रोज़ देखा जाने वाला, कहा जाने वाला, सुना जाने वाला लिखा जाने वाला और इन सबसे ऊपर जीया जाने वाला शहर है । इसकी इतनी परिभाषाएँ और व्यंजनाएं हैं कि यह शहर हर लफ़्ज़ के साथ कुछ और हो जाता है । लिखनेवाले की गिरफ़्त से निकल जाता है । मैं बनारस के ख़िलाफ़ किसी बनारस को खोजने निकला था मगर हर जगह मिला उसी बनारस से जिसे मीडिया ने एक टूरिस्ट गाइड की तरह एकरेखीय वृतांत में बदल दिया था । वृतांतों का रस है बनारस ।
दरअसल बनारस कोई शहर ही नहीं है । यह कभी था न कभी है और कभी रहेगा । शहर होता तो किसी पेरिस जैसा होता किसी लुधियाना सा होता या किसी दिल्ली सा । सड़कों दीवारों से बनारस नहीं है । बनारस है बनारस के मानस से । आचरण, विचरण और धारण से । जो भी मिला बनारस को धारण किये मिला । बनारसीपन । इसके बिना तो कोई बाबा विश्वनाथ को देख सकता है न बनारस को । यह बनारस का होकर बनारस को जीने का शहर है । यह न मेरा है न तेरा है न उसका है जो बनारस का है ।
बहुत कम हुआ जब लौट आने के बाद किसी शहर की याद आई । किसी शहर में जागने सा अहसास हुआ । सोचता रहा कि क्या लिखूँ बनारस पर । क्या नहीं लिखा जा चुका है । इस शहर के लोग किसी दास्तान की तरह मिलते हैं । क़िस्सों से इतने भरे हैं कि सुनाते सुनाते ख़ुद किसी किस्से में बदल जाते हैं । मिलने और बोलने का ऐसा रोमांच कहीं और महसूस नहीं हुआ । जो भी मिला उसे जितना मिलना चाहिए उससे ज़्यादा मिला । कम तो कोई मिला ही नहीं । कम तो हम दिल्ली वाले मिले । सोचते रह गए कि कितना मिले और सामने वाला पूरा मिलकर चला गया । बनारस को खोजना नहीं पड़ता है । कहीं भी मिल जाता है ।
हम बाबा ठंठई की दुकान पर थे । उनकी शान में क़सीदे पढ़ते रहे कि हर साल आपकी ठंडई एक मित्र से बुज़ुर्ग के हवाले से दिल्ली पहुँच जाती है । पिछले कई सालों से आपकी ठंडई पी रहा हूँ । कोई चालीस पचास साल से ठंडई बना रहे जनाब ने ऊपर देखा तक नहीं कि कौन है क्या बोल रहा है । बस किसी साधना की तरह ठंडई बनाने में लगे रहे । साधना ज़रूरी है । चाहे आप देश चलायें या ठंडई बनाये । मगर वही खड़ा किसी शख़्स ने किसी को भेजकर पान मँगवा दिया । लस्सी की दुकान का पता बता दिया । कार से गुज़रते वक्त पान और चाय की दुकानों पर लोगों को जमा देखा । रूककर खाकर बतियाते देखा । लगा कि इस शहर में लोग दफ़्तर दुकान जाने के अलावा भी घर से निकलते हैं । सुबह सुबह चाय पीने गया था । बस किसी ने किसी को कह दिया कि बाइक से इन्हें पार्क तक छोड़ आओ । बिना देखे बिना जाने उसने चाय छोड़ी और पार्क तक छोड़ आया । जिन्हें भी जीवन में बात करने की समस्या है । लगता है कि वो तर्क नहीं कर पाते । वो बनारस चले जायें । बोलने लग जायेंगे । ख़ासकर टीवी के ये बौराये और झुँझलाये एंकरों को हर साल बनारस जाना चाहिए ।
रेडियो मिर्ची के दफ़्तर गया था । नौजवान जौकियों के संसार में । बात करने की ऐसी शैली कि मेरा बस चले तो हर जौकी बनारस की सड़कों से उठा लाऊँ । सबके पास कुछ न कुछ अतिरिक्त था मुझे देने के लिए । आज के इस दौर में उनके पास बहुत सी गर्मजोशियां बची हुई है । जल्दी समझ गया कि यह टीवी में दिखने के कारण नहीं है । जो प्यार बह रहा है वो बनारस के कारण है । मिर्ची के इन मिठ्ठुओं से
मेरा भी दिल लग गया । तोते की तरह बोलता था वो मोटू ! तो शांत सँभल कर अमान और रह रहकर सोनी । एक से एक किस्सागो । बात बात में मैं विशाल के साथ लाइव हो गया । उनके कुछ और दोस्तों से मुलाक़ात हुई । हर मुलाक़ात में मैं बस इस शहर के लोगों में मिलने की फ़ितरत देख रहा था । कितना मिलते हैं भाई । भाइयों ने मेरी शान में दफ़्तर के भीतर चाट का एक स्टाल ही लगा दिया । टमाटर की चाट । वाह । दिल्ली वालों को पता चल गया तो हर नुक्कड़ और बारात में बेचकर खटारा बना देंगे ।
मुझे पता है कि जितना मिल जाता है उतना लायक नहीं हूँ । वैसे भी क्या करना है हिसाब कर । टीवी के फ़रेब के नाम पर प्यार ही तो मिल रहा है । मैं माया में यक़ीन करता हूँ । सब माया है । माया मिलाती है, माया रूलाती है और माया हंसाती है । घड़ी की दुकान में स्ट्रैप बदलवाने गया था । जनाब ने कोई स्पेशल जूस मँगवा दी । कहा कि पीते जाइये । ज़ोर देकर कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप पीयें । ये बनारस का असली है । मैंने तो कहा भी नहीं था पर वो यह जूस पिलाकर काफी ख़ुश दिखे । इतने ख़ुश कि लाज के मारे शुक्रिया कहते न बना ।
वो पता नहीं कौन लड़का था । लंका चौक पर जहाँ बीजेपी का धरना चल रहा था । भयानक गर्मी थी । वो पहले जूस लाया फिर पार्कर पेन ख़रीद लाया खुद ही पैकेट से निकाल कर जेब में रख गया । किसी चैनल के फ़्रेम में देखकर वो महिला अपने पति और बेटी के साथ दौड़ी चली आई । हांफ रही थी । वो घर ले जाकर खाना खिलाना चाहती थी । काश मैं चला गया होता । और वो कौन था जो मिर्ची दफ़्तर के बाहर हम सबकी चाय के पैसे देकर चला गया । आठ दस लोगों की चाय के पैसे । मैं सोचता रह गया कि हमने कब किसी अजनबी के लिए ऐसा किया है । उफ्फ !
अजीब शहर है कोई ख़ाली हाथ मिलता ही नहीं है । ऐसा नहीं कि मैं टीवी वाला हूँ इसलिए लोग मिल रहे थे । मुझसे मिलने के बाद वहाँ मौजूद किसी से वैसे ही मिल रहे थे । हम दिल्ली वाले मिलना भूल गए हैं । काम से तो मिलते हैं मगर मिलने के लिए नहीं मिलते हैं । रोज़ दफ़्तर से लौटते वक्त ख़ाली सा लगता हूँ । अब तो मेरा एकांत ही मेरी भीड़ है । मैं भी तो कहीं नहीं जाता । जाने कब से अकेला रहना अच्छा लग गया । ग़नीमत है कि फेसबुक ट्वीटर है । जो भी अकेले में बड़बड़ाता हूँ लिख देता हूँ । अकेले बैठे बैठाए दुनिया से मिल आता हूँ । काम और शहर के अनुशासन की क़ीमत पर मुलाक़ात का बंद होना ठीक नहीं । हम मिलते तो यहीं बनारस बना देते । बनारस एक दूसरे से मिलता है इसलिए बनारस है । दिल्ली के नाम में तो दिल है मगर दिल है कहाँ । दिल्लगी है कहाँ और कहाँ है दीवानगी । बनारस में है । वहाँ के लोगों में है । आप सबने मुझे बेहतरीन यादें दी हैं । मैं बनारस को याद कर रहा हूँ ।
La javab ravishbhai,subha subha aapki nazar se banaras ka raspan kiya
ReplyDeleteAajkal ajanabi ko esha pyar kaha miltahe?
Isiliye to kabhi banaras bharat ki aadyatmik rajdhani tha...its nice but delhi mein bhi kuch jagah banaras baccha h
ReplyDeleteरोज़ आपका ब्लाग पढता हूँ. इतनी संवेदनशीलता और बेबाकी से लिखने वाले किसी लुप्तप्राय प्रजाति के बेहद अनमोल सदस्य हैं आप. प्रशंसक हूँ पर पता नहीं आप भी कब तक खुद को बचा कर रख पाएंगे. कम ही बचे हैं आप जैसे. चिंता होती है. मेरे जैसे कई होंगे जिन्होने आपकी वजह से अंग्रेजी चैनलों से सन्यास ले लिया है. अच्छा हुआ, कम से कम हिन्दी मे दिल की बात लिखने का सुख तो नसीब हुआ. काफी है. जब तक आपकी अंतरात्मा आपके लेखन का आधार है, आता रहूँगा,आभार प्रकट करने.
ReplyDeleteakkhad fakkad thandai phir paan
ReplyDeletekya yahi bachi banars ki pehchan
kuch aur hai tu man ya na man
kashi ko aati vicharo ka samman
guzarish itni tujhse aey mehman
zafar kalaiyon ka bhi ho gungan
Zafar Iqbal and Md.Sahid, the legendary hockey players of India
Welcome Back original Ravish ji.Banaras jaisey sahron ne shayad insaniyat ko jinda rakha hai.
ReplyDeleteWelcome Back original Ravish ji.Banaras jaisey sahron ne shayad insaniyat ko jinda rakha hai.
ReplyDeleteयह बात अकेले दिल्ली कि नहीं है, हर आधुनिक और परगतिशील शहर या व्यक्ति का यही आचरण हो गया है कि अपना काम बनता ...........और यही कारण है कि ना तो ऐसे व्यक्ति या समूह को तरजीह दी जाती है तो सेवा भाव रखाता है ... सो उसका विकास नहीं हो पता ... क्यूँ (क्यूंकि वह तो सेवक है और यही उसकी गति है ).
ReplyDeleteरवीश भाई, मैं कारण तो नहीं जानता और मेरा अनुभव भी आप जैसा नहीं है, फिर भी जितना मैंने देखा है गाँव से लेकर शहर तक लोगो में अपनापन की कमी आई है, मैंने वो समय भी देखा जब किसी को खिलाने-पिलाने में लोगो को ख़ुशी होती थी, लेकिन अब कोई आ जाये तो भाव होता है की गेस्टिंग बढ़ गयी है, इतना खर्चा बढ़ गया है, कहाँ-कहाँ से डिस्टर्ब करने चले आते है।
ReplyDeletekisi bhi ayna shahar ki tarah Banaras bhi paakhand ke saath jee raha hai.Jo kuksh alag hai wo hai yeha ke ghato aur Ganga ki khubsurati
ReplyDeleteShayad yahi peedio ka faraq kamaya hai humne.. Apni dadi ko dekhta hu to aesa hi mehsus karta hu.. Dunia simat rahi hai..
ReplyDeleteचलिये चुनाव सकुशल हो गया और क्या चाहिये। बनारस आके आपको अच्छा लगा ये जान के हमे भी अच्छा लगा। फिर आते रहियेगा, हर बार कुछ नया देखने को मिलता रहेगा। और हाँ, वो ट्वियर पे अपने नाम का ब्लॉग जरूर देखियेगा और जरा गौर कीजियेगा.
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ReplyDeleteRavish sir ye aapka badhapan hai jo aap aisa samajhte hai.
ReplyDeleteAccha laga ki aap bhi bahut pyaar aur maan dete hai Hum logo ko.
Thanks.
वाह सर मजा आ गया बहुत दिनों से इन्तेजार जार था आपका ब्लॉग का आपका नजरिया ही है हो आपको वो दिखा देता ह जो बाकी सब नहीं देख पाते , ये मई सिर्फ आपके लिए नहीं कह रही सबकी लिए कह रही हु ....मई भी बनारास गयी हु कई बार गयी हु पर अभो ४ साल हो गए जाना नई हप पाया सच वहां आज भी वो सभ्यता जिन्दा है जिसे हम सब भूल गए है छोटी छोटी गलियों में भी रुक रुक कर मिलना हो जाता है और दूसरा जाने वाला ये नहीं कहता की यहाँ क्यों खड़े होकट राष्ट रोक रहे हो खैर कशी की दिलेरी और काशी की व्यjeयूँही ख़त्म हो ही नहीं सकती ...पर अपनर बहुत अच्छा विश्लेषर् किया है ............एक सवाल है जो मेरे मन में बहुत समय से है की हम सब कहते है की और हम सब ने बचपन में प्रेयर भी की है की हम सब भारत वासी है सब एक है फिर इतना भेद भाव क्यों .....नेता भी बात करते ह तो सिर्फ उनकी जो वोट देने के अधिकारी है फिर चाहे जो भी पार्टी हो saari ही पार्टयों का वही हाल है ....पर उनका क्या इनके पास वोट देने का अधिकार ही नई है .....चाहे वो मंदिरों के आगे बैठने वाले भिखारी हप या फिर कूड़ा उठाने वाले या फिर और दूसरे लोग जिनके पास वोट का अधिकार है या नई कोई न जनता है पर न ही जानना चाहता है पर अधिकार तो उन्हें भी है और नस ही टी.व्. म उनके लिएकोई भी जगह है बमुझे बहुत दुख होता है जब मैं उन छोटे बच्चों को एक टॉफ़ी के लिए तरसते देखती हु और हम सब बड़ी आसानी से उनके माँ बाप को दोष दे सकते है की वो उन्हें स्कूल नहीं भेजते पर अगर उन्हें सुविधा मिले तो क्या वो ऐसे ज़िन्दगो जिन चाहेंगे और क्या अगर sabhya samaj में जा कर रहना चाहे तो समाज उन्हें जीने देगा शायद नहीं शायद ये सब बातें बेकार हो या शायद कुछ मायने हो जो भी हो मन किया तो लिख दिया ...ये नहीं पता कोई कुछ करेगा की नहीं लेकिन अगर कुछ भी कर पायी तो मो तो ज़रूर करुँगी Dhanyawaad इतना पढ़ने के लिए उमनिद है आप पढ़ेंगे !नमस्कार रविश सर
ReplyDeleteUpanyas ke kisi Panne sareekha aapka ye anubhav behad khoobsurat hai aur isse bhi badhkar inhe khud mein sametkar chalene Ka aapka ye nazaria behad anmol hai...
ReplyDeleteLekin ek Banaras to Kabhi Bhartendu ke nazar se bhi guzra tha.... kya us Banaras Ka nazaria waqt ke saath badal paya hai ...ya dharohar sambhalne ki zidd mein wahi atka pada hai.... umeed hai ekdin is baare mein bhi aap zaroor kuch kahenge....!
अरे सर , इतना SENTI मत करो, नौकरी छोड़ के घर जाने का मन बन रहा है ,
ReplyDeleteअरे सर , इतना SENTI मत करो, नौकरी छोड़ के घर जाने का मन बन रहा है ,
ReplyDeleteApane blogs me ya Facebook account me status daalkar gayab na hua kijiye. ..bate kara kariye.....yaha to mil hi sakte ho bhai....accha lagega aapko. ....yehi se shuruaat kijiye thoda sa banaras jaisa banane ki....milne ki....
ReplyDeletespechless. banaras ke bare main kuch bhi keh pana muskil hai mere liye kyoki kabhi gaya hi nahi par aap ki nazar se jo dekha wo sayad hi kabhi bhool paunga.
ReplyDeleteऐसा लगता है की मै मुंबई कि तँग गलियोँ मे कुछ कुछ ऐसा ही जीवन जी रह हू। रोज दोस्तों से मिलने के लिये मिलते है। मोबाइल सबके पास है पर अक्सर जब सब बतियाँ रहे होते है तो आने वाली कॉल पे ज्यादा बात नही करते है। जिंदगी सभी जगह है रविश सिर्फ़ आप को कुछ अच्छे लोगो क साथ ढूंढना है।
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ReplyDeleteLast paragraph says why Ravish ji is different.... It was brilliant
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ReplyDeleteजियो राजा रविश !! ऐसा ही है बनारस तक़रीबन जैसा आप देखकर आये हैं और अपने Blog पर बयान किया है। बहुत उम्दा! आप समझ नहीं सकते दिल्ली में बैठा एक बनारसी आपका ये Blog पढ़कर कितना खुश महसूस कर रहा है और मस्त हो गया है।
ReplyDeleteरवीश जी ,मैं भी बनारस को याद कर रहा हूँ ।
ReplyDeletekya khoob kaha apne ravish sir.yahi to apni banaras ki khasiyat hai
ReplyDeleteबार बार पढता जा रह रहा हूँ । सब कुछ यहीं सारगर्भित है - "इस शहर के लोग किसी दास्तान की तरह मिलते हैं । क़िस्सों से इतने भरे हैं कि सुनाते सुनाते ख़ुद किसी किस्से में बदल जाते हैं । मिलने और बोलने का ऐसा रोमांच कहीं और महसूस नहीं हुआ । जो भी मिला उसे जितना मिलना चाहिए उससे ज़्यादा मिला । कम तो कोई मिला ही नहीं । कम तो हम दिल्ली वाले मिले । सोचते रह गए कि कितना मिले और सामने वाला पूरा मिलकर चला गया । बनारस को खोजना नहीं पड़ता है । कहीं भी मिल जाता है ।"
ReplyDeleteवाह , आपकी बाते पढ़कर किसी की कही ये पंक्तिया याद आ गयी .....
ReplyDeleteनई सदी के रंग में ढलकर हम याराना भूल गए
सबने ढूंढ़े अपने रस्ते साथ निभाना भूल गये
शाम ढले इक रोशन चेहरा क्या देखा इन आँखों ने
दिल में जागीं नई उमंगें दर्द पुराना भूल गए
ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका-फीका सा
त्योहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए
वो भी कैसे दीवाने थे ख़ून से चिट्ठी लिखते थे
आज के आशिक़ राहे वफ़ा में जान लुटाना भूल गए
बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे
बड़े हुए तो उन गलियों में आना-जाना भूल गए
शहर में आकर हमकॊ इतने ख़ुशियों के सामान मिले
घर-आंगन, पीपल, पगडंडी , गाँव सुहाना भूल गए
आपके पास शब्दों का भंडार है.... पढ़ती हूं तो बस पढ़ती चली जाती हूं... ऐसा अमूमन अब कम ही होता है....
ReplyDeleteवंदना वर्मा
Kafi raseela lag raha hai banaras , lassi , thandai , juice, chai ... Paan. Aur logon ki baton main to ras hai hee , paan muh main rakhkar Jo bolte hain :-) . Vakai main Maza aa Gaya parh kar
ReplyDeleteDelhi vale to sach main har kisi ko shak ki nigah se dekhte hain , patanahi itna darte hain to ghar se nikalte kyon hain ( Jagjit sigh ki Gazal ki line hai . Meri Nahi)
ReplyDeleteअंतिम पेराग्राफ अपनी फेसबुक वाल पर छापा हैं । आप के नाम एवं ब्लॉग के लिंक के साथ । कोई आपत्ति तो नहीं ॥ अगर है तो बता दीजियेगा >> डिलीट केर देंगे ।
ReplyDeletemein ek banarasi huu....aur pichle 4 saal se banaras nahi jaa paya. NON Reliable indian huu isliye.
ReplyDeleteblod pad kar bus aakho se aasu nahi rukhe...office me baithe baithe rone laga. itne dino baad aaj kuch jayada he miss kar raha huu banaras ko.
aapka shukriya ravishjee.
Kisi shar ko deykhney ka ek darshen hota hai aaj aap ney banaras ko jinda kar diya ,bahut sunder
ReplyDeleteरवीश भाई ... हम सब को अंदर से बनारसी होना पड़ेगा ... कुछ तो बनारसीपन आप में भी है ... तभी तो आप उस संवेदना को महसूस कर पाये ॥
ReplyDeleteरवीश भाई ... हम सब को अंदर से बनारसी होना पड़ेगा ... कुछ तो बनारसीपन आप में भी है ... तभी तो आप उस संवेदना को महसूस कर पाये ॥
ReplyDeleteगज़ब लिखें हैं गज़ब
ReplyDeleteKisi chiz par kitna bhi likha gaya ho par jab us par likh dete hi to piche Ka pada hua sab bhula jata hi bas aapka wala yad rah jata.
ReplyDeleteIshwar kare aap bahut likh sake
شان دار لکھا ہے بھائی
ReplyDeleteसर, इस दौर में कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता..ऐसे में बनारस की तासीर की जो तस्वीर आपने दिखाई है..उसे देखकर लगता है कि धरा पर जो कुछ इंसान शेष रह गए है वो इंनसानियत से लबरेज वहीं रहते है..लैकिन इंसान और इंनसानियत आपको ही दिखाई दे सकती है...अन्य को सनसनी और मासला से फुर्सत नहीं...उन्हें न शौक है..और न दीदार करने की नजर...।
ReplyDeleteRavish Bhai,
ReplyDeleteNamaskaar,
Accha laga Banaras ka blog padh kar. Pichle kucch dino se main aapke qasbe (Qasba) se guzar raha hu, lekin vichaaro ke matbhed ne un raasto ko bahut ubad-khaabad bana diya tha. Lekin aaj aisa nahi hai. Aapke spapsht vichaaro ne un rokawato ko Ganga ki shaleenta me chhupa diya, ya yun kahiye ke Ganga ne khud hi chhupa liya.
Kitna accha hota agar poora Bharat Banaras hota, aur maahaul Banarasi hota. Ek baat to taiy hai Ravish Bhai “ Jo maza Banaras me hai, Varanasi me nahi hai”.
yeh haal toh sabhi shehron ka hai ji..
ReplyDeletejitna sheher bada or samridh hota hai , wahan rehne wale logon ka dil utna hi chhota hota hai :)
Dil khush ho gaya. Banaras ho aaney ka munn bangaya! Well expressed from the core of the heart.
ReplyDeleteSIR JI abhi ghar se vapas aye huye 1 din bhi nahi huya par lagta hi nahi
ReplyDeleteki hum kahi duuur hai.
Aapka blog padh kar lagta hai ki mein abhi bhi ghar par hi hu.
Namaskar RavishJi,
ReplyDeleteMai Banaras ka rahnewala hu...kaam kaaj roti ke silsile me bangalore aana pada...ma pitaji dadaji pura kunba abhi bhi banaras me hai...mera bachpan se jawani sab banaras ki hai...jitna banaras aaj bhi zinda hia mere andar...uska daswa hissa bhi bangalore me nahi jiya...apke lekh ne subah subah aankh anayaas hi gili karde...aapka prasansak hu...is election ke mahaul me aap ke hi show kuch had tak sirf banaras ko sach me dikhata tha...baki sabme to hod mach rakhi hia kaun kitni jor se se chillata hia...
Aap aise hi bane rahe...bhagwan/allah aapko himmat takat bakshe...
Abhivadan Piyush...
ravish ji adbhut lekhan hai aapka.kabhi kabhi aapki lekhni dil ko choo jati ha.padne ke baad ek alag dunia main kho jata hoon.likhte rahiye.durlabh...
ReplyDeleteGood morning ...achha laga Banaras ke baare me jankar...aam logo ki ye hi khas baat hoti hai ki vo sabse khule dil se milte hai..aap roz VIP logo see milte hai isliye shayad aapko ye itana achha laga...we are so fortunate to feel these wonderful experience about us..ek question bhi hai aap sachh me ye sab pasand karate ho ??lagta nahi ..aapse interaction ka koi medium hoga...hai kya ??????
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ReplyDeleteRajneeti, Paan aur Thandai ke zikr se Raag Darbaari mai vaidji ka darbar yaad aa gaya.
ReplyDeleteModi Vaidji ki tarah purane khiladi hai aur Kejriwal Ruppan babu ki tarah gusse mai kuch naya kar dikhana chahte hai.
Aam janta hamesha ki tarah rangnath ki tarah muk darshak bani rahi
वाह सर । क्या खूब याद दिलाया आपने ।मेरी अत्यंत प्रिय पुस्तक । बस फर्क ये है कि बनारस में गनजहे नहीं हैं ।
Deleteमहोदय आपका बनारस को लेखांकित करने की शैली अदभुत रही है. आपके लेख का एक-एक पंक्ति बनारस को समर्पित है. हम आपके लेखन शैली के प्रेमी है, आशा है आप हमें ऐसे ही लेखो से भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित रहने को प्रोत्साहित करते रहेंगे.
ReplyDeletekya bat hai sirji..Aapka andaj hi alag hai........
ReplyDeleteRavishji Aapko bhi patrakarita me itihaas yaad karega,bus aap sachai par chalte jaiye,kamal ki taqat hai aapki kalam me.
ReplyDeletesuch an awesome article :) Ravish ji , you are the reason I am still connected to Hindi, my mother tongue. Thanks for your Primetime and your blogs. Such flawless, rich use of language:I had last read only during school days.
ReplyDeleteye sirf dilli ki baat nai...shayad har wo sahar ki hai..Jo Dilli jaisa bara hai..aur vishalkay hai...Banaras bhi hai vishalkay..lekin na sirf Banaras ..aise aur bhi sahar hai jahan milne ke liye hi nai....balki apnepan ke liye bhi milte hai...aur wo tab mehsus hota hai jab aap banaras ya uske aisi sahar chhod kar dilli,pune,banglore chale jate hai...aut daftar se ghar..ghar se daftar apki jindgi ho jati hai...
ReplyDeleteRavish sir aap khuskismat hai ki apko to fir bhi log mil jate hai...humare jaise log to....mat puchiye. .rehne dijiye...
kabhi kabhi koshta hu ish papi pet ko ..jo hamare mul jeevan se ish aprakritik jivan mein hame dhakel diya hai..shayad koi paap kiya hoga.....
Doosra pehlu ye bhi hai ki madhyam warg ki mahtwakanvhhayein itni bhad gayi hai ki wo apko banaras jaise sahron ko chhodne ko majboor kar deta hai....Khair...aur Kaas k sath..alvida..
Ravish sir, mai banarasi hun.mughe lagta hai ki aap ne baranas ko atishyokito ki chasni me duba hi diya ho.is sehar ki paan , saari, thandai mashur toh hai hai hi ...lekin yaha ke THUG bhi bahut mashoor hai..yaha ka crime bhi ..yaha ki alhaad pana bhi..
ReplyDeleteLekin kuch toh sachai hai aapke batto me , jab delhi ke log mughe careless , irresponsible, outspoken etc kahte hai. Hala ki meri najaro me mai nahi balki lagta hai ki yeh wahi banarasia paan hai mughme jo inhe meri carelessness dhikh rahi hai..
bahut hi pramanik sanvedana apane likhi hai. aaj tak aapke TV show ki prashansak thi aaj aapki likhavat ki bhi prashansak ho gayi hu.
ReplyDeleteaaise hi lihkte rahiye.
bahut sari shubhkamnaye.
bahut hi pramanik sanvedana apane likhi hai. aaj tak aapke TV show ki prashansak thi aaj aapki likhavat ki bhi prashansak ho gayi hu.
ReplyDeleteaaise hi lihkte rahiye.
bahut sari shubhkamnaye.