कहीं ऐसा तो नहीं कि क्रिकेट स्टेडियमों और उसके बाहर रेडियो टीवी से चिपके दर्शकों श्रोताओं के आंख कान तक न्यूज़ चैनल घुस जाने की फूहड़ होड़ में शामिल हो गए हैं । न्यूज़ चैनल कभी मनोरंजन कार्यक्रमों तो कभी क्रिकेट से कंपीट करते हुए उसके दर्शकों पर अपना कब्ज़ा जमाने की कोशिश में हैं । चौबीस घंटे के खबरिया चैनलों का जिस तरह उनके पदार्पण के वक्त लोगों ने स्वागत किया उससे यह घमंड पैदा हुआ लगता है । न्यूज़ वालों को लगता है कि जो भी, जहां भी है, वह उन्हीं को देखे । बाकी कुछ न करे । इसी क्रम में ख़बर का मतलब क्रिकेट ,फिल्म और प्रवचन हो गया है । करण जौहर और पूर्व क्रिकेटरों की बकबकबाज़ी ख़बर है । पता नहीं लोग इनको कितना सुनना चाहते हैं । मगर न्यूज़ चैनल वालों ने इनके चक्कर में ख़बर के दर्शकों को जो धकियाया है वो काबिले तारीफ है । दुनिया का हर अख़बार एक दूसरे से अलग दिखने की कोशिश करता है । हिंदी के सारे चैनल एक जैसे दिखने की ज़िद में हैं । वो यह चाहते हैं कि जो दर्शक क्रिकेट देख रहा है उसे अपने पास ले आएं और खबर की जगह क्रिकेट दिखा कर टीआरपी ले लें । फिर कहें कि लोग क्रिकेट देखना चाहते हैं । सुबह लोग मंदिर जाते हैं , योग करते हैं तो धरम करम पर प्रवचन दिखाने लगे । इस कोशिश में कि लोग मंदिर न जाकर फटीचर बाबाओं के प्रवचन सुनने लगें । और टीआरपी का प्रसाद मिल जाए । न्यूज़ चैनलों का यह दुस्साहस लगता है । या यह भी हो सकता है कि दर्शक अब न्यूज़ चैनल पर अपने पसंद की चीज़े देखना चाहता है न कि दिन दुनिया की ख़बरें । कुलमिलाकर यही कहना चाहता हूं कि क्या न्यूज़ चैनल इस फिराक में हैं कि लोग कुछ न पढ़े, कुछ न देखें सिर्फ न्यूज़ देखें । वो फिल्म जाएंगे तो हम फिल्म दिखायेंगे । वो मंदिर जाएंगे तो हम प्रवचन दिखायेंगे । वो आस्था चैनल देखेंगे तो बाबा रामदेव को आस्था से उठा कर अपने चैनल पर ले आएंगे । कहीं यह चैनलों का एकाधिकारवादी नज़रिया तो नहीं है ?
दूसरी बात । १७ मार्च को बांग्लादेश के हाथ भारत की शौर्यपूर्ण हार के बाद के हाल पर । हम अगर क्रिकेट ही खेलना चाहते हैं (टीवी पर मैदान पर नहीं ) तो खेल के हिसाब से दिखाइये न । पुतला दहन क्या दिखा रहे हैं । बोलिये कि शाबाश बांग्लादेश और आयरलैंड के सूरमाओ । क्या खेला है । उनके सूरमाओं का विश्वेषण कीजिए । कहीं विस्तार से आज दिखा टीवी पर । क्या उनका जीतना क्रिकेट नहीं है । हम सिर्फ यही दिखा रहे हैं कि भारत हार गया । सहवाग हाय हाय । इसे हटाओ उसे लाओ । अपनी ही हार पर माथा पिटे जा रहे हैं । खेल में क्या उलट फेर हुआ उस पर खेल के हिसाब से नज़रिया कम है । पत्रकारिता में खेल भावना नहीं होती क्या ? हम सेना के पत्रकार हैं क्या ? उधर हमारे क्रिकेट प्रेमी इस भ्रम के शिकार हो गए हैं कि उनकी संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा है इसलिए इंडिया को ही जीतना चाहिए था । आखिर किसी चैनल ने कहा वेल डन बांग्लादेश । क्या किसी ने खेल भावना के तहत बांग्लादेश और आयरलैंड की जीत पर बधाई दी । किसी ने कहा कि हां खूब खेला तो जीत उनकी ही होनी चाहिए थे । हो यह रहा है कि क्रिकेट को ख़बर बनाकर हम उसे राष्ट्रवाद के पैमाने पर चढ़ा दे रहे हैं । हम हार गए । हम हार गए । सर धुने जा रहे हैं । न्यूज़ चैनल भी अंध राष्ट्रवाद के शिकार हो गए हैं । वो खेल के प्रति समझ पैदा नही कर रहे हैं । पाकिस्तान में क्या हो रहा है इसकी जानकारी नहीं बल्कि ज़िक्र भर है । विश्व विजेता बाहर हुआ है विश्व कप से । उस पर विश्लेषण कहीं कहीं दिखा मगर यह सब राष्ट्रवाद के पुतला दहन में गायब हो गया । क्या पागलपन है भई । बंद कीजिए चैनलों पर एसएमएस करना । कोई इटारसी से रो रही है कि राहुल को हटाओ । कोई मिदनापुर से रो रहा है कि सहवाग को हटाओ । मैं कहता हूं कि एसएमएस भेजने वाले फालतू किस्म के सक्रिय दर्शकों को मिलाकर एक टीम बना दो । प्रतिक्रिया दीजिए मगर इतना नहीं कि कुछ सुनाई नहीं दे । कुछ दिखाई नहीं दे । हद हो गई ।
बढिया!! हर गली में मौजूद क्रिकेट के जानकारों को सिर्फ भारत की हार ही नजर आ रही है, आखिर कब हम स्वीकारेंगे बंगलादेशी शेरों के बेहतरीन शिकार को!
ReplyDeleteरोकेंगे कैसे? कमाई हो रही है मीडिया हाउसेज़ की। और यहां कोई पल्ला नहीं झाड़ सकता \'कि उनका तो बस काम ही यही है\'। सब नंगे हैं हमाम में। फ़िलहाल मां बहन की गालियां वर्जित हैं। बाईट में भी एसएमएस में भी। हो सकता है लोकप्रियता ऐसे ही बढ़ती रही तो जल्द ही इसका भी आनंद मिलेगा दर्शकों को। लोग थोड़े ही तैयार नहीं हैं। बस इशारे भर की देर है। देखिए आगे आगे होता है क्या। हर तरफ़ अंधेर मचा है। लोगों को रास्ता दिखाने वाले पत्रकार उन्हें बहकाने में भरपूर मदद कर रहे हैं। बात रोटी की नहीं रह गई है। बात महत्वाकांक्षा की हो आई है। और वो बहुत बड़ी है। जिसकी है उसे भी कहां मालूम ज़िंदगी से उसे क्या-क्या चाहिए? जाता क्या है? एक तथाकथित बहुत बड़े पत्रकार कहते हैं जो दर्शक देखता है हम दिखाते हैं। सच तो उलटा है। लेकिन बहाना अच्छा है। जाइए दर्शकों को समझाइए। अब समझाए कौन? समझाने का काम जिनका है वो माल बना रहे हैं।
ReplyDeleteआपने सही कहा। मुझे भी इंतज़ार है सार्थक बहस का। लेकिन कब होगी ये बहस? कहीं पहले आपको पता चले तो मुझे भी बताइएगा।
इसी बक झक और बकवास के चक्कर में विश्वकप देखने की मेरी इच्छा बिलकुल खत्म हो गई है।
ReplyDeleteयह बात तो बिल्कुल सही है रवीशजी कि अखबारॊं और चैनलों को भारत- पाक की हार ही दिखी। बंग्लादेश आयरलैण्ड के खिलाड़ियों की जीत पर एक छॊटा सा समाचार देने की या उनकी जीत को बिरदाने की कोशिश ही नहीं की।
ReplyDeleteमैने रात को मैच देखा था और यह पाया कि वह भारत की हार नहीं बंग्लादेश की जीत थी।
bahut sahi ravish bhai... wakai me is desh ke fans me abhi itni sashansheelta nahi aai hai jise taiyyar karna hoga. media ko bhi isme apani jimmedari nibhani hogi, akhir ye sara mahaul aur kisane khada kiya hai. kitnon me dum hai ki itni imaandaari se sachai ko sweekar kare. yahan to channel wahi cheez dikhaye ja rahe hain jo uttejana paida kare. pahle havan, yagya, nach-gaana uar kawwaliyan bhi dikhai ja rahi tthi, ab dhoni, sehwag ke ghar par pradarshan. hum sab jaante hain isme kitna kucchh manage kiya hua hai. kammal ye ki isme bhi apani saari seemayen tod di ja rahi hain. aaj raat 10 baje ek programme me anchor sahab madanlal aur kirmani se kah rahe tthe ki ye hocky ki team to nai gai hai jo bangladesh se haar gai. aur to aur apne akramak andaj me to wo ye bhi puchhte hain ki kya har baar haar kar jitna jaruri hai. unki cricket ke baare me gyan aur samajh dono hi bataate hain ki channel par unhe us programm me bitthane ke pichhe kya mansha rahi hogi. jab BJP aur Sangh par shodh karne wala dhoni ke naye ghar me ban rahe swimming pool aur multi level car parking ke baare me baat karke usse team india ki haar ke jimmedar bataye to ye unki cricket ki samajh aur haar ko bhi cash karaane ki channel ki maansikataa saaf taur par dikhata hai.lekin dikkat ye hai ki abhi phir hafte ki TRP aayegi aur msg ye jaayega ki is programme ko points mile. ye samajhna hoga ki ye cricket hai jisme jab 83 me bhaarat aur 96 me srilanka ne aise hi us samay ke diggajon ko chaunkaya ttha. agar tab kaha ttha wah india to is baar kahna hi chahiye wel done bangladesh......
ReplyDeleteरवीश जी ब्लॉग में लिखना आसान है....चैनलवा में अप्लाई करवाईए ना....
ReplyDeleteWell said M raj. Ye economics subject hi aisi hai. Isme litreture ki koi jagah nahi hoti hai
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