ये सब आपके लिए







कुछ दिनों से दिल्ली के मोहल्लों में भटक रहा हूं। कई तस्वीरें ली हैं। धीरे-धीरे आप तक लाने की कोशिश करूंगा। कुछ फेसबुक पर भी हैं।

25 comments:

  1. बवासीर, फिस्टूला, भगंदर, हाइड्रोसिल के इससे भी बढ़िया और चित्रकारी से सजे विज्ञापन मिल जाएंगे, लेकिन वो धनतंरी बैद(धन्वंतरि वैद्य)पैसा मांगते हैं। भाईसाब इस वाले टेलर वैद्य का पता डाल दो कोई बवासीर का मारा लाभ उठा लेगा।

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  2. यी टेलर कोई क्षार सूत्र इलाज करेगा क्या?

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  3. सॉफ्ट पैकेज ज़रूरी है...एक गर्म बहस के बाद बहुत अच्छे....तस्वीरें खबर हैं...जो गढ़ना चाहें गढ़ सकते हैं...वाकई ये कमाल का स्विच ओवर है...

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  4. कभी सीकरी हो कर आइए। हर नुक्कड़ पर दांतो के डाक्टर का बोर्ड मिलेगा। ऐसा लगता है वहाँ दाँत निकलते ही बीमार हैं।

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  5. रविश जी मै तो चमका खा गया था फेसबुक पर, लेकिन कमाल है...यूं ही दिल्ली को पंचमेल खिचड़ी वाली संस्कृति नहीं कहा जाता है। इस तरह के लेबल वाले ट्रक वहां भी भारी संख्या में मिलते हैं

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  6. :) ..........
    acchee khoj.........

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  7. "तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत / हम जहां में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं"!
    क्या ढूँढ रहा है हर कोई - कोई जानते हुए तो कोई अनजाने?

    बुरा न मानना, तस्वीरें देख सवाल उठाना भी लाजमी हो जाता है - जैसे:
    राहुल बाबा की तरह आपने खाना खाया उस परिवार के साथ?...'जम्बूद्वीपे हस्तिनापुर' क्षेत्रे यानि 'इंडिया जो भारत था' में...बवासीर का इलाज तो नहीं ढूँढ रहे थे किसी के लिए और गलत दिन पहुँच गए (दर्जी के घर)?...

    खटिया - यानि चौपाये जानवर समान चारपाई (शिव के वाहन, नंदी बैल, समान) - बालकाल में दिल्ली में ही अपने पिताजी के सरकारी घर में देखी थी...बढई घर में हमारे सामने ही बांसों, पहले से तैयार पाये, और मूंज से थोड़े ही समय में बना देता था - मजा आता था हम बच्चों को सारी प्रक्रिया देख...

    फिर उसकी याद आई चार दशक बाद - सन '९१ में - जब पत्नी की टांग का फ्रैक्चर हो गया तो सर्जन ने हड्डी में ड्रिल से स्प्रिंग लगाने के लिए छिद्र किया, जो दुर्भाग्यवश हड्डी के नरम होने के कारण जरूरत से ज्यादा बड़ा हो गया...थिऐटर के बाहर निकल डोक्टरों में खुसर-पुसर होते देख समझ आया कि मामला कुछ गड़बड़ है...फिर बाद में पता चला कि फैसला कर उन्होंने टांग के निचले हिस्से से एक छोटी हड्डी काट के निकाली, जो भार लेने में सहायक नहीं होती है, और उसे स्प्रिंग और छेद के बीच खपच्ची समान लगा दिया - जैसे हम बढई को चारपाई कि टांग में भी लगाते देखते थे :)

    डेढ़ माह तक वो बिस्तर पर पड़ी रही बिना उस पाँव को हिलाए और स्प्रिंग तब तक 'ईश्वर कि कृपा से' अच्छी तरह जम गया था :)...और गीता में पढ़ा था कृष्ण को अर्जुन को समझाते हुए कि वो केवल एक निमित्त मात्र ही है, एक कठपुतली समान :)

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  8. रवीश जी ...घुमक्कड़ी करते रहिये........खबरों की कोई कमी नहीं है.....बस खोज खबर करने वालो की कमी है....... हमको पत्रकारिता के बड़े लेक्चरो में यही सिखाया जाता है....
    आपका क़स्बा बहुत भाता है..... यहाँ पर लगाई जाने वाली तस्वीरे अच्छी लगती है....लगे रहिये सर......

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  9. जेसी साहब का कमेन्ट सुनकर एक किस्सा याद आया। एक शायर ने शेर पढ़ा 'ला पिला दे साकिया कह दे शराब है' अब आलोचक लोग लगे बहस करने और तय पाया कि ला पिला दे तो ठीक पर कह दे का कोई अर्थ नहीं। एक घिसा हुआ आलोचक निकला और बोला अर्थ तो है ही। देखिये साकी को देखा तो दृष्टि इन्द्री संतुष्ट हुई,पिया तो स्वादेन्द्री,शराब छूने से स्पर्श इन्द्री, महक से घ्राण इन्द्री और जब कह देगा साकी तो जाके श्रवण इन्द्री संतुष्ट होगी और सुख अपरम्पार हो जायेगा…

    कवि अब तक चुपचाप सुन रहा था…अब चिल्ला के बोला ' ससुरा हम तो तुक मिलावे बदे लिख डाले थे…इत्त्ता तो हमने भी नहीं सोचा था'

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  10. पांडेजी आपने '५५ में सुने शेर की याद दिलादी, "मगज को न जाने दो बाग में / खून हो जायेगा परवाने का"...

    कोई पूछ बैठा ये मधुमक्खी और परवाने के बीच किसी पुरानी दुश्मनी का कैसे सम्बन्ध जोड़ा आपने?

    शायर बोला कि बाग में मधुमक्खी शहद बनाने जाती है मालूम है सबको...और जिसमें इसे रखती है - यानी उसका छत्ता - मोम का बना होता है, जिससे मोमबत्ती बनती है और उसकी लौ में परवानों का जल मरना निश्चित है, जानते हैं सभी :)

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  11. yahan jindagi ko aaina mil jata hai :) lage rahiye !!

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  12. बहुत अच्छे...आप मनोविज्ञानी भी हैं क्या...कस्बा में २ दिनों से किच-किच मची हुई थी...ये तसवीरें डाल कर आपने अपने पाठकों का मूड बढ़िया कर दिया... इसी तरह की मजेदार पोस्ट्स के बीच कभी कभी झटके भी देते रहिये...

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  13. जेसी साहब की टिप्पणी ने इस पोस्ट को समृद्ध कर दिया।

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  14. कभी जम्बूद्वीप जाइये रवीश जी। इससे भी अच्छी तस्वीरें मिलेंगी। हालांकि यहां मुझे इस तस्वीर का संदर्भ समझ नहीं आया।

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  15. रिपोर्टर जी, उनका केवल एक साधारण अतिथि होने के कारण, जो न तो स्पीकर है न लाउड स्पीकर, मुनि रवीशजी से क्षमा मांगते हुए में यह कहूँगा कि तसवीरें बहुत कुछ बोलती हैं - देखने वाले की नज़र, यानी दृष्टिकोण पर निर्भर करता है...तुलसीदास जी भी कह गए, "जाकी रही भावना जैसी / प्रभु मूरत तिन देखि तैसी"...और हिन्दू मान्यतानुसार, "हरी अनंत / हरी कथा अनंत...", और तलत महमूद ने भी गाया, "तसवीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी..."...

    उदाहरण के तौर पर, एक 'हिन्दू' (जिसमें 'इंदु' यानि चाँद का सार भी छिपा है - माथे में सभीके, 'शिव' के ही नहीं, जिस कारण एक 'हिन्दू' अपनी राशि और उसके कारण उसका मानव रूप में पृथ्वी पर जीवन कैसा हो सकता है उसका अनुमान लगाता आया है अनादिकाल से :) को तीनों तस्वीरों में चारों (४) दिशाओं, 'ब्रह्मा के चार मुख' का आभास हो सकता है:

    कार के चार पहिये (और उस पर बने स्वास्तिक के एक बिंदु, नादबिन्दू, से निकलती चार किरणों जैसी लकीरें और उन सबका मिलकर चक्र का घडी की सुइयों के सामान घूमने को दर्शाने के लिए चार अन्य रेखाएं - कुल मिलकर आठ दिशा, या दुर्गा की अष्ट-भुजा, आदि आदि :); खाट के चार पैर; बोर्ड के चार कोने :)

    और इस पोस्ट पर '३' तस्वीरें ही क्यूँ? शायद ॐ यानि नादबिन्दू द्वारा ब्रह्मनाद को दर्शाता :)

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  16. जम्बूद्वीप की तस्वीर का भी थोडा-बहुत जायजा लेलें:

    प्राचीन संसार में, वर्तमान भारत, जिसके माथे पर हिमालय का ताज सा दिखता है, ('सास भी कभी बहू थी' समान), श्री लंका समान एक द्वीप ही था, जो जम्बूद्वीप कहलाता था...तब उस द्वीप में विन्ध्याचल पर्वत सबसे ऊंचा पर्वत था...जिसमें - वर्तमान गंगा-जमुना के विपरीत, पश्चिम की ओर बहने वाली - (मोदी की?...जबकि गाँधी की साबरमती है?) नर्मदा नदी का उद्गम स्थान भारत के पूर्वी क्षेत्र अमरकंटक में ही था...और पौराणिक कहानियाँ इस नदी की उत्पत्ति का कारण ''शिव के शरीर से निकलने वाले पसीने' को दर्शाते आये हैं...और हिमालय की उत्पत्ति के कारण जम्बुद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में स्तिथ सागर-जल के दक्षिण दिशा की ओर प्रवाह को अगस्त्य मुनि की कहानी द्वारा - यानि वे पूरा सागर-जल पी गए!...

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  18. जेसी साहब मैं तो आपके जितना ज्ञानी नहीं, लेकिन मैं देख रहा हूं कि रवीश जी नजरों में चढ़ने के लिए आप कुछ ज्यादा उचक रहे हैं। आप रवीश जी के मेहमान हैं इसलिए कठोर बात लिखने के लिए माफी चाहूंगा, लेकिन मैं भी तो मेहमान हूं। चंद लोगों ने आपकी तारीफ क्या कर दी आप बेवजह दो लोगों की बातचीत में कूद गए। मैंने रवीश जी से सवाल पूछा और आप अपना ज्ञान बघार रहे हैं।
    आप ने फिल्म देखी होगी जानू तू या जाने ना। उसमें एक लड़की मनोरोगी किस्म की है। उसे बार-बार ये सवाल पूछने की आदत है वो क्या है? कार देखी और पूछ दिया सवाल वो क्या है? फिर खुद बताती है कि ये कार नहीं है. ये फलां चीज है। जब तक हीरो उस पर मरता है उसकी बातों में उसे मजा आता है और उसके दर्शन पर मुग्ध होता है, लेकिन एक रोज जब नायक परेशान होता है तो सामने गुजर रहे स्कूटर को देखकर लड़की पूछती है वो क्या है? इस बार नायक झल्ला जाता है और कहता है वो स्कूटर है। जिस पर मिडिल क्लास चलता है। उसमें दो पहिये हैं। एक स्टैपनी है। जो सीटें हैं। एक हैंडल है।
    जेसी महोदय लगता है रवीश जी से आप भी किसी दिन ऐसा ही सुनने वाले हैं। जम्बूद्वीप हस्तिनापुर से कोई गाड़ी वैशाली, गाजियाबाद आती है और रवीश जी उसकी तस्वीर खींच कर पोस्ट करते हैं तो मैं सिर्फ यही जानना चाहता था इसके पीछे दर्शन क्या था? मैं आपकी तरह ज्ञानी नहीं। सवाल पूछना गुनाह थोड़े ही है। रवीश जी ने ये जगह फीड बैक के लिए छोड़ी है ना कि आपके ज्ञान के लिए। हालांकि, मैं भी ज्ञान बघारने लगा हूं, जो कस्बा के मेजबान रवीश जी को बुरा लगा हो तो आज के बाद बंद कर दूंगा।

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  19. दोस्तों,

    जे सी साहब की टिप्पणियों को आप अन्यथा न लें। वो कभी ज्ञान बघारने की कोशिश नहीं करते। उनका अपना एक टेक है जो हर बात पर अलग तरीके से रखते हैं। वो मुझे खुश करने के लिए नहीं उचकते। इस तरह से हमें टिप्पणीकारों को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।

    रिपोर्टर जी, संदर्भ क्या है इसका जवाब तो मुझे भी ठीक से नहीं पता। लेकिन मैं अपनी तस्वीरों के ज़रिये खोजने की कोशिश करता हूं कि कोई खुद को कैसे अभिव्यक्त करता है। किसी गाड़ॉ पर जम्बूद्वीप लिखा हो और जाने का पता हस्तिनापुर हो तो यह एक अलग समय संदर्भ की रचना करता है। सांकेतिक रूप से। भारत की प्राचीनता को बेचने का भी संदर्भ हो सकता है। भारत की पहचान एक पुराने नाम से करने का संदर्भ हो सकता है। मेरा यही संदर्भ है कि अभिव्यक्ति के इन तमाम संदर्भों को तस्वीरों में कैद करता चलूं। समाज को बदलते और अभिव्यक्त करते हुए देखना, समझना मुझे अच्छा लगता है।

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  20. हाहाहा! रिपोर्टर जी, आप नाहक नाराज़ हो गए...मैंने सोचा कि आप रवीशजी के ब्लॉग में मेरे समान ही अतिथि हैं (एक डॉक्टर के क्लिनिक में अपनी बारी का इंतजार करते बीमार समान**), जिस कारण मैंने आपको कुछ कहने की हिमाकत की...क्षमा प्रार्थी हूँ, आगे से ऐसी गुस्ताखी नहीं करूँगा...आपके भड़कने से केवल यह पता लगता है कि आप एक युवा व्यक्ति हैं, और इस कारण आपको अभी बहुत निजी अनुभव होना बाकी रहता है...मैं भगवान् से प्रार्थना करूँगा कि वो आपको हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करे!...

    मेरी कोई बेईज्ज़ती नहीं हुई, आपकी सूचना हेतु मैं एक ७१ वर्षीय 'पैदाइशी गुलाम हिन्दुस्तानी' हूँ जिस कारण मुझे संभव है अधिक मौका मिला हो मानव जीवन के उतार-चढाव को अनुभव करने का और किताब आदि पढने का भी...मुझे आपके समान कोई इनाम पाने की इच्छा नहीं है और न कोई उम्मीद ही...में रवीशजी के ब्लॉग में बहुत समय से लिखता आ रहा हूँ...और उनको आरंभ में ही कह दिया था कि आवश्यक नहीं कि सबके विचार आपस में मेल खाएं, और वे स्वतंत्र हैं किसी भी टिप्पणि को मिटाने के लिए जो उन्हें अच्छी न लगे...
    ___________________

    **रवीशजी, लगभग चार दशक से अधिक समय पहले, पहली बार मुझे बताया गया कि मेरा रक्त-चाप औसत से थोडा उपर था...डॉक्टर मुझे वहां आराम करने की सलाह दे कुछ निजी काम से हॉस्पिटल में ही कहीं थोड़ी देर के लिए चले गए...उस दौरान एक सज्जन घबराए से आये और मुझसे पूछा डॉक्टर कहाँ थे और मुझे क्या तकलीफ थी?...जवाब सुन उनके उतरे हुवे चेहरे में प्रसन्नता के भाव साफ़ साफ़ नज़र आये और उन्होंने खुश हो मुझसे हाथ मिला अंग्रेजी में कहा कि उनको मुझसे मिल बहुत प्रसन्नता हुई - क्यूंकि उनका रक्त-चाप भी बढ़ा हुआ था :)

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  21. क्षमाप्राथी हूं जेसी साहब की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए। दरअसल हाल ही में मैं जम्बूद्वीप से लौटा हूं। ये वास्तव में हस्तिनापुर में ही एक जगह है और जैनियों के लिए एक अहम तीर्थस्थल। मेरठ से 40 किलोमीटर दूर। रवीश जी से संदर्भ पूछने का मेरा अभिप्राय सिर्फ इतना था कि गाड़ी में जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर लिखा देख कर आपको कहीं अजूबा तो नहीं लगा, इसलिए आपने तस्वीर ब्लॉग पर लगा ली? या फिर इसका कोई वृहत्तर मंतव्य था। चूंकि जेसी साहब उसमें व्यापक फलक तलाश रहे थे, इसलिए मुझे हजम नहीं है क्योंकि जिस गाड़ी वाले ने भी इसमें जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर लिखा है, उसने भी इतना नहीं सोचा होगा कि हस्तिनापुर से दिल्ली आकर वो किसी एलियन जैसा समझा जाएगा।
    खैर, एक फिर अपने हस्तक्षेप (टांग अड़ाने) और जेसी साहब को आहत करने के लिए माफी।

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  22. रवीश,

    तुमने हमारे वक़्त रपटीली रपटों पर बड़े धारदार सवाल उठाए हैं. अमीन सायानी रेडियो की इस शैली को धूम-धड़ाका शैली कहते हैं. एक ज़माने में यह शैली ख़ुद उनकी थी. पर आजकल के रेडियो की तुलना में फिर भी कितना शालीन, कितना संयत, और कितना आत्मीय. अच्छे पोस्ट के लिए बधाई.

    रविकान्त

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