१. सारे रिश्ते बदल रहे हैं
जो साथ थे मुकर रहे हैं
कल कुछ और नये बन जायेंगे
अफसोस नहीं,बस याद आयेंगे
२.दो टके की शायरी है मेरी
चार आने की दाद मिलती है
३.लौटा दूंगा तुम्हारी आंखों का काजल
एक शर्त है, अपनी नज़रों का पता बता दो
४.तुम्हारी आंखों के नीचे जो झुर्रियां हैं
सिलबटों में उनकी दिल का दरखास्त छिपा है
५. तुम्हारे लिए एक गुलदस्ता खरीदा है
कहो तो मैं फूल भी खरीद लाऊं
६.कितने कंजूस हो तुम, किस चीज़ की कमी है
एक मुफ्त का सामान है,मुझे पास रख लो
७. ये जर्नलिस्ट बड़े फटीचर हैं
न आशिक हैं न शायर हैं
८. मैं तुमको इक दिन चाय पे बुलाने वाला हूं
कप प्लेट की तरह संभाल कर रखा है दिल
९. आज ही तुमसे दिल की बात कह देता
तुम्हारे कॉलर ट्यून की धुनों में खो गया
१०. मैंने तो सिर्फ तुमसे पता पूछा था
जाने क्यों तुम अपना हाल बताने लगे
११. तुम्हारा सारा एसएमएस डिलिट कर देता हूं
दो चार शब्दों से मेरा काम नहीं चलता
सर, आपने और गिरि ने मिलकर ब्लॉग पर कविता का महौल बना दिया है। एमए में पैसे के लिए लिखी एक कविता हाथ लग गयी, मैंने भी उसे ब्लॉग पर चढ़ा दिया है। ब्लॉगवाणी के लोकेशन के हिसाब से ठीक आपके नीचे।
ReplyDeleteओह, ग्यारहवीं नंबर की आखिरी शेर क्या बड़ी ऊंची चीज़ कही जायेगी? खामख्वाह फ़ोन कंपनियों का काम नहीं बढ़ायेगी?
ReplyDelete४.तुम्हारी आंखों के नीचे जो झुर्रियां हैं
ReplyDeleteसिलबटों में उनकी दिल का दरखास्त छिपा है
सुंदर अभिव्यक्ति।
1 din main 3 3 post....kamal kar diya.
ReplyDeleteलौटा दूंगा तुम्हारी आंखों का काजल
ReplyDeleteएक शर्त है, अपनी नज़रों का पता बता दो
bahut hi sunder
सारे रिश्ते बदल रहे हैं
ReplyDeleteजो साथ थे मुकर रहे हैं
कल कुछ और नये बन जायेंगे
अफसोस नहीं,बस याद आयेंगे
बढ़िया अभिव्यक्ति . लिखते रहिये ..धन्यवाद.
सचमुच बहुत सस्ते शेर हैं. इतने सस्ते कि इन्हें गीदड़ कहने में भी संकोच होता है.
ReplyDeleteरवीश जी,
ReplyDeleteआपकी शायरी अधूरी है, उदास है लेकिन सस्ती नहीं.
मुझे लगता है ये वो जज्बात हैं जो सिर्फ रवीश के सीने में दफ़न हैं और बड़ा पत्रकार रवीश कुमार और उसकी पेशागत मजबूरियां उसे बाहर नहीं निकलने देतीं।
इन नज़्मों को पढ़ने के बाद एक पुराना गीत याद आ रहा है-
सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों हैं?
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों हैं?
समझ नहीं आता ये इंसान की कमज़ोरी है या इस शहर में जीने की मजबूरी?
काफी सताए हुए लगते हो!
ReplyDeleteकिसी ने ठीक कहा की हर सताया हुआ शायर होता है!
तुम्हारी आंखों के नीचे जो झुर्रियां हैं
ReplyDeleteसिलबटों में उनकी दिल का दरखास्त छिपा है
बहुत बढ़िया ..
ज्ञानी कह गए की केवल भूतनाथ शिव की तीसरी आंख में झुर्री नहीं पड़ती क्यूंकि केवल वे ही अनंत हैं! फिर भी विचार अच्छा है दिल को बहलाने के लिए!
ReplyDelete३.लौटा दूंगा तुम्हारी आंखों का काजल
ReplyDeleteएक शर्त है, अपनी नज़रों का पता बता दो
नो रिटर्न, नो एक्सचेंज।
गर पंडित ने दान को कहा है तो आंखों से ही जता दो।
अच्छा लगा आपने ब्लाग पर इतने अपनापन से दिल की बातें शाया कीं
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ReplyDeleteदो टके की शायरी है मेरी
ReplyDeleteचार आने की दाद मिलती है
ये जर्नलिस्ट बड़े फटीचर हैं
न आशिक हैं न शायर हैं
तुम्हारा सारा एसएमएस डिलिट कर देता हूं
दो चार शब्दों से मेरा काम नहीं चलता
सस्ती शायरी में भी कभी कभी गहरी बात हो जाती है।
SIR in sab SHAYARAANA ANDAZ ke liye sirf ek shabd "DHANYAWAD"
ReplyDeleteचंद लाईने पड़ कर .........
ReplyDeleteअपनापन सा लगने लगा है...........