मल्टीस्टोर पान की दुकान
बेगूसराय रूकना ही था। बरौनी में रूकने का मौका मिला। दही-चूड़ा खाने के लिए रूका और कुछ क्लिक करने के लिए भी। सलाहियत होती तो बेगू जगत पर एक किताब लिखता। मुझे बेगूसराय के किस्से, आबो-हवा और धारायें बहुत आकर्षित करते रहे हैं। लंठई , विद्वता और वैचारिकता का इतना महीन ब्लेंड और ठेठपन कहीं और नहीं दिखने को मिलता। इसके समानांतर एक और भौगोलिक क्षेत्र है बलिया। ज़ीरो माईल पर रूका था मैं।
ख़ैर मैं बात पान दुकान में आ रहे बदलावों की करना चाहता हूं। देश भर में पान की गुमटियां क्रांतिकारी ढंग से मल्टीस्टोर से लड़ने के लिए खुद को बदल रही हैं। इस पान की दुकान में आप सैनिट्री नैपकिन और ब्रेड एक साथ बिकते देखेंगे। ऐसी जगहों और दुकानों पर मर्दों का ही दबदबा रहता है। वहां सैनिट्री नैपकिन देखकर अच्छा लगा। वर्ना भारत में इसका प्रचार तो खुलेआम होता है। टीवी से लेकर फिल्म तक में, मगर बिक्री ठोंगे और काले पोलिथिन बैग में होती है। पता नहीं क्या और किससे छुपाने के लिए। यह सोच कर अच्छा लगा कि दोनों बातें हो सकती हैं. या तो मर्दों की इस गुमटी पर औरतें भी नैपकिन खरीदने आती होंगी या फिर मर्द ही खरीद कर ले जाते होंगे।
पान की गुमटियां स्टोर बन रही हैं। ब्रेड,दही,की रिंग,नारियल तेल, रूमाल कम से कम सौ से ज्यादा किस्म के आइटम बिक रहे थे। पान जर्दा के अलावे। जब तक पान बन कर तैयार हो, तब तक अख़बार में सुशासन की ख़बरें भी बांची जा रही हैं। सामूहिक अख़बार पढ़ने के दृश्य बिहार को पेटेंट करा लेने चाहिए। इतना क्या मिलता है इनको अखबारों में। एक खरीदेगा, बीस पढ़ेगा। वाह। कुछ तस्वीरें अख़बार पठन के सार्वजनिक माहौल पर भी पेशे ख़िदमत हैं।
sir,
ReplyDeletecouldn't able to find the link to follow your blogs......
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रवीश जी हर चित्र बहुत ही अच्छा है. पान सिर्फ बेंचकर कहा गुजरा होगा आज के ज़माने में , इसलिए शायद लोग और भी सामान रखने लगे होंगे...................सार्वजनिक अख़बार भी भाई -चारे में भी बढ़ोत्तरी करता है और लोंगों को एक जगह अख़बार पड़ते पढ़ते बहस का मौका भी देता है. अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
@ Marpheus ji , you can also follow by feeding blog URL by selecting add a gadget in Edit layout-- design -- add a gadget--blog list-- configure blog list-- add to list-- add by URL.
ReplyDeletebest of luck.
Achha lagi, mere Begusarai ke baare me aapki rai
ReplyDeleteपान दुकान, देहाती काफी हाउस जैसे बौद्धिक अड्डे तो होते ही हैं, अब पान-मॉल विकसित हो रहे हैं, खासकर स्टेशन, अस्पताल, धर्मशाला और हॉस्टल के आसपास.
ReplyDeleteलघु मॉल बना रखा है यह तो।
ReplyDeletehmm....बढ़िया।
ReplyDeleteये एग्रीगेटर क्या बंद हुए नई पोस्टों का पता ही नहीं चलता। तस्वीरमय कई पोस्टें आपने लिख डाली हैं उस साग वाली पोस्ट के बाद तो।
मस्त लगी यह पोस्ट भी। पान की दुकान पर जो नेपकीन काले थैलों मे दिया जाता है उसका हेतु यही होता है कि लेने वाले पुरूष ही हैं जो अपने घर ले जायेंगे।
खुले देने पर पुरूष कहीं आपस में मजाक ही न कर बैठे कि- का हो...आजकल छुच्छे चलताss तो फिर तो हो गई बमचक.....समझदार होगा तो मजाक समझ टाल जायगा नहीं तो वहीं लड़ भिड़ पड़ेगा :)
har baar ki tarah, aapki report, bilkul alag, so simple, so touching. thanks
ReplyDeleteयूपी और बिहार में सभी जगह सार्वजनिक अख़बार बांचन होता है। एक और तरीका भी है अख़बार पढ़ने का वेंडर के पास खड़े हुए दो-तीन अख़बार फटाफट बांचे और फ्री का चंदन घिस मेरे नंदन कहकर पिछवाड़े हाथ पोंछे और रपट लिए।
ReplyDeleteRavish Ji...apka angle gajab ka hai....Waah...Happy New Year 2011. Y K SHEETAL,BEGUSARAI.
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