अचानक से हिन्दी न्यूज़ चैनलों पर स्पीड न्यूज का हमला हो गया है। कार के एक्सलेटर की आवाज़ लगाकर हूं हां की बजाय ज़ूप ज़ाप करती ख़बरें। टीवी से दूर भागते दर्शकों को पकड़ कर रखने के लिए यह नया फार्मूला मैदान में आया है। वैसे फार्मूला निकालने में हिन्दी न्यूज़ चैनलों का कोई जवाब नहीं। हर हफ्ते कोई न कोई फार्मेट लांच हो जाता है। कोई दो मिनट में बीस ख़बरें दिखा रहा है तो कोई पचीस मिनट में सौ ख़बरें। ये दनादन होते दर्शकों के लिए टनाटन ख़बरों का दौर है या अब दर्शक को ख़बर दिखा कर उसका दिमाग भमोर दिया जा रहा है। हिन्दी न्यूज़ चैनलों की प्रयोगधर्मिता पर अलग से शोध होना चाहिए। अच्छे भी और बुरे भी। प्रस्तिकरण के जितने प्रकार हिन्दी चैनलों के पास हैं उतने इंग्लिश वालों के पास नहीं हैं।
अगर ख़बर की कोई कीमत है तो वो ऐसी क्यों है कि आप कुछ समझ ही न पायें और ख़बर निकल जाए। प्लेटफार्म पर खड़े होकर राजधानी निहार रहे हैं या घर में बैठकर टीवी देख रहे हैं। माना कि टाइम कम है। लोगों के पास न्यूज देखने का धीरज कम हो रहा है लेकिन क्या वे इतने बेकरार हैं कि पांच ही मिनट में संसार की सारी ख़बरें सुन लेना चाहते हैं। ऐसे दर्शकों का कोई टेस्ट करना चाहिए कि दो मिनट में सत्तर ख़बरें देखने के बाद कौन सी ख़बर याद रही। पहले कौन चली और बाद में कौन। इसे लेकर हम एक रियालिटी प्रतियोगिता भी कर सकते हैं। समझना मुश्किल है। अगर दर्शक को इतनी जल्दी है दफ्तर जाने और काम करने की तो वो न्यूज़ क्यों देखना चाहता है? आराम से तैयार होकर जाए न दफ्तर। सोचता हूं वॉयस ओवर करने वालों ने अपने आप को इतनी जल्दी कैसे ढाल लिया होगा। स्लो का इलाज स्पीड न्यूज है।
अगर दर्शक ज़ूप ज़ाप ख़बरें सुन कर समझ भी रहा है तो कमाल है भाई। तब तो इश्योरेंस कंपनी के विज्ञापन के बाद पढ़ी जाने वाली चेतावनी की लाइनें भी लोग साफ-साफ सुन ही लेते होंगे। पहले मैं समझता था कि स्पेस महंगा होता है इसलिए संवैधानिक चेतावनी को सिर्फ पढ़ने के लिए पढ़ दिया जाता है। इश्योरेंस...इज...मैटर...ब..बबा..बा। मैं तो हंसा करता था लेकिन समझ न सका कि इसी से एक दिन न्यूज़ चैनल वाले प्रेरित हो जायेंगे। जल्दी ही स्पीड न्यूज़ को लेकर जब होड़ बढ़ेगी तो चेतावनी का वॉयस ओवर करने वाला कलाकार न्यूज़ चैनलों में नौकरी पा जाएगा। जो लोग अपनी नौकरी बचा कर रखना चाहते हैं वो दनदनाहट से वीओ करना सीख ले। एक दिन मैंने भी किया। लगा कि कंठाधीश महाराज आसन छोड़ कर गर्दन से बाहर निकल आएंगे। धीमी गति के समाचार की जगह सुपरफास्ट न्यूज़। यही हाल रहा तो आप थ्री डी टीवी में न्यूज़ देख ही नहीं पायेंगे। दो खबरों के बीच जब वाइप आती है,उसकी रफ्तार इतनी होगी कि लगेगा कि नाक पर किसी ने ढेला मार दिया हो।
न्यूज़ संकट में है। कोई नहीं देख रहा है या देखना चाहता है तभी सारे चैनल इस तरह की हड़बड़ी की होड़ मचाए हुए हैं। अजीब है। अभी तक किसी दर्शक ने शिकायत नहीं की है कि एक चैनल के सुपर फास्ट न्यूज़ देखते हुए कुर्सी से गिर पड़ा। दिमाग़ पर ज़ोर पड़ते ही नसें फट गईं और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया। स्पीड न्यूज की मात्रा हर चैनल पर बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं पूरे स्क्रीन पर ऊपर-नीचे हर तरफ लिख दिया गया है। ये सब न्यूज़ चैनलों की ख़बरों के लिए बाज़ार खोजती बेचैनियां हैं। ख़बरें कब्र से निकल कर शहर की तरफ भागती नज़र आती हैं। लेकिन आपने देखा होगा। ख़बरों में कोई बदलाव नहीं आया है। ख़बरें नहीं बदलती हैं। सिर्फ फार्मेट बदलता है।
इतना ही नहीं इसके लिए सारे कार्यक्रमों के वक्त बदल रहे हैं। अब साढ़े आठ या साढ़े नौ या नौ बजे का कोई मतलब नहीं रहा। वैसे ये छोटा था कहने पुकारने में। नया टाइम है- आठ बज कर सत्ताईस मिनट,नौ बजकर अट्ठाईस मिनट। नौ बजे रात से तीन मिनट पहले ही हेडलाइन चल जाती है। कई चैनल 8:57 पर ही हेडलाइन रोल कर देते हैं तो कुछ एक मिनट बाद। हिन्दी चैनलों की प्रतियोगिता हर पल उसे बदल रही है। समय का बोध भी बदल रहा है। यह समझना मुश्किल है कि जिस दर्शक के पास ख़बरों के लिए टाइम नहीं है वो नौ बजने के तीन मिनट पहले से क्यों बैठा है न्यूज़ देखने के लिए। अगर ऐसा है तो हेडलाइन एक बुलेटिन में दस बार क्यों नहीं चलती। तीन-चार बार तो चलने ही लगी है। देखने की प्रक्रिया में बदलाव तो आया ही होगा जिसके आधार पर फार्मेट को दनदना दनदन कर दिया गया है। यही हाल रहा तो एक दिन आठ बजकर पचास मिनट पर ही नौ बजे का न्यूज़ शुरू हो जाएगा। लेकिन नाम उसका नौ बजे से ही तुकबंदी करता होगा। न्यूज़ नाइन की जगह न्यूज़ आठ पचास या ख़बरें आठ सत्तावन बोलेंगे तो अजीब लगेगा। एकाध दांत बाहर भी आ सकते हैं।
ख़बरों के इस विकास क्रम में टिकर की मौत होनी तय है। टॉप टेन या स्क्रोल की उपयोगिता कम हो गई है। कुछ चैनलों ने रेंगती सरकती स्क्रोल को खत्म ही कर दिया है। कुछ ने टॉप टेन लगाकर ख़बरें देने लगे हैं। यह स्पीड न्यूज़ का छोटा भाई लगता है। जैसे चलने की कोशिश कर रहा हो और भइया की डांट पड़ते ही सटक कर टाप थ्री से टाप फोर में आ जाता हो। टाइम्स नाउ ने हर आधे घंटे पर न्यूज़ रैप के मॉडल में बदलाव किया है। इसमें पूरे फ्रेम में विज़ुअल चलता है। ऊपर के बैंड और नीचे के बैंड में न्यूज़ वायर की शैली में ख़बरें होती हैं। अभी तक बाकी चैनल सिर्फ टेक्स्ट दिखाते थे या फिर स्टिल पिक्चर। कुछ हिन्दी चैनल टाइम्स नाउ से मिलता जुलता प्रयोग कर चुके हैं।
इतना ही नहीं न्यूज़ चैनल कई तरह की बैशाखियां ढूंढ रहे हैं। फेसबुक पर मैं खुद ही अपने शो की टाइमिंग लिखता रहता हूं। एनडीटीवी का एक सोशल पेज भी है। वहां भी हम समय बताते हैं। स्टोरी की झलक देते हैं। अब तो रिपोर्टर भी अपनी स्टोरी का विज्ञापन करते हैं। मेरी स्टोरी नौ बजे बुलेटिन में देखियेगा। इतना ही नहीं ट्विटर पर नेताओं और अभिनेताओं के बयान को भी ख़बर की तरह लिया जा रहा है। ट्विटर के स्टेटस को अब पैकेज कर दिखाया जा रहा है। ट्विटर पर राजदीप अपने चैनल के किसी खुलासे की जानकारी देते हैं। मैं ख़ुद ट्विटर पर अपने शो की जानकारी देता हूं। एक अघोषित संघर्ष चल रहा है। कंपनियां आपस में होड़ कर रही हैं। उसके भीतर हम लोग अपनी ख़बरों को लेकर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। फेसबुक का इस्तमाल हो रहा है। कई चैनल अपना कार्यक्रम यू ट्यूब में डाल रहे हैं। मैंने भी अपने एक एपिसोड का प्रोमो यू ट्यूब में डाला था। हर समय दिमाग में चलता रहता है कि कैसे अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचू। कोई तो देख ले। कई बार ख्याल आता है कि एक टी-शर्ट ही पहन कर घूमने लगूं,जिसके पीछे शो का नाम और समय लिखा हो। कुछ स्ट्रीकर बनवाकर ट्रक और टैम्पो के पीछे लगा दूं। यह भी तो हमारे समय के स्पेस है। जैसे फेसबुक है,ट्विटर है। स्टेटस अपडेट तो कब से लिखा जा रहा है। ट्रको के पीछे,नीचे और साइड में। सामने भी होता है। दुल्हन ही दहेज है या गंगा तेरा पानी अमृत। नैशनल कैरियर।
कुल मिलाकर न्यूज़ चैनल के क्राफ्ट में गिरावट आ रही है। कैमरे का इस्तमाल कम हो गया है। खूब नकल होती है। कोई चैनल एक फार्मेट लाता है तो बाकी भी उसकी नकल कर चलाने लगते हैं। हिन्दी न्यूज़ चैनलों ने इस आपाधापी में एक समस्या का समाधान कर लिया है। अब उनके लिए नैतिकता समस्या नहीं है। न ही स्पीडब्रेकर। बस यही बाकी है कि न्यूज़ न देखने वाले दर्शकों की पिटाई नहीं हो रही है। नहीं देखा। मार त रे एकरा के। स्पीड न्यूज़ की तरह भाई लोग दर्शक को ऐसे धुन कर चले जायेंगे कि उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि स्पीड न्यूज़ में आकर चले भी गए। दूसरे दर्शक भी नहीं जान पायेंगे कि ये अपने ही किसी भाई के पीट जाने की ख़बर अभी-अभी रफ्तार से निकली है। दर्शक पूछते फिरेंगे कि भाई अभी कौन सी ख़बर आने वाली है और कौन सी गई है। खेल वाली निकल गई क्या। ऐसा भी होने वाला है कि पूरा न्यूज़ फास्ट फारवर्ड में चला दिया जाएगा। किचपिच किचपिच। समझें न समझें मेरी बला से। दर्शक बने हैं तो लीजिए और बनिए। और पांच लाइन क्यों पढ़े। चार शब्दों की एक ख़बर होनी चाहिए। मनमोहन सिंह नाराज़। क्यों और किस पर ये दर्शक का जाने बाप। स्पीड न्यूज़ है भाई। इतना बता दिया कम नहीं है। आप देख रहे हैं हिन्दी पत्रकारिता का दनदनाहट काल।
रविश जी, बहुत खूब लिखा है,
ReplyDeleteलेख पढ़कर हस्ते हस्ते बुरा हल था. सोच कर ही हंसी आती है की आगे क्या होगा इनका.
एक सवाल है आपसे ... आप इतना बुरा भला लिखते है मीडिया के बारे में .. क्या आपसे NDTV वाले या फिर दुसरे आपके सहकर्मी नहीं पूछते... कभी ndtv वालों ने नोतिसे नहीं दिया क्या ????
गौरव
रवीश जी, हल्के फुल्के अंदाज में बढ़िया पोस्ट है।
ReplyDeleteवैसे, मेरा कहना है कि ऐसे भी दिन होते थे कभी जब आप सुबह सुबह चाय की दुकान पर बैठे-बैठे अखबार पढ़ रहे हों और बगल में ही रेडियो कहता - एम् आकाशवाणी...संप्रतिवार्ता: श्रुयंताम्....प्रवाचक: बलदेवानंद सागर:
....
संस्कृत न समझ पाने पर भी इस तरह के समाचार सुनने का अलग ही मजा आता है। धीरे धीरे पांच मिनट में दुनिया का समाचार.....तब कोई किसी प्रकार घिच पिच नहीं....पिच पिच नहीं....।
मंद मंद सुनते रहो...उसी में बहसियाते रहो - अबे ये महोदयेन कह रहा हैं ....अबे ये महाभागेन क्या होता है :)
हांलाकि समाचार अब भी रेडियो पर उसी तरह आते हैं लेकिन हम वो क्या है न सो कॉल्ड शहरी हो उठे हैं इसलिए सुबह सुबह फास्ट फास्टर फास्टेस्ट होने की बीमारी पाल बैठे हैं....सो जिप जाप झूपस्त होना.....ये भी एक फॉर्मट ही है।
वैसे देहात में जहां लाइट वाइट का प्रॉब्लम होता है वहां जाने पर तो याद भी नहीं रहता कि समाचार देखे कितने दिन गुजर गए....कोई फिक्र ही नहीं।
उन लोगों के लिए ब्रेकिंग न्यूज माने कुच्छो नाहीं....स्टूडियो में कितनी भी हाय तौबा मची हो....समाचार पर समाचार हांफते हुए दिए जा रहे हों....लेकिन मजाल है जो खेत के मेड़ पर बैठ कर बतियाते घूरहू एण्ड कतवारू जी की सुरती आधे घंटे से पहले खतम हो....पंदरह मिनट तो सुरती औऱ चूना को नरम करने में लग जाएगा औऱ इधर स्टूडियो में ब्रेकिंग न्यूज वाला समाचार तेजी से पढ़ा जा रहा होगा जूप जैप झूपस्त स्टाईल में -
प्रधानमंत्री ने आज किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की......बाढ़ राहत केंद्र के लिए अलग सहायता राशि दी जा रही है....पता चला घुरहू एण्ड कतवारू कंपनी ने अब जाकर सुरती मुंह में डाली है :)
ब्रेकींग न्यूज सिर्फ उनके लिए होता है जो इसे वाकई ब्रेकींग मानते हैं वरना तो ऐसी खबरों को लोग उसी तरह लेते हैं जैसे बाकी खबरें।
अभी दो-तीन दिन पहले आजतक पर देखा - पहली खबर ब्रेकिंग न्यूज - राहुल गाँधी ने प्लास्टिक की पन्नी कचरे के डब्बे में डाली।
अगले ही पल दूसरी ब्रेकिंग न्यूज थी - सचिन तेंदुलकर ने मराठी फिल्म देखी।
ऐसी ब्रेकई को लम्मे से सलाम :)
पोस्ट में मुद्दा बढि़या उठाया है।
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ReplyDeleteपत्रकारिता
ReplyDeleteमीडिया
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
को जूते की तरह लाठी में लटकाए भागे जा रहे हैं सभी
न्यूज़ चैनल
सीना फुलाए
रवीश जी!
रवीश,मैं इस मसले पर लंबे समय से लिखने की सोच रहा था। पिछले दिनों जब न्यूज 24 ने 15 मिनट में सौ खबरें शुरु की तो कसमसा गया था। मुझे मयूर विहार में केले बेचनेवाले का ध्यान आ रहा था। एक कहता है ले- 20 के बीस,दूसरा ले 20 के तीस,तीसरा ले 20 के दुगुना। अब पब्लिक गिनती देखे कि केला। यही हाल न्यूज चैनलों के उपर सैंकड़ा के हिसाब से खबरों की हांक लगानेवालों का है। ऑडिएंस गिनती के आंतक में फंस जाती है। उनसौ खबरों में मुश्किल से पांच भी याद रह जाए तो बहुत है। इधर एंकर जो है सांस न टूट जाए इसलिए कबड्डी-कबड्डी की दौड़ लगाए फिरते हैं।
ReplyDeleteरविश जी.. एक नया फॉर्मेट शुरू कीजये.. पलक झपकते ... ही ५०० खबरे
ReplyDeleteसही है! मरन तो श्रोता की है!
ReplyDeleteपांच दिन से चैनल खबर दिखा रहे हैं, यमुना खतरे के निशान से ऊपर!
ReplyDeleteहर शाम को हथिनी कुंड से छोड़ा गया पानी दिल्ली पहुंचकर तबाही मचानेवाला है. क्या दिल्ली डूब जाएगी! चैन से जीना है तो भाग जाओ!
वो तो भला हो मनीला के पुलिसवाले का, कुछ और देखने को मिल गया, लेकिन पत्रकारों के दुर्भाग्य से वह ड्रामा ज्यादा नहीं चला.
तीन मिनट में तीस ख़बरें ... जिसमें शामिल है भैंस से जीप टकराई, कांस्टेबल ने पचास रुपये की रिश्वत ली, कैटरीना ने कहा वह अभी भी सिंगल है, मुन्नी बदनाम हो गयी अपने जेठ के साथ नाच रही है.
और हर दो खबर के बीच तेजी से गुज़रती कार या बाइक की आवाज़. ऊपर से न्यूजरीडर का सुपरफास्ट सरपट बोलने का अंदाज़... कस्स्स्सम खुदा की, न्यूज़ देखना सचमुच बहुत मजेदार है.
Ravishji, sabse pahle to Gaurav Sab ka sawaal dohrata hoo... aapse prerna lekar maine bhi vaise hi imandari barti.. meri to naukri chali gaye....MNC ko vo rass nahi aaya....
ReplyDeletekher.... log yuh hi jutey uchalate bhir rahe hai...koi aapse kui nahi shikhta..
baharhal, ek aur shandar lekh ke liye badayiya. aapki bhasha vakai shandaar hai....
is sabse kisi ka koi nuksan ho na ho leking film jagat ka bahot nuksan hoga.......kyonki news presentation ka jo tarika hai o pura filmi ho gaya hai.....pata hi nahi chalta hai ki ..... ye news dekh rahe hain ya film ya phir prachar.....
ReplyDeletenice reporting from ravishji
thanx.
मैंने भी बहुत 'स्पीड' से पढ़ा आपका ये चिट्ठा... सही है भाई ..स्पीड का ज़माना है .. :))
ReplyDeleteरविशभाई.. दो पत्रकारों द्वारा उंझा (गुजरात) में किये 'पत्रकारिक काण्ड ' पर भी कुछ लिखे.. समस्या अत्यंत ही गंभीर है..
ReplyDeleteजब तक सोनिया गाँधी जैसे लोग अपने बेटे की भलाई के लिए पूरे देश को भ्रष्टाचार के नंगा खेल को देखने के लिए मजबूर करते रहेंगे , चेनल चलाने वाले पत्रकारिता को भ्रष्ट और कुकर्मी उद्योग पतियों के हाथ उस तरह बेचते रहेंगे जैसे एक बेश्या अपने शरीर को ग्राहकों के हाथ बेचती है ,अच्छे पत्रकार जीने की मजबूरी में ऐसे चेनलों में काम करने के लिए मजबूर होते रहेंगे ,प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर बैठा व्यक्ति भी अपनी भलाई के लिए देश के गरीब जनता को बेवजह के टेक्स से लहूलुहान करेंगे और देश को लूटने वाले भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारीयों के खिलाप कार्यवाही के तरफ सोचेंगे भी नहीं तब तक इस देश में अराजकता और कुव्यवस्था ही दिखेगी चाहे वो चेनलों में दिखे या संसद में या सड़कों पर | निगरानी और कार्यवाही के बिना तो सबकुछ ख़राब हो जाता है तो इतना बड़ा देश और समाज कैसे ठीक रह्सकता है जब उसकी निगरानी करने वाला कोई न हो लेकिन लूटने वाला हर साख पे बैठा हो ...इस देश की कुव्यवस्था के लिए इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद पर बैठा व्यक्ति और सोनिया गाँधी पूरी तरह जिम्मेवार है ,बांकी सब तो मोहरें है और बेचारी जनता की तो जीने की मजबूरी है ...जनता को सब बेबकूफ और भ्रमित बनाकर लूट रहें हैं ..
ReplyDeletebadhiya to aap likhte hee hai , par is patrikarita ka bhabhishay kya hai yah bhee samjhaye.. ek bat to yay hai ki ab darshak t.v. on rakhte hai par dekhte tabhee hai jab aur kam se fursat mile..
ReplyDeleteरवीश जी अब तो सोच रहा हुं कि जो नए लोग पत्रकार बनना चाहते है उन लोगों के हित के लिए एक फोरम बना लूं, और सम़झाइस दि जाए कि बहले ट्रेनिंग सत्र में सब्जी बेच कर के आओ ,फिर आप अधिक बेहतर कर लोगे
ReplyDeleteरवीश जी अब तो सोच रहा हुं कि जो नए लोग पत्रकार बनना चाहते है उन लोगों के हित के लिए एक फोरम बना लूं, और सम़झाइस दि जाए कि बहले ट्रेनिंग सत्र में सब्जी बेच कर के आओ ,फिर आप अधिक बेहतर कर लोगे
ReplyDeleteये एकदम ऐसा है जैसे ब्लू लाइन का कंडक्टर.....शाहदरा,सीलमपुर,विवेक विहार,आनंद विहार...........
ReplyDeleteaap twitter pe kab aa rahein hain :) Agar hain to link bhej dein...main follow karna chahta hoon.
ReplyDeleteख़बरों के इस नए फॉर्मेट की तुलना दस्त लगने से की जा सकती है . तेज़ और पतले . और तेज़ और पतले .
ReplyDeleteयहाँ पतलापन गुणवत्ता का प्रतीक है ( जो पतलेपन के साथ घटती जाती है).
जब विद्यार्थी थे तो ज्यादा गिटपिट करने वालों को कहा करते थे की उनके मुह को दस्त लग गए हैं.
यह आप पर है की इसे कैसे लेते हैं, हास्य के रूप में या विभत्सता के रूप में.
ख़बरों के इस नए फॉर्मेट की तुलना दस्त लगने से की जा सकती है . तेज़ और पतले . और तेज़ और पतले .
ReplyDeleteयहाँ पतलापन गुणवत्ता का प्रतीक है ( जो पतलेपन के साथ घटती जाती है).
जब विद्यार्थी थे तो ज्यादा गिटपिट करने वालों को कहा करते थे की उनके मुह को दस्त लग गए हैं.
यह आप पर है की इसे कैसे लेते हैं, हास्य के रूप में या विभत्सता के रूप में.
स्पीड न्यूज के जमाने में लेख भी स्पीड से लिखे जाने चाहिए....सांयययययययययययययययययययययय
ReplyDeleteरवीश सर आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रहते हुए...इसकी आलोचना कर रहे है...आप जिस पोस्ट पर है...आप ऐसा कर सकते है...क्योंकि आपने वो मुकाम हासिल कर लिया है जब आपसे इस बारे में कोई सवाल-जवाब नहीं करेगा...पर यहीं लेख अगर कोई छोटा पत्रकार लिख दे...तो हो सकता है उसे ऑगनाइजेशन छोड़ना पड़े। परंतू आपने जो पोस्ट लिखा है...बेहद ही सटीक सच्ची है। आपका पोस्ट पढ़ कर एक अंदर से कुछ अलग करने की इच्छा जागृत होती है। दिली ख्वाहिश है कि मैं कभी आपके साथ काम करूं।
ReplyDeleteनीतू
रवीश सर आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रहते हुए...इसकी आलोचना कर रहे है...आप जिस पोस्ट पर है...आप ऐसा कर सकते है...क्योंकि आपने वो मुकाम हासिल कर लिया है जहां आपसे इस बारे में कोई सवाल-जवाब नहीं करेगा...पर यहीं लेख अगर कोई छोटा पत्रकार लिख दे...तो हो सकता है उसे ऑगनाइजेशन छोड़ना पड़े। परंतू आपने जो पोस्ट लिखा है...बेहद ही सटीक सच्ची है। आपका पोस्ट पढ़ कर एक अंदर से कुछ अलग करने की इच्छा जागृत होती है। दिली ख्वाहिश है कि मैं कभी आपके साथ काम करूं।
ReplyDeleteनीतू
nitu,
ReplyDeleteavval to main kisi post pe nahi hun..doosra chhota barhaa patrkaar kuchh nahi hotaa hai. koi bhi likh saktaa hai.ek baat aur..aalochnaa ka space haasil karna hotaa hai. ye blog meraa niji site hai..is par main chaahe jo likhun...
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ReplyDeletebahut sahi likha hai apne ravish ji...mein khud ek reporter hu or kai bar upar se padne vale dabaav k kaaran aise stories par jana padta hai jo bilkul bedum hoti hai...lekin phala channel dikha raha hai to hum b dikhayenge ki daud mein bas jana padta hai
ReplyDeleteBahut kharab lagta hai news men itna jyada loud music sunkar, kabhi kabhi to airtel digital tv par all india radio ka samachar laga deta hoon ya net par bbc sun leta hun ruh ki khurak puri karne ke liye shanti se. Patna me kabhi kabhi ETV bale mil jate hain to tokte bhi hain ki kis sense se aap log murder news me bhi dham dham dhol bajate rahte hain lekin koun sunta hai, system nahi sudhrega.......
ReplyDeleteRegards / Vinay Rai
Patliputra, Vihar
excellent way of expression.
ReplyDeleteaaj kal hindi news waalo ko Ram naam se darr lagta hai..Bharkah dutt se puch le...lagta hai ki aaj kuch nahi bola to credibility naa khtam ho jaaye ek jaagruk insaan hone ki...woh mulayam ke statement se adhik advani ki baatie karte hai ki kaise woh 1 week se kuch nahi bola...Kashmir se pandito ke bhaga diya gaya lekin kisi ki aukat nahi hua ki iss ke deep me jaake baatie kare...lekin Ravish sir ek mediocre channel se compare kar ke kush hai...
ReplyDeleteऔर इन सब से ज्यादा चिडचिड़ाने वाली बात तब होती है जब एक ही न्यूज़ को दस तरीके से दिखाया जाता है. और वो भी बिना सर पाँव के होती है.
ReplyDeleteस्पीड न्यूज़ में तो १०० खबरे दिखने का वादा होता है, इसलिए एक ही खबर को १० तरीके से सुना देंगे...फिर मात्र १० खबर से इनकी १०० खबरे बन जाती है.
और इन सब से ज्यादा चिडचिड़ाने वाली बात तब होती है जब एक ही न्यूज़ को दस तरीके से दिखाया जाता है. और वो भी बिना सर पाँव के होती है.
ReplyDeleteस्पीड न्यूज़ में तो १०० खबरे दिखने का वादा होता है, इसलिए एक ही खबर को १० तरीके से सुना देंगे...फिर मात्र १० खबर से इनकी १०० खबरे बन जाती है.