आज तक से मिलाइये घड़ी। 6 बजे की खबरें ठीक 6 बजे। देखिए आज शाम ठीक 6 बजे। दोपहर में भी चल रहा था कि 2 बजे की ख़बरें 2 बजे। आज बहुत दिनों बाद इस तरह का फ्लैश देखा तो मन गदागद हो गया। कोई अगर तीन महीने बाद अमरीका से लौटा हो और हिन्दी न्यूज चैनल देख रहा हो तो चकरा जाएगा। एक चैनल कहता है कि 2 बजे की ख़बरें 1:57 पर देखिये। कोई चैनल यह कह रहा है कि 2 बजे की ख़बरें 2 बजे देखिये। पूछेगा ही कि हो क्या रहा है। 2 बजे की खबर 2 बजे नहीं देखते हैं तो कब देखते हैं और अब क्यों कह रहे हैं कि इस बजे की ख़बर इसी बजे देखिये। पता नहीं हिन्दी न्यूज चैनलों के इस टाइम ज़ोन को बदलने की शुरूआत किस चैनल ने की, इसकी सूचना नहीं है। मगर लोग कहते हैं कि तीन मिनट पहले खिसकाने की शुरूआत आज तक ने ही की थी। शुरू में 9 बजे की ख़बरें एक मिनट पहले आने लगी। फिर धीरे-धीरे टीआरपी पंडितों ने कहीं से फार्मूला निकाला कि हम दो मिनट पहले ही शुरू कर देते हैं तो इस खेल में और इसकी चपेट में सारे चैनल आ गए। मुझे भी अपनी रिपोर्ट का वक्त बताने में तकलीफ होती है। लोगों को 9:28 बजे का समय बोध कराते यानी रटाते-रटाते थक गया हूं। अगर आज तक के इस प्रभाव में ये तकलीफ दूर हो जाए तो खुशी होगी। वर्ना मैंने तो इस उम्मीद में इसी ब्लॉग पर लेख दिया था कि जल्दी ही 2 बजे की ख़बरें 1:30 बजे होने लगेंगी। पर हिन्दी न्यूज़ चैनलों की एक सबसे बड़ी ख़ूबी पर किसी की नज़र नहीं गई है। वो ख़ूबी यह है कि यहां हर बुराई अस्थाई है। अस्थाई बुराइयों का ऐसा सिलसिला है जो टूटता नहीं बल्कि स्वरूप बदलता रहता है।
तो आज तक पर नज़र पड़ते ही मुझे दो,तीन और चार बजे जैसे समय बोध की सम्मान वापसी पर खुशी हुई। किसी ने बताया कि आज तक ने यह भी कहा कि सोच कर देखिये कि अगर दो बजे की फ्लाईट तीन मिनट पहले उड़ जाए तो क्या हो। अगर वाकई ऐसा चला है तो इस आइडिया के अन्वेषक को बधाई। काश पहले ही सोच कर सोच लिया गया होता। ट्रको पर लिखा होता है सोच कर सोचो साथ क्या जाएगा। चलिये अब ख़बरों की उड़ान तीन मिनट पहले शुरू नहीं होगी। यह सब बदलाव साबित करते हैं कि टीआरपी और उसका अध्ययन-विश्लेषण पूरा फ्राड मामला है। एक्ज़िट पोल की तरह। काश इसे कोई चुनाव आयोग टाइप की संस्था बंद करवा देती। वैसे स्वीस कंपनी के साथ मिलकर एक नई घड़ी बनानी की मेरी योजना पर पानी फेर दिया है आज तक ने। मैं एक ऐसी घड़ी बनवा रहा था जिसमें 12 की जगह 11:57 और 9 की जगह 8:57 लिखा होता। दुनिया की पहली घड़ी होती तो हिन्दी न्यूज़ चैनलों के हिसाब से होती। ख़ैर। कोई पहली बार नहीं है जब कोई सपना टूटा हो।
उम्मीद की जानी चाहिए कि परम अनुकरणीय आज तक की इस पहल का सब अनुकरण करेंगे। उसका असर मेरी रिपोर्ट के समय पर भी होगा। IBN-7 पर तो एक विज्ञापन भी देखा। न धोनी न सहवाग। देखिये शाम 6:30 बजे। मेरी खुशी और दुगनी हो गई। IBN-7 ने यह नहीं कहा कि देखिये शाम 6:27 बजे। लेकिन स्क्रोल के स्पेस पर चल रहा था नो एंट्री-6:27 बजे। मेरी खुशी उतर गई। थोड़ा तो वक्त लगेगा वक्त को सुधरने में। इंतज़ार कर लेंगे। इंडिया टीवी पर लेख लिखे जाने के वक्त फ्लैश आ रहा था-गंभीर बेच रहे हैं-7बजे। पता नहीं तीन मिनट पहले ही बेचने लगे या फिर ठीक सात बजे से बेचने लगे। देख नहीं सका। वैसे हिन्दी चैनलों के बीच नकल को लेकर हमेशा से स्वस्थ प्रतियोगिता रही है। मैंने कभी नहीं सुना कि कोई चैनल दूसरे चैनल को डांट रहा हो कि स्पीड न्यूज़ मैंने शुरू की तो आपने नकल क्यों की? बल्कि सब इस बात में खुशी होते हैं कि देखा नकल हो रही है,मेरा आइडिया सही था। इसीलिए हम अलग उत्पाद की खोज सिर्फ अपने लिए नहीं करते,औरों के लिए भी करते हैं। किसी बिजनेस में आपने ऐसी स्वस्थ प्रतियोगिता देखी है?
जल्दी ही मैं एनबीए नाम की संस्था से मांग करने वाला हूं कि न्यूज़ चैनलों को ट्रैफिक रेगुलेटर की भी ज़रूरत है। कुछ ख़बरों की रफ्तार इतनी तेज हो चुकी है कि चेतना के स्तर पर दुर्घटना होने का ख़तरा है। स्पीड न्यूज़ की रफ्तार तय होनी चाहिए। जब कारों के लिए स्पीड ब्रेकर है तो न्यूज़ के लिए क्यों न हो। निर्बाध गति से खबरों की रफ्तार नहीं होनी चाहिए। स्पीड न्यूज़ में लगने वाले क्लच ब्रेक और रगड़ खाते चक्कों की आवाज़ से उत्तेजना फैलती है। स्पीड न्यूज़ देखने के बाद हो सकता है कि कोई अपनी कार की रफ्तार तीन गुनी तेज़ कर दे। सारी दूरियां तीन मिनट में तय कर लेने के लिए। संपादक योग शक्ति से अपनी क्षमता का विकास कर लें। तीन मिनट में तीन सौ खबरों पर फैसला देने का। उप संपादक और संवाददाता तीन सेकेंड में तीस ख़बरों के निर्देश सुनने और समझने की क्षमता का विकास कर लें। नहीं कर सकते हैं तो मुझसे कहिए। मैं आईआईटी रूड़की जाकर लिप्स्टिक से एक न्यूज़ मानव तैयार करता हूं। जो फिजिक्स को भी बदल देगा कि खबरों की रफ्तार प्रकाश और ध्वनि से भी तेज़ होती है। क्या करें? हिन्दी न्यूज़ चैनलों के पास वक्त कम है। धीरज भी कम है। उन्हें सुपर सोनिक स्पीड की तलाश है ताकि तीन हज़ार ख़बरें एक ही मिनट में निपटा कर स्वर्ग और सेक्स जैसे विषयों में वक्त लगा सकें। इसके लिए टाइम और स्पीड दोनों ज़रूरी हैं। वैसे मैं 2010 को हिन्दी न्यूज़ चैनलों के सुपर-सोनिक वर्ष के रूप में मनाना चाहता हूं।
(लिप्स्टिक का संदर्भ यह है कि रूड़की में एक प्रतियोगिता हो गई। लड़कों ने लड़कियों के होठों पर अपने दांतों के बीच दबी लिप्स्टिक लगा दी,न्यूज़ चैनलों ने मार कर दिया,कालेज प्रशासन ने लिप्स्टिक रोगन प्रतियोगिता में शामिल अधर-द्वय को सस्पेंड कर दिया,बहुत नाइंसाफी है)
महान हैं इस देश के चेनल...इनकी वजह से हर चीज पीछे जा रही है...खासकर मानवीय संस्कार और मर्यादा आदम युग में तो पहुँचने वाली है ...IIT रूडकी में छात्रों द्वारा भडुआगिरी को कई चेनल इनोवेटिव गेम के रूप में प्रचारित कर सम्मानित करने में भी पीछे नहीं रहे...रवीश जी कुछ तो कीजिये...आप जैसे पत्रकारों को पत्रकारिता के गिरते स्तर को बचाने के लिए सक्रियता से काम करना होगा ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है रविश जी आपने । न्यूज़ चैनल ने आज कल यह एक नया नाटक शोरू कर दिया है.
ReplyDeleteaccha laga.
ReplyDeleteजिस युग में हर क्षेत्र में मुख्य मुद्दा लाभ और हानि ही रह जाए तो कुछ भी हो सकता है !!
ReplyDeleteघड़ी ही बदली है, जाने वक्त कब बदलेगा...
ReplyDeletenahi ....inki ghadi samay badlega ...........
ReplyDeleteअच्छा है ना सर। अच्छा लिखा है। समय के पाबंद तो मुख्य समाचार (हेडलाइंस)देख ही नहीं सकते। अक्सर मैं भी नहीं देख पाता। क्या करूं। दो बजे की खबरें दो बजे ही देखने का आदी जो हूं। खैर ठीक है।
ReplyDeletejees din ek channel dusre channel ka copy karna chhod dega usi din sab ki Ghadi thik ho jayegi ...
ReplyDeleteravish ji ,
ReplyDeleteaapko hi kya ye to ham sabhi ke liye khushi ki bat hai.kahte bhi hain ki yadi subah ka bhoola sham ko ghar laut aaye to use bhoola nahi kahte.
lekin roorki ki ghatna nindniye hai aur media ko aisee khabron ko khas tool nahi deni chahiye.
sahi hai...lekin kisi parivartan ki ummed ki jaye...?
ReplyDeletebina ankussh ke hanthi bhi aadmi ke liye khatarnak sabit ho sakta hai...warna bahut kaam aati hai uski takat...
ravish ji ye TRP walo ne nayi chabi ghumayi hai..
ReplyDeleteTRP ka bhoot jo na karwaye wohi kam hai
ReplyDeleteरवीश जी सच कहा आपने जब मुझसे कहा गया खबरो को उनके तयशुदा वक्त से पहले शुरू करने के लिए तो मुझे बहुत कष्ट हुआ आखिर कब तक हम गलघोटू प्रतियोगिता की दौड़ में बिना भला बुरा सोचे दौड़ते चले जाएंगे...मै हमेशा से ही इस बात का पक्षधर रहा हूं कि एक नियामक संस्था जरूर होनी चाहिए समाचार चैनल की...हम खबरो के नाम पर कुछ भी परोस रहे है जनता हमे गाली देती जा रही है फिर भी मजबूर है हमें देखने के लिए...हम दर्शक को गिनी पिग समझ कर उस पर अपने अविष्कारो का असर देखने में लगे है...खैर उम्मीद करनी चाहिए एनबीए कुछ कर दिखाएगी
ReplyDeleteआपका भी कार्यक्रम हम 9:28 पर खोलकर बैठ गये थे। यह समझ नहीं पाये कि ऐसा समयबोध क्यों?
ReplyDeleteकुछ ख़बरों की रफ्तार इतनी तेज हो चुकी है कि चेतना के स्तर पर दुर्घटना होने का ख़तरा है।..बहुत सही पञ्च मारा है आपने.. अच्छा लेख.
ReplyDeleteSir... Jo bhi ho... Hame phir bhi 9.28 minute ka intezar hota hai.....
ReplyDeleteHaa ye baat sach hai ki yaad 9.30 hi rehta hai.... lekin FB ke karan ab 9.28 minute pe hi hamare lie 9.30 baj jate hai...
Aam Logo ko bhale aur kahi prathmikta na milti ho unki report ko apke channel walo ne 2 minute ki tarakki zaror de di hai! :)
Ravish Jee,
ReplyDeleteMain is sandarbh men ye kahna chahta hoon ki aaj kal news program me loud music vishesh roop se dham dham ka prayog bahut ho gaya hai jo bahut hi piradayak hai khaskar un logon ke liye jo unchi awaj se ghabra jate hain.......Ek channel hai News X jo shantipurwak news sunate hain lekin wo mere Airtel Digital TV par uplabdh nahi hai.
Regards / Vinay / Patna
"हिन्दी न्यूज़ चैनलों के पास वक्त कम है। धीरज भी कम है। उन्हें सुपर सोनिक स्पीड की तलाश है ताकि तीन हज़ार ख़बरें एक ही मिनट में निपटा कर स्वर्ग और सेक्स जैसे विषयों में वक्त लगा सकें"।
ReplyDeleteरुडकी के अभियंताओं को ही इसका टेंडर देना पड़ेगा, प्रायोजन बौलिवुड से मिल जाएगा.
आप जैसा व्यक्ति जिसके लिये ये रोज़गार है उसका यह हाल है तो सोचिये आम जनता क्या करे, आपके इस पागलखाने को देखकर, जिसे आप न्यूज़ चैनल कहते हैं।
ReplyDeleteआज जब सब तुर्रम खाँ पत्रकारों की कमीजें कीचड़ सनी हैं तो इनसे कुछ भी उम्मीद हमें तो नहीं हैं।
एन बी ए ....हा..हा..हा... उससे उम्मीद है आपको? कमाल है?
मै देखरहा था इस संस्था के बारे में इन्डिया टीवी के "महान व्यक्तित्व" उसके जीवनपर्यंत सद्स्य हैं... यह देखकर तुरतं बन्द कर दिया इस वेब साइट और जोर से कहा ....धन्य प्रभु वाह! वाह!!
सारे चैनल भेड़ चाल करते हैं आपकी N D टी V कौनी सी अछूती है इसका अपने जिक्र नहीं किया हाँ ये भेड़ चाल दूरदर्शन पर लागू नहीं होता है
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ReplyDeleteravish ji,
ReplyDeleteaap 11:28 par hi kyon aate hai aur main ye bhi janna chahunga ki ek patrakaar apna saara gyaan 260 rs. ki kitaab mein baanchta hai...
well aapse umeed patrakarita ke khestra mein aa rahi girawat ko rokne mein awwal rahne ki hai...
apni report mein kataksha jaari rakhen.ho sake toh apne karyakramon ki aawriti bhi badhayea........
TARUN JHA
बहुत अच्छा लिखा है सर आपने, जब से आपका एक आर्टिकल क्या पढ़ा बस आपके शब्दों की जादूगरी का कायल हो गया हूं... अब आपके हर एक आर्टीकल को बढ़े ही शालीनता के साथ पढ़ता हूं।
ReplyDeleteइस लेख ने स्पीड न्यूज़ और तीन मिनट पहले हेडलाइंस चलाने के मेरे विश्वास को धो कर रख दिया। ये विश्वास कुछ दिन पहले से ही शुरू हुआ था। एक उस लाइन ने जिस में आपने लिखा कि सारी खबरों को जल्दी-जल्दी में निपटा दिया जाए ताकि स्वर्ग और सेक्स पर ज्यादा समय दिया जा सके। शायद इसीलिए स्पीड न्यूज़ का फॉर्मेट लाया गया। पूरी तरह तो नहीं लेकिन ये सही भी हो सकता है। आप सही हैं
ReplyDeleteapni apni dhapli, apna apna raag. IBN 7 wale to daava karte hain ki ye bulletin dekh lijiye sari khabren maloom ho jayengi. fir hum akhabaar walon ka kya hoga?
ReplyDeleteapni apni dhapli, apna apna raag. IBN 7 wale to daava karte hain ki ye bulletin dekh lijiye sari khabren maloom ho jayengi. fir hum akhabaar walon ka kya hoga?
ReplyDeletebahut sahi bat kahi apne .
ReplyDeletebadhai