देखो बापू जा रहे हैं
हम सबके भीतर से
चुपचाप चले जा रहे हैं
कहीं कोई शोर नहीं है
लाठी की ठक ठक से
ऐसे कैसे जा रहे है
देखो बापू जा रहे हैं
हम सबके भीतर से
चुपचाप चले जा रहे हैं
कहीं कोई शोर नहीं है
लाठी की ठक ठक से
ऐसे कैसे जा रहे है
देखो बापू जा रहे हैं
हिंसा के चतुर रास्तों से
बचते बचाते खतरों से
अहिंसा का सामान लिये
सत्य बोलने का साहस छोड़
देखो बापू जा रहे हैं
कोई उठाता नहीं सड़कों से
हीरे की तरह साहस को
कंकड़ की तरह विचारों को
फेंकते हुए जा रहे हैं
देखो बापू जा रहे हैं
कहीं कोई शोर नहीं
लाठी की ठक ठक से
ऐसे कैसे जा रहे हैं
देखो बापू जा रहे हैं
दो अक्तूबर को जन्म हुआ
बापू का कितना नाम हुआ
सब जन्मदिन मना रहे हैं
चरखे पर कट रहा केक है
बापू का भी अब रीमेक है
सारा सामान समेट कर
खुद को उठाए हुए
वो कहीं जा रहे हैं
देखो बापू जा रहे हैं
(दोस्तों गांधी जयंती पर बापू ऐसे ही याद आए। कविता बनते बनते चले
गए- रवीश )
ravis bhai dil jeet liya.
ReplyDeletekabhi kabhi bapu bahut yaad aate hain Ravish ji
ReplyDeleteअभी कुछ देर पहले (दो घंटे पहले) हमारी एक बांगलादेशी मित्र से बातचीत हो रही थी, वे साथ ही में काम करते हैं। वो बोले कि मैंने सुना है कि इंडिया में बहुत 'हिंदू फन्डामैंटलिस्ट' हैं। हम क्या करते गांधी बाबा का नाम जपने लगे, उनके संस्मरण सुनाने लगे। तथा भारत के लोग कितने सेक्यूलर हैं उन्हें समझाने लगे। और अभी आपकी कविता पढ़ रहा हूँ तो लग रहा है कि देखो बापू सचमुच जा रहे हैं।
ReplyDeleteravish jee,
ReplyDeletesidhe sade shabdo me bahut badi baat likh jaate hain aur kah jaate hain.Gandhi ke naam par jab khilwad hota hai kuchh tutata hua sa mahsoos hota hai.
dekho baapoo jaa rahe hain.... ek bahut badhiya kawita.....umesh
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