नक्सल घुस गया शहर में लेकर जूता हाथ, पारा के प्रकोप से भीड़ नहीं दे रही साथ... नेताजी के फंड पर मंडरा रहा है गिद्ध, हमें भी हिस्सा चाहिए पत्रकार है क्रुद्ध... पत्रकार है क्रुद्ध मूंग पैंसठ की भई, फीस बढ़ी बच्चों की, इधर नौकरी गई... नीबूं पानी पांच का, नमक हो गया आठ नेता दिखते चिरयुवा उमर हो गई साठ.. कह अनाम कविराय निजात हम कैसे पावें, कलम कुंद हो जाए तो जूतन काम ही आवे...
रेवेन्यू घट रहा है, टीआरपी घट रही है बड़ा बुरा समय है, पिंक स्लिप बट रही है। कल क्या होने वाला है, क्या तुम्हे खबर है माफ करना मां, अब तो तुम्हारी ही पेंशन पर नज़र है।
फीस वाले मामले पर सरकार की खामोशी साफ करती है स्कूलों और मंत्रियो के बीच कहीं न कहीं सांठगांठ है कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार से कोई पूछे ज़रा कि कि 52 साल देश में राज करने के बाद भी ऐसे हालात क्यों हैं?
कांटे में कीडा लगा
ReplyDeleteढील देता है मछुआरा
मछली को खींचने से पहले
खींच से पतंग काटने वाला भी जैसे
ढील देता है पहले :)
बकरा भी कटता है
कहीं हलाल से
तो कहीं झटके से :)
कुछ और भी-
ReplyDeleteनक्सल घुस गया शहर में लेकर जूता हाथ,
पारा के प्रकोप से भीड़ नहीं दे रही साथ...
नेताजी के फंड पर मंडरा रहा है गिद्ध,
हमें भी हिस्सा चाहिए पत्रकार है क्रुद्ध...
पत्रकार है क्रुद्ध मूंग पैंसठ की भई,
फीस बढ़ी बच्चों की, इधर नौकरी गई...
नीबूं पानी पांच का, नमक हो गया आठ
नेता दिखते चिरयुवा उमर हो गई साठ..
कह अनाम कविराय निजात हम कैसे पावें,
कलम कुंद हो जाए तो जूतन काम ही आवे...
यर्थाथ।
ReplyDeleteatta bhi dal ho gaya hai
ReplyDeleteline badi sahi hai.
thanks aisa likhne jo
सामयिक और सटीक।
ReplyDeleteरेवेन्यू घट रहा है, टीआरपी घट रही है
ReplyDeleteबड़ा बुरा समय है, पिंक स्लिप बट रही है।
कल क्या होने वाला है, क्या तुम्हे खबर है
माफ करना मां, अब तो तुम्हारी ही पेंशन पर नज़र है।
महंगा भोजन , सस्ता वोट .
ReplyDeleteनेता उडायें हज़ारों नोट .
लोकतंत्र पर करता चोट .
किसको कहें किसका है दोष .
हम मैं है या व्यवस्था मैं है खोट.
हमे दाल रोटी भी खानी मुश्किल हो गयी है और नेताओ की सुविधाएँ बढती जा रही है...!घर तो जैसे तैसे चला लेंगे पर इस देश का क्या होगा..!
ReplyDeleteसर अब एकगो कितबिया छपवा ही लें चिरकुट शायरी के नाम से।
ReplyDeletedil ke karib
ReplyDeleteबढिया हैं !
ReplyDeleteआटा हुआ गीला हर दाल बनी मसूर
ReplyDeleteबातें करना है सस्ता
बातें ही बातें करो जितना चाहे ऐ हुज़ूर
ekdam satik sahi,bahut hi badhiya.aaj ka haal to yahi hai.
ReplyDeleteफीस वाले मामले पर सरकार की खामोशी साफ करती है स्कूलों और मंत्रियो के बीच कहीं न कहीं सांठगांठ है
ReplyDeleteकांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार से कोई पूछे ज़रा कि कि 52 साल देश में राज करने के बाद भी ऐसे हालात क्यों हैं?
अच्छे विषय पर लिखा है।