मार्केटिंग की 'ही' थ्योरी
आईआईएम अहमदाबाद वाले फालतू की चीज़ों पर रिसर्च करते रहते हैं। कभी इस पर रिसर्च करनी चाहिए कि हिन्दी बाज़ार जगत में 'ही' का क्या महत्व है। 'ही' लगाने से किस तरह की एक्सक्लूसिविटी का निर्माण होता है। इसकी शुरूआत कैसे हुई। रिश्ते ही रिश्ते से चलकर शीशे ही शीशे,बिस्तरे ही बिस्तरे से होते हुए हर एक माल वाली दुकान की टैग लाइन ही तय करने लगी। सॉफ्टी ही सॉफ्टी। ही शब्द का इस्तमाल जितना साहित्यकारों ने नहीं किया उतना हिन्दी के बाज़ार ने किया है। दुकानों की भीड़ में ही एक अलग पहचान बनाती है। लगता है कि दुकानदार विशेषज्ञ है। कई बार होता है तो कई बार ही के सहारे झांसा भी देता है। अगर आप भी ही पुराण की रचना में सहयोग देंगे तो अच्छा लगेगा। किसी न्यूज़ चैनल या अखबार की यह पंच लाइन क्यों नहीं है-ख़बरें ही ख़बरें,देख तो लें। वकील अपने बोर्ड के नीचे लिखवा दें-जीत ही जीत। कामनवेल्थ गेम्स का नारा बदलवा दीजिए। खेल ही खेल। नारायणमूर्ति को भी लिखना चाहिए-इंफोसिस,बीपीओ ही बीपीओ। कंपनी अपने आप गांव गांव में पहुंच जाएगी। इसकी लोकप्रियता में चार चांद लग जायेंगे।
ही पर रोचक लेख बन पड़ा है।
ReplyDeleteबढिया।
देखते जाइये और कैसा-कैसा प्रयोग और बाजा बजता है / अच्छी विचारणीय प्रस्तुती /
ReplyDeleteजहां आपकी नजर पहुंचती है .. वहां आई आई एम वालों की नजर भी नहीं पहुंच पाती !!
ReplyDeleteही ही ही
ReplyDeleteDear Ravish Jee,
ReplyDeleteCongratulation for Blog Fashion
You are a very good observer and orator as well.
You can make very convincing appeal.
I try to draw your kind attention that your appeal for Bihar Flood made me very emotional and accordingly, I made my effort from Hyderabad for flood relief from Packaging Industries of Hyderabad. I had spoken over Phone to you, your Channel could not support but CNN/IBN helped me to distribute our fresh Goods /Kits to the needy people.
Anyway, your appeal can bring revolution. No doubt but......
Placing standard comments is your profession.
In context, with your recent reaction on “Theory from marketing itself”, I would like to add in the form of question
“Is consumer a KING or CONFUSED in the MARKET?” You will find that consumer is confused in the market.
Mithilamanthan Group is organsing seminar on UDYOG in Mithila at Kalidas Deeh (Uchaitha/ Madhubani/Mithila/Bihar) on June 25, 2010. Very remote area. We would like to invite you. How can we invite you?
Hope you will respond me on karnaips@gmail.com
Regards,
Karna BK
पहली बार पढ़कर यह वाक्य कुछ समझ में ही नही आया-
ReplyDelete"कभी इस पर रिसर्च करनी चाहिए कि हिन्दी बाज़ार जगत में ही का क्या महत्व है।"
इसको समझने लायक (व्याकरणसम्मत) बनाने के लिये इसे ऐसे लिखना चाहिये था-
"कभी इस पर रिसर्च करनी चाहिए कि हिन्दी बाज़ार जगत में 'ही' का क्या महत्व है।"
"ही" बालीवुड तक जा पहुंचा है। "हुण मौजा ही मौजा" वाला गीत ध्यान होगा।
ReplyDeleteवकीलों के लिए नारा सुझाने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteHEE PAR RAVEESH JI AAP HI RESERCH KAR SAKTE HAI... SAB PAR NAJAR RAHTI HAI AAPKI..
ReplyDeleteहिन्दी या साहित्य अकादमी ने जहां लिखा- कविता ही कविता तो मत पूछिए।.
ReplyDeletekool
ReplyDeleteRavish ji ko saadar parnaam....bhai ji aapki ek HI baat to hame pasand hai ki aap jahan kuchh na ho wahan bhi kuchh na kuchh khoz HI lete hai....
ReplyDeleteHindi men "HI" ke istamaal ka Punjabi men "HI" se kuchh relation banaya ja sakta hai.
ReplyDeleteMumbai, Ahmedabad men ya Kolkata me shayad ye tarika na mile.
Shayad yah Bhasha ka "LOCALISATION" hai. :)
naukriyaan hi naukriyaan bhi padhne ko milta hai sir
ReplyDeleterishte hi rishte likhe ya mile ko itna tan diya wah bhai ravish ji
ReplyDeleteअर्थशास्त्र में इसे इकोनोमी ऑफ स्केल कहते हैं। जहां अधिक उत्पादन वहाँ दाम कम बाज़ार में पहुँच ज्यादा मुनाफा ज्यादा। सचमुच यह एक मार्केटिंग का हथकंडा है। हमारी एक मौसी जी अपनी बिटिया के ससुराल वालों की महानता और संपन्नता बताने के लिए इस "ही" का ही प्रयोग करती हैं बक़ौल उनके हमाए दमाद के हियाँ कमरा ही कमरा हैं, और उनमें कूलर ही कूलर"
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