बहुत दिनों बाद concept of physics देखी। किताब पर लेखक के नाम ने कई पुरानी यादों को ताजा कर दिया। पटना के साइंस कालेज के प्रो हरिश्चंद्र वर्मा की क्लास। ए सेक्शन में सैंकड़ों लड़के लड़कियों की भीड़। दूसरे कालेज से हम जैसे लड़के भी। सिर्फ प्रो एच सी वर्मा का क्लास करने के लिए। तमाम तरह की अटकलें। एक प्रोफेसर के बारे में किस्से। प्रो वर्मा का क्लास जो समझ गया उसका आईआईटी कोई नहीं रोक सकता। मुझ जैसा विज्ञान में भुसकोल(बेकार विद्यार्थी का सार)विद्यार्थी भी उनकी क्लास में इसलिए जाता था कि उन्हें देखकर ही फिजिक्स की गहरी समझ पैदा होगी और आईआईटी का बेड़ा पार। लेकिन असली हीरो तो प्रो वर्मा ही थे। क्या अंदाज़ और क्या साख। एक शिक्षक के लिए दूसरे कालेज से आना,उनकी क्लास में बैठने के लिए झूठ बोलना। कुछ बात तो थी ही उनमें।जिन लोगों ने प्रो एच सी वर्मा का क्लास किया है या ट्यूशन पढ़ा है वो उन्हें नहीं भूल सकते। उन्हें देखना किसी हीरो को देखने के इंतज़ार जैसा होता था। वो क्लास से निकलते थे तो छात्रों की भीड़ पीछे पीछे चलती थी। ये वो शिक्षक थे जिन्होंने बिहार के उस खराब दौर में भी अपनी शिक्षा से छात्रों में सपने को जगाए रखा। प्रो वर्मा को देख अपने सपनों पर यकीन हो जाता था। बाद में मैंने जब यह जान लिया कि विज्ञान मेरा अनिष्ठ ही करेगा तो मैंने उन सपनों का रास्ता छोड़ दिया। अनिष्ट इसलिए कि जो विषय समझ में न आए उसमें या तो पारंगत होने का श्रम किया जाए या फिर वहां से दिवंगत होने का रास्ता ढूंढा जाए।
मैंने विज्ञान की पढ़ाई न्यूटन को समर्पित करते हुए छोड़ दी। लेकिन प्रो एच सी वर्मा को कभी नहीं भूल सका। concept of physics किताब में प्रो वर्मा ने एम एम अख्तर का भी ज़िक्र किया है। इन्हें देखने का सौभाग्य नहीं मिला लेकिन किस्से खूब सुन रखे थे। उस किताब में लिखा था कि प्रो एच सी वर्मा, आईआईटी कानपुर। ज़ाहिर है अगर वही एच सी वर्मा है तो आईआईटी कानपुर के छात्र भी प्रो वर्मा के बारे में यही ख्याल रखते होंगे। जब एक विज्ञान से भागा हुआ विद्यार्थी इस तरह से याद रखे हुए हैं तो उनके पढ़ाये हुए कामयाब छात्रों के सपनों और किस्सों में प्रो वर्मा की क्या जगह होगी, कल्पना कर सकता हूं।
वाह भाई हमनें भी वर्मा जी की पुस्तक खूब पढी है, भाग १ और भाग २ दोनों. आई आई टी में नही पहुँच सके पर इन्जिनिअर तो खैर बन ही गए. आपकी पोस्ट नें पुरानी स्मृतियाँ ताज़ा कर दीं. लखनऊ में हमारे भौतिकी के अध्यापक आचार्य राम कुमार भी अद्भुत स्नेह और सरलता से पढाते थे, उनके आदेश पर ही हमने वर्मा जी की पुस्तक खरीदी थी. रही बात आदर की तो गुरुजनों के प्रति तो मन में आदर है ही. हाँ कुछ एक को छोड़ कर जो शायद ग़लती से शिक्षा प्रणाली के कर्बोरेटर में आकर फँस गए थे.
ReplyDeleteहमारी पीढ़ी के जिन विद्यार्थियों ने भी medical अथवा engineering की तैयारी की होगी उन्होंने प्रो. एच.सी. वर्मा को तो जरूर ही बनाया होगा.उसे एक बार खु़द से बना गये तो समझो कमसे कम physics में कोई दिक्कत नहीं होगी.
ReplyDeleteउस concept of physics की याद दिलाने का शुक्रिया.
रवीश जी, प्रो वर्मा का शागिर्द मैं भी रहा हूं। वो तो आईआईटी चले गए। हम लोग Science College में ही लटके रह गए। उनके बाद आए प्रो बी बी त्रिपाठी। सोचा, प्रो वर्मा तो मेरा बेरा पार नहीं लगा सके, लेकिन त्रिपाठी जी की पुंछ पकड़ कर आईआईटी या एनआईटी की बैतरनी तो पार हो जी जाएगी। अफसोस, बाद में वो भी आईआईटी चले गए। कई सालों तक कंप्लेक्स में घुटता रहा। बल्कि यह कंप्लेक्स आईआईएमसी में एडमिशन के बाद ही ख़त्म हो सका। सोचा टी नहीं मिला तो कोई बात नहीं। आईआई तो पहुंच ही गया। कटवारिया से आईआईटी नज़र आता है। और साथ में अशोक राज पथ पर पड़ी कंसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स, रेसनिक-हैलिडे,इरोडोव की यादें भी ताज़ा हो जाती है।
ReplyDeleteतवीश भाई,
ReplyDeleteप्रा. वर्मा के बारे में बताने के लिये धन्यवाद! मैं उनको व्यक्तिगत रूप से तो नहीं जानता किन्तु उनकी भौतिकी के दो भागों को बहुत अच्छी तरह देखा,परखा और समझा है। अत्यन्त सजीव पुस्तक है। इसके चित्र, प्रश्न, प्रस्तुतिकीरण आदि सब महान हैं। यदि किसी को दुर्भाग्य से अच्छा अध्यापक नहीं मिल पाया तो भी ऐसी पुस्तकें छात्रों का भला कर सकने की क्षमता रखती हैं।
Ravish ji
ReplyDeleteVerma ji ki yaden taaja karne ke liye dhanyawad. Concept of Physics maine bhi padhi hai.
Badhiya Ravish jee.
ReplyDeleteHC Verma ka kitab to maine bhi padha hai. A. K. Verma, Karim sahab, Tripathi jee sab physics ke achhe teachers the Patna me.
रवीश जी, यहाँ तो आपने हमारे मन की बात कह डाली है ... एच सी वर्मा की पुस्तक तो खूब पढी हमने... बाद में उनकी क्लास में भी पढने का मौका मिला.
ReplyDeleteवर्माजी भौतिकी के अलावा समाज सेवा में भी गहरी रूचि रखते हैं. आजकल बच्चों की विज्ञान में रूचि जगाने वाले प्रयोग पर काम कर रहे हैं, साथ ही स्कूलों में व्याख्यान के अलावा क्वांटम फिजिक्स पर भी काम कर रहे हैं... क्वांटम फिजिक्स पर भी उनकी एक बुक आई है... साथ ही ९-१०वी के सीबीएसई पाठ्यक्रम के लिए भी उन्होंने फिजिक्स का पुस्तकें लिख डाली है.... काश जब हम १० वी में थे तब ये बुक आई होती,
उस वक्त हम भी साइंस कालेज मी अपने दोस्तों के साथ साइकिल पर लटक के जाते थे ! मजा आता था ! वर्मा सर तो भूत से भी ज्यादा फेमस थे ! बेहद विनम्र और संस्कारयुक्त !
ReplyDeleteउस वक्त "बिलतू बाबु" का भी बहुत नाम था - त्रिपाठी सर के बहुत किस्से होते थे - अख्तर साहब यूं ही किसी को अपने यहाँ दाखिला नही लेते थे !
आज भी अभयानंद जी और आनंद कुमार जी की धूम है ! शायद "पटना" के पानी मे फिजिक्स का परमाणु घुमते रहता है !
इस तरह के लेख के लिए आपको हम सभी हम उम्र वालों का धन्यवाद !
hc verma ke bahane dher saari smritiyaa patna univ. kee yaad aapane tazaa kar dee.rajeev kee kahani bahut hi interesting hai t to nahee use c jarur meel gaya.concept of physics ek aisaa naam thaa jab board paas kar ke ladke gaon ki deharee se nikalkar patna ke liya petee baandhkar nikalte the to ek sapanaa hotaa thaa kee physics padhenge to verma sir se. unkaa padhaane kaa andaaz bilkul sahityik thaa , science unake liye ek aisee kavitaa thee jise sunkar hee physics kaa kitaanu dimag main feet ho jaata thaa. thanx for remembring verma sir.
ReplyDeleteवर्मा को पढा मैंने भी है. पर न आइआइटी जाना था, न जाने का माद्दा था और न गया. पर हमारे मुजफ़्फ़रपुर में भी एक बड़े प्रसिद्ध मास्साब थे आइआइटी के मामले में. जानकी बाबू गणित पढाते थे. उनके सामने कैलकुलस, ट्रिग्नोमेट्री, अल्जेब्रा वगैरह बनाने में बड़ा आनंद आता था.
ReplyDeleteरविशजी का लेख पढकर अतीत में एक गोता लगा आया.
रवीश जी जीवन में ऐसे शिॿकों की याद हमेशा तरोताजा रहती जिन्होने आपको कुछ दिया हो । चाहे शिॿा या फिर जीवन को जीने के लिए एक आदशॻ स्थिति।आपने एक पीढ़ी तो जी है लेकिन सवाल है कि क्या आने वाली पीढ़ी में ऐसे आदशॻ (शिॿकों) उपलब्ध हो पायेंगे जिनकी चचाॻ दशकों बाद उनके छाॼ कर सकेंगें । बौधिक दस्त के इस ब्लाग पर मैे आज पहली बार टिप्पड़ी कर रहा हूं । कृपया बुरा मत मानिये मैने इस अभिव्यक्ति के माध्यम को बौद्धिक दस्त इसलिए कहा क्योकि इस पर जिस का मन किया जो विषय रूचा दस्त कर दिया।किसी जिम्मदारी का कोई भार नहीं ।हाल में ही आपने बिहार में जातीय दवाइयों के बारे में बड़ी गमाॻ गरम बहस छेड़ी। बड़े ही सनसनीखेज तरीके से दवाइयों की भी जाति होती है को उद्घाटित किया ।साधुवाद। बहस चली और भ्रमित हो गयी।ाआश्चयॻ।टिप्पड़ियां जातीय हो गयीं ।पूवाॻनुमानित। मेरे एक मिॼ ने भी बढ चढ़कर इस बहस में हिस्सा लेकर मुहल्ले का हिस्सा बन गया। यही विसंगति है। सोच राष्ट्रीय है और हिस्सा बन रहे हैं कस्बे और मोहल्ले का। और शायद यही वास्तविकता भी जब जब हम अपनी सोच को राष्ट्रीय मुलम्मा चढ़ाते हैं धूम फिर कर अपने कस्बे मोहल्ले कौम और परिवार में फंस कर रह जाते हैं । निराकार ब्रम्ह की उपासना करते करते साकार से स्वाथॻ कुन्ड में प्रवेश कर जाते हैं ।यही कारण है कि मेरे मिॼ भी आपके साथ गमाॻ गरम बहस करके मोहल्ले के ताजा अंक में अपनी जातीय स्वाभिमान से जुड़े संसमरणों पर उतर आये । उनकी भी मजबूरी है उनके बारे में परिचय बताया गया है कि वे वामपंथी हैं। वामपंथियों की अपनी मजबूरी होती है उनका तन मन का साथ नहीं देता मन विचारों के साथ नहीं रहता कल्पना लोक के सुनहरे संसार में रहते हुए धूमिल जमीनी जिन्दगी जीते हैं । खैर बात चली थी ।ेएक अच्छे शिॿक के बारे में । शिॿकों की जिस आदशॻ स्थिती की कल्पना की जाती है क्या आगे वह हकीकत में मिलेगी । हो सकता है आप कहें कि समाज के बदलते दौर में ऐसे शिॿक कैसे मिलेंगे । तो आप यह भी जान लीजिए कि यदि समाज शिॿकों की दशा और दिशा तय करेगा तो समाज कभी न तो बदलेगा और नही सुधरेगा।
ReplyDeleteबढ़िया रवीश जी बढ़िया,बहुत खूब लिखा है...यादें ताजा हो गईं...आपके हर ब्लॉग ये बातें तो लोग कहते ही हैं......
ReplyDeleteApne niji jeevan mein her vyakti apne school adi mein kisi ne kisi Guru se prabhavit hota hi hai. Anek dashak beet jane per bhi jab koi school adi ke sahpathi achanak mil jate hein to purani baatein taza ho jati hain aur vriddha bhi bhoot kal ke achche Guru adi ki yaadein duhra lete hein…aur bachche ban jate hein!
ReplyDeleteBhootnath Shiva un sab Guru adi ki atma ko shanti de!