(आवाज़ एक शानदार ब्लॉग है। संगीत के साधकों का ऐसा जमावड़ा जहां गए तो लौट कर आना मुश्किल हो जाता है। हिन्दयुग्म की इस साइट पर हर रविवार कॉफी के साथ एक पुराना गीत भी होता है। इस बार नाज़िया हसन के गाने हैं। सुनकर नाज़िया से बातें करने लगा। बहुत देर तक उसकी आवाज़ को अपने कमरे में घूमने के लिए खुला छोड़ दिया। बातें करने लगा। नाज़िया हसन से जो बातें हुईं वो आपके सामने है।)
नाज़िया
३५ साल की उम्र में तुम तो चली गईं अल्लाह के घर। लेकिन हम तुम्हारी उम्र तक पहुंचने के सफर में न जाने कितनी बार तुम्हारी खूबसूरत आवाज़ के साये में थिरकते रहे। अस्सी के दशक में जब भी तुम्हारा गाना बजता था, पटना पेरिस हो जाता था। पाकिस्तान से आई तुम्हारी आवाज़ पछुआ पवन की तरह हाड़ कंपाती हुई,रूह को थिरकाने लगती थी। तब तक हमने पाकिस्तान की कोई तस्वीर नहीं देखी थी। सरकारी किताबों में विभाजन के वक्त की कत्लेआम की तस्वीरें और तुम्हारे और हमारे हुक्मरानों की तस्वीरें। इन सब के बीच तुम्हारा आना जाना। हम पाकिस्तान को नहीं जानते थे। तुमको जानते थे। अपने से बड़ों को सुनते हुए बेहोशी की हालत में देखते थे तो लगता था कि नाज़िया सबको पागल कर देगी। तमाम तरह की सियासी हवाओं से रास्ता बनाकर तुम्हारी वो पतली सी खनकती आवाज़। कैसेट के ऊपर माइक पकड़ी तुम। लगता था कि झपट लें और गाने लगें तुम्हारे साथ साथ।
नाज़िया तुम दुनिया में छा रही थी। पटना के नौजवानों को देखा है मैंने। बंद कमरों में, दोपहर के वक्त, जब मांएं सो रहीं होती थीं और बाप दफ्तर में खोए रहते थे,कई जवान लड़के लड़कियों को मैंने तुम्हारे गीतों पर झूमते देखा था। सरस्वती के विसर्जन में जयकारे के साथ रिक्शे पर बंधे लाउडस्पीकर से निकल कर तुम्हारी आवाज़ मोहल्लों के घरों में घुस जाती थी।
डिस्को दीवाने...आहा...। हमने बोनी एम को बाद में जाना था। तुम्ही हमारी बोनी एम थी। तुम और तुम्हारे भाई ने क्या जादू कर दिया था।
तुम किसी बच्ची की तरह आई थी। आओ न हम और तुम प्यार करें...आओ न। कुछ दिन की है ज़िंदगी...। वो सारे गाने हमारे कानों में बचे रहे। हम भी नौजवानी की उम्र में मोनो टेपरिकार्डरों के अहसानमंद होते रहे। सिर्फ इसलिए कि उन पर नाज़िया का कसैट बजता था। तुम गाती थी और हम मन ही मन थिरकते हुए लगते थे।
तुम पाकिस्तान की कभी लगी ही नहीं। एक ऐसे झोंके की तरह आती थी कि कभी किसी को लगा ही नहीं कि तुम किसी बंदिशों के मुल्क में घिरी हो। तालिबानियों को सुनाने का मन करता है तुम्हारा गाना। रस्सी से बांध कर। पक्का यकीन है तुम्हारी आवाज़ पर वे बंदूक फेंक कर नाचने लगेंगे।
नाज़िया तुमने अपनी खूबसूरत आवाज़ से एक दौर बनाया है। उस दौर में हम बड़े हुए। तुमने कभी लगने ही नहीं दिया कि हम माइकल जैक्सनवा और मैडोनवा को नहीं समझने परंतु उन पर झूमने वाली पीढ़ी में आउट ऑफ मार्केट हैं। हम तो यही कहते थे कि भाई हम तो नाज़िया के दीवाने रहे हैं। तुम्हारी आवाज़ पर भरोसा तो इससे भी ज़्यादा था लेकिन जो मज़ा आया वो एक कर्ज़ है। अल्लाह तुम्हें शांति दे।
रवीश कुमार
नाज़िया हसन से लेकर नुसरत फतेह अली ख़ान, अदनान सामी तक पाकिस्तान का सुरीला सफर शानदार रहा है। सुरों से लेकर हंसगुल्लों में पाकिस्तान ने तमाम फनकार दिए हैं। वो अलग बात है कि तालिबानियों ने उन्हें उनकी ज़मीन पर परवान नहीं चढ़ने दिया। इसी आधार पर बनी फिल्म खुदा के लिए भी अच्छा संगीत और कहानी के ताने-बाने में बुनी गई है। हालांकि नाज़िया को बहुत ज्यादा नहीं सुना, लेकिन आवाज़ सुरीली है।
ReplyDeleteमेरी ही तरह तुम भी नाज़िया से मौहब्बत करते हो।
ReplyDeletekya baat hai sir dil khush ho gaya
ReplyDeletelikha to bahut achha lekin apni ek line par zara gaur kijiye. tum pakistan ki nahi lagti. janaab Ravish sahab naziya ke daur ka pakistan shayad talibaan se nahi joojh raha tha. aur aaj bhi pakistan mein naziya , aap aur mujh jaise hi log rahte hain ,jinhe talibaan ke kale saaye se jod kar nahi dekha jaana chahiye.ummed hai mera nazriye ko galt nahi samjhenge aap.
ReplyDeleteइसे संयोग कहलें या नादबिन्दू का इशारा कि कुछ ही दिन पहले में भी अपने ८० के दशक के स्टीरियो के लिए खरीदे एलपी रिकॉर्ड साफ़ कर रहा था जो अब केवल उन सुनहरी यादों को ताजा रखने के काम आते हैं क्यूंकि प्लेयर तो कभी का जा चुका है...उनमें नाजिया हस्सन का एलपी दिखाई दिया, अन्य कई बड़े बड़े कलाकारों के एलपी के साथ - उदाहरण के तौर पर, पंडित रवि शंकर का सितार वादन, उस्ताद अलिअकबर खां का सरोद वादन, गुलाम अली की गजलें, आदि आदि...और उसके साथ साथ नाजिया के सब गानों के बोल भी, जैसे 'डिस्को दीवाने', 'लेकिन मेरा दिल', 'तेरे क़दमों को', इत्यादि इत्यादि...
ReplyDeleteएक संगीत ही तो है - सात सुरों से बनी इन्द्रधनुष समान माला - जो कुछ एक आदमी को भगवान् से और एक दुनिया से अभी भी जोडकर रखा है...
क्या संयोग है इधर आपकी पोस्ट खुल रही थी, उधर नाज़िया का डिस्को दीवाने वाला गाना विविध भारती पर शुरू हुया। बिटिया के एक बार फिर पूछे जाने पर मैंने एक बार और बताया कि वैसी दीवानगी आज की पीढ़ी दिखा ही नहीं सकती। उस वक्त ना कोई प्रोमो होते थे, न बाज़ारवाद का आक्रामक रूख होता था, ना इतने सारे (म्यूज़िक) चैनल। फिर भी वो दीवानगी… आहा!
ReplyDeleteये बात बढ़िया लगी कि तालिबानियों को सुनाने का मन करता है तुम्हारा गाना। रस्सी से बांध कर। पक्का यकीन है तुम्हारी आवाज़ पर वे बंदूक फेंक कर नाचने लगेंगे।
रवीश जी आवाज पर उक्त लेख देने वाले इस बहुत छोटे से पत्रकार की ओर से नाजिया हसन के एक ओर प्रशंसक और एक बड़े पत्रकार को सलाम । आने वाले दिनों में मैं नाजिया के कुछ और अनसुने गीत देने का प्रयास करूंगा ।
ReplyDeleteरवीश जी, हिंदी युग्म नहीं हिंदयुग्म लिखा करें....पहले भी कई बार कह चुका हूं.....आवाज़ पर यूं ही आते रहें....
ReplyDeleteनिखिल जी
ReplyDeleteमाफी चाहूंगा। भूल सुधार कर चुका हूं।
Pakistani Gayak aur Gayakaiyon ka main bada Murid raha hoon. Nusrat sahab ko Saltlake stadium Kolkutta 100 Rupai ka ticket lekar sunne main gaya tha.yeh baat 1996 ki hai. Nazia ka ek gana bahut popular hua tha Laila O Laila-Film Qurbani. Menhdi Hasan ka main bahut bada fain raha hun. Ranjish Hi sahi Dil he Dukhane ke liye aa, Aa phir si mujhe chod ke jane ke liye aa.
ReplyDeleteरविश जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम,
नाजिया जी को याद करके आपने हमें बचपन के पल याद दिला दिए जब हम उनके गानों पर झूमते
गुल को बहार बहार चमन
दिल को दिल बदन को बदन
हर किसी को चाहिए
तन का मिलान
इन्सां हूँ मैं
फ़रिश्ता नहीं
डर है कहीं बहक न जाऊं
तनहा दिल न संभलेगा
प्यार बिना ये भटकेगा
आप सा कहाँ है
दिल आपको ही पाए
आप जैसा कोई मेरी जिन्दगी में आये तो बात बन जाये ...
बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़कर....
प्रकाश
ravish ji gjab !
ReplyDeleteaap ko abhi tak hindustan ke madhyam se padha tha ajkal m.p. me hu magar yanha hindustan nahi parakshit nahi hota . kabhi is naye blogger ko bhi padhie kyoki maine aapki prenna se hi apna blog banaya hai . shukriya ravish ji .
bebkoof.blogspot.com