मैं टाइम से तड़पता हूं

तुम घटाओं सी गरज़ती हो
मैं धरती सा तरसता हूं
तुम देर से आती हो
मैं टाइम से तड़पता हूं
ऐ बरखा,बरस न आजकल में
झुलसता हूं मैं धान के पौधों में
तुम कब आओगी आसमान में
मैं सड़ रहा हूं एफसीआई के गोदाम में
मनमोहन से क्या मिलेगा मुझको
आश्वासन नहीं बरसते आसमान से

(फेसबुक पर स्टेटस कवित्त)

8 comments:

  1. बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का,
    जो चीरा तो कतरा-ए-खूं भी न निकला !

    PICHHLI POST PAR.

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  2. मनमोहन जी सुनलो बेचारे धान की फरियाद.. कर दो आजाद..

    आमिन!!!!!!!

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  3. वाह-वाह।
    एक पोस्ट के लिए, दूजा पहली टिप्पणी के लिए।

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  4. धान की फरियाद...

    हम एक थे कभी इसी ज़मीं पर,
    थी एक सांस और एक जान...
    था दो जिस्मों का एक अक्स,
    अब बदला कौन ये पता नही?
    कभी तू बदली सी लगती है!
    तो दिल को यक़ीन नहीं होता...
    फिर लगता शायद ये ज़मी ही,
    अपनी न रही...

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  5. तुम घटाओं सी गरज़ती हो
    मैं धरती सा तरसता हूं
    तुम देर से आती हो
    मैं टाइम से तड़पता हूं
    ऐ बरखा,बरस न आजकल में
    झुलसता हूं मैं धान के पौधों में
    वाह-वाह।

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  6. मनमोहन जी के बस का नहीं है .....................

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  7. कई रचनाएं बिना पढ़े ही छूट जाती हैं
    जाने कैसे छूट गई थी।
    भावनाओं की अभिव्यक्ति खूबसूरती से हो तो बाकी चीज़ें गौण हो जाती हैं।

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