and Hey Ram,like Vishal Bhardwaj's but with a more commercial presentation
Appreciate your clarity of thought and word, few are blessed with this quality.Good analysis as always. Forbidden words in our culture,yes and living in America when my kids speak these words at ease as it is part of culture here it makes me laugh just like the mooch and petticoat visualisation.
ReplyDeleteIt sounds like a Kamal Hassan movie and plan to watch it. Subtle messages are abound in his films like Hindustani and Hey Ram,like Vishal Bhardwaj's but with a more commercial presentation
bahut achchha likhte hain aap.....
ReplyDeleteye batayain ki is blog ko follow kaise kiya jai...........
शायद विश्वरूपम स्वरूप ही विरोध के लिए कचोट रहा हो। अभिव्यक्ति का माध्यम अन्य बाते बन रही हों।
ReplyDeleteshree krishna ji hastinapur doot bankar jaate hain aur paanch gaun mangate hain aur duryodhan unhe bandi banane ka aadesh de dete hain.
ReplyDeleteiske baad dhritarashtra apne putra ko kehte hain ki tumhe krisna ka apmaan nahi karna chahiye tha to vidoor ji beech me tok kar kehte hai ki
"ve to maan aur samman se pare hain na hi unka maan badhaya ja sakta hai aur na hi ghataya ja sakta hai"
us kathan ki aaj jaroorat pad gayi.
aap ki sari batien meri baaton ka khulasa hain................"bra" ko chhod kar.............ek do roz mein film dekhi jaygi.
ReplyDeleteदेखिये कब देख पाते हैं!
ReplyDeletenice one SIR!! pls tk a LOOK at this video.. named as kaalbelio ka dard ...made after i was inspired from ur show ravish ki report ...
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=EHGOSgD2lnw
आप हमेशा ही अच्छी विवेचना करते हैं (आलोचना शब्द कुछ अच्छा नहीं लगता) बल्कि आप ही अच्छा कहते हैं एसा लगता है।
ReplyDeletebahut hcha lekha hai visvrupam ke leye visvrup soch bi chahiye
ReplyDeleteab ye film jaroor dekhunga
ReplyDeleteMixed feeling..well articulated..Happy kyunki aapke style ko padha..aur dukhi kyunki kafi kuchh miss kiya..kaha tha avi tak main..
ReplyDeleteमुझे हैरत तब होती है जब कट्टरपंथी, थियोक्रेटिक और ईशनिंदा करने वाले की हत्या पर आमादा देश पाकिस्तान में शोएब मंसूर बिना किसी दिक्कत के ख़ुदा के लिए जैसी फिल्म को सफलतापूर्वक पूरी दुनिया में रिलीज़ कर देते हैं और दूसरी तरफ़ भारत में मुस्लमान की छवि को सेक्युलर और आतंकवाद के ख़िलाफ़ दिखाने वाली फ़िल्म विश्वरूपम को कठमुल्लाओं का विरोध झेलना पड़ता है। हैरत है उन मुस्लिम संगठनों की सोच पर जो विश्वरूपम को लेकर हो हल्ला कर रहे हैं!
ReplyDeleteमुझे हैरत तब होती है जब कट्टरपंथी, थियोक्रेटिक और ईशनिंदा करने वाले की हत्या पर आमादा देश पाकिस्तान में शोएब मंसूर बिना किसी दिक्कत के ख़ुदा के लिए जैसी फिल्म को सफलतापूर्वक पूरी दुनिया में रिलीज़ कर देते हैं और दूसरी तरफ़ भारत में मुस्लमान की छवि को सेक्युलर और आतंकवाद के ख़िलाफ़ दिखाने वाली फ़िल्म विश्वरूपम को कठमुल्लाओं का विरोध झेलना पड़ता है। हैरत है उन मुस्लिम संगठनों की सोच पर जो विश्वरूपम को लेकर हो हल्ला कर रहे हैं!
ReplyDeleteMaine bhi patna ke mona talkies main sunday ko Vishwaroop dekhi. Hall ke bahar kuch logjindabad murdabad kar rahe the lekin the thode se Police unse jyada thi. Film jabardast lagi. Aapki samiksha ke liye dhanyawad.
ReplyDeleteaapki ye samiksha ya yo kahe toh vivechna achchi lagi.. aapne sahi bataya ki bhartiya musalmaan bhatiyata ko expose kata h.. islaam toh majhab hai hi lakin ek kalakaar jo islaamic ho wo apne mooh se krishna yu hi nhi kehta ..wo janta hai ki krishna ki kya ahmiyat h.. chahe majhab me usi krishna par phatwa kyu nhi laga diya jaye..aur haa akhiri me ab islaam aur musalmaan v modern hone laga h tabhi toh apni bolchaal ki bhasha me v bra aur panty ka use kane laga h.. aapko sadhanyavaad ki apne bra aur panty ko islaam se kabul karaya...apka nhi mai kamaal haasan ki baat kar raha hu..
ReplyDeletewaise aapke baae me ek hi baat kahunga....
"jiya a bihaar k laalla.. jiya tu hazar sala.. tani likhi k.. tani boli.. tani vaad vivaad karaai k .. saach dikhawa a bhaiya....." saluting u sir jee...i want to b like u.. jara ashirvaad toh pradaan kijniye guru je.. aap aur hum dono adhunik.. isiliye adhunikta se hi guru-shisya k rishtey ko nibhaye.''
aapki ye samiksha ya yo kahe toh vivechna achchi lagi.. aapne sahi bataya ki bhartiya musalmaan bhatiyata ko expose kata h.. islaam toh majhab hai hi lakin ek kalakaar jo islaamic ho wo apne mooh se krishna yu hi nhi kehta ..wo janta hai ki krishna ki kya ahmiyat h.. chahe majhab me usi krishna par phatwa kyu nhi laga diya jaye..aur haa akhiri me ab islaam aur musalmaan v modern hone laga h tabhi toh apni bolchaal ki bhasha me v bra aur panty ka use kane laga h.. aapko sadhanyavaad ki apne bra aur panty ko islaam se kabul karaya...apka nhi mai kamaal haasan ki baat kar raha hu..
ReplyDeletewaise aapke baae me ek hi baat kahunga....
"jiya a bihaar k laalla.. jiya tu hazar sala.. tani likhi k.. tani boli.. tani vaad vivaad karaai k .. saach dikhawa a bhaiya....." saluting u sir jee...i want to b like u.. jara ashirvaad toh pradaan kijniye guru je.. aap aur hum dono adhunik.. isiliye adhunikta se hi guru-shisya k rishtey ko nibhaye.''
हमेशा की तरह अच्छी विवेचना
ReplyDeleteAurat ke Sharir ka har abhushan ya vastr puling hota hai jabki mardo ki muchhe ya dusri chije striling hoti hai.
ReplyDeleteआपने हमेशा की तरह दिल से समीक्षा लिखी है। आभार।
ReplyDeleteसोच रहा हूं, मैं भी देख ही लूं पिक्चर...
तस्लीम
Dukh hota hai hum kab tak desh ko in KATHMULLAON ke hath ke kathputli bana nachvatay rahengay.Agar itna he AITRAZ hay to sudhro kuch ooper uthnay ke socho kab tak bholay bhalay logon ko fatway ke LATHI dikha kar daratay rahogay:
ReplyDeleteSirf hangama khada karna mera maqsad nahi,meri koshish hai ke surat badlni chahiye,mere seenay main nahi to teray seenay main sahi,ho kanhi bhi aag lekin aag jalni chahiye( DUSHYANT)
Dear Ravish,
ReplyDeleteI belongs to Dhar(M.P)(Embarrassing things to say now it is famous for communal controversy) and currently working in pune as a software professional.I am very big fan of you.I want to do something about my city regarding to communal harmony. I have a story not in writing but in word. Regarding this please contact me.In your word :-) "Ho sakta hai mera ye pryas mere apne logo(Bhartvasiyo) k kaam aa jay vaise umeedey kam hai kyuki Bhartvasi aaj kal facebook par busy hai"
interesting ..aalochna...
ReplyDeleteसर, किसी भी नामचीन फिल्म समीक्षक से बेहद उम्दा समीक्षा, फिल्म अच्छी है।
ReplyDeleteसर, किसी भी नामचीन फिल्म समीक्षक से बेहद उम्दा समीक्षा, फिल्म अच्छी है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है। रविश जी समझ नहीं आता आप जैसा आदमी इन टीवी वालों के चंगुल में कैसे फंस गया।
ReplyDeletebahut sunder sir...bilkul sahi or samyik samikhsha hai...desh ko kattarpanth se mukta karna hi hoga tabhi bhalai hai...apke vicharon se humesa prabhavit raha hoon...bahut aacha :)
ReplyDeleteaap ye bebaaki kaha se le aate hai sir....hume bhi ye raaz bataiye.....
ReplyDeleteAAJ HI MAINE YE FILM DEKHI ...
ReplyDeleteaapki review aur film dono dil ko chhoo gye..
aapka
AAKROSHIT BHARAT