एंकर बोला को-एंकरिया से,
ख़बरे नाच रहीं बिन सावन के,
कहीं डूबी है मुंबई,
ख़ूब सुखी है दुबई,
भागलपुर में मर गए चार,
औरंगाबाद में सब बर्बाद,
दे जवाब दे जवाब,
सोई साली उठ सरकार,
एंकरिया झूमी चारो ओर,
कैसा माहौल है यारा बोल,
ठीक ठाक है मुल्क बेहाल,
खंडन निंदा सब बेकार,
चल करते हैं भाएं भाएं,
भौंक भौंक के ख़बर सुनाए,
मोटका फोंटवा छरपत है,
पतरकी खबरवा सरकत है,
एंकरिया रूठी आन स्क्रीन,
वाय आम लुकिंग डल एंड थिन
मान मेरी एंकरिया जान,
बोला लंपट एंकरवा महान,
चल खेंले अब सवाल सवाल,
मिलके करें हम बवाल-बवाल,
बंट गया बक्से में इंसान,
एक बक्से से झांककर बोला,
ये पोलटिसन बड़ा बड़बोला,
एंकरी टपकी तड़ से बोली,
आय मीन आय मीन लिसन टू मी,
उस बक्से से झांकी मुंडी,
बोली दैड्स व्हाट आय वांट टू से,
एंकर कूदा भड़ भड़ से,
बट लेगें एक छोटा सा ब्रेक,
एंकरिया मुस्काई धीमे से,
नीचे ताकी हल्के से,
एंकरवा बोला झटके से,
बोल रे नेशन क्या है जवाब,
एंकरिया बोली नो जवाब नो जवाब,
ज़ोर का झटका धीरे से,
स्क्रीन पर टपका बिग कोच्चन,
क्यों क्यों क्यों क्यों क्यों क्यों,
धर दीन्ही चदरिया ज्यों का त्यों
बंदर मामा फटा पजामा,
टीभी देखने आए थे,
लैनल चैनल लैनल चैनल,
टपकट टपकत पहुंचे थे,
हर चैनल पर कोच्चन है,
हर लैनल पर टोच्चन है
इस मुंडी को खींचे वो,
उस मुंडी को पहले दो,
भारी भरकम एंकर भयंकर,
हल्की फुल्की स्लिम एंकरिया
देख के बोली प्यारी बंदरिया
ए उस्ताद मुझको देख,
टीभी पर भी जमती हूं,
बनरा बोला मैं भी हूं,
दोनों लड़ गए आपस में,
बनरवा पकड़ा बनरिया को,
बनरिया नोची बनरवा को,
बक्से से निकली मुंडी,
बोली नो वन टौंकिंग टू मी,
चल बेटा ले ले ब्रेक,
एंकरवा बोला बट द कोच्चन इझ ग्रेट,
एंकरवा बोला मेरा आइडिया,
टीभी को हो गया डायरिया,
डायरिया से फिर मलेरिया,
एक ही मच्छर सबको काटा,
सब एंकरवा झाड़ा फिरता,
बहस बहस बहस बहस,
तहस नहस तहस नहस
आय अम आस्किंग ऐसा कोच्चन,
पूछ न सके जो जावेद बच्चन,
मैं हूं एंकर सबसे महान,
मुंडी मुंडी भर दी दुकान,
आओ मदारी तुम भी देखो,
तुमरे बानर तुमरे गान,
लल्ला लल्ला लल्ला लल्ला,
एंकरिया बोली,
हह्हा हह्हा हह्हा हह्हा,
( हिन्दी पत्रकारिता का लांग बानर काव्य- मौलिक कवि रवीश एंकर, कौमा का प्रयोग इसलिए किया गया है ताकि पंक्तियां आपस में मिल न जाएं. कोच्चन का मतलब क्वेश्चन है. मैंने न्यूज़ चैनल कभी नहीं लिखता। मुझे ये नूझ लैनल ही दिखाई सुनाई देते हैं। )
Self criticism is the best criticism
ReplyDeleteएकैदम मौलिक !!
ReplyDeletehedar dedar....chhichhaledar ....se prerit lagta hai
ReplyDeleteVery Fine...
ReplyDeletekya kahoon.....soch raha hoon....isme lachar ravish likhta hai...ya.. nirash ravish...ya shayad dono....ravish ...jo ek pratibimb banta ja raha kuch ek krod bhartiyon ka...ha ek karod...BRD-pandreh hazar logo ke dum per ekso ikis crod ka dava karte hai...Team Anna...bhi kuch aisa hi karti hai...to kya ravish ke pass ek karod ka bhi haq nahi hai kya...per kya kare ravish to aam admi hai na...to kuch maang nahi sakta...koi dava nahi kar sakta...koi dum bhi nahi bhar sakta...kya kare aam admi hai na....sala fatichar...hum log banayga...sochta hai isse desh sochega...per kya aisa hua hai kabhi...yaha sochne ka haq sirf admi ke pass hai ...aam admi ke pass nahi...per ravish tum nirash na hona...tum ekso ikis karod ho...koi soche na soche...desh badal raha hai....our iske liye sochne ki jaroorat nahi hai....karne ki jaroorat hai....jinhe karna hai woh kar rahe hai...woh sochte nahi hai..isiliye bolte nahi hai...aise hi hota...aam admi ki aam baat hai yeh..dashrath manjhi ka desh hai yeh....
ReplyDeleteGreat sir
ReplyDeleteजय हो बानर नरेश की ;)
ReplyDeletegood one
ReplyDeleteIt's a pleasure reading Ur work...
ReplyDeleteKeep writing...
आपकी कलम में मिट्टी की खुशबू है ।
rabish ji aapke naye fan se rubaru huwa, अच्छा laga
ReplyDeleteRavish ji, that was awesome. Finally someone is there who could bear self-criticism.
ReplyDeleteKaise kahoon kaisa laga padhna suru kiya to to lai paane ke chakkar me arth ko chhodta chala gaya...ant me itna hi samajh aya ki alochna hai...kuch logo ke comments ko padha to jyada samajh paya ek mango man ki nihswarth swikarokti hai ye...uske mansik uddhedbun ki safal prastuti hai...aapki sachhai, bebaki, aur aam admi ke muddo se apka judao aur usko pramukhta se rakhna, galat bayanbaji pr apki muskan hi ek aisa karan hai jo mujhe NDTV dekhne ko majbur krti hai...baki ke logo me satta ki chatukarita jyada dikhti hi...aap isi tarah janta ki awaj bane rahiye...
ReplyDeleteSach kahoon toh kuchh maza nahin aaya|
ReplyDeletesayad PM ki yarah aap bhi confused lagte hai
ReplyDeleteyou are one of real and most impressive person on budhuu box. I always love to listen what you say and the way you say.
ReplyDeleteAwesome!! There are very few journalist like you, who will keep the journalism alive.
ReplyDeleteइस खेल में स्वस्थ मनोरंजन होता है..
ReplyDeleteलगता है ये कविता एंकर रविश ने नही पैनल प्रोड्यूसर रविश ने लिखी है
ReplyDeleteemotions well understood..somewhere down the line all is not lost :)
ReplyDeleteशानदार गड़बड़-झाला मचाया, भगवन!
ReplyDeleteबहुत उम्दा....सर कायल हैं आपकी लेखनी के....और बोलने के अंदाज के...प्राइम टाइम में जो आप नेताओं की कह के लेते हैं....वैसे माफी चाहेंगे..आपका ये काव्य....इतना अच्छा लगा..कि आपसे बिना पूछे...मैने अपने फेसबुक के फेस पर चिपका दिया..माफी....आपत्ति हो तो जरूर दर्ज कर दीजिएगा...
ReplyDeleteRaveesh jee bahut suna tha apke is blog ke bare mai magar paya kuch nahi....han ek baat zaroor ki female anchor zyada na study karti hai na chintan ve dokhne or jaldi se jaldo dikhane mai hi bharosa karti hai. mumkin hai ise aap blog pe dalo hi nahi magar kehna tha to keh diya. Jai ram jee kee.
ReplyDeleteSakhajee.blogspot.in
zabardast...chhathi saatvi baar padha...har kuch ino baad padhne ka man karta hai.
ReplyDeletezabardast...har kuch dino baad ye kavita padhne ka man karta hai... kai baar padh chuka hoon.
ReplyDeleteबेहतरीन, सर आपकी वाक् चातुर्य के कायल है मीडिया में स्थायी रुप से टिके रहने के लिए उसकी जरुरत भी है। लेकिन कई बार आप प्राईम टाइम में लोगों का मीडिया ट्रायल लेने लगते है। जिससे आपकी कथनी और करनी में फर्क नजर आता है। फिर भी मीडिया में आप जैसे लोगों की काफी जरुरत है। आपकी प्रभात खबर में छठ पर लिखा लेख दिल को छू गया। लिखते रहिए।
ReplyDeleteसादर,
साकेत सहाय
www.vishwakeanganmehindi.blogspot.com
Ravish ji
ReplyDeletemene pahli bar apke blog ko visit kiya or ek alg ravish ji se parichay hua..
Prime time me aapki bewaki k to hm kayal h.
Jawan rogiya ke bhaawe..taune baida farmaawe....!!!!! Aapkar anuyayi baani hum..!!
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