बेग़म समरू का संसार-सरधना
सरधना से लौटा हूं। मेरठ से पंद्रह किमी की दूरी पर है। उन्नीसवीं सदी के चर्च को देखने। बेग़म समरू ने बनवाया था। फरज़ाना नाम की नतर्की जब वॉल्टर रेनार्ड सॉम्बर से शादी की तो ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया। रेनार्ड भाड़े का लड़ाकू कमांडर था। जिसकी अपनी सेना थी। बंगाल के नवाब मीर कासिम की तरफ से लड़ते हुए दिल्ली तक आ गया। कई राजशाहियों के लिए लड़ाई लड़ी। उसकी मौत के बाद मुग़ल बादशाह ने सरधने की जागीर बेग़म समरू को सौंप दी। बेग़म समरू भी लड़ाका बन गई। उसने कई युद्धों में भाग लिया। इन्हीं को मगुल बादशाह ने चांदनी चौक में एक महल बनवाकर दिया। बाद में बेग़म समरू के वंशजों ने बेच दिया। इसी महल में भागीरथ पैलेस है। खरीदने वाले सेठ का नाम सेठ भागीरथ था। कहानी लंबी है इसलिए रहने दे रहा हूं।
इन तस्वीरों में सरधना के चर्च की ख़ूबसूरती,सादगी और भव्यता बयां होती है। बहुत कम इमारतें हैं जो भव्य हैं मगर सादे भी। छोटे कद की समरू एक तस्वीर में हुक्का पी रही है और उसके पीछे दो मर्द खड़े हैं। अठारहीं सदी के आखिरी दौर में एक कैथोलिक महिला का राज काज। उसने किसी ताकत के ज़ोर पर नहीं बल्कि अपने पति के प्यार में कैथोलिक मत अपना लिया था। नाचने-गाने वाली एक अनाथ लड़की रेनार्ड के साथ युद्धों में भाग लेने के कारण राजपाट में भी पारंगत हो गई।
चर्च के भीतर समरू के राजपाट को मूर्तियों से दर्शाया गया है। इसमें उनके दीवान खड़े हैं टोपी में तो एक तरफ ब्रिटिश सिपाही की मुद्रा में गोद लिए गये बेटे हैं। एक महिला घूंघट में हैं,जिसके हाथों में सांप हैं। गाइड ने बताया कि यह मूर्ति कह रही है कि समरू महिला होते हुए भी होशियार थी। फुर्तीली थी। कुछ और मूर्तियां हैं जिनका ज़िक्र आप रवीश की रिपोर्ट में देख सकेंगे जो इस शुक्रवार आएगी।
बेग़म समरू का महल काफी साधारण है। किसी मामूली ज़मींदार का लगता है। आज कल इसमें सेंट जॉन सेमिनरी चल रहा है जहां पादरियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन सेंट चार्ल्स कॉलेज की इमारत काफी भव्य है। ब्रिटिश गेस्ट हाउस की ही तरह है। मुगलियां किले की तरह नहीं। उत्तर भारत के खूबसूरत इंटर कॉलेजों में से एक होगा यह। इसकी साफ-सफाई और बागीचे में गुलाब के सैंकड़ों फूल बता रहे थे कि बारह सौ बच्चों के बाद भी अनुशासन बखूबी कायम होगा। सेंट चार्ल्स कालेज की इमारत में समरू एक साल ही रह पाईं थीं। इसमें उनकी राजशाही की झलक मिलती है। बकायदा दरबार हॉल है। ऊंची सीढ़ियां हैं। दरवाज़े बड़े-बड़े हैं।
सरधना एक साधारण सा कस्बा है। पावरलूम के लिए भी मशहूर रहा है। संकट के कारण लूम लुप्तप्राय हो चुके हैं। मगर यहां की संस्कृति में मज़हबी भेदभाव की जगह नहीं है। इस बात के बावजूद कि यहां की आबोहवा में कई तरह के संकट हैं। बिजली नहीं आती। सड़कें नहीं हैं। कोई साफ-सफाई नहीं है। फिर भी संस्कृतियां घुल मिल रही हैं। पोस्टर में ईद,कृपा माता महोत्सव की बधाई का एक साथ ज़िक्र नज़र आता है। कुछ तस्वीरें आम शहरी जीवन की भी हैं। एक पॉप कार्न वाला भी मिला। आठ हज़ार रुपये की यह मशीन है। जो बैटरी और छोटे सिलिंडर दोनों से चलती है। दो रुपये में वही पॉप कार्न जिसे हम साठ रुपये में पीवीआर में खरीद कर खाते हैं। तो आप इन तस्वीरों से सरधने की खूबसूरती का मज़ा लीजिए। रवीश की रिपोर्ट देखियेगा।
चित्रों की प्रतीक्षा करते हैं।
ReplyDeleteविलियम डिलरेम्पल ने भी द लास्ट मुगल में बेगम समरु का काफी जिक्र किया है...आज आपने तस्वीर भी दिखा दी..शुक्रिया।
ReplyDeletebahut sunder chitr aur lekhni bhi !!
ReplyDeletehttp://wehindu.wordpress.com/ website banayai hai mitra ne, dekhiyega aur dikhaiyega.
आपके नसरुद्दीन शाह भी तो इस सरधना के है रविश जी.
ReplyDeleteमै मेरठ में ही रहता हूँ चर्च बहुत बार बहार से देखा था आज अन्दर से भी देख लिया.
हमारे शहर से होकर गुज़रे आप बहुत अच्छा लगा.
नमस्कार !
behad khubsoorat. ab to bas Ravish ki report ka intezaar hai.
ReplyDeleteरवीश सर, ग्लोबलाईजेशन के दौर में आपका नाम भी ग्लोबल हो गया है ........तभी तो रवीश जी आपसे प्रेरित होकर लोग अब अपने पशु आहार केन्द्रों का नाम भी रखने लगे है.......... शायद यह सब रवीश की रिपोर्ट का असर है.........आपकी रिपोर्ट का इन्तजार रहेगा.....................
ReplyDeleteरविश जी कभी हस्तिनापुर भी होकर आइये ..मेरठ के पास ही है ..बिलकुल अलग एहसास होता है .....
ReplyDeleteरवीश भाई समरू बेगम में राजपाट संभालने की स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। नाचने वाली लड़कियां सब समझती हैं जमाने की रग-रग से वाकिफ होती हैं। आपकी तस्वीरें सुंदर लगीं। आखिरी तस्वीर में आप ब्रांड बन गए हैं। हाहाहाहा। भई रॉयल्टी मांग लो कंपनी से।
ReplyDeleteमूर्तियों ने प्रभावित किया..खासकर उसने जिसमें महिला हाथ में सांप लिए बैठी है...कमाल की कलाकृति है...कमाल की...आपकी रिपोर्ट की तरह ही वो भी किसी मूर्तिकार की खूबसूरत कलाकृति ही नज़र आती है..कभी वो कोई सुंदर कविता बन जाती है...रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा अगर ऑफिस से घर पहुंचने का मौका मिला तो क्या ये रिपोर्ट दिन में रीपीट होगी...
ReplyDeleteshaayad angrezi ke 'rubbish' ko hi 'ravish' pashu aahar naam de diya gaya ho. kaisi kahi!
ReplyDeleteअरे हां...एक बात और नया धंधा भी शुरू किया है क्या...रवीश पशु आहार...? ये क्या है...पार्ट टाईम...हा हा हा
ReplyDeletekum se kum pashu aahaar ka brand to banaa...vaise ravish..pharsasi shabd hai.
ReplyDeleteravish ki report friday 9:28pm,
sat-10:28am,10:28pm
sunday-11:28pm
monday-11:28am
itne samay par aap dekh sakte hain.
उम्दा आलेख । सुन्दर चित्र।
ReplyDeleteआभार।
bahut dinon se aisi report ka intjaar tha, ummeed hai aane wale shukravaar ko khatam hogi..
ReplyDeletesadhuvaad, Alka Tiwari(Adv.)_
समय के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteसुंदर कलाकृति और स्थापत्य. आकर्षण जगाने वाला विवरण.
ReplyDeleteरविश जी,
ReplyDeleteसरधना चर्च का नाम बहुत सुना था ..
एक बार सरधना जाना भी हुआ पर चर्च नहीं देख पाए, मन में एक मलाल सा रह गया था चर्च न देख पाने का ..
पर आपने वो दूर कर दिया ..आभार
समरू बेगम के बारे में थोडा बहुत कहीं से सुना था .... आपकी रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा ....सुन्दर चित्रों के साथ साथ और भी अच्छी तरह से जान पाऊँगी समरू बेगम के बारे में ...
ReplyDeleteRavish bhai, ravish hai to farsi ka hi shabd lekin apne yaha matra idhar udhar hona chalta hai...aap claim karo royalty pakki samjho. All the best.
ReplyDeleteमेरठ से पन्द्रह नहीं, बीस किलोमीटर है।
ReplyDeleteरास्ते में सरधना से आठ किलोमीटर पहले अपना गांव दबथुवा भी देखा होगा, यदि गंगनहर के रास्ते ना गये हों तो। मेरठ से गये होंगे तो शरीर के सारे जोड ढीले हो गये होंगे। सडक पर चलते हुए एक-एक हड्डी हिल गयी होगी।
रवीश जी , बेगम सुमरू पैर रवीश की रपोर्ट बहुत अच्छा लगा. ब्लाग पैर चित्र बारे अछे लग रहे हैं.
ReplyDeleteहम रेगुलर आते जाते रहते हैं क़स्बा में, बहुत्र अच्छा लगता है पढ़ के, अलगता है की पढते पढते बिहार ही पहुँच जाते हैं.
dekhar kafi acha laga..
ReplyDeletesir mai apne exms k kaaran ye episode dkh nhi paaya, tubaah par try kiya lekin waha par b iske bajaye dusri video chaal padi...
-Meerut