उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी दिल्ली तक पहुंचने के लिए बीएसपी को झोंक दिया है। सब अटकलें लगा रहे हैं कि कितनी सीटें आ जायेंगी जिससे मायावती तीसरे मोर्चे को पीएम पद की दावेदारी के लिए मना सकें। लखनऊ से दिल्ली चलों के रास्ते में बीएसपी ने उन सबको साथ ले लिया है जिनके आने से पार्टी की गाड़ी की रफ्तार बढ़ती हुई लगती है। कांशीराम ने जितना प्रयोग किया उससे कहीं ज़्यादा मायावती प्रयोग कर रही हैं।
उसी की एक झलक मिली पश्चिम दिल्ली से बीएसपी के उम्मीदवार दीपक भारद्वाज से मिलकर। भारद्वाज हाल ही में बीएसपी में शामिल हुए हैं। खुल कर कहते हैं कि वे विश्व हिंदू परिषद में रहे हैं। गौ रक्षा आंदोलन की मदद करते रहे हैं। आर्यसमाजी हैं। आर्यसमाज कर्मकांड और जात पात में यकीन नहीं करता। मायावती ने ब्राह्मणों को जोड़ा तो उनके साथ साथ पार्टी में कई नई चीज़ें जुड़ रही हैं। भारद्वाज कहते हैं कि आर्यसमाज और बीएसपी की विचारधारा एक है।
दीपक भारद्वाज की चर्चा मीडिया में इसलिए नहीं हुई बल्कि इसलिए हुई कि उनके पास छह सौ करोड़ रुपये की संपत्ति है। उनके घऱ की यज्ञशाला में कांशीराम और अंबेडकर की तस्वीर एक बदलाव को बताती है लेकिन सवाल भी उठाती है कि वीएचपी से आया शख्स बीएसपी का कितना होगा। गाज़ियाबाद से बीएसपी के उम्मीदवार अमरपाल शर्मा उम्मीदवारी का पर्चा भरने के लिए मिथुन लग्न का इंतज़ार करते हैं। ज़ाहिर है बीएसपी सिर्फ अपनी मूल विचारधारा के सहारे नहीं बढ़ सकती। उसे कई विचारधाराओं को लेकर चलना होगा। बहुजन समाज को सर्वजन समाज में मिलाने के बाद अब ऐसे तत्वों को रोकना मुश्किल होगा।
कोई भी पार्टी सिर्फ विचारधारा के बल पर नहीं बढ़ सकती। एक मोड़ आता है जब मूल विचारधारा को थोड़ा किनारे करना पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी को भी एनडीए बनाने के लिए करना पड़ा था। कांग्रेस को भी करना पड़ा। विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी कांग्रेस को रोकने के लिए दक्षिण और वाम का सहारा लेना पड़ा था। बीएसपी को भी यही करना पड़ रहा है। पार्टी भले ही देश भर में सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन वो एक गठबंधन बना रही है।
बीएसपी में अब वो लोग भी आ गए हैं जो कभी पार्टी को चंदा नहीं देते थे। पार्टी ने पांच छह उम्मीदवार ऐसे उतारे हैं जिनके कारोबार को जोड़ दें तो चार पांच हज़ार करोड़ तक जा पहुंचता है। पुणे से बीएसपी के उम्मीदवार डी एस कुलकर्णी की कंपनी का कारोबार १८०० करोड़ रुपये का है। मेरठ से उम्मीदवार मलूक नागर का अपना डेयरी का व्यवसाय है। गौतमबुद्धनगर से उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नागर पारस मिल्क के मालिक हैं। पारस ग्रुप का कारोबार एक हज़ार करोड़ रुपये का है।
इन सबमें खास बात ये है कि ये सभी उन इलाकों में रहते हैं जिन्हें पॉश कहा जाता है। सुरेंद्रसिंह नागर दक्षिण दिल्ली के सबसे पॉश इलाकों में से एक न्यू फ्रैंड्स कालोनी में रहते हैं। मेरठ के उम्मीदवार मलूक नागर का मकान वसंत विहार में हैं। इनके मकान की कीमत सवा करोड़ बताई गई है। दक्षिण दिल्ली से बीएसपी के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर छत्तरपुर फार्म हाउस के इलाके में रहते हैं। सत्तर अस्सी लाख की ऑडी कार में चलते हैं। यानी बीएसपी के उम्मीदवार अब उन इलाकों से भी आने लगे हैं, जहां देश का कुलीन तबका रहता है। जो अपनी पार्टियों में बीएसपी का मज़ाक उड़ाता है। अब उसी का पड़ोसी बहन कुमारी मायावती के नारे लगा रहा है। सुरेंद्र नागर ने तभी कहा कि मायावती तो पारस मिल्क से भी बड़ी ब्रांड हैं।
इस बदलाव को समझना होगा। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से। ये वो उद्योगपति हैं जो पूरी तरह से कुलीन उद्योगपति नहीं हुए हैं। मलूक नागर और सुरेंद्र सिंह नागर का दूध का कारोबार ऐसा है कि उन्हें ग्रामीण इलाके से जुड़ा रहना पड़ता है। कंवर सिंह तंवर की ज़मीन जायदाद भी दिल्ली के गांवों में हैं। सत्संग भवन, धर्मशाला, फ्री की दवा आदि बांटने जैसे सामाजिक काम करने के कारण इनकी प्रतिष्ठा है। और पैसे वाले होने के कारण ये सभी अभी तक बीजेपी और कांग्रेस के काम आया करते थे। बल्कि कुछ तो इन दलों में औपचारिक रूप से शामिल भी थे। मायावती ने इन्हें बीएसपी में हिस्सेदार बना दिया है। दूसरी पार्टी में इनकी हैसियत मददगार की थी। ये एक बड़ा बदलाव है। बीएसपी का चेहरा बदल रहा है। उद्योगपति पार्टी में आ रहे हैं। ऑडी, प्राडो और लैंड क्रूज़र जैसी लाखों करोड़ों की कारों पर चलते हैं और खुल कर बताते हैं कि पांच या दस करोड़ का टैक्स भी भरते हैं।
अब सवाल यह है कि इससे बीएसपी को कितना फायदा हो रहा है। अगर ये जीत जाते हैं तो बीएसपी इनकी खामियों को नहीं देखेगी। अगर ये नहीं जीत पाते हैं तो बीएसपी को सोचना पड़ेगा कि सर्वजन बनने में कहीं बहुत जल्दी तो नहीं कर दी। बिना किसी वैचारिक तैयारी के सामाजिक समीकरणों को कब तक टिकाये रखा जा सकेगा। बीएसपी को आंदोलन समझ कर ताकत देने वाले अपने कार्यकर्ताओं पर पूरा भरोसा होगा लेकिन क्या वो इन उद्योगपतियों या सर्वजनों की निष्ठाओं पर भी उतना ही भरोसा करती है। मायावती को नंबर चाहिए। चार बार लखनऊ से राज चलाकर एक बार वो दिल्ली से राज करना चाहती हैं। एक्सप्रेस वे पर उनका हाथी दौड़ रहा है। ब्रेक लगाने की गुज़ाइश नहीं है। तभी तो मायावती को कहना पड़ता है कि मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं। बीएसपी बड़ी हो रही है तो अब पार्टी में कई लोग बीएसपी से भी बड़े हो रहे हैं।
आपने कहा - "कोई भी पार्टी सिर्फ विचारधारा के बल पर नहीं बढ़ सकती।" लेकिन रवीश भाई आज के जो हालात हैं, उसमे विचारधारा कुछ शेष है क्या? यदि कुछ शेष है तो वह है येन केन प्रकारेण सत्ता-सुख।
ReplyDeleteएक अच्छा सामयिक विश्लेषण।
सादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com
यह तो राजनीती मे होता ही है दवे कुचले बेचारे वोट दे सकते है चुनाव नहीं लड़ सकते . सिर्फ मायावती की पार्टी मे कमियां क्यों खोजते है लोग औरो को भी देखे .
ReplyDeleteएक बात स्पष्ट है कि मायावती का एजेण्डा सभी राजनेताओं की ही तरह सत्ता की सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ते हुए सर्वोच्च कुर्सी पर पहुँचने का ही है। दलितो का मसीहा, लोकसेवक, सम्वेदनशील प्राणी आदि की छवियाँ तो केवल इस एजेण्डे की पूर्ति के लिए आवश्यक वोट जुटाने के लिए बनानी पड़ती हैं।
ReplyDeleteआज दलित वोट अपनी जेब में डालकर ‘लॉक’ कर लेने के बाद मायावती का अगला कदम भरपूर दौलत जुटाना है क्योंकि आजकल दौलत के बिना चुनाव लड़ना और जीतना असम्भव है। अति गरीब पिछड़े और दलितों के बीच मतदान से पूर्व जो नेता सबसे अधिक शराब, पैसा, साड़ी, साइकिल, हैण्डपम्प आदि भेंट करता है वही उनके वोट का मालिक होता है। ये वोटर जानते हैं कि चुनाव बीत जाने के बाद चाहे जो जीतेगा उसकी ओर झाँकने नहीं आएगा।
इस मानसिकता के वोटर को लुभाना थैलीशाहों के लिए आसान हो गया है। चतुर मायावती इस बात को खूब समझती हैं। इसीलिए अब सच्चे लोकसेवकों के बजाय धनपशुओं और बाहुबलियों को मैदान में उतारने की नीति पर चल रही हैं। अपने मन्त्रियों को सरकारी मशीनरी से अकूत सम्पत्ति इकठ्ठा करने का लाइसेन्स दे चुकी हैं। उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि देश की संसद में कैसे लोगों की जमात पहुँचने वाली है। जोशी को हराकर मुख्तार अन्सारी संसद को क्या गरिमा प्रदान करने वाले हैं?
लेकिन इस सारे गन्दे खेल के लिए मैं उन अभागे वोटरों को दोषी मानता हूँ जो किसी क्षुद्र लाभ के लिए अपने मत को बेंचने के लिए तैयार हैं, और देश की बागडोर ऐसे भ्रष्ट, सत्तालोलुप, माफ़ियाप्रिय और देशद्रोही मानसिकता के लोगों के हाथ में थमाने को तैयार हैं।
मायावती के मुखारविंद से नित नए बयान सुनने को मिलते हैं...
ReplyDeleteएक तरफ़ तो वो मुख्तार को ग़रीबों का मसीहा करार देती हैं वहीं खुलेआम चुनौती देते फिरती हैं कि उनके शासन में अपराधियों के प्रति को दया भाव नहीं रखा जाता।
वैसे भी सोशल इंजीनियरिंग तो एक बहाना है। दरअसल बीएसपी से धनाढ्य लोगों को जोड़ने के लिए इस नाम का सहारा लिया गया है। अगड़े तबके के लोगों को टिकट बेचकर सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया जाता है। बेचारे ग़रीब और सदियों से शोषित लोग अपनी पार्टी समझकर वोट दे देते हैं। अम्बेडकर जी और खुद की मूर्तियां बनवाना, पार्कों का निर्माण करने के अलावा बीएसपी सरकार कुछ नहीं कर रही।
मैं हिमाचल में ही जन्मा, पला बढ़ा हूं। उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों की ग़रीबी के बारे में अखबारों और टीवी आदि से ही जानकारी मिली थी। आज रात मतदान के बाद जगह-जगह से आई खबरों को देख रहा था। महोबा में लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया था। सोचा था इस पर पैकेज लिखूंगा...। फीड देखने बैठा तो आंखों में आंसू आ गए। फटे पुराने कपड़े पहने उन लोगों की दशा वाकई खराब है। समझ नहीं आता आज़ादी के 60 साल बीत जाने के बावजूद हालात ऐसे क्यों हैं... इन नेताओं ने क्या किया है सिवाए बेवकूफ बनाने के..
हर एक 'हिन्दू' को पहले अपने पूर्वजों के कथन पर ध्यान देना होगा, जैसे, "प्रभु की कैसी ये 'माया' है, कहीं धूप कहीं पर छाया है." और, प्रभु को नादबिन्दू भी कहा जाता है, एक ऐसा जीव जो अदृश्य है किन्तु सर्वगुण संपन्न, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, इत्यादि इत्यादि जिसने ब्रह्मनाद से ही सारी श्रृष्टि की रचना की - किन्तु शून्य काल में - जो स्वभाविक है कि शून्य काल में ही ध्वंस भी हो गयी होगी...फिर उसे माया अथवा योगमाया का सहारा लेना पड़ा होगा यह देखने के लिए (अपने तीसरे नेत्र में) कि उसने रचा क्या था? :)
ReplyDeleteशायद आरंभ में उसने भी जोकर ही बनाये जो सब आत्माओं को भी देखने को मिले और परमात्मा को भी वे मूर्ख समझ बैठे :) आदि आदि...अनादी काल से अनंत तक...
भाई, आपको क्या लगता है कि आज के दौर में विचारधाराओं का कोई अर्थ अभी भी है ?
ReplyDeleteभारद्वाज जी की बातें दिन को बहलाने वाली हैं। जहाँ तक बीएसपी की बात है, तो शुरू में तो यह वाकई अलग रही थी, पर इधर माफियाओं की भर्ती कर इसने भी स्वयं को बाकी की लाइन में खडा कर लिया है।
ReplyDelete----------
सावधान हो जाइये
कार्ल फ्रेडरिक गॉस
parti ka bistar ho, aap dilli par kabij ho isme bhi koi burai nahi hai lekin purana sabhalkar naye ko jodna jyada samajhdari hai bajai iske ki aap peeche wale chute jai aur aap aage badhte rahe
ReplyDeleteआपके लेख से एक तस्वीर उभरकर सामने आई है वो कार्पोरेट राजनीति, जिसके पास होगा जितना धन, वो दल कार्पोरेट राजनीति में होगा उतना सक्षम..पहले अमीरों का सहारा कांग्रेस और भाजपा उठाती थी, अब अन्य दलों ने भी उठना शुरू कर दिया. ऐसा ही एक उदाहरण देखने को मिली थी पंजब विधान सभा चुनावों के दौरान, जब शिअद ने एक शिअद नेता को टिकट देने से इंकार करते हुए एक व्यापारी को टिकट दे दिया था, जिसके पैसे से अकाली दल ने खूब प्रचार किया. मगर बदनसीब के वो व्यापारी हार गया.
ReplyDeleteआज कल मीडिया और दूसरी पाँलिटिक्ल पार्टियो को सिर्फ़ मायावती में ही सारा दोष नजर आता है, वो यह नही देखते कि उससे कही ज्यादा उनके यँहा
ReplyDeleteपर वो सब बुराईयां है जो वो मायावती में ढूंडते है ।
रवीश जी, एक बात और मै आपको बताना चाहता हू । मै १४ अप्रैल को पार्लियामेंट गया था , वहाँ पर कम से कम २ किलोमीटर की लाईन थी जो बाबा साहिब को नमंन करने के लिए आई थी । वहाँ मेनें देखा एक बेहद सादा व्यक्ति लाईन में लगा हुआ है , पता चला कि वो मायावती के पिता है } मुझे देख कर आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी हस्ती का पिता इतनी लम्बी लाईन मे लगा हुआ है ।
मै मायावती के उन आलोचको से पूछना चाहता हूँ ? कि कितने वी.वी.आई.पी. के परिवार अपने को उस सुख से दूर रख पाते है जो उनको मिल सकता है ।
Mayawati ki sabase badi takat hai unki confidence.yeh confidence unhe bahujanaon or vanchitoan ne diya.isi mul janadhar ke bal par we sarvajan ko bhi dhire-dhire hi sahi swikar hone lagi hain. Kanshiram ne 'awasrvad' ko 'darshan' mein badal diya tha usase do kadam aage hain maya! we bhi badali hain--or sarvajan bhi badala hai.jaha tak vichardhara ki bat hai us level par kaha koi khara hota hai.POss ilakoan se hathi nikalane laga hai.maya ke pas awasar hai,chahe to we Ambedakarwad ki lenin ban sakati hain.
ReplyDeleteकुछ पाँलिटिक्ल पाँर्टीओ और मीडिया को मायावती में सिर्फ़ बुराईया ही दिखाई देती है । चाहे वो चंदे को लेकर हो या टिकट को लेकर लोग खूब बड़ा-चड़ा कर बाते करते है । साथ मिलता है मीडियां का । कितनी पालिटिक्ल पार्टियां है जो बिगर पैसा लिये टिकट बाटंती है ? लेकिन नाम उछलता है तो सिर्फ़ मायावती का ।
ReplyDeleteरवीश जी , एक बात और आपको बताना चाहता हूँ , मै १४ अप्रैल को संसद भवन गया था । वहाँ पर २-३ किलोमीटर लाईन लगी थी , जो बाबा साहब को श्र्द्वा-सुमंन अर्पित करने के लिये खड़ी थी । तभी एक व्यक्ति वहाँ पर आया जो देखने में बेहद साधारण लग रहा था } चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा । वो व्यक्ति सीधा सबसे पीछे जा कर खड़ा हो गया । बाद में पता चला कि वो मायावती के पिता है । देखकर आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी हस्ती के पिता इतनी लम्बी लाईन में लगे हुये है ।
मन में ख्याल आया कि कितने वी.वी.आई.पी. होगें, जिनके परिवार वाले इतने साधारण होगें ओर वो लाईन में खड़े होते होगें ।
क्याँ लोगो को मायावती में सिर्फ़ बुराई ही नजर आती है ।
इस व्यवस्था में आगे बढ़ने का एक मात्र सूत्र है धन। माया ने वह राह पकड़ली है। लेकिन इस राह पर तो बहुत दल हैं, बहुत कम्पीटीशन है। देखते हैं हाथी क्या कमाल करता है।
ReplyDeleteका बाबा ? रऊआ त एकदम से - सतीश मिश्र के यहाँ कुछ मिलल हा ? राज्य-सभा के टिकट के इन्तेजाम करीं ! मोतिहारी के झंडा - अरेराज के झंडा दिल्ली में खडा होखे की चाहीं, नु ! अछ्छा ई बताईं - ई मोतिहारी के मझऊआ जिला काहे कहल जा ला ? तनी मनी असर बुझाता !
ReplyDeleteआपने संजीव कुमार की नौ रोल वाली 'नया दिन नयी रात' देखी? अमिताभ बच्चन की 'शोले' देखी? राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' अदि अदि. जब ये फिल्म आप कई बार देखते हो कभी कभी तो क्या आपको आभास होता है कि अमजद खान, संजीव कुमार, राज कपूर अदि कलाकार अब इस दुनिया में नहीं हैं? मुझे पूर्ण विश्वास है कि नहीं आप उस वक़्त केवल उस फिल्म का फिर से आनंद लेते हो., वैसे ही जैसे आपने उसे पहली बार देखा था...और वो फिल्म आपको अच्छी लगी थी, इस कारण आप उसे फिर देखना चाहेंगे...शायद बार बार...किन्तु अन्य बोर फिल्म नहीं...यही दशा अब हमारी हो गयी है, हम उकता गए हैं वोही बोर स्क्रिप्ट पर लिखी फिल्म देखते देखते...जिसमें बस पैसा और बाहुबल ही दिखाया जाता है...क्यूंकि मायावी 'बाल कृष्ण' नटखट है :)
ReplyDeleteAppne bahut accha likha hai par main ek batt ajj tak samajh nahi paya hu ki mere ghar me sabhi log BJP ko kuo support karte hai, maeri Maa papa se alag vichar rakhati hai, mera bhai mere se alag sochata hai etc. Par hun sabhi BJP ko vote karte hai yesa why? Kahi badi-Badi bate karne wale hum hi to Jat Paat or Dharam ko badhawa nahi de rahe hai? Maya wati ki blog par charcha to hoti hai per us mansikta ka kya jo jabran TV par Priyanka & rahul ko next PM banane ko tatpar hai. Kabhi priyanka ke Dress code ko to kabhi uske Jeans ki tariff karr-karr ke ek market banna rahi hai. Jab tak hun is dogali mansikta ke sath sochte rahenge desh ka kuch nahi ho sakta.
ReplyDeleteइन उद्योगपतियों औऱ माफियाओं को टिकट देने के पीछे मायावती की कोई सामाजिक विचारधारा नहीं है.....मुख्यमंत्री की कुर्सी मायावती को छोटी लगने लगी है और उनकी नजर अब 7 रेसकोर्स रोड के बंगले पर है.....जिसे पाने के लिए वो ओसामा बिन लादेन को भी उम्मीदवार बनाने के लिए तैयार हैं ..... लेकिन चिंता न करिये फिलहाल इस चुनाव में मायावती की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पूरी नही होने वाली ....
ReplyDeleteहम भारतीय २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस क्यूँ मनाते हैं?
ReplyDeleteइतना भी नहीं पता? उस दिन १९५० में हमने अमेरिका की नक़ल करने की ठानी थी...हजारों साल की गुलामी के बाद...
आखिरी गुलामी अंग्रेजों की थी जिन्होंने पूरे संसार पर एक समय अपना जाल फैला दिया था और उसमें छोटी छोटी मछलियों जैसे कई राज्य फँस गए थे...किन्तु एक जवान ने १८६९ में पैदा हो, लंगोटी पहन, लाठी से उनके जाल में छेद कर दिया और बूढे होते होते भारत को आज़ादी दिला ही दी, १५ अगस्त १९४७ को, और केवल छह मास के भीतर ही गोली भी खा गया - और यह ६ नंबर शुक्र का है जबकि शुक्राचार्य राक्षसों के गुरु माने जाते हैं :)
अंग्रेजों की गुलामी तो छूट गयी (यद्यपि उसमें भी शक है) किन्तु क्या काल की गुलामी से आज़ादी पायेगा कोई जो हिंदुस्तान में तो रहता है पर 'हिन्दू' है ही नहीं, या खुद को हिन्दू मानता ही नहीं?...
हिंदी भाषा भी विचित्र है - 'हाथी' अथवा 'गज' शब्द का अर्थ हमने बचपन में - स्कूल में नहीं - पतंग के मांजे खरीदते समय जाना जब दुकानदार उसे नापता था, एक गज बांये कंधे से दांये हाथ की उँगलियों तक...सांप को भी भुजंग कहते हैं, अर्थात हाथ का एक अंश (हाथी की सूंड जैसे)...और 'दिग्गज' शब्द का प्रयोग किया जाता है 'आठों दिशा के आठ हाथी जो पृथ्वी को दबाये रहते हैं' - और मानव को 'अष्टभुजा' वाली दुर्गा माता द्वारा अनंत काल तक अष्टचक्र में उलझाये रखने में भी - और हिमालय, दुर्ग समान, भारत की रक्षा भी करता है :)
अगर चाह हो तो मायावती का हाथी दिल्ली में बैठ आठों दिशा पर नियंत्रण क्यूँ नहीं कर सकता?
जय माता की फिर क्यूँ न कहे कोई?
Mayawati ji ke pass ek bahut achha mauka tha ki woh apne dedh saal ke karyakal se ek sakaratmak mahaul banatee jaise Nithish kumar,shivraj chauhan, modi aadi ne bana rakha tha. lekin is karyakal main unhone ne koi bahut achha prabhav nahi banaya unki social engineering bhi is loksabha cunav main phel ho rahi hai. Lucknow ko patharon ka sahar bana diya hai. Lucknow ke readymix concrete bechne wale concrete kee supply nahi kar pa rahe hai.Good governace kahi dikhta nahi hai.unke votebank se pasi samaj, mallah aur khatik to is chunav main nikal gaya hai. Brahmin bhi is baar alag-2 dalon main shift kar gaye hai. isliye 2004 ke election se unke siton main koi izafa nahi hone wala hai. kansiram ji soch main aur bahanji kee soch main bahut anter hai.Paise walon ko jodne se unhe kuch bhi fayda nahi hone wala sivai nuksan hone ke.
ReplyDeleteravish sir ye to ek njara hai... kuch aur hain badi machali... ramvir upadhyay. cabina minister...
ReplyDeletedevendra yadav.. hal hi me SP chhodkar BSP me shamil huye hain... property ki inhe khud nahi pata ki kitane ki hogi.... jaha jis shahar me chahate hain property kharid lete hain..