मत लिखो भाई

हर दर-ओ-दीवार पर जब हम लिख आयेंगे
इमारतों के साये से भी लोग घबरायेंगे
खुलेंगी खिड़कियां तो शब्द लटकते नज़र आयेंगे
आएंगी आंधियां तो मतलब उखड़ जायेंगे
कितना लिखोगे कबीर तुम कब तक छपोगे
पढ़ने वाले पढ़ कर तुम्हें कहीं भूल आयेंगे

11 comments:

  1. raveesh ji....
    jab talak ji jaan hai hum likhte jayenge
    marne se pahle yakinan kuchh kar jayenge
    khulengi khidkiyan hawa ke jhoke bhi honge
    magar wo meri likhawat yaad dilayenge
    Are kahna aasan hai 'mat likho dosston'
    magar qayamat ke roj use kya munh dikhayenge

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  2. ढाई आखर प्रेम का ...........


    धन्यवाद भाई.

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  3. सोचा तो कभी दफा है। लेकिन कमबख्त लिखे बिन चैन नहीं आवत।

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  4. "आएंगी आंधियां तो मतलब उखड़ जायेंगे"

    अजी हम तो कहे हैं कि नए साल में ये कबीर चोला पहने रहिए। भले भले से लग रहे हैं।
    सच्ची...

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  5. ॐ से जगत उत्पन्न हुआ
    ॐ में ही समां जायेगा
    नाटक तो पंचतत्व और अष्ट चक्र का है
    बस 'ढाई आखर' की गंगा बहाते चलो
    "राह में आयें जो दींन-दुखी
    सबको गले से लगाते चलो"...

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  6. ये शायर अक्सर बीच बीच में जागता रहता है ....

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  7. .
    .
    .
    कितना लिखोगे कबीर तुम कब तक छपोगे
    पढ़ने वाले पढ़ कर तुम्हें कहीं भूल आयेंगे


    पर ये दीवाना, बावरा, टोटली इम्प्रैक्टिकल कबीर कभी माना है जो आज मानेगा ?

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  8. बहुत गहरी और लाजवाब बात कही आपने रवीश जी।

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  9. भले ही शब्द साथ छोड़ जायेंगे
    किताबों में छापना बंद हो जायेंगे
    पर लिखना न छोड़ पायेंगे.....:)

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