एक गाने में बुलशिट आ गया है। बुलशिट बुलशिट। अक्षय कुमार पांव पटक कर जब बुलशिट बोलते हैं तो संगीत निकलता है। इंग्लिश वाइन की तरह इंग्लिश गालियां भी क्यूट लगती हैं। दिल्ली आकर बास्टर्ड और रास्कल से साक्षात्कार हुआ था। लेकिन इन गालियों से सांस्कृतिक सामाजिक संबंध न होने के कारण गाली विरोधी स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचती थी। कोई किसी को बास्टर्ड बोले या रास्कल बोले लगता था कि क्विन विक्टोरिया का मेडल ही होगा। बकने दो गालियां। ऐसा क्यों होता है कि इंग्लिश की गालियों पर प्रतिरोध कम होता है। हिन्दी की भदेस गालियां सर फोड़ देने के लिए प्रेरित करती हैं।
बचपने में एक शादी में गया था। तिलक के बाद औरतें नाम पूछ पूछ कर लाउडस्पीकर से गालियां दे रही थीं। मां-बहन स्तर की गालियां। भात के मौके पर खाया नहीं गया। जब भी मेरा नाम आता और सामूहिक स्वर में गालियां उच्चरित होते हुए लाउडस्पीकर से प्रसारित मेरे कानों तक पहुंचती तो डरता देख बड़का बाबूजी कहते थे, खा न। गाली तो आशीर्वाद है। यही समाज है समझो इसको। अंदर औरतें झूम रही थीं। खिलखिला रहीं थीं। हर नाम के साथ जो गालियां मर्दों को लौटा रही थीं उसका उत्सव देखने लायक था। मर्दों की बनाई गालियों को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर लौटाना। जैसे जैसे भात और पापड़ कड़क होते जा रहे थे औरतों के उत्साह भी बढ़ता जा रहा था. एक से एक गालियां। शरीर के सभी भौगोलिक प्रदेशों के नाम से गालियां। कहां कहां से तिलक का घटिया सामान घुसेड़ने से लेकर कुछ शालीन स्वर वाली गालियां भी थीं। किसी को बुरा नहीं लग रहा था। बाबूजी भीतर गए और बोले कि ठीक से गरियाईं रउवा लोगन। गाली में दम नहीं है। आइये हमारे यहां। देखिये हमारे यहां की गालियां।
अब ऐसे संस्कारों में मेरे लिए गाली वर्जना नहीं है। गांव में दुर्योधन मियां ब थीं। ब का मतलब पत्नी से है। दुर्योधन मियां की पत्नी और एक बूढ़ी काकी। दोनों का मुंह खुलता था और गालियां बरसती थीं। गांव में घुसते ही बोलती थीं रे बहिनचोदवा शहरे में रहबे का रे। गड़ियां में समूचा टाउन(शहर)घुसल बा तोहार। अइबे न काकी के देखे। मैं गिड़गिड़ाने लगता था कि काकी मुझे छोड़ दो। काकी गोद में बिठा कर बालों को सहलाने लगती थी और फिर गाली देने लगती थी। गांव जाते ही लगता था कि काकी को पता न चले। वो सबको गाली देती थी। पूरे गांव में उनकी गालियों की सामाजिक स्वीकृति थी। कोई इस बात से भी परेशान नहीं था कि इनकी सार्वजनिक गालियों से बच्चों की ज़ुबान बिगड़ सकती थी।
भोजपुरी समाज में गाली का विश्लेषण आप मर्दवादी सांस्कृतिक उत्पादन के तौर पर कर सकते हैं। करते भी रहिए। लेकिन पारिवारिक माहौल में भी गालियां दी जाती हैं। बड़े बुज़ुर्गों के साहचर्य में जिन गालियों को सुना है उन्हें अगर दोहरा दूं तो बास्टर्ड,रास्कल और बुलशिट जैसी ग्रेटर कैलाश टाइप गालियों की हवा निकल जाएगी। औरतों को बुरा न लगे कि मुझे इंग्लिश की गालियों में मौगई की झलक मिलती है। हिन्नी भोजपुरी की गालियों में मर्दानगी झलकती है। बात भी ठीक है कि गालियां मर्दवादी सृजन हैं। पर जो है सो है। औरतों को भी मर्दों के खिलाफ गालियों का सृजन करना चाहिए। नारीवादी आंदोलनों ने किया क्या आज तक। वैसे इंग्लिश में कुछ नारीवादी गालियां हैं जिनमें मर्दानगी को चुनौती दी जाती है। बॉल्स।
इन अंगरेजी गालियों ने ममेरा भी बहुत मनोरंजन किया है.....जामिया में जब मास कॉम पढ़ने आए तो आधी क्लास डीयू से आई थी.....उनकी ज़ुबान पर फ़क, शिट, ऐसहोल धड़ल्ले से थे....थोड़ा ऑकवर्ड लगता था, मगर सोचते थे कि एक दिन हम गालियों में भी इनसे आगे ज़रूर निकल जाएंगे....एक दिन अचानक मन गुस्साया तो उनकी हर गाली को हिंदी में चिल्लाने लगा बीच क्लास में.....जैसे फक को ...., ऐसहोल को .....ऐसा रंग उड़ा सबका कि पूछिए मत....हम उनके लिए 'नॉट अमॉन्ग्स्ट अस' गाई हो गए......
ReplyDeleteखैर, हमारे घर-गांव में भी औरतें गालियां देने में एक्सपर्ट रही हैं...उन्हीं की मार्फत मैंने पहली बार मां की बजाय बाप की गाली सुनी थी...किसी बहन को पड़ी थी किसी गलती पर......दिल्ली में वो बात कहां.....दिल्ली की गालियों में वो बात कहां....
अच्छा प्रसंग छेड़ा है रवीश आपने. मुझे भी याद है शादी-ब्याह में अपने यहां कितनी महीन-महीन गालियां खुले आम दी जाती है. उन मर्दों के सामने औरतें गालियां निकालती हैं जिनके आगे अनदिना में उनकी ज़बान नहीं खुलती. हर मौके के लिए: छेका, तिलक, कन्या निरीक्षण, भात, आदि-आदि. पिछले साल गहना चढाने का मौका मिला था. वहीं बचपन की यादें ताज़ा हुईं पर वो मजा नहीं आया. क्या था कि पर्दे की पीछे झूंड में गरियाने/गीत गाने के बजाय अब ये काम दो-चार इस्मार्ट टाइप की लड़कियां कर रही थीं.
ReplyDeleteवैसे गालियों पर हमारे पूर्व सहकर्मी एवं मित्र शुद्धब्रत सेनगुप्ता ने एक शोधपरक लेख लिखा है जिसे रविकांत और संजय शर्मा ने अपने दीवान-ए-सराय 02 में छापा था और मैंने उसे किस्तवार अपने ब्लॉग पर डाला भी था. चाहें तो इस लिंक को चटका कर उस लेख से गुजरा जा सकता है :
http://haftawar.blogspot.com/search/label/शुद्धा
अब एक बनारसी गाली के विरोध में कुछ लिखे तो स्वयं हास्यस्पद नजर आने लगेगा। फिर भी कहुंगा कि यह हमारी रुग्ण,सृजनविरोधी संस्कृति का सबसे बड़ा लक्षण हैं।
ReplyDeleteऐसा नहीं है कि मैं गालियां नहीं देता। गुस्से मे आते ही कई बार मैं उतना ही घटिया हो जाता हूं जितना कि हुआ जा सकता है। लेकिन इस कमजोरी में मैं कोई सकारात्मक बात नहीं देखता।
आपने कई मुद्दे उठाए हैं। सब पर प्रतिक्रिया देना संभव नहीं। बुढ़िया काकी वाली बात भी कुछ हद तक सही है। लेकिन आप को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिन्दी पट्टी में वृद्धाएं सभी वर्जनाओं से मुक्त हो जाती हैं। बिना ब्लाउज के साड़ी पहनना,सरेआम बीड़ी,हुक्का पीना और गांव घूमना,घूंघट उठाए घूमना उनके लिए स्वीकार्य है।
बात तो तब होगी जब एक खूबसूरत जवान लड़की वही गाली आपके मुंह पर दे जो बुढ़ियायें देती हैं और आप मुस्कराएं ! [बशर्ते वो लड़की आपकी बास न हो :-)] अगर सभ्य होने का कोई पैमाना है तो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए एक होगा। दिल्ली में जो लड़कियां बात-बात में गाली देती हैं उनके प्रति काऊबेल्ट के नौजवान कितने असहज होते हैं इसे बताना न होगा। गाली देने वाली लड़कियों से ये लड़के अंदर ही अंदर आतंकित भी रहते हैं।
बचपने में एक बार बिहार जाना हुआ था। उम्र 10-11 की थी। जो आपने लिखा है वही मेरे साथ भी हुआ। मैंने काफी तोड़-फोड़ मचायी। अफसोस,उससे गायाको और दर्शकों का मनोरंजन मात्र ही हुआ। हमें समझाया गया कि बिहार में ऐसा ही गाली दी जाती है।
शादी-ब्याह में गाली हमारे यहां भी दी जाती है लेकिन उसे मुर्गी का मांस समझिए। उसकी तुलना में भभुआँ में पहली बार बड़े का गोश्त खाना पड़ा था ! उस मानसिक हिंसा का आघात मेरे मन पर लम्बे समय तक रहा। गाली के सामाजिक मनोविज्ञान को लेकर बहुत कुछ कहने को है। जो फिर कभी।
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ReplyDeleteinteresting topic
ReplyDeleteinteresting topic
ReplyDeleteनमस्कार!
ReplyDeleteशादी के मौसम में गाली की बात.
आधुनिक लोग गाली देने में भी उतने ही विकसित हैं जितने सभ्य. वैसे सभी नहीं.
कुछ सभ्य तो प्रिय मित्रों से गाली में ही बात करते हैं.
नमस्कार.
रवीश भाई, जो भी कहिए....इस पोस्ट की स्टार तो काकी ही हैं.....उनकी गाली पढ़कर नाराज़गी नहीं हुई, बल्कि अपना गाँव-जवार याद आ गया...
ReplyDeleteकहीं तो पढ़ा था कि व्यक्ति को गिनती और गाली मातृभाषा में ही पसंद आती है, और यही सच आपने भी लिखा है!
ReplyDeleteअरे का मरदे....भतखवाई में ही नरभसा गए :)
ReplyDeleteवैसे मेरे यहां मुंबई में भी काकी टाईप एक साउथ की अंधेड़ महिला थी। कोई जब किसी छोटे बच्चे को गोद में ले उसके पास खड़ा हो बतियाने लगे तो बच्चे की तो शामत आ जाय.....। उस बच्चे को लगेगी गरिया गरिया कर दुलार जताने.....ए भड़वा किदर जाता रे......ए चोर....ए :)
वैसे अपनी ओर बच्चे को दुलराने के समय अक्सर हत्त चोरवा....दत्त चोर आदि का चलन है।
बढ़िया पोस्ट है।
शानदार।
SHIT! मुझे लगा यहां कुछ गालियां पढ़ने को मिलेंगीं.
ReplyDeletekamal ravish bhai...............
ReplyDeletehats off for u
हाहाहाहा.....रवीश भाई प्रणाम!....बहुत गरियाने का जी हो रहा है....खैर भाई जी दिल्ली की गालियां भी भला कोई गालियां है....भाई जी गालियां तो हमारे गांवों में औरतें दिया करती हैं समझ आ जाये करेज़ा कट जाये......
ReplyDeletemain khud is topic pe likhne ki soch rha tha.
ReplyDeleteFark yeh hai ki, aap bhojpuri aur angrezzi galiyon ki baat kar rhe
aur mera anubhav punjabi aur angrezi galiyon ka hai
राजस्थान में एक जगह है भरतपुर
ReplyDeleteयहां के लोगों की रग रग में हैल्पिंग वर्ब की तरह गालियां समाई हुई हैं।
तेरी मां की
तेरी बहन की
तो यहां हर शब्द के साथ बोला जाता है वो भी सार्वजनिक रूप से
BAJA FARMAYA HAZUR....gaAliya chahe hindi ki ho ya english ki.....us ki feeling andar tak honi chahiye....gaaliya boxing ke hit bag jaisi hai....sara vishad or aakrosh shabdo mein bahar nikalne ka moka deti hai....us mahan mano-vigyani ko shat shat parnam jisne gaaliyo jaisi DAWA banai....agar gaaliya na hoti...to samaj itna swasth na hota jitna aaj hai....maansik or hysteria ke marizo se bhar hota.....so KEEP IT UP
ReplyDeleteगंवई की भाषा में गालियां इस तरह रच बस गयी है कि इन्हे हम सामान्य बोलचाल ही मान सकते हैं।
ReplyDeleteकहीं कहीं पर ये आत्मीयता प्रदर्शित करने का साधन भी बन जाती हैं,इनका भी अपना सौंदर्य है। गालियां भौंडापन भी लिए होती हैं,लेकिन हम इतने सहज होकर बोल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि गाली दे रहें हैं।
हिंदी और अंग्रेजी मिश्रित एक गाली तो पुरे भारत में समझी जाती है और बोली जाती है।
Post is good ..........
ReplyDeletebut I think BLOGGER needs a sensor board .......
Must Read :
ReplyDelete"गालियां ही गालियां , बस एक बार सुन तो लें ( तर्ज - रिश्ते ही रिश्ते )"
Link :
http://mireechika.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
रवीश जी,
ReplyDeleteजिन गालियों का आपनें जिक्र किया वो शायद उत्तर भारत में सभी गांवों कस्बों में दी जाती होगी।
शादी ब्याह में गीत-गाली, बड़ों की डांट और स्नेह में गाली,दोस्तों की बातचीत में गाली। दिल्ली में तो एक गाली जिसका आपनें भोजपुरी उच्चारण भी लिखा है वो तो हेल्पिंग वर्ब के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। पता भी नहीं लगता कब ब्रेकिंग की पट्टी की तरह निकल जाती है। अंग्रेजी की गालियों को ग्रहण करनें में परायापन लगता है। उसकी भाषा की तरह उसके भाव(घृणा-प्रेम) भी पराए लगते हैं, तो देनें वाले पर ज्यादा गुस्सा नहीं आता।
बिहार के दोस्त अक्सर मुझसे कहते या यूं कहें की शिकायत करते कि यार दिल्ली के लोग गाली बहुत देते है? और कुछ गालियों का मतलब भी पूछते। फिर मुझे शायद लगता कि आप और हम कि तहज़ीब की भाषा का प्रयोग करनें वाले दोस्त ठीक कह रहे है।
आपनें बताया तो आप और हम के पीछे का भी पता चला। अच्छा लगा।
'प्राचीन हिन्दू विचार' की तह तक पहुंचना आज 'बुद्धिजीवियों' के बस का भी नहीं है यद्यपि 'माया' की बात अपने अपने मतानुसार सब करते हैं,,, जबकि आज तो 'मायावी फिल्म जगत' के बारे में भी सब जानते हैं की कैसे २-३ घंटे के लिए सब माया से प्रभावित होते हैं...
ReplyDelete"जय माता की" कहना ही होगा!
RAVISH JI, GAALI DENA KISI SABHYA SMAAJ KA HISSA HO YA NA HO PAR EK BAAT JO PT. NEHRU NE BHARAT KE BAARE MEIN DUNIA KO KAHI THI 'UNITY IN DIVERSITY' YAHAN SACH HOTI HAI. AUR KISI BAAT PE UNITY HO YA NA HO PAR YEH BAAT SACH HAI KE PUNJAB KI GAALI KERLA MEIN BHI UTNI HI ASANI KE SAATH SAMJHI JAATI HAI. GAALI KE MAMLE MEIN BHARAT KASHMIR SE KANYAKUMARI TAK AUR GUJRAT SE NORTH EAST TAK EK HAI.
ReplyDeleteJAI HIND
बहुत खुब लिखा है । मुझे तो ऐसा लगता कि जो स्वाद गाली में है वो प्यार में भी नही मिल पाता है । हॉ सिर्फ फर्क है तो गाली देने के अंदाज में । आपको लगता है कि क्या कोइ समधी और समधाइन वाला गाली मिस करना चाहेगा । जीजा-साली या फिर चाचा भतीजा और भाभी देबर ये ऐसे रिश्ते हैं जो हमारे समाज को गाली गलोज का पारंपरिक सांस्कृति प्रदान की है । लेकिन ये गाली भी सामाजिक मान्यता पर ही बनी हुई है । इसलिए ये कहना कतइ गलत होगा कि हमारी गाली भी उसी तरह दूशीत है जिस तरह इंग्लिश गाली । आप ने लिखा भी है कि आपकी काकी देखके किस तरह की गाली दिया करती थी । लेकिन उस गाली का अर्थ हमेशा प्यार हुआ करता था । और शायद यहीं वजह है कि हमारे समाज में साला जैसा अभद्र गाली कॉमन हो चुका है ।
ReplyDeleteलगता है आज पोस्ट की तारीफ भी गाली देकर ही करनी पड़ेगी
ReplyDeleteखैर छोड़िए फिर कभी....
यदि आपको देर से पता चले कि आप बेवकूफ, यानि मूर्ख, बनाये जा रहे थे (किसी अज्ञात शक्ति द्वारा) तो गाली नहीं देगो तो क्या मिठाई बाटोंगे? :)
ReplyDeleteएक समय था जब हमारे ब्लाक में एक जमादारनी आती थी... न जाने उसकी कौन से जन्म की दुश्मनी थी, हमारे पड़ोस में थोड़ी ही दूर रहने वाली महिला के साथ उसका यदा-कदा वाकयुद्ध छिड़ जाता था और कुछेक ही शायद ऐसे पडोसी होंगे जो उसका आनंद उठा पाते होंगे...
aapki kaki majedaar rahi hogi! damdar bhi mardon se khoob takraati hogi!
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ReplyDeletehahah... humara bachpan to kutta sooar aadi pashuo me hi gujar gaya, usme bhi aisi maar padhati thi ki gali ke sare pashu dar kar bhag jaye ...haan ek baar thodi unnati karke GreenMangoMuch ka hindi anuwaad sikh liya tha,bahut mushkil se pichha chhuta tha usase...bachpan khatam hua aur galiya bhi,fir to kaan me kahi se sunai bhi padh jaye to sharir hil jata tha...aur bade hue to dilli aane ka awsar mila, bhai mall jakar apni aukaat ka ek hi shirt dika sale me,to kharid laye,baad me landlord ke teenagers bachcho ne bola ye kya likha hua hai shirt me,aisa shirt pahne hai aap....ab paise khrch kiye the so shirt fekane ki himmat nahi hua par haan bhala ho dilli ki sardi ka,use jacket ke andar bahut baat pahna...tab humari dictionary me ek aur shabd ka samavesh hua...shirt par kya likha tha ,wahi bata dete hai, koun sa shabd tha vo samajhdaar samajh hi lege :)...likha tha..."Sh*t the F*ck *p, rests is U" .
ReplyDeleteJai Ho !
wo bura per bhi aacha likhte hai
ReplyDeletewo ravan ko bhi raam ki tarah dikhate hai
wo kabhi roj aate the ab kabhi-kabhi
wo shakira per bhi likhte hai
wo sani maharaj per bhi likhte hai
wo punjab me dalito ka gana bhi sunate hai
isse jyada aur kya kahoo
aap comment karne wale mujh se behtar unhe jante hai.....
बहुत दिन हो गए किसी को कायदे से गरियाये....पोस्ट पढ़ने के बाद गरियाने का मन कर रहा है
ReplyDeleteRavish aap kya aadmi hai.Koi lagatar itna aacha kaise lik sakta hai. sir u r amazing.
ReplyDeleteaapko naman
gr8 sir,apki speech achchhi lagi
ReplyDeleteका मर्दे ,,,,,,का लिखले बारे यार .....पढ़ के मज़ा आ गलव...मन हो रहल बा कि हमू पढाई छोर के गारी लिखीं......
ReplyDeleteरवीशजी गालियाँ हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं. अंग्रेजी में बोले तो अनअवोएयडेबल मामला. http://gharkibiwi.blogspot.com/
ReplyDelete@जेसी
ReplyDeleteहमारे पड़ोस में हापुड़ के शर्माजी रहते है, उनका वाक् युद्ध उनके सामनें ही रहनें वाले एक और ब्राह्मण मिश्रा जी, जो कि बलिया(उ.प्र) के रहनें वाले है से आए दिन होता । दोनों पर लाखों रुपये का कर्ज़ है गली वालों का। आपस में भिड़ते सिर्फ इसलिए की वो कहता है कि हम असली ब्राह्मण है...वो कहता है कि हम असली है।
गली में जो गालियों की महफिल सजती है, जो भोजपुरी और खड़ी बोली के देशज निकल कर आते है मानों एक नए शब्दकोश की रचना हो जाए।
ये रोज़ का काम है उनका। आपको दिखा भी सकता हूं।
समझ में नहीं आता कि इस फूहडपने और भदेसपने से रविश भाई उद्वेलित हो रहे हैं या गौरवान्वित हो रहे हैं!
ReplyDeleteAll this fucking tradition of 'Gaalibaazi' was not bloody meaningless . It empowered women and gave an outlet to their suppressed feelings .
ReplyDeleteOn a personal level, im against those bastards who use expletives like bloody fucking full stops ,commas and shitful signs of exclamation !.
ReplyDeleteरविश जी १ बात का अफ़सोस रह गया कि अपने सिर्फ भोजपुरी गालियों की चर्चा की, हमारी मैथिलि को भूल गए. खुदा की कसम भामती की धरती पर ऐसे-ऐसे वाचस्पति मिश्र पैदा हुए हैं कि गालियों का रोज़ १ सत्यार्थ प्रकाश निकाल दें. आपकी बुढिया के मुकाबले, हमारे यहाँ १ बुधु थे. हिंदी, अंग्रेजी आती नहीं थी लिहाज़ा मैथिलि पर पूरी पकड़ थी. नित्यकर्म से सुबह ४ बजे से ६ बजे तक भजन कि तर्ज़ पर गरियाते थे. १दिन उनका दुसरे बुढाऊ से इस मुद्दे पर वार्तालाप हुआ, बातचीत मैथिलि में थी. पाठांतर करते हुए मैं निचे दे रहा हूँ -
ReplyDeleteजिज्ञासु बुढाऊ - भाईसाहब १ बात पूछूँ? बुरा तो नहीं मानेंगे.
नायक - नहीं-नहीं बिलकुल पूछिए
जिज्ञासु बुढाऊ - ये सुबह- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में आप गालियाँ किसे देते हैं
नायक - भगवान्, भों.............. को
जिज्ञासु बुढाऊ - क्यों?
नायक - वैसे तो मैं किसी को बताता नहीं पर आपने पुछा है तो सुन लीजिये... बेटा पिछले साल मर गया, बीवी किसी के साथ भाग गयी है, भाई ने ज़मीं हड़प ली है, १ चेहरा भगवन ने काला तो दिया ही था, ५ साल कि उम्र में चेचक भी दे दिया. गरियाता इस भों.......... वाले की औकात देखने के लिए हूँ कि अब मेरा क्या बिगाड़ सकता है?
"ज़िन्दगी इम्तहान लेती है..." प्राचीन हिन्दुओं ने अस्थायी मानव जीवन को तीन प्रकार के कार्यों में बांटा, जिन्हें उन्होंने तामसिक, राजसिक, और सात्त्विक कहा... कुछ ने प्रकृति की गहराई में उतर कर जीवन का सार जाना: बचपन खेल में, जवानी मूर्खता में और बुढापा हाथ मलने में गुजर जाने का,,, तो फिर रहस्यमय मानव जीवन का अर्थ क्या है?
ReplyDeleteमानो या न मानो, उनका निष्कर्ष था कि वो केवल निराकार ब्रह्म और उसके साकार रूप को जानना है! और आदमी अज्ञानतावश सही कर्म नहीं करता...
@ रणवीर जी
इन्जीनियरिंग की पढ़ाई के बाद मेरा एक 'ब्राह्मण सहपाठी' भारतीय फ़ौज में भर्ती हो गया,,, और जब पहली बार मिलने आया तो सिनेमा हॉल में भी भद्दी गाली दे रहा था... मेरे याद दिलाने पर उसने कहा कि फ़ौज में पहले दिन ही उन्हें बता दिया जाता है कि वे गाली सुनेंगे तो उसको दिल में नहीं लेना है, बल्कि खुद उनको प्रयोग में लाना है!
शायद जीवन में उतार-चढाव और जीवन-मृत्यु को एक समान लेने में इससे दिल कड़ा करने में सहायता मिलती है, जैसा उपदेश ज्ञानी लोग भी दे गए कि आदमी को हर हाल में एक सा ही रहना चाहिए...
प्रभाष जी के जन्मदिन पर विशेष : पढ़िए, दिवंगत पत्रकार श्री प्रभाष जोशी के साथ 9 सितम्बर 2009 को हुई बातचीत पर आधारित साक्षात्कार-संस्मरण.
ReplyDeleteजिन्ना-जसवंत प्रकरण, देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति, आरक्षण, हिंदुत्व,
टीवी, इंटरनेट और 26 -11 अटैक के दौरान मीडिया की भूमिका पर उठे सवालों के बारे में प्रभाष जी की राय
लगभग साढ़े तीन घं...टे तक चली यह बातचीत हमारे लिए बहुत
उपयोगी रही. आप भी लाभ उठाएंगे, इसी विश्वास के साथ.
हमको लग जाएँगी सदियाँ तुम्हें भुलाने में...
http://bhaiyajikikalam.blogspot.com/2010/07/blog-post_14.html
sir mujhe apne college ki fresher party k liye koi hindi naam chahiye..kripya kar meri sahyata kare...
ReplyDeletesahi ba... kuhub nik article bate..
ReplyDeleteरविश कुमारजी,
ReplyDeleteगालिया वालिया तो हो गयी,अब जरा आजकल एक हॉट चर्चा का विषय ऊठा है तो लगे हाथ एक रिपोर्ट बना लीजिये, विषय है,"बुर्के पे पाबंदी,और वो भी फ्रांस में",तो आपकी रिपोर्ट में कुछ ऐसी सत्यता बता दीजिये की सारे लोगो की पोले खुल जाये...पूछिए विरोध करने वालों से की क्यों मार मार मुसलमान बनाने वाली कहावत हिंदी में प्रचलित हो गयी और नियम बनाने वालो से पूछिए की क्यों हरी uniform वाले कॉन्वेंट स्कूल्स में लडकियों को बिंदी और चूड़ी पहना मना है....अब चुप मत रहिये.
बात तो सोचने वाली है... की अब तक महिलाओं ने क्यों नहीं बनायीं मर्दों वाली गालियाँ...! नारीवादी विमर्श करने वाले ध्यान दें...!
ReplyDeleteravish ji aapne aapne bahut hi achha galeo ka aaklan kiya hai ........ agar aap west u.p. ki galeo ko suno to aapka lage ga ki kha narak me aap gya hu west u.p. ki galeo matlab esa hota hai jaise kise ka murder kar diya ho
ReplyDeleteआपके रिपोर्ट में इमोशन है, ड्रामा है, एक्शन है, एक आक्रोश है यानी फुल पैकेज है. विकास पर व्यंग्य और सरकार की सच्चाई सब कुछ देखने को मिला कापसहेड़ा गांव में. लगा 'राग दरबारी' का कुछ पन्ना फिर से पढ़ लिया. अच्छा लगा. उन प्रवासी मजदूरों के साथ खाना खाकर इमोशन का पूरा डोज दे दिया रिपोर्ट में. इस रिपोर्ट को वो प्रवासी मजदूर भी याद रखेंगे और मैं भी क्योंकि काफी भाग दौड़ भरी जिन्दगी में काफी समय बाद यह रिपोर्ट देखने को मिला.
ReplyDeleteहमारे घर-गांव में भी औरतें गालियां देने में एक्सपर्ट रही हैं...उन्हीं की मार्फत मैंने पहली बार मां की बजाय बाप की गाली सुनी थी...किसी बहन को पड़ी थी किसी गलती पर......दिल्ली में वो बात कहां.....दिल्ली की गालियों में वो बात कहां....
ReplyDeleteaaj ki english galia hello ban kar rh gai, english galia aysi ho gai jaise jaise koi surname le k bula rha ho 'ye duffer what r u doing'...... Kisi din aisa v aiga jo hmne soch v nhi hoga....
ReplyDeleteAaj aisa samay aa gaya h ki koi kisi par viswash hi nhi karta.....
Koi payar se bat kare to lagt h ki usko mere se kya chahiya jo mere se itna pyar se kyon bat kar rha.....
thanks
wah janab..galyan khakar..bhi mad mast kar diya..likhe hue mai badhiayan..
ReplyDeletewah janab..galyan khakar..bhi mad mast kar diya..likhe hue mai badhiayan..
ReplyDeleteआपके विषय अनोखे और गुदगुदे होते हैं :)
ReplyDeleteइस बार ये गालियों का , जिसे सही से क्लासिफाइड कर प्रकार भी निर्धारित कर दीये ..मर्दाना गालियाँ , जनाना गालियाँ !
खैर कई बार ऐसा लगता है की गालियाँ आजकल दाद जैसी चीज़ हो गयीं हैं , ज्यादा दिमागी कसरत नहीं करनी पड़ती बोलने से पहले ..बस कुछ चीज़ ज्यादा पसंद आई ...गाली ,
कुछ चीज़ या इंसान (इंसान भी अब चीज़ के ही मानिंद है ) ज्यादा बुरे लगे ..गाली .छोटे-छोटे बच्चे सिर्फ इतना जानते हैं की ये गन्दी गाली है , मतलब से वाकिफ नहीं ..और बेखटके अकेले में इस्तेमाल भी करते हैं !
बड़ा पेचीदा खेल है इन गालियों का ..और इनके अस्तित्व का ..
सामाजिक समरसता है देश को जोड़ने का काम कर रही हों जैसे ..............
ReplyDeleteInteresting Story shared by you ever. Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience. प्यार की कहानियाँ Thank You.
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