जगत। नाना प्रकार के होते हैं। जगत के भी उप-जगत होते हैं। जैसे एक हिन्दी जगत। फलाने जो उठ गए हैं धरती से, हिन्दी जगत के मूर्धन्य टाइप के कुछ थे। फलाने जो नहीं उठ पा रहे हैं वो अभी तक हिन्दी जगत में योगदान कर रहे हैं। हिन्दी जगत और योगदान ये दोनों मूल भाव हैं उनके, जो आगे चलकर महान बनना चाहते हैं। पहले हिन्दी जगत की ज्ञात उप-शाखओं के बारे में विनम्र प्रस्तुति करना चाहता हूं। नए साल के पहले दिन दार्शनिक व्याख्या करना चाहता हूं। इससे पहले कि खारिज कर दिया जाऊं, योगदान और जगत का विश्लेषण कर री-एंट्री करना चाहता हूं। दुकान-भाव में।
हिन्दी जगत कई शाखाओं में विभाजित है। दो मुख्य शाखाएं हैं। साहित्य जगत और पत्रकारिता जगत। साहित्य जगत की कई उप शाखाएं हैं। कविता-जगत,कथा-जगत,आलोचना-जगत,अनुवाद-जगत,लघु-पत्रिका-जगत,मासिक पत्रिका जगत। पत्रकारिता जगत की भी कई शाखाएं हैं। प्रिट पत्रकारिता-जगत,टीवी पत्रकारिता-जगत,वेब पत्रकारिता-जगत,ब्लॉग-जगत। जगत के इतने रूप होंगे, जगत कायम करने वाले ने कभी नहीं सोचा होगा। इन सब जगतों में योगदान करने की गंभीर उत्कंठा हिंदी जगत के लेखों में दिखती है। योगदान एक ऐसा लक्ष्य है जो कुछ लोगों को भरी जवानी में ही बूढ़ा बना देता है। मालूम पड़ता है कि वो कई जगतों में योगदान के लोड से मरा जा रहा है। कुछ लिख दीजिए तो प्रतिक्रिया आती है कि ये योगदान कैटगरी का है। योगदान करने का एक लाभ है कि दुनिया में नहीं रहने के बाद गोष्ठियां आयोजित होती हैं। संस्मरण उस योगदान भाव को ज़िंदा रखने की एक विधा है। बहुत सारे पत्रकार भी अपने जगत में योगदान कर जाना चाहते हैं। बहुत सारे साहित्य जगत में योगदान के साथ-साथ पत्रकारिता जगत में भी योगदान करना चाहते हैं
योगदान और जगत। ये सभी भाषाओं में हैं। योगदान भाव से मुक्त हो गए तो आप फिनिश हो गए। सायास योगदान करने का एक कोर्स बनाना चाहता हूं। अनायास कुछ भी अच्छा नहीं लगता। खुद को बुलंद साबित कर दीजिए तो सवाल उठाया जाता है कि उनका योगदान क्या है। अब इस महादान का हिसाब ही नहीं पूरा होता। क्या हो अगर कुछ भी योगदान न हो और महान बना दिये जाएं। कई लोग इस रास्ते भी अपनी दुकान चला गए हैं। मोबाइल दुकान। जो हर गोष्ठियों और लघु-समूहों में महानता के गुण गा आती है। पान की गुमटियों को हाज़िर-नाज़िर मान कर मित्र-मंडलियों की बैठकों में बकरीवाद के नए शिखर बनाये जाते हैं। बकौल चचा शेष नारायण सिंह बकरीवाद का जीनोम सबसे पहले पत्रकारों में नोटिस किया था। मेरी ख़बर, मैंने ये मैंने वो....टाइप से कर दिया है, वो अब तमाम आने वाली और आ कर मेरी तरह गुज़र जाने वाली पीढ़ियों से नहीं होगा। शिल्प और कथ्य कोई बता देता तो इन दोनों का ख्याल करते हुए किसी महान रचना की तरफ कदम बढ़ाता। भाषा की सहजता भी अब जटिल अवधारणाओं से परिभाषित की जानी चाहिए। इस तरह की बातें कोर्स में होनी चाहिए।
मैं ये क्यों लिख रहा हूं। पता नहीं। अनादर करने के लिए तो बिल्कुल नहीं। लेकिन कई रचनाओं में जब इन दो शब्दों पर नज़र पड़ती है तो लगता है कि इसके पीछे के मनोभावों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। ये क्षमता मुझमें नहीं है और न ज्ञान। लेकिन विषय तो रख ही सकता हूं। मूर्तियों में गढ़े गए नायकों की तरह आसमान ताकते और सुदूर खड़ी आभाषी भीड़ को किसी राह चला देने का रास्ता बताती वो एक उंगली की तरह सम्मान तभी मिलता है जब आप किसी एक जगत में योगदान कर जाएं या फिर आपका योगदान इतना बड़ा हो कि वो कई जगतों की सीमाएं लांघ जाए। महानता की दुकान खड़ी हो जाएगी। तारीफ इसका फ्री गिफ्ट है। आह और वाह इसकी दो टॉफियां। चाटते चाटते कब किसी दांत के कोने में चटक जाएं पता नहीं चलता। क्या कोई ड्रेस कोड नहीं होना चाहिए? उनका जो किसी जगत में योगदान करना चाहते हैं। उनका हुलिया कुछ डिफरेंट होना चाहिए।
नोट- हमारे एक मित्र काफी लिख रहे हैं. उनका परिचय छपता है- लेखक पत्रकार हैं। मैंने कहा कि इतना लिखेंगे तो अब छपेगा- पत्रकार लेखक है।
बढिया लिखा आपने .. आपके और आपके पूरे परिवार के लिए भी नववर्ष मंगलमय हो !!
ReplyDeleteमेरे मन की बात कह दी...
ReplyDeletesahi baat जी, आपको एवम आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteइस अथाह खारे जल के भवसागर रुपी जगत में, कुछेक सीमित हिंदी जगत से सम्बंधित मीठे जल के कूपों में गहराई तक पाए जाने वाले जल समान शब्दों को, कूपों की जगत पर खड़े हो खींचने वालों के विश्लेषण पर अच्छा प्रयास है...अंग्रेजी में कहावत है कि जो केवल खड़ा--खड़ा घूर रहा है उसका योगदान भी महत्वपूर्ण है :)
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो सभी को!!!
mast hai Ravish bhai. aaj naye saal par kuch diffrent mood mein ho.jagat aur journalism ki samalochana pasand aayee.thnks.aap aur aapke pariwar ko 2010 ki best wishes.pawan jindal
ReplyDeleteAlag mood men likhi baten...
ReplyDeleteनया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !!! नव वर्ष-2010 की ढेरों मुबारकवाद !!!
इसी तरह से लिखते रहें और हिन्दी ब्लॉग जगत को समृद्ध करने में योगदान देते रहें... :)
ReplyDeleteजागतिक प्रपंचों के बीच भी जगतारण-भाव...जय हो रवीश जी.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है..आपकी कलम में तो जादू है... आपको सपरिवार नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं... नया साल आपके जीवन में खुशियां और तरक्की लेकर आए..
ReplyDeleteदेखिये अनजाने में ही आप ब्लाग जगत में योगदान कर गए.. एक उत्तम योगदान!!
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