ब्लागमुग्धता

ये आत्ममुग्धता का नया संस्करण है। जब से लिखने लगा हूं लगता है मुक्तिबोध या मोहन राकेश हो गया हूं। पता नहीं कहां से आ रही है यह ब्लागमुग्धता। एक चाहत सी उमड़ रही है कि मेरा लिखा अजर अमर होने वाला है। कहीं कोई आलोचक इनकी समीक्षा कर रहा होगा। किसी विश्वविद्यालय में कोई पीएचडी कर रहा होगा। विषय रवीश कुमार का ब्लागमन। क्या ब्लागमुग्धता से आप भी ग्रसित हो रहे हैं। मनोविज्ञान में इसका निदान अभी नहीं है। होम्योपैथी मे पता किया है। कोई ठीक जवाब नहीं दे रहा है। एक सुबह लगा कि काश अखबार निकलना बंद हो जाए और लोग सुबह उठ कर मेरा ही ब्लाग पढ़े। संसद में मेरे ब्लाग पर चर्चा हो। और चुनाव में मेरे ब्लाग को बजट में एलोकेशन देने का वादा हो। क्या मैं निरंकुश होने वाला हूं? क्या ब्लाग पर लिखना बंद कर दूं? ऐसा क्यों हो रहा है? मैं इनदिनों हर काम छोड़ कर ब्लाग पर लगा रहता हूं?

क्या आत्ममुग्धता और ब्लागमुग्धता किसी भी लिखने वालों के स्वाभाविक लक्षण हैं? क्या राही मासूम रज़ा को भी लगता होगा कि लोग कुछ न पढ़े सिर्फ आधा गांव पढ़ते रहें? कहीं श्रीलाल शुक्ल यह तो नहीं कहते होंगे कि आज की पीढ़ी नालायक है । ये लोग रागदरबारी तो पढ़ते नहीं पूरी ज़िंदगी एनसीईआरटी पढ़ने में लगा देते हैं। वैसे मैं बहुत खुश हं। ब्लाग पर लिखने से। इसका कागज़ खत्म नहीं होता। स्याही सूखती नहीं। क्या आपको भी ऐसा हो रहा है। ईमानदारी से बताइयेगा तो पता चल पाएगा। नहीं तो मैं क्यों हर ब्लाग के बाद अपने दोस्तों को बता रहा हूं कि भई पढ़ें। एसएमएस कर रहा हूं। ईमेल भेज रहा हूं कि मेरा एक ब्लाग है पढ़ना। और सुखी रहना। हर लेख के बाद मोहल्ला के अविनाश को फोन करता हूं। पढ़ा क्या। मुझे लगता है कि वो दफ्तर में काम क्यों कर रहे हैं। मेरा ब्लाग क्यों नहीं पढ़ रहे हैं। दोस्तों आप सच कहेंगे तो मैं सनकने से बच जाऊंगा।

23 comments:

  1. हा... हा... हा... अब आप ब्लॉगर हो गये... पक्के ब्लॉगर. शुभकामना!!!
    -शशि सिंह

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  2. पक्के ब्लागर बनने पर बधाई और शुभकामनायें!!

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  3. आपने एक ब्लागर की मनोभावनाओं का सुन्दर व सजीव चित्रण किया है.......
    बधाई स्वीकारें

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  4. "... क्या आपको भी ऐसा हो रहा है। ईमानदारी से बताइयेगा तो पता चल पाएगा। नहीं तो मैं क्यों हर ब्लाग के बाद अपने दोस्तों को बता रहा हूं कि भई पढ़ें। एसएमएस कर रहा हूं। ईमेल भेज रहा हूं कि मेरा एक ब्लाग है पढ़ना। और सुखी रहना। हर लेख के बाद मोहल्ला के अविनाश को फोन करता हूं। पढ़ा क्या। मुझे लगता है कि वो दफ्तर में काम क्यों कर रहे हैं। मेरा ब्लाग क्यों नहीं पढ़ रहे हैं। दोस्तों आप सच कहेंगे तो मैं सनकने से बच जाऊंगा।..."

    यह तो सनातन सत्य है. जरा इसे भी पढ़ देखें . और, अखबार में या अन्य मीडिया में आपकी रचना पर त्वरित टिप्पणियाँ भी तो नहीं मिलतीं!

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  5. एकदम सत्य वचन। मुझे भी एसा ही महसूस होता है।

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  6. मुझे लगता है कि वो दफ्तर में काम क्यों कर रहे हैं। मेरा ब्लाग क्यों नहीं पढ़ रहे हैं।
    वाह अपेक्षा की चरम सीमा है!


    पढ़ते हैं भई, पर सभी पाठक अपने कदमों के निशान (टिप्पणी) नही छोड़ जाते। किंचित भी निराश न हों।

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  7. हो सकता है मैं भी इन दिनों छूत से ग्रस्‍त होऊं, क्‍योंकि फिलहाल तो ऐसा ही है कि आधा गांव, राग दरबारी और रवीश कुमार के लिखे में से छांटने की बात होगी, तो मैं क्‍या छांटूंगा इसमें मुझे शंका नहीं है. बेहतर है हाथ में माइक लिये आप यह सवाल साहित्‍य अकादमी के ऊंचे अधिकारी और किसी कोमल-मना कवियत्री से करें. और जब फुरसत लगे, हमें घंटा एक फोन करें.

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  8. दोस्तों आप सच कहेंगे तो मैं सनकने से बच जाऊंगा।

    --क्यूँ बचायें, हमें किसी ने बचाया था क्या?? :)

    खैर रविश भाई, अब तो हो ही गये हो सही ब्लॉगर, अब न बच पाओगे. थोडी देरे हो गई. :)

    वैसे, बहुत बधाई!!

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  9. गयी भैंस पानी में। आप मीरा की तरह गाइये- हेरी मै तो ब्लाग दिवाना मेरा दरद न जाने कोय! वैसे आपकी हालत सामान्य है। जो कोई भी ब्लाग लिखना शुरू करता है उसमें कमोवेश सबकी हालत यही होती है। बधाई! अब आप अपने मीडिया जगत में इसके बारे में लोगों को बताइये ताकि और तमाम लोग अभिव्यक्ति के इस माध्यम से जुड़ें!

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  10. ऐसा स्वाभाविक है। लेकिन आप ईमानदार हैं। दुनिया को देखने के अलावा खुद को भी परखते हैं, हैरत करते हैं। इसलिए अपने अंदर हुए परिवर्तन पर आपने सवाल उठाए। किसी ने कहा भी है कि ठीक-ठीक खुद को समझ लो, दुनिया भी तुम्हारी समझ में होगी। आप अंदर और बाहर दोनों की सैर करते हैं। सच तो ये है कि आपने ब्लॉगर्स से सवाल नहीं किये। बल्कि उन्हें ये याद दिलाया है कि अगर उनके साथ ऐसा कुछ होता है तो खुद पर संयम रखें और बिना किसी चीज़ से प्रभावित हुए अपनी बातें लिखते रहें। इसकी परवाह किये बग़ैर कि कौन उन्हें पढ़ रहा है और कौन किस बात की तारीफ़ कर रहा है।

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  11. ब्लॉग जगत से जुड़ने वाले हर नए चिट्ठार्थी की शुरुआती ब्लॉगमुग्धता कमोबेश ऐसी होती है। लेकिन जो लोग पहले से ही जनसंचार माध्यमों से जुड़े हैं और छपास की पीड़ा या अपनी पहचान बनाने की ग्रंथि से ग्रसित हुए बगैर चिट्ठाकारी में सक्रिय हो रहे हैं, वे कई मायनों में चिट्ठा जगत के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं। वे कुछ ऐसा कहते और लिखते हैं, जो कहा जाना चाहिए, न कि ऐसा जो लोग पसंद करते हैं। चिट्ठाकारी में अभिव्यक्ति की शैली एक किस्म की अनौपचारिकता और आत्मीयता से लैस होती है, और वही असल में चिट्ठाकारी की विशिष्टता है। पत्रकारिता की दुनिया में जो तरह-तरह के अनचाहे दबाव अभिव्यक्ति पर लागू होते हैं, वे यहाँ लागू नहीं होते। सही मायनों में जनसंवाद और जनसंचार यहाँ होता है, जो दोतरफा होता है।
    मैं इस बात के लिए अविनाश का आभारी हूँ कि वह आप जैसे कई विशिष्ट लेखकों और पत्रकारों को चिट्ठाकारी की तरफ आकर्षित करने में सफल रहे।

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  12. ओ जी अभी तो बीमारी के लक्षण दिखने शुरु हुए हैं। आगे आगे देखिए होता है क्या। जल्द ही मेरी तरह रात बिरात उठकर ब्लॉग लिखने पढ़ने लगोगे। :)

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  13. नीलिमा के चिट्ठे पर कल ही लिखा, "सफ़र का ये लुत्फ़ पता चल जाये, समुदाय से जुड़ने के नफ़े पता लग जायें तो फिर लत छूटती नहीं।" मैं कम ही लिख पाता हूँ, टिपियाता भी कम हूँ पर लोगों को ब्लॉग पढ़े बिना चैन नहीं मिलता। रात डेड़ दो बजे तक अनूप और मैं आनलाईन मिलेंगे, चिट्ठाकारी के रोग ने नींद उड़ा दी है। अखबार भले न पढ़ा हो, अनूप का कोई लेख प्रिंट कर घर पर आकर पढ़ता हूं। टीवी का अडिक्ट कहालाया जाता था पर उस ओर मुंह नहीं करता अब, पत्नी ने भी कंप्यूटर को सौत का दर्जा दे दिया है। ये रोग छपास से भी बड़ा रोग है :)

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  14. लोग सुबह उठ कर मेरा ही ब्लाग पढ़े। संसद में मेरे ब्लाग पर चर्चा हो। और चुनाव में मेरे ब्लाग को बजट में एलोकेशन देने का वादा हो।
    आपका यह सपना सत्य हो ऐसी कामना करते हुए आपके पक्के ब्लॉगर होने की बधाई देते है।

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  15. सही है रवीश भाई, लगे रहो।
    अब रही नुस्खे की बात। सबरे सबेरे नहाकर, दो अगरबत्ती जलाएं, अपनी ब्लॉग पोस्ट लिखें। एक प्रिन्ट आउट निकालकर पर्ची बनाएं, लाल कपड़े मे बाँधे और दाँए हाथ मे बाँधे, शर्ट के ऊपर यार!

    इत्ती देर मे आपका ब्लॉग नारद पर आ जाएगा। उस दिन के जित्ते भी ब्लॉग आपको दिखॆ, सबके यहाँ जाकर परसादी (टिप्पणी यार!) बाँट आइए। लोग आपके ब्लॉग पर अपने आप आएंगे।

    जब द्फ़्तरे मे लोग लाल कपड़े/ताबीज का रहस्य पूछें तो बस अपने ब्लॉग का पता बता दें। बोलो वही सब लिखा है, पढ लो।

    शाम को दोबारा अपना ब्लॉग देखें, टिप्पणियों से भरा पाएं। मन की शान्ति के लिए एक हिट काउन्टर लगाएं और उसे दिन मे चार बार खोलकर देखें। ऐसा एक हफ़्ता करें, असर दिखेगा, जल्द से जल्द।

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  16. चलिए एक और हमव्यस्न साथी चिट्ठाजगत को मिल गया. बधाई पक्के ब्लोगर बनने के लिए. आप फस चुके है.

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  17. आपकी टिप्पणी पढ़ कर कस्बे तक पहुँची....पूरा कस्बा घूम लिया ।
    आपके लेखन में एक विश्लेशन है...जो निरंतर बने रहता है...और बाँधे भी रहता है....एक सामर्थ्य है....जो सोच बदल सकती है...बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर...अपने साथ कुछ विचार लेकर जारही हूँ....आगे सोचूँगी ।

    "ब्लागमुग्धता
    मनोविज्ञान में इसका निदान अभी नहीं है।"

    "सर उठाओगे तो चुनाव हार जाओगे"

    "कहां थे उन ७२ घंटों में
    नोआखली या अपनी तस्वीरों में दुबके रहे"

    "अनैतिकता के हथियार से धर्मनिरपेक्षता की रक्षा।"

    "महाभारत की परंपरा में एकलव्य का किरदार एक बेईमान गुरु और एक मूर्ख शिष्य की कहानी है।"

    "बच्चे की आवाज़ में एकलव्य की मानसिकता को चुनौती दी जाती है।"

    "धर्म वो है जो बुद्धि है।"

    "एकलव्य एक सबक है। जो छला गया वो एकलव्य है। महानायक नहीं।"

    "अपनी अटैची पर तो इतना भरोसा करते हैं, दूसरों की अटैची पर क्यों शक करें।"

    "मेरा सामान लेकर उसने अपना दाम लगा दिया"

    "क्या हिंदी की मानसकिता अपने लिए जीती है ? उसका कोई नागरिक बोध है? या सिर्फ वह अपने जाति बोध के अहंकार में ही है? बहस होनी चाहिए"

    "हर शादीशुदा संकट में है।"

    "सर्वे इन भावनाओं को नहीं पकड़ता जो बिना किसी की मर्जी के अपने आप उमड़ रही थीं।"

    "साहित्य न होता तो कस्बों की बात ही नहीं होती ।
    ज़ाहिर है जब मास्टर और चेले एक ही जगह पर ठहरे पानी की तरह रहेंगे तो लोग याद ही करेंगे।"

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  18. Simply outstanding. Hmmmmm. It's good to see u here. I am going to make a page on wikipedia which tells about you. I tried lot to retrieve info about u but :(. When i will get free from my work, i will make sure u, i will make ur page.

    Rajesh Roshan

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  19. लो, आज का संडे तो आपके सारे पोस्‍टों के नाम हो गया। बहुत बढि़या। - आनंद

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  20. ए... ए... ए... ए.......... फंसाsssss

    :-)

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  21. लगभग हर लेखक के साथ होता है.किसी में कम किसी में थोड़ा ज़्यादा.सर,इस बुक फेयर में अंतिका पर आपकी किताब देखी.खरीदना चाहती थी पर तब तक सारे पैसे खर्च हो चुके थे.खड़ी खड़ी जितना पढ़ सकती थीं पढ़ा.भौमिक जी वाली किताब ही खरीद पाई बस.वो सौ रूपये की है.उस दिन अकेली गई थी.कोई दोस्त भी नहीं था साथ, नहीं तो उधार लेकर खरीद लेती.मंगा लूंगी अंतिका से.

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  22. ये लेख मैंने आज पढ़ा लेकिन मैं इस बारे में बहुत दिनों से सोच रही थी गम्भीरता से.मैं लिक्खुंगी इन लेखों पर एक बड़ा आलेख या एक शोध पत्र.अभी नयी हूँ अभी तक 6,7 aarticles लिखे हैं.वो भी सिर्फ साहित्यिक.अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है.लेकिन मौक़ा मिलते ही लिखूंगी.

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  23. मुझे आपसे बहुत सारे सवाल पूछने थे.ऐसी ही बातों से रिलेटेड आत्ममुग्धता,आत्मप्रचार और कई सारे सामाजिक मसलों पर.लेकिन अब आप fb पर नहीं हैं.जब आप वापस आएंगे तब पूछुंगी.सब लिख कर रखूंगी.

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