एक रिश्वतदाता का समाजशास्त्र

दिल्ली से इंदौर जा रहा था। जेट लाईट की फ्लाईट में विंडो सीट मिल गई थी। बगल में एक मोटा सा शख्स आ कर अपने आप को कुर्सी के बीच में ठूंस दिया। थोड़ी देर बर्दाश्त किया फिर मुझसे कहने लगा कि आप ज़िन्दगी में थोड़े समझौते कर लो। पैसा बरस जाएगा। मन नहीं था लेकिन बात करने लगा कि आपको कैसे पता कि मैं समझौते नहीं करता। नौकरी करने वाला कोई भी शख्स यह बोले कि समझौता नहीं करता तो वो नब्बे फीसदी से ज्यादा झूठ बोलता है। मोटा आदमी हंसने लगा और मेरी हथेली से पवन वर्मा की किताब भारतीयता की ओर निकाल कर रेखाओं को बांचने लगा। कहा कि ये सब पढ़कर क्या होगा।

जब तक बातचीत औपचारिक से अनौपचारिक होती उससे पहले ही वो अपनी अंगूठे के नाखून से हथेली की रेखाओं को खुरचने लगा। बोला ये देखिये फेट लाइन यहां से मुड़़ कर यहां जुड़ गई और यहां से मुड़ रही थी तो आपने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा मौका गंवा दिया। मैं सोचने लगा कि वो कौन सा मौका होगा। फिर देखा कि मोटा आदमी हथेली को रगड़ ही रहा है। रहा नहीं गया तो बोल दिया कि लगता है आप आज किस्मत खोद कर निकाल ही लेंगे। वो हंसने लगा। हंसमुख था। बोला कि आदर्श एक बेवकूफी है। आप बिजनेस करो। सब समझ में आ जाएगा। मोटा आदमी खुद को हस्तरेखा विशेषज्ञ बताने लगा और कहा कि देखिये मेरी हथेली। बाप ने कहा कि खोटा सिक्का है लेकिन मैं साल में पंद्रह करोड़ कमाता हूं। दस से बीस करोड़ रुपये तक रिश्वत देता हूं। उत्तर भारत के सभी राज्यों के अफसरों और नेताओं को घूस खिलाई है। बस इस स्वीकृति से उससे दोस्ती जम गई। ऐसी आत्मकथा पहली बार सुन रहा था। वैसे एक शख्स को जानता हूं जो हर दिन तीन हज़ार रुपये रिश्वत देते हैं और देने के बाद उसके दफ्तर में आरटीआई लगाकर उसके खिलाफ कार्रवाई भी करवाते हैं। खैर, मोटे आदमी को मालूम नहीं था कि मैं न्यूज़ रिपोर्टर हूं। वो टीवी और अखबार में अपना टाइम बर्बाद नहीं करता। उसका मानना था कि मीडिया से कुछ नहीं होता। रिश्वत ही जड़ है और रिश्वत ही परिवर्तन है।

रिश्वत की खूबी बताते हुए मोटा आदमी मेरी हथेली को थामे रखा। फिर कहने लगा कि फलां मुख्यमंत्री के भाई को चार करोड़ दी। उन्होंने चालीस करोड़ का काम दे दिया। फलां अफसर का तीन करोड़ फंसा था तो मैंने दे दिया। बस मुझे सौ करोड़ का काम मिल गया। मेरे पास साल का सात सौ करोड़ का काम है। मैं साल में कई करोड़ तो रिश्वत देता हूं। तीन-चार करोड़ रुपये तो लोग मेरा मार लेते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता जी। मैंने पूछा कि आप मुझसे ये सब क्यों कह रहे हैं? तो उसने ऊर्जा समन्वय समझाना शुरू कर दिया जैसे मैं किसी भगवान का अवतार हूं। कहा कि आपको देख ही लगा कि एनर्जी मैच करती है। फिर उसने कहा कि देखिये सुबह कानपुर से चला हूं। कार से। इस फ्लाईट से इंदौर जा रहा हूं। वहां से टैक्सी लेकर तीन चार घंटे चलकर औरंगाबाद जाऊंगा। वहां सुबह दस बजे की मीटिंग है। वहां एक अफसर को पांच करोड़ रुपये रिश्वत दूंगा और पचास करोड़ के काम लूंगा। फिर लौट कर इंदौर आऊंगा और इसी जहाज से वापस दिल्ली और दिल्ली से सुबह की फ्लाईट लेकर गुवाहाटी। वहां तीन दिन रहना है। तीन करोड़ फंसा हुआ है। वो लेकर कानपुर आऊंगा और एक पार्टी को दे दूंगा। जब वो अगले दिन रात को इंदौर एयरपोर्ट पर मिला तो उसके हाथ में गुवाहाटी का टिकट था। कहा कि मैं साल में तीन सौ विमान यात्राएं करता हूं।

खैर वापसी में वो मेरे बगल में नहीं बैठा था। मगर दिल्ली से इंदौर जाने के रास्ते में वो बकता ही रहा। जब फिर से रहा नहीं गया तो कह दिया कि आप ये सब एक पत्रकार को क्यों बता रहे हैं? थोड़ी देर रूका और फिर कहा कि मैंने बोला न कि आप सही आदमी मालूम पड़ते हो। एनर्जी मैच करती है। कहता ही जा रहा था, बीच-बीच में मेरी हथेली खुरच कर बोले जा रहा था कि उम्र नब्बे साल की होगी। जीवन में शोहरत नहीं है। संघर्ष है। जिद्दी न बनें। दफ्तर में शत्रु है जो एक दिन पराजित हो जाएंगे। मगर नए शत्रु आ जायेंगे। संपर्क में रहिए। लोगों से मिलिए। पैसा आएगा। रिस्क लीजिए। पत्रकारिता में क्या रखा है?
मोटा आदमी कई आईएएस अफसरों के बारे में बता रहा था। कई नेताओं के बारे में बताया। बोला कि देने और लेने में संकोच मत करो। मैंने कहा कि आपको डर नहीं लगता। बोला कि देखिये मैं पकड़ा भी गया तो रिश्वतखोरी बंद नहीं होगी। मेरी जगह कोई और आ जाएगा। जब तक मैं पकड़ा नहीं जाता हूं तब तक कमा लेने में हर्ज क्या है। मेरे पिताजी रामायण का पाठ करते हैं। रिटायर करने के बाद पेंशन नहीं ली। ऐसी बात नहीं है कि हम ईमानदार लोग नहीं है। मगर हम प्रैक्टिकल लोग है। धर्म और फर्ज का तेल हो रहा था और मेरे दिमाग का भुर्ता। इंदौर एयरपोर्ट पर उसने कहा कि आपने मेरे चेहरे पर थकान देखी। मैंने कहा नहीं। बोला कि कभी नहीं देखेंगे। पैसा मिलता है तो थकान नहीं होती। आप मेरे संपर्क में रहा करो। मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन मैं आपके काम आऊंगा। तब से मेरी नींद उड़ी जा रही है। क्योंकि उसने कहा कि डेस्टनी में लिखा है कि हम और आप फिर मिलेंगे। हे भगवान अगर कहीं हो तो मुझे महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनवा दो लेकिन उस आदमी से मत मिलवाना। हंसमुख रिश्वतवादा से। थोड़ी देर बाद किनारे बैठे शख्स परेशान हो उठे थे। मोटा आदमी उनकी हथेली खुरचने लगा था।

35 comments:

  1. आपके कहन की अदा से चहरे पर मुस्कुराहट फैल गई...

    ReplyDelete
  2. साठ सालों में यही तो सिखाया गया है...

    ReplyDelete
  3. रविश जी इसी बात से याद आया.. बिहार के एक बहुत बड़े नेता का कोई अंगूठा टेक शातिर सेवक बरसो पहले मुझे मिला था जब मैंने पहली बार ad agency में काम करना शुरू किया.. मेरे एक मित्र के साथ मिला था..कहने लगा, हम तुमको लन्दन भेज देंगे..इस नौकरी में क्या रखा है...कितना कम लोगो.. तुम्हारी तरह पढ़े लिखे और फराटेदार अंग्रेजी बोलने वाले लड़के मुझे चाहिए ..नेता जी ने कारोबार में पैसा लगाया है.. विदेश में जाकर काम करो.. लाखो कमायोगे.. मैंने कहा, भैया तुम्हे क्या फ़ायदा ? तो उसकी बात सुन कर मैं दंग रह गया..इसलिए मैंने उसे अंगूठा टेक शातिर कहा.. कहने लगा , तुम बस हाँ कर दो.. कल वीसा मिल जायेगा.. ५ साल के लिए चले जाओ.. पांच साल बाद मैं MLA के इलेक्शन के लिए टिकट लूँगा, तब मुझे पैसे की ज़रूरत पड़ेगी... तुम्हारे जैसे जितने लड़के जायेंगे , सब मुझे पांच लाख दे देना.. मेरा काम भी हो जाएगा..और तुम्हारा काम भी..कितनी दूर की सोचता था वो अनपढ़ ... मैंने पुछा करते क्या हैं..कहने लगा कोई भी काम जिस में माल मिलता है...लेना देना और खाना.. फिर जो आपने कहा उसी शख्स की तरह न जाने कितने मशहूर नेतायों और उनके काले धंधो की पोल खोलता गया... कल मिलने का वादा करके वो एअरपोर्ट किसी हेरोइन को रिसिव करने चला गया.. आज शाम को मंत्री जी की पार्टी थी..

    ReplyDelete
  4. रविश जी ..... एक अफ़सोस भरी मुस्कराहट फ़ैल गयी चहरे पर..... सोचती हूँ आगे आने वाले समय में देश का होगा क्या....? इन सब चीज़ों की हमें आदत सी क्यों होती जा रही है....

    ReplyDelete
  5. यह एक नया व्यवसाय है, काम करवाने का। सरकारी व अर्ध सरकारी कार्यालयों के ऊपर जो मायावी रक्षाकवच चढ़ा है, उसके मन्त्र-भेद के ज्ञाता हैं ये सब। जो काम स्वतः हो जाना चाहिये, बिना किसी परिश्रम के, उसे भी जुझारू बना उस परिश्रम का मूल्य लेते हैं ये।
    घर जाकर डिटॉल से मलमल कर नहाईयेगा, कीटाणु संक्रामक हैं।

    ReplyDelete
  6. vahee kiya maine. bhaaree fraud tha.

    ReplyDelete
  7. very interesting story of corruption.....declaring himself a corrupt in front of a journalist is daring...and moreover, influencing him to join hand in attributing to this bloody curse is surprising.

    mr Ravish, corruption has taken an industry shape in india and globally india is known for it....commonwealth story if evidence.

    lastly, one salute for you and one for this beautiful bloging

    ReplyDelete
  8. क्या कहना चाहते हैं रवीश भाई?

    खुल कर कहिये?

    मन तभी हल्का होगा!!

    ReplyDelete
  9. रवीश जी ऐसे लोग हवाई जहाज से उरते हैं और नोट गिन-गिन कर मोटे हो जाते है ..फिर कुर्सी में जबरदस्ती समाते हैं और किसी दिन इसी हवाई जहाज में सदा के लिए उड़ जाते हैं ..आप ऐसे लोगों से दूर रहें क्योकि इस देश और समाज को उस मोटे की जरूरत तो नहीं है लेकिन आप जैसे पत्रकार (इंसान) की जरूरत जरूर है...

    ReplyDelete
  10. पैसा मिलता है तो थकान नहीं होती।
    malum nahi..log phir bhi kyon thak jate hain..soch rahi hoon :)

    ReplyDelete
  11. रवीश जी , क्या कहें इस देश के बारे में , अफ़सोस के सिवाय और कुछ नहीं किया जा सकता है , पर आप अपनी नेतिक जिम्मेवारी तो निभा रहे हैं न , एक सशक्त पत्रकार के लिय यह आवश्यक है ,की वह हालातों पर तीखी दृष्टि रखे ............सुंदर विचारणीय पोस्ट

    ReplyDelete
  12. सहमति और असहमति से ऊपर यह सच्चाई तल्ख़ हो सकती है ...पर ध्यान दीजिये है यह आज की सच्चाई !

    मुझे अपने कार्य-क्षेत्र के ऐसे ही उपदेशक ज्ञानी याद आ रहे हैं !

    ReplyDelete
  13. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से ख़याल आया कि क्या समय आ गया है कि तीन कमरों का मकान पाने के लिए किस हद तक गिरना पड़ रहा है | इसे ही कहते हैं घोर कलयुग |

    अब आदमी कैसे भी कमाए न तो क्या करे , जब दो / तीन कमरे के मकान Luxurious हो जाएँ तो क्या कहा जाय, अब यही महल हो गए हैं और राजाओं की गद्दी इन्हें प्राप्त करने की कोशिश में कुर्बान हो रही है |

    खैर , आपका अंदाजेबयां तो कमाल का है ही |

    ReplyDelete
  14. ravish ji,
    lagta hai pahli bar kisi rishwati se mile hain.aaj ki to sachchi hi yah hai ki log rishwat dete hain aur jor shor se kahte hain...
    kyon ghabrata hai nar tu rishwat lekar,
    rishwat pakdi jaye chhot ja rishwat dekar.

    ReplyDelete
  15. रविश जी , देश के बारे सोंचकर तो कभी कभी मन बहुत खिन्न हो जाता है. किधर जा रहा है ये देश.....

    ReplyDelete
  16. मोटा आदमी नहीं उसकी जेब थी,पर क्या उसकी चिंताएं भी उतनी मोती न होगी,भले ही आज वो नकार रहा हो,पर खायेगा तो रोटी ही!उसे डकार भले ही करोंड़ों की आती हो,पर सही मायने में उसने अपनी क़िस्मत को नहीं बाँचा,क्योंकि उसका हश्र आंधी में पड़ी खुली क़िताब जैसा ही होगा.एक भी सफ़ा संभल नहीं पायेगा....आप बचे हो क्योंकि आपकी क़िस्मत अच्छी है !

    ReplyDelete
  17. रविश जी, सत्य तो शायद सभी को पता है... तुलसीदास जी भी कह गए, "जाकी कृपा पंगु गिरी लंघइ...आदि",,,इस कारण यह जानते हुए कि वर्तमान 'कलियुग' है शायद हमें गर्व होना चाहिए कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमें बाहरी शक्तियों का भय नहीं रहा (?),,, और अपने संविधान के कारण, आज भारत में कोई भी 'राजा' बन सकता है (जब तक उसका सिक्का चले, भले ही वो 'खोटा' ही क्यूँ न हो!),,,

    ट्रेन के सफ़र में मैंने भी सुना एक 'डाकू' के मुंह से (?, उसने मेरी तब उसके निकट बैठी ९ वर्षीया बेटी को बताया कि डाकू उनके साथ चाय पीते थे!) कि कैसे उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार को सन '८० में फिर से विजय दिलाई थी और उसका जशन मनाने 'यूथ कौंग्रेस' की रैली में दिल्ली आये थे (जिस कारण ट्रेन खचाखच भरी थी, और उनकी मेहेरबानी से हमें बैठने कि जगह मिली थी!)...

    और अस्सी के दशक में ही एक दूसरी रेल यात्रा के दौरान एक पुलिस वाले को कहते सुना कि उनकी डाकुओं से 'अंडरस्टैंडिंग' है जिसके कारण वो रेल-यात्री पर डाका डालने के स्थान पर मुगलसराय जंक्शन के यार्ड से माल गायब करते थे!

    ReplyDelete
  18. आज रिश्‍वत की कमाई की बात करने वाले लोग खुले आम बात करने लगे हैं, ऐसा अनुभव मुझे भी हुआ है। आप तो उस मोटे से अवश्‍य ही मिलेंगे क्‍योंकि आपकी रेखाएं कह रही हैं तो अभी से शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  19. इस पोस्ट को पढ़कर बहुत राहत महसूस कर रहा हूं। आजकल हो क्या रहा है कि जब किसी से असहमति जताते हुए लिखिए तो लोगों की राय बनती है कि एकदम से निगेटिव सोच का आदमी है। तारीफ करें किसी की तो मैनेज होकर लिख दिया है,ईमान बिक गया है। लेकिन हिन्दी समाज में ईमान बिकने का भी मतलब है एक-दो बार मुफ्त में हवाई यात्रा,एक ऑरिजिनल उन के चादर और कुछ हरे नोट। आपने अच्छा किया इस शख्स के बारे में। ईमान बेचने की एक सही ठीक-ठिकाने का पता चल गया। अपन इसी को अपनी ईमान बेचेंगे।.

    ReplyDelete
  20. दुनिया के सबसे पुराने धंधो में से एक है यह । आजकल इन्हे परियोजना सयोजक कहने लगे हैं ।

    ReplyDelete
  21. pariyojna sanyojak..waah. vineet, main apne paav pe kulhaarhi maar lee hai. post likhne ke baad rishwatdataa ko phone kar diya ki sir parhenge to bahut achhaa lagega aur feedback bhee dijiyega. unka koi jawaab hee nahee aaya hai.

    ReplyDelete
  22. उनका जवाब तो नहीं आना था। लेकिन कई चैनलों के आइडिया उत्पादकों को लग रहा होगा कि आपने बड़ी स्टोरी खो दी है। दूसरे चैनलों से फोन तो नहीं आया कि उनका नंबर चाहिए कि हमलोग इस रिश्वतदाता पर लाइव एंड एक्सक्लुसिव स्टोरी करना चाहते हैं।

    ReplyDelete
  23. कई स्वनामधन्य पत्रकारो को मैने यही काम करते स्वयम देखा है .यह सच है वह मज़ाक नही कर रहा था . लाइजनर है वह .....
    मेरे पिताजी जब सांसद थे उस समय रसायन मंत्रालय मे एक टेन्डर था जिसमे तीन बिट थी और तीनो के प्रतिनिधी उस समय २५ -२५ लाख रुं दे रहे थे सभी कमेटी की सांसदो को . इस मसले को उठाने पर मेरे पिताजी के खिलाफ़ विशेषाधिकार नोटिस लाया गया था संसद में तत्कालीन मंत्री के द्वारा

    ReplyDelete
  24. कई स्वनामधन्य पत्रकारो को मैने यही काम करते स्वयम देखा है .यह सच है वह मज़ाक नही कर रहा था . लाइजनर है वह .....
    मेरे पिताजी जब सांसद थे उस समय रसायन मंत्रालय मे एक टेन्डर था जिसमे तीन बिट थी और तीनो के प्रतिनिधी उस समय २५ -२५ लाख रुं दे रहे थे सभी कमेटी की सांसदो को . इस मसले को उठाने पर मेरे पिताजी के खिलाफ़ विशेषाधिकार नोटिस लाया गया था संसद में तत्कालीन मंत्री के द्वारा

    ReplyDelete
  25. dhiru singh ji...achhi misaal dee aapne. patrkaar bhee dalaal ho gaye hain. kuchh paise le kar dalaalee kar rahe hain to kuchh chup rah kar.apne pitaa ji ke us anubhav ke baare mein vistaar se likhte to achhaa rahta.

    ReplyDelete
  26. मैंने आपके पास इन्हें भेजा है.... इन लोगों का अपने घर पर दीवाली ( 5 Nov 2010) शुक्रवार को स्वागत करें.
    http://laddoospeaks.blogspot.com/

    ReplyDelete
  27. रविश सर प्रणाम ...

    उस मोटे हंसमुख रिश्व्तमंद....हस्तरेखाशास्त्री...की तरह न जाने कितने निर्भीक भ्रष्ट ..भटक रहे है ..देश के लिए दुआ ही की जा सकती है ...सर वो महानुभाव साल में तीन सौ विमान यात्राएं करते है...कही फिर ना मिल जाये ..दस्ताने पहन कर हवाई यात्रा कीजियेगा ....:)
    शुभ दीपावली

    ReplyDelete
  28. रविश भाई कभी सोने के गेहुं की रोटी खाई है ? बेचारे धीरुभाई खुब कमाया , कैसे कमाया अभिषेक " गुरु " ने दिखाया। पचपन के होते लकवा मार गया जिवनपर्यंत ठीक नही हो पाया। भ्रष्टाचार एक छुआछुत की बिमारी है जो बच गया वह आत्मा के संग आनंद मग्न है। जो ग्रसित हो गया उसके लिए महंगे अस्पताल हैं पुरी जिंदगी ईलाज कराओ। हां हार्ट अटैक बहुत खराब बिमारी है कब छापा पडा और गई जान । आपका ब्लाग है मजेदार ।

    ReplyDelete
  29. जय माता दी ,
    आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये....

    माँ लक्ष्मी सदैव आप पर अपनीकृपा दृष्टि बनाये रखे यही कामना है....

    दीपावली रौशनी का त्योहार है..आइये कुछ ऐसा करें जिससे सबकी की जिंदगी रोशन हो जाये....

    शुभ दीपावली......

    ReplyDelete
  30. Bhai, Tum to mast lucky ho.Saare ke Saare be-imaan log tumhe hi milte hain apna kachha chittha sunane...Khair jo bhi ho ,Article masaledaar thi..

    ReplyDelete
  31. करप्शन इस सिस्टम में लुब्रीकेंट की तरह काम करता है । 1999 में जब मैं मैट्रिकुलेट हुआ था, तब लैंडलाइन कनेक्शन के लिए एक किरानी ने पचास रुपये मांगे थे (किसी को रिश्वत देने का यह पहला अनुभव था) और छह साल बाद अपर समाहर्ता स्तर के एक अधिकारी ने बाताया कि उसे अपने आका मंत्री को जिले से एक करोड़ वसूल कर देने हैं । इसी सितम्बर में एनआरईपी महकमे के एक एकाउंट्स क्लर्क ने बाताया कि उसका एक पर्सेंट का कमीशन बनता है और महीने में उसके टेबुल पर से डेढ़ से दो करोड़ के बिल निपटाए जाते हैं । सुशासन में उसके पौ बारह थे, क्योंकि अब फंड नहीं लौटता ।
    सर, यह सिस्टम इसी तरह से काम करता है । पब्लिक मनी के मिसयूज का एक मामला बता दीजिए जहां किसी की जिम्मेदारी तय की गई हो, किसी को सजा मिली हो, अपराधी की संपत्ति कुर्क की गई हो । वैसे इस शब्द पर मुझे एतराज है, बेटी की शादी के वक्त हम लड़का सरकारी नौकरी वाला खोजते हैं, उसकी ऊपरवायली इनकम के बारें में जानना चाहते हैं । करप्शन को हमने सामाजिक स्वीकृति दी है और हमारा सारा संघर्ष इस सिस्टम में अपनी हिस्सेदारी को लेकर है ।

    ReplyDelete
  32. sir, ho na ho ak cheez samjh me aa gayi ki paisa vyakti ko bada bana ta hai wo chahe achai me ya burai me ...!!!

    ReplyDelete
  33. A magical narration of todays society in such a smooth manner is an art... And you are a master in this art.. Thankyou sir, for holding the torch of hope.. Apke articles ko samajhne ke bad ek ashawadi soch prabal rehti hai..

    ReplyDelete